…ताकि सब इन्सान बनें – जाम-ए-इन्सां गुरु का की 15वीं वर्षगांठ
रूहानी जाम इन्सानियत के गुणों से भरपूर एक रूहानी टॉनिक है। ताकि सब इन्सान बनें। कहने को तो हम सब इन्सान हैं, नाम बेशक इन्सान है, लेकिन सच्ची इन्सानियत तो किसी-किसी इन्सान में नजर आती है।
क्या है इन्सानियत? इन्सानियत किसे कहते हैं? पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इन्सानियत को परिभाषित करते हुए फरमाया कि किसी को गम, दु:ख, दर्द में तड़पता देखकर उसकी यथासंभव सहायता करना, उसके दु:ख, दर्द को दूर करने की कोशिश करना, पीड़ित दु:खी इन्सान की मदद करना (तन, मन, धन यानी अपने उपलब्ध साधनों से) ही सच्ची इन्सानियत, सच्ची मनुष्यता, सच्ची आदमीयत है
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और इसके विपरीत किसी को दु:ख-दर्द में तड़पता देखकर ठहाके लगाना, उसका उपहास (मजाक) उड़ाना, किसी गरीब लाचार को सताना, किसी की मजबूरी को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करना, यह शैतानियत है, राक्षसीपन है। अब आप खुद ही अपने अंदर झांककर निर्णय करें कि हम कहाँ पर खड़े हैं। क्या हम सच में इन्सान हंै? क्या सच में हमारे अंदर इन्सानियत के गुण हैं?
जब कभी इन्सान और इन्सानियत की बात की जाती है तो लोग अक्सर आग बबूला हो जाते हैं कि हम इन्सान नहीं हैं तो और क्या हैं? तो वो खुद ही सोचें कि अगर पूज्य गुरु जी द्वारा दर्शाए इन्सानियत के गुण उनके अंदर नहीं हैं, तो वे अपने आपको इन्सान नहीं, धर्मों के अनुसार राक्षसों की श्रेणी में शामिल समझें। कोई बुरा मत मानिए, बल्कि वो भी इन्सानियत के गुणों को धारण कर समाज में अपना मान सम्मान बढ़ाएं। पूज्य गुरु जी के अनुसार, नीती और नियति अर्थात नेकी, भलाई, रूहानियत के मार्ग पर साफ दिल से चलना, अच्छी नेक नियति से सबके प्रति सद्व्यवहार करना तथा कर्मयोगी और ज्ञानयोगी बनना, सही मायनों में यानी प्रैक्टिकल रूप में तो वह इन्सान जो इन्सानियत के गुणों से भरपूर है और वह ही एक सच्चा इन्सान है।
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जाम-ए-इन्सां की शुरूआत
पूरे समाज का भला हो, पूरी कायनात और इन्सानियत का भला हो, इन्सानियत सुखी रहे, लोगों में इन्सानियत के गुण पैदा हों, लोग एक दूसरे से बिना भेदभाव के सच्चा व्यवहार करें, परस्पर नि:स्वार्थ भावना से प्रेम प्यार करें, समाज में प्रेम प्यार की गंगा बहे, कुल लुकाई, सारी खलकत का भला हो और केवल इसी उद्देश्य से ही पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ (रूहानी जाम) की शुरूआत की।
एक सच्चा गुरु, संत, पीर, फकीर ही समस्त समाज के हित में, लोगों की भलाई के बारे में सोच सकता है, भला करता है। क्योंकि वे गुरु, पीर, फकीर, खुद, अल्लाह, राम, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब का अवतार होते हैं। खुद भगवान ही उन्हें लोगों को परस्पर जोड़ने, उन्हें धर्म से, राम, ईश्वर से मिलाने के लिए संसार, इस मृत्यु लोक में भेजता है। दूसरे शब्दों में वो संत, गुरु, पीर-फकीर परम पिता परमात्मा का नुमाइंदा होता है और जीव-सृष्टि पर अवतरित होकर समस्त जीव जगत की भी नुमाइंदगी करता है, सबको नेक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है और केवल वो ही सच्चा गुरु, कोई सच्चा पीर-फकीर ही सृष्टि पर यह परोपकार कर सकता है।
इस उद्देश्य को मुख्य रखते हुए पूज्य गुरु जी ने आज के दिन (29 अप्रैल को), आज से 15 वर्ष पहले यानी 29 अप्रैल 2007 को ‘जाम-ए-इन्सां-गुरु का’, रूहानी जाम की शुरूआत की। आज के दिन की महत्ता को दर्शाते हुए पूज्य गुरु जी ने इसे ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ नाम दिया है और यह दिन इसी पवित्र नाम से विश्व प्रसिद्ध है। ‘इन्सां’ की यह रीत-ओ-रस्म, जो पूज्य गुरूजी ने 29 अप्रैल को शुरू की, अपने आप में बेमिसाल है।
क्योंकि जब भी कोई धारा अपना राह बनाती है तो उसकी पहचान भी लाजमी हो जाती है। ‘इन्सां’ भी आज के युग की एक नई विचारधारा है जो इन्सानियत के प्रहरी रूप में सृजित की गई है। इसलिए इसका भी नामकरण जरूरी था और जिसे ‘इन्सां’ के नाम से नवाजा गया। स्वयं पूज्य गुरु संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने नाम के साथ ‘इन्सां ’को सजाकर इस धारा का प्रकटीकरण किया। इस धारा का उदगम जिस संगम से हुआ, उसे ‘रूहानी जाम’ अर्थात ‘जाम ए इन्सां गुरु का’ कहा गया।
