… जब चिड़िया चुग गई खेत -सम्पादकीय
नशा रूपी दैत्य आज बुरी तरह समाज में अपनी पकड़ (फैल) बना चुका है। इसकी जड़ें गहराई तक जा चुकी हैं। हमारी युवा पीढ़ी को ये अपनी जकड़ में इस कदर ले चुका है कि उनका जीवन बर्बाद हो रहा है। घर नर्क बन रहे हैं। परिवार बिखर रहे हैं। बुजुर्ग माँ-बाप के सामने उनके बच्चे मर रहे हैं। उनकी दयनीय हालत को बयां नहीं किया जा सकता। जो बेटा उनके बुढ़ापे का सहारा बनना था, भरी जवानी में उसकी अर्थी को कंधा देने का जो दर्द जिनको होता है उसे सिर्फ वो ही जानते हैं। ऐसे वक्त उन पर बहुत बड़ा कहर टूट जाता है।
ऐसा कहर जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होती, क्योंकि उनको पता ही नहीं होता कि हमारे घर में नशे रूपी दैत्य ने पाँव पसार लिए हैं। वो बेखबर रहते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं? उनके साथी कौन हैं? वो पढ़ने जा भी रहा है या नहीं? या वो जहां किसी काम-धंधे पर जाता है वहाँ का माहौल कैसा है? उन्होंने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया होता। सबसे पहली और बड़ी मार वो यहीं पर खा जाते हैं। उनकी घोर लापरवाही उन्हें इस दहलीज तक ले आती है। नशे की जड़ें घर-घर तक यूँ ही नहीं पहुंच रही। कोई न कोई तो है जो इन जड़ों को आपके घर तक लेकर आ रहा है लेकिन वो है कौन, इसका ख्याल माँ-बाप व घर के बड़ों ने रखना है।
क्योंकि बच्चे नादान हैं और छोटी उम्र में किसी की बातों में बहक जाना कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि आजकल छोटी उम्र से ही बच्चे इस दलदल में जा रहे हैं। चाहे वो लड़का है या लड़की। नशे के सौदागर उन्हें अपनी बातों से बहकावे में ले आते हैं और फिर उन्हें तबाह करके छोड़ दिया जाता है। मौत की दहलीज पर बैठे ऐसे युवा अपनी मौत का एक-एक दिन गिन रहे होते हैं और फिर माँ-बाप या परिवार वाले चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। उनके पल्ले रोना-धोना और पछतावा ही रह जाता है। आज से कुछ साल पीछे की ओर नज़र मारें तो हमारे समाज में कहीं भी ऐसा नहीं था। न कहीं खबरों में, न ही किसी चर्चा में। किसी ने ऐसा कभी सोचा भी नहीं होगा।
आज नशे के कारण जो हश्र हो रहा है, जो बर्बादियाँ हो रही हैं, किसी की कल्पना में भी नहीं था। ऐसी बर्बादियाँ जिनको रोकने के लिए सरकारों को ऐसी तैयारियों के साथ मोर्चे संभालने पड़ रहे हैं, जैसे किसी देश के खिलाफ युद्ध में लगना पड़े। यही कारण है कि सरकारों ने ‘युद्ध नशे के विरुद्ध’ जैसे नाम देकर नशे के खिलाफ मोर्चे लगा रखे हैं। ये कोई छोटी बात नहीं है। सरकारों का जो कीमती समय, पैसा, ताकत व एनर्जी देश की तरक्की के लिए खर्च होना चाहिए था, वो आज इस नशे रूपी दैत्य के खिलाफ नष्ट हो रहा है।
यह वो अघोषित युद्ध है जिसके बारे डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने कई साल पहले समाज को अपने सत्संगों के द्वारा चेता दिया था। पूज्य गुरु जी ने उस दौरान अपने सत्संगों में नशों के खिलाफ जबरदस्त तरीके से आवाज़ बुलंद की थी और लोगों को जगाया था ताकि नशे की जड़ें फैल न सकें। तब तो चिट्टा वगैरह का कोई नाम तक भी नहीं जानता था। लेकिन आज चिट्टा ही है जो कीमती जिंदगियों को लील रहा है। बेशक नशे कई प्रकार के हैं, जो समाज को खोखला कर रहे हैं, परंतु चिट्टा तो युवा पीढ़ी पर पहाड़ बनकर टूट रहा है।
पूज्य गुरु जी ने गाँव-गाँव, शहर-शहर जाकर नशों के खिलाफ लोगों को जगाया और इसके विरुद्ध खड़े होने का आह्वान किया। लोगों ने इस आवाज़ को सुना तो वो जागे भी। इसके विरुद्ध खड़े भी हुए और आज वो घर हैं, जो बचे हुए हैं। उन्हीं घरों में आज खुशहाली है। जिंदगी स्वर्ग-जन्नत से बढ़कर है। उन घरों का किसी प्रकार के नशे से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं। जिन्होंने पूज्य गुरु जी की बात को नहीं सुना, नहीं जागे या कहें कि वक्त को नहीं संभाला, वो आज नशों की दलदल में फंस कर बर्बाद हो रहे हैं। इस दलदल से बचाने के लिए आज सरकारों का भी पूरा जोर लगा हुआ है।
कई सामाजिक संस्थाएं भी समाज को नशों से बचाने के भरसक प्रयास कर रही हैं। डेरा सच्चा सौदा भी अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। हर कोई इसी जद्दोजहद में है कि जैसे भी हो, युवाओं को इस बर्बादी से बचाया जाए। इस अघोषित युद्ध से निपटने के लिए सबको एकजुटता से डटना होगा। इस कतार में माँ-बाप व बड़ों को पहले खड़ा होना होगा ताकि नशे रूपी जड़ को घर में आने से पहले ही काट दिया जाए। वरना वही बात रह जाएगी कि-
अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।

































































