Married Life हमारी संस्कृति में विवाह एक ऐसा पवित्र बन्धन माना गया है जिसे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवन-भर निभाया जाता है पर अब इस पवित्र बन्धन की मान्यता भी बदल गई है। आजकल हर दिन किसी न किसी के तलाक के बारे में सुनने को मिल जाता है। पहले जिस ‘तलाक’ शब्द का नाम भी लेना अच्छा नहीं माना जाता था, आज इसे लिया जाना भी बुरा नहीं माना जा रहा। क्या कारण है कि आज विवाह-बन्धन इतने कम समय में ही टूट जाते हैं?
इसका सबसे बड़ा कारण जो सभी महसूस करते हैं वह है महिलाओं की स्थिति। पहले पत्नी के साथ पुरुष जैसा भी व्यवहार करते थे, वह उसे तमाम जिंदगी सहती थी पर आज उसकी स्थिति काफी मजबूत बन गई है। आज वह एक नौकरानी नहीं बल्कि मालकिन की स्थिति चाहती है। आज उसे न तो पति का दुर्व्यवहार सहनीय है और न ही ससुराल का। उसका अहं भी अपने पति की भांति ही कोई गलत बात नहीं सहना चाहता।
आज महिलाएं आत्मनिर्भर हैं। वे खुद कमा रही हैं और किसी पर निर्भर नहीं हैं। अगर वे अपनी शादी शुदा जिंदगी में जरा भी अड़चन पाती हैं तो तलाक लेने से घबराती नहीं। उन्हें लगता है कि ऐसी जिंदगी जिसमें तनाव हो, उससे बेहतर है अकेले जिंदगी व्यतीत करना। इसमें भी बहुत कठिनाइयां हैं, इसलिए अपने वैवाहिक जीवन में स्थिरता लाना बहुत आवश्यक है। थोड़ी बहुत एडजस्टमेंट तो हर रिश्ते में करनी होती है। फिर इस पवित्र बंधन में करनी पड़े तो उससे कतराएं नहीं। आइए जानें कि इस पवित्र रिश्ते के टूटने की क्या वजहें हैं और इन कारणों को अपने वैवाहिक जीवन पर हावी न होने दें। अक्सर विवाह से पहले तो जीवन साथी संपूर्ण लगता है पर विवाह के बाद उसकी कमियों का अहसास होने लगता है। विवाह से पूर्व और विवाह के बाद का चेहरा बदला-बदला-सा लगने लगता है।
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कई बार इन कमियों के सामने आने से भी वैवाहिक जीवन की शुरूआत में ही तकरार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह हम सब जानते हैं कि जब हम पहली बार किसी से मिल रहे होते हैं तो हम दूसरे को प्रभावित करने के लिए अच्छे से अच्छा व्यवहार करते हैं और अपनी कमियों को दूसरे पर हावी नहीं होने देते पर कमियां हम सभी में होती हैं। इसलिए गुणों के साथ-साथ इस रिश्ते में कमियों को स्वीकार करना भी जरूरी है।
एक अच्छे वैवाहिक जीवन में समस्या तब भी उत्पन्न हो जाती है जब हम अपने साथी को अपने काम में व्यस्त पाते हैं। हमें लगता है कि हमारा साथी हमारी तरफ ध्यान नहीं दे रहा और हम अपने आप को अकेला व उपेक्षित महसूस करने लगते हैं और मन में यह भावना घर कर जाती है। विवाह की सबसे बड़ी शर्त होती है एडजस्टमेंट। जो पति पत्नी एडजस्टमेंट करने में सफल होेते हैं, उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है पर आज समस्या यह है कि आज की युवा पीढ़ी एडजस्ट करना सीखी ही नहीं। आज के माहौल में प्राय: दो बच्चों का स्थान भी एक बच्चा ले चुका है और वह ऐसे माहौल में बड़ा होता है जहां वह एडजस्ट करना नहीं सीखता बल्कि उसके अभिभावक उसके साथ एडजस्ट करते हैं।
ऐसे बच्चे बड़े होकर अपने पार्टनर से भी यही आशा रखते हैं कि साथी एडजस्ट करें और वे स्वयं अपनी मनमर्जी चलाते हैं। वे अपने आपको किसी भी कीमत पर बदलना पसंद नहीं करते। विवाह में एडजस्टमेंट एक व्यक्ति का नहीं बल्कि दोनों का होता है। कुछ हम बदलें, कुछ तुम बदलो, तभी भागती है वैवाहिक जीवन की गाड़ी। वैवाहिक जीवन उत्तरदायित्व भी साथ लाता है। जिम्मेदारी उठाने के लिए व्यक्ति को तैयार करवाता है। आज की युवा पीढ़ी इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती। उन्हें तो विवाह फूलों की सेज लगती है परंतु वे भूल जाते हैं कि इस फूलोें की सेज के लिए फूल जुटाने के लिए उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। कुछ तो इस मेहनत से घबराते नहीं पर कुछ इस जिम्मेदारी के पड़ने पर घबरा जाते हैं।
जब दोनों पति पत्नी अपनी जिम्मेदारी का वहन भली प्रकार से करते हैं तो इनका वैवाहिक जीवन खुशनुमा रहता है पर जो जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ रहते हैं उनके बीच अलगाव की स्थिति आ जाती है। कई बार पैसों के कारण भी तकरार की स्थिति आ जाती है। घर को कैसे चलाना है, इस बारे में हर व्यक्ति की सोच अलग होती है। किसी के लिए बच्चों को पढ़ाना महत्त्वपूर्ण होता है, तो किसी के लिए उनकी दूसरी जरूरतों पर ध्यान देना। यहां भी तकरार की स्थिति रहती है। एक पार्टनर एक एक पैसे की बचत करने में लगा होता है, दूसरा फिजूल में। इस तरह जरा-जरा-सी तकरार अलगाव पैदा कर देती है। अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए दोनों को आपस में सलाह मशवरा कर लेना चाहिए ताकि ऐसी स्थिति पर काबू पाया जा सके।
वैवाहिक जीवन में तकरार लाने में पति पत्नी के रिश्तेदार दोस्त भी अहम भूमिका निभाते हैं। कभी-कभी ससुराल वाले ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं जिसके कारण पति पत्नी में अनबन होने लगती है और उनका रिश्ता प्रभावित होने लगता है। समझदार पति पत्नी वही होते हैं जिनमें अंडरस्टैंडिंग होती है और वे अपने रिश्ते को किसी अन्य रिश्ते के प्रभाव से अछूता रखते हैं। अभिभावकों की दखलअंदाजी के कारण अधिकतर रिश्ते टूटते हैं। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को उनके मन मुताबिक जीवन जीने दें।
इसके अतिरिक्त भी कई कारण हैं जो वैवाहिक जीवन में अलगाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। कारण जो भी हो पर इसका परिणाम कभी भी सुखद नहीं होता। इसलिए ऐसी परिस्थितियों में अपने वैवाहिक जीवन को समझदारी से चलाने की आवश्यकता होती है। एकदम अलग होने का फैसला करना भी मूर्खता है। हर रिश्ते को बनने में समय लगता है। अगर रिश्तों में तकरार की स्थिति आती भी है तो कुछ समय अवश्य दें और कोशिश करें कि स्थिति संभल जाए। अकेले तन्हा जीवनयापन करने से अच्छा है अपने जीवन साथी की बांहों में जीवन गुजारना। तकरार को थोड़े में ही समाप्त कर दें। लम्बा न खीचें। सबसे बड़ी बात है कि अपने साथी को इतना प्यार दें जितनी उसने आशा भी न रखी हो।
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