पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
सन् 1957 की बात है। प्रेमी रामशरण खजांची ने बताया कि बेपरवाह मस्ताना जी महाराज भिवानी में ठहरे हुए थे। वहां हर रोज मजजिस और कभी रूहानी सत्संग करते। एक दिन रात के समय जब पूज्य बेपरवाह जी सत्संग फरमा रहे थे। साध-संगत सजी हुई थी। आगे स्टेज के सामने काफी जगह खाली थी। एक नौजवान शख्स जिसके भगवे कपड़े पहरे हुए थे और पैरों में खड़ाएं थी और हाथ में उसके पवित्र गीता थी, वहां बेपरवाह सार्इं जी के सामने पेश हो गया।
उसने अर्ज की कि आप पहुंचे हुए फकीर हैं, मुझे मालिक से जल्दी मिलने का कोई आसान तरीका बताओ। तो बेपरवाह जी कुछ देर चुप रहे। उस लड़के ने फिर पहले वाली अर्ज की तो बेपरवाह जी ने सारी संगत के सामने फरमाया, ‘भई, जरूर बताएंगे, हमें बारह वर्ष हो गए होका मारते कि कोई आओ भगवान से मिलने वाला। आज तक हमें कोई ऐसा आदमी नहीं मिला जो भगवान का तलबगार हो। जो भी मिला, उसने माया मांगी, बीमारी या लड़ाई-झगड़ा हटाने की अर्ज की। असीं तेरे को खाली नहीं भेजेंगे। तेरे को जरूर रास्ता बताएंगे। बेपरवाह जी ने उस लड़के को आदेश दिया, ‘तू अपनी बांई तरफ उस कोने तक चला जा। वह उस कोने में जाकर खड़ा हो गया।
बेपरवाह जी ने उस लड़के को कहा, ‘हमारे पास आजा।’ तो वह शहनशाह जी के सामने आ गया। फिर बेपरवाह जी ने हुक्म फरमाया कि अब अपने दार्इं तरफ चला जा, पर जो तेरी परछाई है, उसको वहीं खड़ा रहने दे। तो उस लड़के ने कहा कि यह कैसे हो सकता है। मैं जिधर भी जाऊं, परछाई भी साथ जाएगी। सर्व सामर्थ सतगुरु बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘बात यह है कि जिधर तू जाएगा, परछाई भी उधर जाएगी। जब तू कोई काम करता है, उस समय तेरी परछाई कहां होती है? ’ लड़के ने उत्तर दिया कि साथ ही होती है। बेपरवाह जी ने पूछा, ‘जब तू कोई कुकर्म करता है तो उस समय तेरी परछाई कहां होती है?’ तो उस समय उसने अपने दोनों कान पकड़कर कहा कि साथ ही होती है।
बेपरवाह सतगुरु जी ने वचन फरमाए, ‘जिस वक्त तेरे अन्दर यह बात बैठ गई कि जैसे तेरी परछाई तेरे साथ रहती है, उसी प्रकार भगवान भी तेरे साथ रहता है जो हर समय तेरे को देखता है। जब तेरे को इस बात का विश्वास हो गया तो भगवान तेरे को हर जगह व हर चीज में नजर आएगा।’ वह लड़का बेपरवाह जी के वचनों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय अपने गुनाहों से तौबा की। उसने बेपरवाह जी से नाम-गुरमंत्र की मांग की। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘भई मांगना छोड़ना पड़ेगा। मांस, शराब, पर स्त्री परहेज है।’ उसने शहनशाह जी के सामने मेहनत और हक-हलाल की करके खाने की प्रतिज्ञा की। कुछ समय के बाद उसने अन्य अनेक जीवों के साथ रोहतक में शहनशाह जी से नाम की दात प्राप्त कर ली। इस प्रकार सार्इं जी ने उसका उद्धार कर दिया।
यहां पर यह स्पष्ट किया जाता है कि बेपरवाह मस्ताना जी महाराज अपनी सत्संगों में अक्सर फरमाया करते कि सुमिरन नित नेम से घण्टा सुबह शाम जरूर करना चाहिए। कई बार कोई सत्संगी बेपरवाह जी के चरणों में अर्ज कर देता कि दुनिया में रहते हैं, कोई न कोई गलती हो जाती है तो बेपरवाह जी फरमाते कि नाम जपोगे तो गुनाह नहीं होने देगा। मन की हर समय चौंकीदार करो। काल को वारा न दो। इस जिन्दगी का उद्देश्य अपने अन्दर मालिक सतगुरु के दर्शन करना है। इस लिए स्वास-स्वास सुमिरन करो।
सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook, Twitter, LinkedIn और Instagram, YouTube पर फॉलो करें।