बेशक पांच तत्व पूर्ण रूप में हर इंसान के अंदर हैं, इस पक्ष को देखें तो सब इंसान ही कहलाते हैं। सभी इंसान हैं। यहां पर हम जिस इन्सां का जिक्र कर रहे हैं, उसके मतलब बहुत गहरे और उसके अर्थ कुछ और हैं। आप खुद ही विचार करें कि जिस व्यक्ति के अंदर इंसानियत के गुण हैं, इंसान तो उसी को कहेंगे! जिसे इंसानियत का ही पता नहीं, इंसानियत जिसके अंदर लेश मात्र ही नहीं है, उसे इंसान कहना कहां तक जायज है? इंसानियत क्या है?
किसे कहते हैं इंसानियत? किसी को दु:ख, दर्द में तड़पता देखकर उसकी सहायता करना, उसके दु:ख, दर्द में शामिल होना, दु:ख, दर्द को दूर करने की कोशिश करना ही सच्ची इंसानियत है। इसके विपरीत किसी को दु:ख दर्द में तड़पता देखकर उस पर ठहाके लगाना, उसे और सताना, दु:खी करना, उसकी मजबूरी का फायदा उठाना, यह इंसानियत नहीं, यह राक्षसीपन की परिभाषा है। यह शैतानियत है।
अब खुद ही फैसला करें कि इंसान कहलाने का श्रेय किस व्यक्ति को जाता है, बल्कि ऐसे राक्षसी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को, जिसके मन में दया नाम की कोई वस्तु, कोई ऐसा गुण नहीं है, उसे इंसान कहना, इंसान को गाली देने के बराबर है। आम बोलचाल की भाषा में भी ऐसा ही कहा-सुना जाता है पंजाबी में ‘तेनु बंदा कीने बना ता’! तो ऐसी राक्षसी प्रवृत्तियों के कारण ही मानवीय समाज को बहुत भारी आघात पहुंचता है। इंसानों में इंसानियत रसातल में धंसी जा रही है। भ्रष्टाचार आदि बुराइयों का समाज में बोलबाला है। लोग अपने जमीर को दबाए हुए हैं।
नाक तले बुराइयां दिन-दहाड़े हो रही हैं और लोग चुपचाप देख रहे हैं। इसी वजह से आज समाज में भय का वातावरण बना हुआ है। कोई भी अपने-आपको सुरक्षित नहीं समझता। कारण वही है कि इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि लोग अपने तक ही सीमित हैं। इंसानियत की भावना से हीन हो चुका है इंसान। इंसानों में इंसानियत, मानवता, आदमियत की भावना दब चुकी है और शैतानियत, स्वार्थपन का दूसरा नाम ही राक्षसीपन है।
अमानवता, अमनुष्यता सिर चढ़कर बोल रही है। इंसान में इंसानियत, इंसानी चेतना को जगाना, आदमी के जमीर को जगाना, उसकी खुदी को बुलंद करना जरूरी था, इसलिए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 29 अप्रैल 2007 को ‘जाम-ए-इन्सां’ की रीत चलाई। यह नहीं है कि रूहानी जाम रूहअफजा, शरबत व दूध का मिश्रण है, बल्कि यह रूह, आत्मा के लिए मल्टीविटामिन, एक शक्तिवर्धक टॉनिक का काम करता है।
जाम-ए-इन्सां के 47 नियम निर्धारित हैं, जिन्हें फॉलो करने, जिन पर शिद्दत से चलने के लिए पूज्य गुरु जी पांच अंजुलियां लेकर सौगंध दिलाते हैं। इन्सां भी वही कहलाता है, जो 47 नियमों के अनुरूप आचरण करता है। आदमियों में, समाज में मृतप्राय: इंसानियत को पुन: जिंदा रखने का पूज्य गुरु जी ने ऐसा पराक्रम कर दिखाया है, जो इतिहास की एक दुर्लभ घटना साबित हुई है।
‘कसम दिलाना’ आज की कोई नई चीज नहीं है। आदिकाल से ऐसे संकल्प लिए जाते रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों के काल से उनके द्वारा लोगों को प्रेरित करने के लिए अपने-अपने तरीकों से शपथ ग्रहण करवाई जाती रही है। उनका अनुसरण करते हुए आज भी कई जगह पानी या पवित्र गंगाजल अंजुलि में लेकर या हाथ में नमक लेकर या कई जगह पर दूध या अग्नि को साक्षी मानकर शुभ कार्यों की शपथ लेते हैं।
कहीं पेड़-पौधों को साक्षी मान लिया जाता है। अपने देश में माननीयों की नियुक्ति के अवसर पर शपथ ग्रहण करवाई जाती है। इसके लिए वे अपने-अपने धर्म व विश्वास से भगवान को साक्षी मानकर या अपने धर्म ग्रंथ को हाथ में लेकर अपने मिशन पर नेक-नियति से चलने का वचन लेते हैं। यह एक नई शुरूआत का स्वस्थ विधान है और यह परंपराएं ज्यों की त्यों आगे से आगे चल रही हैं। इसी प्रकार इंसानियत के मिशन पर चलने की विधि, तरीका एक परंपरा है रूहानी जाम, जिसे पूज्य गुरु जी ने शुरू किया है।
