Handle the bombs raining from the sky - Experiences of satsangis -sachi shiksha hindi

आसमां से बरसते बम्बों में भी संभाल की -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
फौजी अजमेर सिंह इन्सां पुत्र श्री कर्म चंद गांव चंदपुर बेला जिला रूप नगर (पंजाब) से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमतो ंका वर्णन करता है:-

मैं बचपन से ही धार्मिक ख्यालों का इन्सान था। मेरे माता-पिता देवी-देवताओं की पूजा करते थे। मैं भी देवी-देवताओं की पूजा करता था। जब मैं भारतीय सेना में भर्ती हो गया तो वहां पर भी मैं धार्मिक पुस्तकें पढ़ता रहता था। मुझे भगवान, ईश्वर को मिलने की तड़प थी। एक बार मैंने सोचा कि ऐ मालिक, हे ईश्वर, तू जहां भी है, मुझे मिल। मैंने अपने मन में सोचा कि अगर तू नहीं मिलना तो मुझे मरना मंजूर है। मैंने मरने के लिए पत्थर में सिर मारा, फिर दूसरी बार मारा। फिर मुझे ख्याल आया आत्मघाती महापापी। आत्मघात करना तो पाप है। उस समय के दौरान फौज में मुझे एक फौजी भाई मिला। उसने मुझे कहा कि अगर तूने रब्ब को मिलना है तो नाम ले ले।

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उसी समय के दौरान मुझे एक ग्रन्थ पढ़ने को मिला जिस का नाम है ‘बंदे से रब्ब’। यह ग्रन्थ पढ़कर मैंने अपने मन में फैसला कर लिया कि नाम डेरा सच्चा सौदा के परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी से लेना है। उस समय तक मैंने कभी सच्चा सौदा का नाम भी नहीं सुना था और न ही पता था कि सच्चा सौदा कहां है। मैं पूछता-पूछाता डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंच गया। नाम लेकर गुरु वाला बन गया।

करीब 2002 की बात है। मैं भारत पाकिस्तान की सरहद पर राजौरी से आगे वहां बतौर सैनिक तैनात था। यह एरिया जम्मू कश्मीर में है। वहां सामने ही पाकिस्तान की फौजी पोस्टें हैं। मैं और मेरा एक साथी फौजी एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जा रहे थे। पोस्ट का आपस में फासला करीब एक किलोमीटर था। वह एरिया पूरे का पूरा पहाड़ी एरिया था अर्थात् ऊँची-नीची जगह थी। रास्ते में हम पर पाकिस्तान की आर्मी की तरफ से गन का फायर आया। वह लगातार हम पर फायर हिट करते रहे। जहां हम पहले होते वहां पर बम्ब गिरता तो हम उतनी देर में दूसरी जगह पर चले जाते। शायद वह दूरबीन से हिट कर रहे थे। गिरते बम्बों में हम अपनी अगली पोस्ट पर पहुंच गए।

यह बम्ब आठ मीटर आल राऊँड तबाह करता था। अगली पोस्ट पर जाने के बाद वहां एक बहुत शक्तिशाली बम्ब गिरा जो हमारे बिल्कुल नजदीक था। पर सतगुरु की रहमत से वह बम्ब नहीं फटा। अगर वह बम्ब फट जाता तो कई मीटर आल राऊँड तबाह करता तो हमारा राम नाम सत हो जाता। फिर एक और बहुत शक्तिशाली बम्ब हमारे बिल्कुल नजदीक गिरा जो फट गया। परन्तु उस बम्ब का हमारे पर वो असर नहीं हुआ जो हमें जान से मार देता। क्योंकि उसकी सैलिंग का एक भी टुकड़ा लग जाता तो मौत हो जाती। परन्तु सतगुरु की रहमत से मेरे कोई टुकड़ा नहीं लगा।

केवल गैस का धक्का लगा जिससे हम बेहोश हो गए। फायरिंग बंद होने के दो घण्टे बाद हमारी कम्पनी वालों ने हमें देखा। उन्होंने हमारे बूट उतार कर मालिश की तो हम होश में आ गए। इस समय के दौरान मैं अपने मालिक सतगुरु द्वारा बख्शे नाम का सुमिरन करता रहा, सतगुरु की रहमत बरसती रही। अगर सतगुरु की रहमत न होती तो ऐसे हालातों में कोई माई का लाल बच नहीं सकता था। इस प्रकार उस दिन सतगुरु ने मुुझे हाथ देकर रखा। मैं सतगुरु के इस उपकार को कभी भी नहीं भुला सकता। कहा जाता है कि लकड़ी के साथ लौहा भी तर जाता है। ऐसे सतगुुरु ने मेरे साथ मेरे साथी को भी बचा लिया।

सन् 2004 की बात है। गर्मियों का समय था। मैं और मेरा बेटा जो कि पांच-छ: वर्ष का था, मोटर साईकिल पर अपने गांव से मेरे ससुराल गांव भलड़ी को जा रहे थे। रास्ते में तेज हवा के साथ मूसलाधार बरसात शुरू हो गई। उस समय रात के नौ बजे थे। सिंगल सड़क थी। वह भी किनारों से मोटर साईकिल चलने योग्य नहीं थी। मैंने अपने बेटे को कहा कि मैं सुमिरन करता हूं, तू भी कर। क्योंकि कोई टहना गिर सकता है, तार गिर सकती है, कोई दुर्घटना हो सकती है। इतने में मेरे सामने से एक तेज रफतार ट्रक आया। तेज लाइटों की वजह से मुझे नहीं दिखा।

मैंने समझा कि दो मोटर साईकिल बराबर आ रहे हैं। मैंने अपने मोटर साईकिल को दोनों लाइटों के बीच में कर लिया। उसके बाद हमें पता नहीं चला कि मालिक सतगुरु ने हमें कैसे रखा। ट्रक गुजरने के बाद हमारा मोटर साईकिल सीधा सड़क पर चलता हुआ ही गिरा। जब मुझे यह पता चला कि हम सड़क पर चलते हुए मोटर साईकिल सहित गिरे हैं तो मेरे होश उड़ गए। मेरा शरीर पानी-पानी हो गया। जब मैंने पीछे की तरफ मुड़ कर देखा तो वो दो मोटर साईकिल नहीं थे बल्कि ट्रक था। ट्रक वाले ने पूरी रेस दे दी। उसे इस तरह लगा कि बंदा ट्रक के नीचे आ गया है। वह ट्रक भगा कर ले गया।
मैं अपने सतगुरु के क्या गुण लिखूं, उसकी महिमा का क्या वर्णन करूं। एक-दो जुबानें तो क्या लाखों जुबानें हों तो भी सतगुरु के गुण नहीं गाए जा सकते।

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