रोशन है कायनात सतगुर तेरे ही नूर से… याद-ए-मुर्शिद (13-14-15)
तेरी याद से है रौशन मेरा जहां
करें जिनसे तेरे रहमो करम की तारीफ,
हमारे पास नहीं वो अल्फाज।
सुना सके जो तेरे उपकारों का तराना,
दुनिया में बना नहीं कोई ऐसा साज।
दिल की धड़कनों से ही होता है ब्याँ,
बस! कुछ ऐसा था
आप का प्यार देने का अंदाज।
रब्बी जलाल, नूर ही नूर, अत्यंत सुंदर सुडौल तथा आकर्षिक काया, ऊँचा लम्बा कद, चौड़ा नूरी ललाट, गुलाबी रंगत, नूरी नयन, रूह में अमन-ओ-सुकून भर देने वाली मीठी मुस्कान दिलों को मोह लेने वाली मस्त-मतवाली चाल, ऐसे अलौकिक हुसन के शाहाकार परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अनुपम रब्बी शख्सियत की तारीफ के लिए हर अल्फाज बौना साबित हो जाता है।
आप जी की रब्बी शख्सियत की तारीफ कोई चंद अल्फाजों में कर सके, यह ना मुमकिन ही नहीं, अति असंभव भी है। न ही दुनिया में ऐसा कोई साज बना है जो आप जी के रूहानी जलवे तथा नजर लग जाने की हद तक सुन्दर नूरानी आदाओं का तराना गा सके। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के नूरी मुखड़े के दर्शन करके हर कोई नत मस्तक हो जाने के लिए मजबूर हो जाता।
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पवित्र जीवन दर्शन
रूहानियत के सच्चे रहबर महान परोपकारी, दीन-दुखियों, गरीबों के मसीहा, महान विश्व समाज सुधारक पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपना रहमो-करम बख्श कर जगत का उद्धार किया। आप जी का जन्म गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील कालांवाली जिला सरसा (हरियाणा) में पूजनीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी के घर परम पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से 25 जनवरी 1919 को हुआ था। आप जी के आदरणीय पिता जी गांव के बहुत बड़े जमींदार तथा सम्मान योग्य जैलदार थे और अति पूजनीय माता जी शुभ धार्मिक विचारों व अत्यंत दयालु स्वभाव के धनी थे।
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पूजनीय माता-पिता के घर धन-दौलत व दुनियावी सुख-सुविधाओं की हर वस्तु भरपूर थी। परन्तु इतने ऊँचे खानदान के वारिस, संतान प्राप्ति की इच्छा 17-18 वर्षाें से उन्हें हर समय बेचैन रखती थी। एक बार पूजनीय माता-पिता जी का मिलाप एक सच्चे रब्बी फकीर से हुआ। पूजनीय माता-पिता जी की सच्ची हार्दिक सेवा तथा ईश्वर के प्रति सच्ची भावना से खुश होकर उस फकीर बाबा ने कहा, तुम्हारी सेवा परम पिता परमात्मा को मन्जूर हो गई है। तुम्हारी सच्ची हार्दिक कामना परमात्मा जरूर पूरी करेगा। उस फकीर बाबा ने यह भी वचन किया कि तुम्हारे घर एक रब्बी नूर पैदा होगा। इस तरह उस फकीर बाबा की सच्ची दुआ और परम पिता परमात्मा की दया-मेहर से पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अवतार धारण किया। आप जी के अवतार धारण करने पर उस फकीर बाबा ने बहुत दूर से पहुंच कर पूजनीय माता-पिता जी को बधाई दी और कहा कि भाई भक्तो! तुम्हारा बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है। खुद रब्बी जोत तुम्हारे घर प्रकट हुई है।