दिवस की महत्ता(सर्व सांझा त्यौहार)
दुनिया को इन्सानियत की ऐसी सर्वधर्म साझी राह दिखाने वाला 29 अप्रैल का यह दिन एक साथ दो महत्वपूर्ण नजारों का दृष्टवा (प्रमाण) है क्योंकि आज से 74 वर्ष पहले इसी दिन अर्थात 29 अप्रैल सन् 1948 को डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की। पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज ने सरसा शहर से दो किलोमीटर दूरी पर एक सुनसान वीराने में डेरा सच्चा सौदा का निर्माण कर जंगल में मंगल बना दिया। जहाँ 29 अप्रैल 1948 का दिन डेरा सच्चा सौदा के अस्तित्व का दिन है, वहीं आज से 15 वर्ष पहले 29 अप्रैल 2007 का दिन जाम-ए-इन्सां के अस्तित्व का दिन है।
29 अप्रैल 2007 को पूज्य गुरु संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रूहानी जाम की शुरूआत करके समाज में इन्सानियत की मशाल जगाई तो इस पवित्र नाम का डंका दुनिया-भर में गूंज उठा। इसलिए 29 अप्रैल का यह दिन डेरा सच्चा सौदा में ‘रूहानी स्थापना दिवस’ तथा ‘जाम ए इन्सां गुरु का’ दिवस को सांझे तौर पर पवित्र भण्डारे की तरह धूमधाम से मनाया जाता है। इस पाक पवित्र दिवस का नजारा देखते ही बनता है। सभी धर्मों के त्यौहार इस दिन एक-साथ मनाए जाते हैं। जिसे निहारकर हर कोई आत्म-विभोर हो जाता है। चहुंतरफा सर्व धर्म संगम का दृश्य हर दिल को लुभाता है। देश-विदेश से लाखों डेरा अनुयायी इस दिन पूज्य सतगुरु जी के रहमोकरम, मालिक, परम पिता परमात्मा की खुशियों को बटोरने, रूहानी नजारों को लूटने के लिए पूरे उत्साह के साथ आश्रम में पहुंचते हैं। इस भंडारे की खुशियां, रंगतें, मौजें, लहरें, सौगातें तनमन व रूह को मोह लेती हैं।
इन पावन नजारों के रूहानी नशे में रूह खिलखिला उठती है। आओ, इस रूहानी मद मस्ती के दौर में जमकर भीग जाएं, जिसमें तर-ब-तर हुआ रोम रोम नाच उठता है, वाह! मेरे मौला! वाह! मेरे मौला! पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इस दिन (29 अप्रैल 2007 को) रूहानी जाम की शुरूआत करके मृत प्राय: मानवता को अपना सहारा दिया और उसे पुनर्जीवित कर इन्सान का सम्मान बढ़ाया। जैसे कि पहले भी बताया गया है कि डेरा सच्चा सौदा सर्व धर्म संगम है, इसलिए सभी धर्मों के त्यौहार भी इसी दिन साध संगत आश्रम में मिलकर रूहानी स्थापना दिवस के रूप में मनाती है।
इस दिन की महत्ता तथा भण्डारे की रंगीनियां व चहल-पहल हर मन को मोह लेती हैं। लाखों की संख्या में लोग (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि सभी धर्म-जाति के लोग) देश विदेश से इस दिन के पवित्र समागम में शिरकत कर अपने मुर्शिद-ए-कामिल का पावन आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पाक पवित्र प्रेरणा अनुसार चहुं ओर प्रेम-प्यार, हमदर्दी व रूहानियत की बरसती फुहारों से निकलने को दिल नहीं करता। आइए, हम सब भी परस्पर मिलकर जात-धर्म व ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाकर इस पवित्र महासंगम में रम जाएं। सच में, ‘मस्ती भरी है साकिया तेरे इस मयखाने दे विच’। सतगुर के प्यार व मस्ती भरे रंग में रंगा हर शख्स रूहानी प्रेम की मस्ती में झूम उठता है और कह उठता है, धन्य मेरे मौला! धन्य है मेरे रहबर।
इस पवित्र दिन 29 अप्रैल की इस 74 वें रूहानी स्थापना दिवस एवं ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ दिवस की 15 वीं वर्षगाँठ की बहुत-बहुत मुबारक जी।
इन्सानियत के लिए कसम
‘इन्सां’ बनने के लिए रूहानी जाम ग्रहण करने वाला शख्स यह कसम (प्रण) लेता है कि वह इन्सानियत की रक्षा हेतु कभी पीछे नहीं हटेगा। पूज्य गुरु जी रूहानी जाम पिलाने से पहले उनसे यह प्रण करवाते हंै कि वह अपने अंदर की इन्सानियत, मानवता को कभी मरने नहीं देगा और इसके लिए जो 47 नियम (समाज भलाई के लिए) बनाए गए हैं, उन पर दृढ़ता से चलेगा। पूज्य गुरु जी के सानिध्य में ऐसा पाक पवित्र प्रण करके करोड़ों लोग इन्सानियत के रक्षा सूत्र में बंधे हुए हैं।