अनमोल होते हैं खुशियों भरे लम्हें -सम्पादकीय
खुश रहना इन्सानी फितरत है। इसलिए हर कोई चाहता है कि वह हमेशा खुश रहे, क्योंकि खुश रहने के लिए ही यह जिंदगी है। सुबह से लेकर शाम तक जिंदगी की जो भागदौड़ है, वह इसीलिए तो है कि हमें कुछ मिले अर्थात् अच्छा मिले, बढ़कर मिले। तमाम जिंदगी हमारी यूं ही निकल जाती है कि हमें कुछ हासिल हो।
इसके लिए हम कहीं से कहीं चले जाते हैं। लोग दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक चले जाते हैं। माना कि हमने बहुत कुछ हासिल भी कर लिया। जिंदगी का एक लम्बा-चौड़ा हिस्सा हमने खर्च भी कर दिया कुछ पाने के लिए। अब सार की बात ये है कि क्या हमने कभी गौर किया है कि कुछ पाने के लिए जिंदगी का जो हिस्सा हमने खपत कर दिया, उसमें हमारा अंश कितना रहा है! अर्थात् जिंदगी की इस भागमभाग में हमारी खुशियों का ठिकाना क्या रहा! क्योंकि बहुत कुछ हासिल करके भी अगर हम खुश नहीं हैं तो ऐसी सम्पन्नता किस काम की।
प्रसन्नता विहिन सम्पन्नता मजेदार नहीं है। इन दोनों का आपस में कोई तालमेल नहीं है, क्योंकि सम्पन्नता के लिए हमें बहुत दूर तक जाना होगा, जबकि प्रसन्नता के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं पड़ती। ये हमारे आस-पास ही मौजूद है। प्रकृति का हर स्त्रोत इसमें सहायक है, बल्कि इसमें कोई बाधक है तो मुनष्य स्वयं ही है। जबकि मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं भी हर हाल में खुश रहे और दूसरों को भी खुशियां बांटे। क्योंकि हमारा अस्तित्व ही खुशियों से है। जोकि बाहरी ना हो कर अंत:करण से और जो अंत:करण में है उसका बाहरी होना भी नैसर्गिक है।
स्मरण रहे कि हम मुनष्यों से ही धरा पर खुशियों का अस्तित्व है। पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों के लिए खुशियों का अपना महत्व है। मनुष्य परमात्मा की अनुपम कृति है। वो परमात्मा आनन्द स्वरूप है और हम उसकी अंश हैं। मनुष्य को परमात्मा ने अपने दैवीय गुणों का असीमित खजाना बख्शा है। बस जरूरत है हमें इन्हीं दैवीय गुणों को खोजने की, मंथन करने की। हमारा खुश रहना भी इसी गुण की पहचान है। हम जितना खुश रहने के आदी बनते हैं, उतना ही अपनी जिंदगी को सार्थक बना लेते हैं। मतलब, उतना ही हम जिंदगी को जीना सीख जाते हैं।
अगर हम खुश हैं तो सब कुछ हासिल है और अगर बहुत कुछ हासिल करके भी खुश नहीं हैं तो समझो जिंदगी को जीया नहीं, बल्कि धक्कम-धकेले में ही रह गए। अत: तमाम झंझटों से बाहर निकलकर खुश रहना सीखिए। हर लम्हें को अज़ीज़ बनाएं। जो लम्हें हमें खुशियों से भर देते हैं, वो बड़े अनमोल होते हैं। उन्हें सहेज कर रखें। सबसे अहम ये है कि खुश रहना हमारा स्वभाव है और ये हमें नेचर से मिला है। इसलिए नेचर यानी प्रकृति के समीप रहना, खुशियों के समीप रहने जैसा है। बस कुछ पल फुर्सत के लेकर प्रकृति के आंचल में जाइए। किसी बाग-बगीची में जाएं।
वैसे भी बसंत की मनोहारी रुत है। सरसों के खेत पीले-पीले फूलों से सजे हुए हैं। यह रुत प्रकृति का एक शानदार तोहफा है। सरसों के खिले हुए पीत-पीताम्बरी खेत यूं हैं मानों धरा ने अपने आंचल पर फुलकारियाँ सजा रखी हों। उन पर गुंजन करते भंवरों की कनकहियां सुनें। मण्डराती तितलियों के साथ उड़ें और मधुमास का आनन्द लेती मधुमक्खियों को निहारें। प्रकृति के इस अद्भुत नज़ारे में भीतर तक रम जाएं। ये पल आपको सुकुन से भर देने वाले हैं।
-सम्पादक