सत्संगियों के अनुभव – पूज्य परम पिता जी की रहमत प्रचण्ड आग से सुरक्षित निकाला
प्रेमी दारा खान इन्सां निवासी न्यू गुरु अर्जनदेव जी कालोनी भोगल रोड राजपुरा टाऊन जिला पटियाला (पंजाब)।
प्रेमी जी लिखित में बताते हैं कि पूज्य सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत की उपरोक्त घटना सन् 1983 की है। उस समय मैं पीडब्लयूडी की सब-डिवीजन राजपुरा में डेली वेजिज पर कार्य (मजदूरी) करता था। हम सोलह मजदूर वहां मजदूरी करते थे। सतगुरु जी की दया-मेहर से मैंने 27 मार्च 1983 को सच्चा सौदा में पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-शब्द ले लिया।
नाम-शब्द लेने के मात्र चार दिन बाद ही मुझे प्रमोशन मिल गई। अपने अन्य साथियों में से केवल मुझे ही हॉट-मिक्साल मशीन (बजरी व तारकोल मिक्स करना) पर बतौर हैल्पर (क्लीनर) प्रोमोट किया गया।
न मेरी कोई सिफारिश थी और न ही कोई रिश्वत या मिन्नत हाडे आदि। मुझे जहां तरक्की मिली, वहीं मेरी नौकरी भी दिहाड़ीदार से पक्की कर दी गई। यह सब नाम-शब्द लेने के कुछ दिन बाद पूज्य परम पिता जी की दया-मेहर से ही हुआ।
उन्हीं दिनों की ही घटना है। एक दिन हमारी वह हॉट मिक्साल मशीन अचानक खराब हो गई। मशीन की मुरम्मत के लिए मैं उसे राजपुरा में अपने विभाग की वर्कशाप पर ले गया।
मशीन के अंदर घुसकर हॉपर खोलने थे, लेकिन उसके अंदर जाने का पाईपनुमा रास्ता इतना भीड़ा (तंग) था कि कोई काफी पतले शरीर का व्यक्ति भी मुश्किल से घुस पाता। मेरा शरीर तो काफी भरवां था। मैंने अपने सतगुरु मालिक को याद किया और नारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ (अपने अंदर ही अंदर) लगाकर उसी रास्ते में घुस गया। क्योंकि मशीन की मुरम्मत भी जरूरी थी।
हॉपर के नट बोल्टों पर काफी गाढ़ी तारकोल जमी हुई थी। जमीं तारकोल को तेल आदि की मदद से ही उतारा जा सकता था, इसलिए डिब्बे में लगभग एक लीटर डीजल तेल भी अपने साथ ही मशीन के अंदर ले गया। डीजल तेल से तारकोल तो मैंने उतार दी थी। पूरा एक लीटर तेल जो था, वह सारे का सारा तारकोल को उतारने में लग गया और काफी डीजल डिब्बे से छलक-छलक कर मशीन के अंदर भी बिखर गया था।
इस प्रकार काफी जद्दो-जहद करने के बावजूद भी नट नहीं खुल पा रहे थे। इतने में वर्कशाप का वह मिस्त्री भाई कहने लगा कि ‘दारा खां, नट नहीं खुलते तो ज्यादा खपने की जरूरत नहीं है। बाहर से वैल्डिंग के द्वारा नटों को काट देता हूं।’ मैं तो अभी मशीन के अंदर ही था, क्योंकि इतनी जल्दी निकला भी नहीं जा सकता था, और इतना कहकर उसने वैल्डिंग से नटों को काटना शुरू कर दिया।
जैसे ही उसने वैल्डिंग का कार्य शुरू किया, इधर मशीन के अंदर बिखरे डीजल ने आग पकड़ ली। मैं बहुत जोर-जोर से चिल्लाया। शायद मेरी आवाज उस तक पहुंच नहीं रही थी। जहां पर मशीन के अंदर मैं बैठा हुआ था, वहां मेरे तीन तरफ पूरी आग भड़क उठी थी। इस मशीन के अंदर की वह जगह इतनी ज्यादा खुली तो थी नहीं कि मैं तुरंत घूम कर बाहर को निकल आता। मेरे हाथोें में भी डीजल लगा था और कपड़ों पर भी डीजल के छींटे पड़े हुए थे।