ये तुम्हारे पास 40 साल तक ही रहेंगे और उसके बाद सतगुरु परमेश्वर की तरफ से सौंपे सृष्टि के कल्याणकारी कार्योंं के लिए चले जाएँगे। परम पिता परमात्मा अपनी हस्तियों को (अपने स्वरूप को) प्रकट करने के लिए ऐसे जन्म दाता के घर भेजता है जो बहुत ऊँचे संस्कारों वाले तथा उसकी भक्ति से जुड़े होते हैं। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। आप जी अपने पूजनीय माता-पिता की इक्लौती संतान थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था, उपरांत पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के सम्पर्क में आने पर उन्होंने आप जी का नाम सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।
सच की प्राप्ति
पूजनीय माता जी के पवित्र संस्कारों के कारण भी पूजनीय परम पिता जी शुरू से ही असल सच (खुद-खुदा) के मिलाप की प्रबल इच्छा रखते थे। असल सच को पाने के लिए आप जी ने बड़े-बड़े साधु-महात्माओं की सोहबत की। परन्तु कहीं से भी तसल्ली नहीं हुई थी।
इसी दौरान आप जी ने डेरा सच्चा सौदा के पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की बड़ाई के बारे में सुना। आप जी ने पूजनीय बेपरवाह जी के बहुत सत्संग सुने। इसी दौरान बहुत बार नाम-शब्द लेने की भी कोशिश की परन्तु पूजनीय बेपरवाह जी आप जी को यह कह कर नाम अभिलाषी जीवों में से उठा दिया करते कि अभी आप जी को नाम-शब्द लेने का हुुक्म नहीं है। जब समय आया तो खुद बुला कर, आवाज देकर नाम-शब्द देंगे, तब तक आप सत्संग करते रहें। परम पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को घूकां वाली में सत्संग के बाद आप जी को खुद बुला कर तथा आवाज देकर नाम-शब्द की अनमोल दौलत प्रदान की। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को अपने मूढ़े के पास बिठा कर नाम-शब्द देते समय यह भी वचन फरमाए कि ‘आप को इसलिए पास बिठा कर नाम-शब्द दे रहे हैं कि आप से कोई काम लेना है।
आप को जिंदा राम का लीडर बनाएंगे, जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ आप जी तो पहले दिन से पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज को अपना पीर-ओ-मुर्शिद, अपना मौला, परमेश्वर मान चुके थे और अपना तन-मन-धन आदि सब कुछ उन्हें सौंप चुके थे। नाम-शब्द के रूप में प्रभु का प्रभु से मिलाप हो गया। उस फकीर बाबा के वचनोनुसार वह समय भी आ गया था। आयु वो ही लगभग 40 साल। आप जी अपना सब कुछ अपने सतगुरु-मौला पर कुर्बान कर चुके थे। जब हुक्म हुआ तो आप जी ने पल भी नहीं लगाया। अपनी जमीन-जायदाद, घर का सारा सामान और शाही हवेली को अपने हाथों से तोड़ कर उसकी एक-एक र्इंट, छोटे कंकर तक, लक्कड़, बाला, शहतीर, लोहे के गार्डर आदि सारा मलबा ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों के द्वारा ढो कर अपने मुर्शिद की हजूरी में लाकर रख दिया और अपने-आप को भी पूर्ण तौर पर उनको सौंप दिया।
सतनाम, कुल मालिक का नाम
पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने इस तरह आप जी की सख्त से सख्त परीक्षा ली और आप जी प्रत्येक परीक्षा में सफल हुए। पूजनीय बेपरवाह जी आप जी की इस जबरदस्त कुर्बानी पर बहुत खुश थे। पूजनीय बेपरवाह जी ने 28 फरवरी 1960 को आप जी को अपना स्वरूप बख्श कर सरदार हरबंस सिहं जी से सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) कुल मालिक बना दिया कि सतनाम कुल मालिक का ही नाम है। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को डेरा सच्चा सौदा गुरुगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान करके साध-संगत में वचन फरमाए, ‘भाई! आज असीं सरदार हरबंस सिंह जी को सरदार सतनाम सिंह जी, कुल मालिक बना दिया है।
सतनाम वह ताकत है जिसके सहारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं। ’ आप जी ने यह भी फरमाया, ‘सतनाम जिस को दुनिया जपती-जपती मर गई, पर वो नहीं मिला, ये वो ही सतनाम है। असीं इन्हें अपने सच्चे मुर्शिदे-कामिल दाता सावण शाह जी के हुक्म से अर्शों से लाकर आज तुम्हारे सामने बिठा दिया है। ये अपनी दया-मेहर से दुनिया का उद्धार करेंगे। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा और अपने मुख से सतनाम बोल देगा, वह भी कभी नर्काें में नहीं जाएगा। ’ इसके साथ ही पूजनीय बेपरवाह जी ने डेरा सच्चा सौदा और अपनी हर तरह की जिम्मेवारी (संगत की सेवा व संभाल) उसी दिन से ही आप जी को सौंप दी।
अनगिनत उपकार जाएं ना गिनाए
डेरा सच्चा सौदा में गद्दी नशीन होकर पूजनीय परम पिता जी ने 30-31 वर्षाें तक साध-संगत व डेरा सच्चा सौदा दरबार के प्रति जो अनमोल प्यार बख्शा, वह कहने सुनने से परे है। आप जी ने साध-संगत रूपी पवित्र फुलवाड़ी को अपने रहमो-करम के अमृत से जिस तरह सींचा, उसी के फल स्वरूप डेरा सच्चा सौदा आज करोड़ों लोगों के लिए हरमन प्यारा, सच्चा ईष्ट, सिजदा करने का स्थान है। आप जी ने अपना ज्यादा से ज्यादा समय जीवोद्धार, सत्संगों व परमार्थी कार्यों में लगाया। ‘कर लिया सो काम, जप लिया सो नाम’, यही आप जी का परम उद्देश्य रहा है। आप जी ने अपने परम उद्देश्य को लेकर गर्मी, सर्दी, वर्षा अंधेरी-झख्खड़ इत्यादि की कभी परवाह नहीं की। कई बार तो आप जी तेज बुखार (104 डिग्री) के होते हुए भी सत्संग के लिए पहुंच जाते।
हालांकि डाक्टर साहिबान भी पूरे आराम की सलाह देते और सेवादार भी सत्संग कार्यक्रम कैंसिल कर देने के लिए जोर देते, परन्तु आप जी सेवादारों को बड़े प्यार से समझाते कि ‘बेटा, संगत बेचारी पता नहीं कब से इंतजार कर रही होगी और अगर हम नहीं जाएंगे तो वह बेचारे निराश हो जाएंगे तथा उनका दिल टूट जाएगा।’ आप जी मानवता भलाई के लिए समाज में फैली दहेज प्रथा आदि बुराईयों, वहमों-भ्रमों, पाखण्डों तथा रूढ़िवादी कुरीतियों को खत्म करने और साफ-स्वच्छ समाज के निर्माण के लिए हमेशा यत्नशील रहे। आप जी ने साध-संगत को छोटा परिवार-सÞुखी परिवार का संदेश दिया। आप जी ने फरमाया कि कई बार बेटे की चाहत में परिवार बहुत बढ़ जाता है और जिससे बच्चों का पालन-पोषण सही तरीके से नहीं हो पाता। बेटा-बेटी को एक समान समझो और अच्छे संस्कार दो। आप जी ने साध-संगत को जमने-मरने पर पुरानी रूढिवादी गलत धारणाओं को छोड़ने के लिए प्रेरित किया। आप जी ने मानवता भलाई के लिए डेरा सच्चा सौदा में बिना दान-दहेज के शादी की एक मजबूत परम्परा चलाई जिस पर चलते हुए आज लाखों परिवार फायदा उठाकर बहुत ही सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
