समय-समय की बात -बाल कथा
बात बहुत पुरानी है। भारत में शकूरपुर नामक नगर था। वहां का सर्वाधिक समृद्ध व्यापारी था जयप्रकाश जिसे अपने दौलतमंद होने का बहुत घमंड था। मुसीबत के मारे लोग पर्याप्त सहायता पाकर, जब उसका आभार मान कहते – भविष्य में हमारे योग्य कार्य होने पर आप अवश्य हमें याद करें। सुनते ही जयप्रकाश भड़क उठता – किस चीज की कमी है मेरे पास, जो तुम जैसों की मदद का मोहताज होना पड़ेगा।
एक बार की बात है। दूर अरब देश से दाऊद नामक एक बहुत बड़ा व्यापारी बेहतरीन नस्ल के पचास घोड़े ले समुद्री मार्ग से व्यापार करने भारत पहुंचा। तभी दुर्भाग्य से समुद्र में भयंकर तूफान आया। तूफान की चपेट में आकर सभी अरबी घोड़े व दाऊद के कई सेवक अपनी जान से हाथ धो बैठे। दाऊद व उसके कुछ गिने-चुने सेवक जैसे-तैसे बच गए।
मरणासन्न अवस्था में पड़े दाऊद व उसके सेवकों को समीप के गांव वाले अपने गांव ले गए। जी जान से उनकी देखभाल की। अंत में गांव वालों की मेहनत रंग लाई। दाऊद और उसके सेवकों को होश आ गया। दाऊद ने गांव वालों को आपबीती सुनाई। फिर घोर निराशा के स्वर में बोला – फूटी कौड़ी भी नहीं है हमारे पास। हम स्वदेश कैसे लौटेंगे?
सारा हाल सुनने के बाद गांव वालों ने दाऊद को जयप्रकाश के पास जाने की सलाह दी। दाऊद गांव वालों के कहे अनुसार ही जयप्रकाश से मिला। उसने उसे अपनी आपबीती सुनाई। सुनकर जयप्रकाश आत्मीयता से बोला – व्यापार में तोे ऐसे हादसे होते ही रहते हैं। रही तुम्हारी स्वदेश लौटने की बात तो तीन-चार दिन में मैं उसके लिए प्रबंध कर दूंगा।
वायदे के अनुसार अगले तीन-चार दिन के बाद जय प्रकाश ने दाऊद व उसके सेवकों को एक मजबूत किस्म के जहाज में बैठा दिया व साथ में ढेर सारे उपहार दे उन्हें उनके देश रवाना कर दिया।
इतनी बड़ी समस्या यूं चुटकियों में सुलझ जाएगी, दाऊद को सपने में भी उम्मीद न थी। स्वदेश लौटते समय वह खुशी से विभोर होकर बोला- मैं आपका उपकार आजीवन नहीं भूलूंगा। शीघ्र ही आपको भेंट करने अच्छी किस्म के अरबी घोड़े ले आऊंगा। इसके अलावा भविष्य में कभी आपके काम आ सका तो मुझे बहुत खुशी होगी।
अपने स्वभाव के अनुसार यह सुनते ही जयप्रकाश आग बबूला हो गया। बोला तुम भला मेरे किस काम आओगे? ऐसे कड़वे उत्तर की दाऊद को कतई आशा न थी। खैर बुझे मन से वह अपने देश रवाना हो गया। समय-समय की बात है। इसके कुछ ही दिनों बाद कुख्यात डाकुओं के एक बड़े दल ने जयप्रकाश की हवेली में डाका डाल दिया व उसका सारा धन लूट लिया। उसके भवन व गोदामों में आग लगा दी। इस लूट ने जयप्रकाश को बुरी तरह से बरबाद कर दिया।
उधर अपमानित होने के बाद भी दाऊद अपने वायदे को भूला नहीं था। वह कई अरबी घोड़े व कई अनमोल उपहार लेकर भारत आया। इस चिन्ता में घुल-घुल कर जयप्रकाश की हालत खराब हो गई थी। जयप्रकाश को पहचानने में दाऊद को कोई परेशानी नहीं हुई। जयप्रकाश का सारा हाल सुनकर दाऊद को बहुत दुख हुआ। उसने जयप्रकाश को तमाम उपहार देने के अलावा फिर से व्यापार शुरू करने के लिए ढेर सारा धन भी दिया।
कुछ ही दिनों में जयप्रकाश का व्यापार पहले की भांति चलने लगा पर अब उसका घमण्ड समाप्त हो चुका था। फिर से वह खुले दिल से दूसरों की सहायता करने गला। जयप्रकाश को अच्छी तरह अहसास हो गया था कि समय कब क्या कर दें, कोई नहीं जानता।