सच्चे सार्इं जी ने जो फरमाया, सच हुआ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता सायर धर्म पत्नी माला राम ढाणी नजदीक डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम सरसा से शहनशाह मस्ताना जी के एक अनोखे करिश्मे का वर्णन इस प्रकार करती है :-
ये बात सन् 1953 की है कि जब मैं शादी के बाद ढाणी में बहू बन कर आई। मेरी सासू रामकुरी धर्मपत्नी जग्गू राम मुझे अपने साथ शहनशाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन कराने के लिए डेरे में लेकर आई। शहनशाह जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए मेरी सास से पूछा कि ये औरत कौन है? मेरी सास ने कहा ‘साईं जी ! यह हमारी बहू है।’ अन्तर्यामी सतगुरु जी बोले, ‘भाई! यह किसकी बहू है?’ मेरी सास ने कहा कि यह माला राम की बहू है। प्यारे सतगुरु जी बोले, ‘भाई ! माला राम कौन है?’ इस पर मेरी सास ने कहा कि साईं जी ! माला राम मेरा बेटा है जिस पर कल रात सांप चढ़ गया था। परम दयालु दातार जी ने फरमाया, ‘लाओ भर्ई मणका दें।’ सच्चे पातशाह जी ने मुझे अपने पावन कर-कमलों से एक बहुत ही सुन्दर मणका दिया। मैं वह मणका खुशी-खुशी अपने घर ले आई और अपने घर में सम्भाल कर रख दिया।
उस समय डेरा की एक ही तरफ दीवार थी बाकी सभी तरफ कांटेदार झाड़ियों की बहुत ही जबरदस्त बाड़ लगी हुई थी। अन्दर जाने-आने के लिए एक बहुत ही सुन्दर दरवाजा बना हुआ था। दरवाजों पर चांदी के रुपए जड़े हुए थे। दरवाजों के दोनों तरफ बहुत ही सुन्दर हाथी बने हुए थे। जो भी दर्शक इस दरवाजे की महान सुन्दरता को देखता तो वह बस देखता ही रह जाता। ।
मेरे घरवाला श्री मालाराम डेरा सच्चा सौदा में अक्सर ही सेवा किया करता था। उस रात को वह मकान बनाने के लिए नींव.खोद रहा था। सावन-भादों का महीना था। मेरा पति आराम करने के लिए वहीं बैठ गया तो बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। एक बड़ा काला सांप उसकी जांघ (पट्ट) पर चढ़ गया। तुरन्त उसकी आंख खुल गई। वह डर गया और मुंह से आवाज निकली ‘सांप-सांप।’ शहनशाह मस्ताना जी महाराज वहीं पर विराजमान थे। सतगुरु जी की रहमत से सांप उसकी जांघ से उतर कर एक तरफ सरकता हुआ छिपने लगा। सच्चे पातशाह जी ने वचन फरमाया, ‘कोई बात नहीं काल टल गया।’ बेपरवाह जी महाराज के हुक्म से सेवादार प्रेमी भाई उस सांप को पकड़ कर दूर छोड़ आए।
शहनशाह जी का हुक्म है कि डेरे के अन्दर सांप, बिच्छू आदि किसी भी जानवर को मारना नहीं है बल्कि उसे पकड़कर बाहर आबादी से दूर छोड़ आना है। आज भी सच्चा सौदा में सतगुरु जी का उपरोक्त हुक्म ज्यों का त्यों लागू है। एक दिन मुझे सच्चे पातशाह मस्ताना जी महाराज के पवित्र चरणों में अर्ज करने का मौका मिल गया। उस समय मेरे कोई बच्चा नहीं था। मैंने सच्चे पातशाह जी के चरणों में अर्ज की कि साईं जी ! मेरे पीछे भी कोई भाई नहीं है। हम केवल आठ बहिनें ही बहिनें हैं। अब मुझे लड़के की जरूरत है। घट-घट की जानने वाले अन्तर्यामी सतगुरु जी ने वचन फरमाए, ‘पहले दो लड़कियां होंगी फिर लड़का होगा। उस समय असीं इस बॉडी में नहीं होंगे।
लड़के का नाम तुम पण्डित से निकलवाओगे और पंडित इसका नाम कृष्ण निकालेगा तो आपको लड़के का नाम कृष्ण ही रखना पड़ेगा।’ जो वचन सच्चे पातशाह जी ने फरमाए वे ज्यों के त्यों पूरे हुए। पहले दो लड़कियां पैदा हुईं, उसके बाद लड़का हुआ। जिस समय लड़के का जन्म हुआ तो उससे पहले शहनशाह जी ने अपना पवित्र चोला बदल लिया था। हमने लड़के का नाम पण्डित से निकलवाया। उसने लड़के का नाम कृष्ण निकाला जो सतगुरु जी ने पहले ही फरमा दिया था।
अपनी बॉडी बदलने से पहले वाली दो जहान बेपरवाह जी ने हमें वचन फरमाया, तुम्हारी सेवा पूरी हो गई। तुम सबको असीं लेकर जाएंगे। तुमने दरबार में आते रहना है। तुमने इस डेरे को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना। जो ताकत यहां पर काम करेगी आप पर दया-मेहर रखेगी। वो ताकत जो कुछ दे वो भी लेना पड़ेगा। दरबार नहीं छोड़ना। असीं तीसरी बॉडी में आएंगे।’
पूर्ण सतगुरु के वचन युगो-युग अटल होते हैं। युग पलट जाते हैं पर सतगुरु का वचन नहीं पलटता। सतगुरु सर्व-सामर्थ तीनों कालों (भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल) को जानने वाला होता है। वह घट-घट व पट-पट की जानता है। जैसा कि उपरोक्त साखी से स्पष्ट है। अपने मुर्शिद के वचनानुसार हम आज भी डेरा सच्चा सौदा से जुड़े हुए हैं और जितनी हो सकती हैं हमारे बच्चे तन-मन से सेवा भी करते हैं। सचमुच सतगुरु ने कोई कमी भी नहीं छोड़ी है। पूजनीय बेपरवाह जी स्वयं पूजनीय हजूर पिता जी की पावन बॉडी (अपनी तीसरी बॉडी) में मौजूद हैं।