आप जी ने अपने स्वार्थ के लिए डेरा सच्चा सौदा से कभी एक पैसे की भी चीज प्रयोग नहीं की, बल्कि आप जी अपनी हक-हलाल, अपनी पैतृक जमीन की कमाई का ज्यादातर हिस्सा डेरा सच्चा सौदा में रह रहे सत-ब्रह्मचारी सेवादारों तथा साध-संगत की सुविधा पर लगा देते। आप जी ने अपना पूरा जीवन बहुत ही सादगी पूर्ण ढंग से व्यतीत किया। आप जी ने साध-संगत को हर तरह की सुविधाएं प्रदान की। आप जी ने संगत की खुशी के लिए हर यत्न किया।
गुरगद्दी बख्शिश
समय व स्थिति के अनुसार पूजनीय परम पिता जी ने गुरगद्दी बख्शिश का अपना फैसला जुलाई 1989 में साध-संगत से सांझा किया। आप जी ने अपने इस उद्देश्य के लिए लगभग सवा साल तक मीटिंगों के जरिए साध-संगत से विचार-विमर्श किया। इस दौरान आप जी धुर-धाम से बन कर आई उस पवित्र रूह को अपने रहमो करम से पूर्ण कर लिया था।
गुरगद्दी बख्शिश के लिए आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा की पवित्र मर्यादानुसार साध-संगत में अपना उत्तराधिकारी बना कर डेरा सच्चा सौदा की गुरुगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान किया। आप जी ने इस दौरान साध-संगत में फरमाया, ‘भाई! जैसा हम चाहते थे, पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने उससे कहीं बढ़कर योग्य हमें दिया है, आज हम बहुत खुश हैं और अपने आप को हल्का-फुल्का महसूस कर रहे हैं। इस तरह लगता है जैसे हमारे सिर से बहुत भारी बोझ उतर गया हो। हमने इनकी झोली में दोनों जहान की दौलत डाल दी है। इन्हें ऐसा बब्बर शेर बनाएंगे जो दुनिया को मुंह तोड़ जवाब देंगे। कोई उंगली नहीं उठा सकेगा। अगर पहाड़ भी टकराएगा तो चूर-चूर हो जाएगा।’
गुरुगद्दी बख्शिश करके पूजनीय परम पिता जी ने जहां डेरा सच्चा सौदा की सारी जिम्मेदारी पूजनीय हजूर पिता जी को सौंप दी, वहां सत्संग, नाम, साध-संगत की सेवा तथा डेरा सच्चा सौदा के सभी कार्य भी उन्हें सौंप दिए। आप जी ने साध-संगत के भले के लिए अपना एक हुक्मनामा भी उसी दिन साध-संगत में जारी किया और समस्त साध-संगत में पढ़कर कर सुनाया ताकि साध-संगत अपने मन या किसी और के बहकावे में आकर अपना अकाज न कर ले। आप जी ने फरमाया कि ये (पूजनीय हजूर पिता जी) हमारा ही रूप हैं। इनका हुक्म हमारा हुक्म है। जो इनसे प्रेम करता है, वह हमसे प्रेम करता है। जो इनसे भेदभाव करेगा, मानो वो हमसे भेदभाव करता है। पूजनीय परम पिता जी ने यह भी फरमाया कि जो जीव सतगुरु के वचन पर भरोसा करेगा, वह सुख पाएगा।
इतना ही नहीं, पूजनीय परम पिता जी लगभग पंद्रह महीने खुद बॉडी रूप में पूजनीय हजूर पिता जी के साथ साध-संगत में मौजूद रहे। पूजनीय परम पिता जी ने दुनिया में एक अनोखी मिसाल पेश की। पूजनीय परम पिता जी 13 दिसम्बर 1991 को अपना पांच तत्व का भौतिक शरीर त्याग कर धुर-धाम कुल मालिक परम पिता परमात्मा में जा समाए। ‘हम थे, हम हैं, हम ही रहेंगे’, आप जी अपने मौजूदा स्वरूप पूजनीय हजूर पिता जी द्Þवारा साध-संगत की सेवा व संभाल पहले से बढ़कर दुगुनी-चौगुनी कई गुणा ज्यादा कर रहे हैं।
अद्वितीय शख्सियत
