Experiences of Satsangis -sachi shiksha

वचन ज्यों के त्यों पूरे किए -सत्संगियों के अनुभव

पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

प्रेमी हंसराज इन्सां पुत्र सचखंडवासी श्री चौधरी राम गांव कोटली, सरसा से पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पावन ईलाही वचनों को अपने कानों से सुना व खुद ही साकार होते भी देखा और इसी का वर्णन बता रहे हैं:

जनवरी 1960 की बात है। मेरे बापू जी हमारे गांव की संगत के साथ पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा में गए। मेरे बापू जी ने शहनशाह जी के पवित्र चरणों में अर्ज की कि सार्इं जी, हमारे घर अपने मुबारिक चरण टिकाओ जी। त्रिकालदर्शी सर्व-सामर्थ सतगुरु शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘पुट्टर, फिर कभी आएंगे।’ पूजनीय बेपरवाह जी ने मेरे बापू से पूछा, ‘तुम्हारे कुल्हाड़ी (गुड़ तैयार करने की देसी विधि) है?’ मेरे बापू जी ने कहा कि जी है। शहनशाह जी बोले, ‘गुड़ खाने के लिए आएंगे, जरूर आएंगे।’ उक्त वचनों के लगभग तीन महीने बाद पूजनीय बेपरवाह जी ने अपना नूरी चोला बदल लिया।

हमारे परिवार के मन में था कि पूजनीय शहनशाह जी ने हमसे घर आने व कुल्हाड़ी से गुड़ खाने का वायदा किया था, पर आए तो नहीं। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपना नूरी चोला बदलने से लगभग दो महीने पहले ही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा में बतौर पूजनीय दूसरी पातशाही गद्दीनशीन करके स्वयं गुरगद्दी पर विराजमान किया।

मेरे बापू जी अक्सर परिवार में जिक्र किया करते कि सार्इं जी ने अपने घर आने और कुल्हाड़ी पर गुड़ खाने का मेरे से वायदा किया था कि आएंगे और जरूर आएंगे, लेकिन…! सन् 1962 में, तब तक दो साल गुजर गए थे और हम लोग भी पूज्य बेपरवाह जी के वचनों (घर आने व गुड़ खाने के किए वायदे) को भूल चुके थे। अचानक एक दिन पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज हमारे घर पर पधारे। आप जी ने फरमाया, ‘भाई, हम गुड़ खाने के लिए आए हैं, गुड़ खाएंगे।’ उस समय भी हमारे घर की ही कुल्हाड़ी थी, हमने पूजनीय परमपिता जी के लिए स्पैशल ताजा गुड़ बनाया। पूजनीय बेपरवाह जी हमारी कुल्हाड़ी पर पधारे और बेपरवाह जी ने जैसे अपने वचनों के द्वारा वायदा किया था, बकायदा गुड़ खाया।

यह अलौकिक दृश्य देखकर हम सबको पूजनीय बेपरवाह जी के वचन याद आए कि ‘गुड़ खाने आएंगे, जरूर आएंगे’, पूजनीय बेपरवाह जी ने अपना किया यह वायदा अपनी पावन दूसरी बॉडी पूजनीय परमपिता जी के स्वरूप में पूरा किया। महापुरुषों के कथनानुसार-

‘संत वचन पलटे नहीं,
पलट जाए ब्रह्मण्ड।’
‘साधु-बोले सहज सुभाइ!
संत का बोला बिरथा ना जाइ।’

स्पष्ट है कि पूजनीय बेपरवाह जी ने अपना वायदा पूजनीय परमपिता जी के स्वरूप में पूरा किया, अर्थात् पूजनीय बेपरवाह जी ने अपना चोला ही बदला है। पूजनीय बेपरवाह जी ने उस समय पर जो-जो भी वचन किए थे, अनेकों वचन पूजनीय परमपिता जी के स्परूप में तथा अनेकों वचन पूज्य मौजूदा गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के स्वरूप में पूरे हुए हैं और हो भी रहे हैं जी। प्यारे दाता जी, अपनी रहमत इसी तरह बनाए रखना जी।

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