पूज्य गुरु जी का यह रूहानी जाम एक स्वस्थ समाज हित में मिशन है। रूहानियत और इंसानियत की एक बेजोड़ मिसाल है। देश-दुनिया के अब तक करोड़ों लोग पूज्य गुरुजी से रूहानी जाम ग्रहण करके इंसानियत के इस कारवां का हिस्सा बने हुए हैं। ऐसा नहीं है कि भला करने वालों की संसार, समाज में कोई कमी है। बहुत लोग हैं जो तन-मन-धन से दूसरों की मदद करते हैं। वह अपनी जगह है, लेकिन मानवता हितेषी डेरा सच्चा सौदा के सेवादारों के प्रति लोगों का विश्वास इतना मजबूत बन चुका है कि किसी आपदा के समय जहां ये पहुंच जाते हैं, तो इनके जज्बे को हर आम व खास सजदा करते हैं। एक संतुष्टि-सी लोगों में पाई जाती है कि अब ये डेरा प्रेमी आ गए हैं, अब कोई फिक्र नहीं है।
एक यह भी विशेषता डेरा प्रेमियों में है कि जहां जिस काम में डट जाते हैं, लाख बाधाएं भी हों, ये पीछे नहीं हटते। कहीं आगजनी की घटना हुई है, बहु-मंजिला इमारत ढहने की घटना, भूकंप, बर्फबारी या कोई भी प्राकृतिक या अप्राकृतिक आपदा है, बस डट जाते हैं बिना भेदभाव के पीड़ितों की सहायता में। इन्हें किसी मान-बड़ाई की भी परवाह नहीं होती। इंसानियत के नाते पीड़ितों की मदद करना, मलबे में दबे लोगों, बोरवेल में गिरे बच्चे को जिंदा बाहर निकालना ही इनका उद्देश्य रहता है। जब तक कार्य पूरा नहीं हो जाता, भूख-प्यास की परवाह किए बगैर डटे रहते हैं अपने कार्य में। आराम इनके लिए हराम है उस दौरान। यही जाम-ए-इन्सां, रूहानी जाम की शिक्षा है। यही पूज्य गुरु जी की पाक-पवित्र प्रेरणा है।
इस दिन (29 अप्रैल) की महत्ता:
दुनिया को इंसानियत की सच्ची राह दिखाने वाला, इस मानवता हितैषी डगर पर अडोल चलाने वाला 29 अप्रैल का यह पवित्र दिन एक साथ दो-दो अति महत्वपूर्ण नजरों का दृष्टवा है। इस दिन यानी 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म संगम की जहां नींव रखी, सर्वधर्म संगम डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की जिस प्रकार 29 अप्रैल 1948 का दिन डेरा सच्चा सौदा के पवित्र अस्तित्व का पहला दिन है, वहीं 29 अप्रैल 2007 को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रूहानी जाम की शुरूआत करके इंसानियत व रूहानियत के संगम की मशाल को प्रज्जवलित किया और इस मशाल की रोशनी से संसार भर को जगमगाया। 29 अप्रैल 2007 का वह दिन ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ के नाम से पहला दिन था।
इंसानियत, रूहानियत के पवित्र संगम का यह कारवां दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला गया और करोड़ों लोग इस पवित्र कार्य का हिस्सा बने हुए हैं। भारत देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूज्य गुरु जी के ये इन्सां मानवता भलाई के 134 कार्यों के अंतर्गत समाज भलाई के कार्यों को जो गति दे रहे हैं। यह सब मुर्शिद प्यारे संत डॉ. एमएसजी की पाक-पवित्र शिक्षाओं का ही परिणाम है। इस प्रकार 29 अप्रैल का यह दिन डेरा सच्चा सौदा में हर साल साध-संगत द्वारा बहुत बड़े भंडारे के रूप में मनाया जाता है। इस पावन दिवस की समस्त साध-संगत को लख-लख बधाई हो जी।
नि:संकोच लगे रहेंमानवता भलाई कार्यों में:
साध-संगत से अनुरोध है कि बगैर किसी शंका-भ्रम तथा किसी तरह के कूड़-प्रचार को अनसुना और अनदेखा करते हुए अपने सतगुरु प्यारे के वचन अनुसार मानवता व समाज भलाई कार्यों में बेरोक-टोक लगे रहें। पूज्य गुरु जी ने साध-संगत को भलाई करने का ही पाठ पढ़ाया है कि हर जरूरतमंद चाहे कोई इंसान है या कोई जीव-प्राणी, पशु-पक्षी, जानवर है, सबकी तन-मन-धन से यथासंभव मदद करते रहना है। जैसे साध-संगत ने पहले से विश्व स्तर पर अपने भलाई कार्यों की मिसालें पेश की हैं, आज भी उसी गति से सुमिरन, सेवा तथा भलाई के कार्यों में बेरोक-टोक लगे रहना है।
‘भला भलाई न तजे’, पूज्य गुरु जी को साध-संगत पर, सेवादारों पर गर्व भी है। पूज्य गुरुजी साध-संगत के प्रति दिन-रात भगवान से दुआ करते रहते हैं। हर इंसान अपने इंसानी फर्ज को समझते हुए मानवता भलाई के सभी 134 कार्यों के प्रति वचनबद्ध रहे। धर्म के मार्ग पर चलता चले, चलता चले, चलते रहें। आगे ही आगे बढ़ते रहें, बढ़ते चलें। भले लोग भलाई कार्यों में जुड़ते जाएं और नेकी-भलाई का यह कारवां बढ़ता ही चला जाए और बिना रुके बढ़ता ही चला जाए, यही सतगुरु परमपिता परमात्मा से दुआ है।
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