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों के सैकड़ों गांवों, शहरों, कस्बों में हजारों सत्संग लगाए और घर-घर में राम-नाम का प्रचार किया। आप जी ने ग्यारह लाख से अधिक जीवों को नाम शब्द देकर उन्हें बुराइयों (अंडा, मांस, शराब, हरामखोरी इत्यादि बुराइयों) से बचाया तथा उनकी आत्मा का उद्धार किया। आप जी ने अपने रूहानी वचनों की सरल भाषा में अनेक पवित्र ग्रंथों की रचना की। आप जी की पवित्र रचनाओं से आज करोड़ों लोग (साध-संगत) अपने जीवन में अमल करके लाभ उठा रहे हैं।
आप जी द्वारा शुरू की गई मानवता भलाई तथा समाज सुधार के कार्यों की लड़ी को पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा आगे बढ़ाते हुए मानवता भलाई के 135 कार्य किए जा रहे हैं। जिन्हें साध-संगत द्वारा तन-मन-धन से रात दिन किया जा रहा है। पूजनीय हजूर पिता जी की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत नेकी-भलाई के कार्याें में लगी हुई है। भूखों को भोजन, प्यासों को पानी, गरीब बीमारों को डाक्टरी सहायता, बेघरों को घर-मकान बना कर देना, खूनदान करना आदि अनेक पवित्र कार्य हैं जो साध-संगत दिन रात करके सतगुरु के वचनों की पालना करने में लगी हुई है।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पवित्र याद में समर्पित याद-ए-मुर्शिद फ्री आई कैम्पों की लड़ी 1992 से लगातार चलती आ रही है। लाखों लोग इस पवित्र कारज से लाभाविंत हुए हैं तथा हो रहे हैं। 13-14-15 दिसम्बर 1992 से 2020 तक कुल 29 परोपकारी कैंप आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें हजारों लोगों को आॅपरेशन के द्वारा नई रोशनी मिल चुकी है।
वैसे तो पूरा दिसंबर महीना ही डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत पूजनीय हजूर पिता जी की प्रेरणा अनुसार डेरा सच्चा सौदा की तरफ से चलाए जा रहे 135 मानवता भलाई के कार्याें के प्रति समर्पित तथा वचनबद्ध है। परन्तु 13-14-15 दिसम्बर के यह पवित्र दिन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
सन् 1992 से हर साल 13-14-15 दिसम्बर को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी याद-ए-मुर्शिद फ्री आई कैम्प शाह सतनाम जी स्पैशलिटी हस्पताल सरसा में लगाया जाता है। जहां पर हर साल हजारों लोगों की आंखों की मुफ्त जांच करके उन्हें मुफ्त दवाईयां दी जाती हैं, वहीं आप्रेशन योग्य मरीजों के मुफ्त आप्रेशन किए जाते हैं। उनके लिए ऐनकें, दवाईयां तथा खाने-पीने आदि की हर सुविधा मुफ्त मुहैया करवाई जाती हैं। सन् 1992 से 2020 तक 29 कैम्पों की विशेष बात यह भी हैै कि शाह सतनाम जी स्पैशलिटि हस्पताल सरसा के आंखों के विशेषज्ञ डॉक्टर व पैरा मैडीकल स्टॉफ ने अपनी प्रशंसा योग्य सेवाएं दी हैं।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पवित्र याद में समर्पित याद-ए-मुर्शिद फ्री आई कैम्पों की लड़ी 1992 से लगातार चलती आ रही है। लाखों लोग इस पवित्र कारज से लाभाविंत हुए हैं तथा हो रहे हैं। 13-14-15 दिसम्बर 1992 से 2020 तक कुल 29 परोपकारी कैंप आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें हजारों लोगों को आॅपरेशन के द्वारा नई रोशनी मिल चुकी है।