आग के तेज सेक से मेरे तन के कपड़ों से भी धुआं निकलने लग गया था। मैंने अपने सिर पर से परना उतारा और अपनी आंखें मुंह, सिर पर लपेट लिया ताकि प्रचंड आग के सेक से आंखें, चेहरा आदि न झुलस जाए और कोई ऐसा रास्ता तो था नहीं कि मैं मशीन में से भाग कर निकल आता, निकलूं तो निकलूं किधर से। तीनों तरफ आग की लपटें थी। सिवाये सतगुरु मालिक के और कोई सहारा था ही नहीं। मैंने पूज्य सतगुरु परम पिता जी को याद किया, विनती दुआ की कि पिता जी, आप चाहो तो बचा सकते हो।
तुरंत, बात करने में तो देर हो सकती है, मेरे सच्चे रहबर दाता परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पल भी नहीं लगाया। मुझे साक्षात-प्रत्यक्ष वहीं मशीन के अंदर दर्शन दिये। पूज्य पिता जी एक साईकिल पर थे। साईकिल पर दूध वाले डरंम लदे थे। पूज्य सच्चे दाता जी ने फरमाया, ‘बेटा! इन डरंमों में दूध नहीं पानी है, तू यह पानी अंदर मशीन में आग के ऊपर डाल दे।’ मैंने पूज्य पिता जी के डरमों का पानी उस प्रचंड आग पर डाल दिया।
पूज्य पिता जी की दया-मेहर से और पानी डालने से आग एक दम शांत हो गई। शोर सुनकर वर्कशाप के अन्य लोगों ने भी मशीन के ऊपर, बाहर से पानी डालना शुरू कर दिया। बालटी पर बालटी, कई बालटी पानी बाहर से मशीन पर डाल दिया गया।
जिससे मशीन की तपश कुछ ठंडी हो गई। प्यारे सतगुरु-मालिक को याद करते हुए मैं उसी तंग रास्ते से धीरे-धीरे बाहर निकल आया।
तब तक बाहर लोगों की और भी काफी भीड़ जमां हो गई थी लोग में यही चर्चा चल रही थी कि दारा खां का तो अब बाहर आने का (सही सलामत) संभव हो नहीं सकता। या तो वह अंदर ही झुलस गया होगा या तपश और धुएं से दम घुटने से बेहोश पड़ा होगा। लेकिन मुझे जिंदा व बिल्कुल सही-सलामत बाहर आया देखकर सब लोगों ने सतगुरु अल्लाह-मालिक का धन्यवाद किया कि परम पिता परमात्मा ने ही दारा खां को नया जन्म दिया है।
वास्तव में मेरे प्यारे परम पिता शाह सतनाम जी दाता रहबर ने अपनी दया मेहर का ऐसा शीत ठंडा साया मेरे पर डाला कि मशीन के अंदर की उस प्रचंड आग से, जहां चारों तरफ लोहे की मोटी-मोटी चदर थी, बहुत ही तंग लोहे की वह गुफा नुमा जगह थी, प्यारे दाता जी ने अपनी रहमत से मेरे पूरे शरीर पर कहीं एक भी छाला (सेक) भी नहीं पड़ने दिया।
अपने सतगुरु मुर्शिदे कामिल को कोटि-कोटि नमस्कार, सजदा, धन्यवाद करता हूं और यही दुआ है कि एक-एक स्वास सेवा-सुमिरन में लग जाए।
सतगुरु दाता जी के परोपकारों का बदला तो सैंकड़ों हजारों जन्म लेकर भी जीव नहीं उतार सकता। पूज्य पिता जी ने ही दोबारा जन्म दिया है। यह सतगुरु जी की ही अमानत है सेवा, सुमिरन करते हुए शरीर इन्सानियत के काम आए, यही मेरी अंतिम अभिलाषा है।