Working with children is also an art - Sachi Shiksha

कामकाजी माता-पिता होने के कारण छोटे छीटे कामों को करने का समय कई बार नहीं मिलता। आप बड़े काम तो कर लेते हैं पर छोटे छोटे काम छूटते चले जाते हैं। कई बार उन कामों को अंजाम देने से दिमागी बोझ बढ़ता चला जाता है। जल्दी सभी को होती है। धैर्य कम होता है, इसलिए परिवार में मनमुटाव बढ़ता जाता है।

परिवार में जितने सदस्य हों, प्रयास कर उनकी क्षमता, आयु, समय के अनुसार थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी सभी को बांटें ताकि परिवार का कोई सदस्य ओवर-बर्डन महसूस न करे। जरूरत होने पर उनकी मदद भी करें ताकि वह काम उनके लिए बोझ न बन जाए।

कुछ आदतें प्रारंभ से बच्चों में हंसते, खेलते डालें ताकि उन्हें वे काम अपनी जिंदगी का हिस्सा लगें। अगर आप अभी अभी (नए-नए ) माता-पिता बने हैं तो प्रारंभ से ही सोच लें कि बच्चों को कैसे काम में लगाना है ताकि वो बोर न होकर कुछ सीखें, अनुशासित बनें, मददगार और आत्म-निर्भर बनें।

छोटे कामों से करें शुरूआत

जब बच्चा चलने, बोलने और समझने लगे, यानि लगभग डेढ़ से दो साल की आयु में, उसे अपने खिलौने एक टोकरी में रखना,अपने जूते लाना, अपनी बोतल रखना सिखाएं ताकि बच्चा अपने छोटे खिलौने टोकरी में रखे और उसे पता चले कि खेलने के बाद उन्हें इकट्ठा करके रखना है। छोटी हल्की चीजें उसे इधर से उधर रखने को कहें या घर के अन्य सदस्यों को देने के लिए कहें। इससे बच्चे रिश्ते और चीजों का नाम जानने लगते हैं।

बच्चा प्ले-स्कूल जाने लगे तो बैग, बोतल रखने का स्थान उसे बताएं। घर जाकर जूते रखने और चप्पल लेने को कहें। बैग से टिफिन निकालना सिखाएं। टिश्यू पेपर डस्टबिन में डालना सिखाएं। थोड़ा बड़ा होने पर यूनिफार्म उतारना, जूते-मोजे उतारना, मैला रूमाल व जुराबें धोने वाले बैग में डालना बताएं। होमवर्क के बाद बैग संभालना, रात्रि में जूते-मौजे, रूमाल, यूनिफार्म निकालना भी सिखाएं। इस प्रकार उम्र बढ़ने के साथ-साथ काम बढ़ाते जाएं। जैसे डस्टिंग करना, बिस्तर ठीक करना, अपना स्टडीटेबल साफ करना, अपनी अलमारी साफ रखना, फ्रिज के लिए पानी की बोतलें भरना। अगर बच्चों को प्रारंभ से काम करना सिखाएंगे तो उन्हें आदत बन जाएगी।

गलतियां न निकालें

जब बच्चे शुरू में काम करना प्रारंभ करेंगे तो गलती भी करेंगे, उनकी गलतियों को बार-बार प्वाइंट-आउट न करें, बल्कि साथ लगकर उनकी कमियों को सुधारें। अगर हम उन्हें कहेंगे कि यह सही नहीं या खराब किया है तो बच्चे निरुत्साहित होंगे और काम करने के प्रति रूचि भी घटेगी। माता पिता का काम है कि उन्हें काम में लगाना, न कि काम से दूर करना। विशेषज्ञों के अनुसार किसी गलत काम हेतु उन्हें डांटें नहीं। कहें, ‘प्रयास ठीक है।’ बाकी स्वयं ठीक कर व्यवहारिक रूप से समझाएं। झट से बच्चे उसे समझ लेंगे।

बच्चे को थोड़ा वक्त दें

बहुत सारे माता-पिता समय अभाव के कारण बच्चों को अधिक काम की जिम्मेदारी नहीं देते। उन्हें लगता है उस समय में वे स्वयं काम निपटा लें तो ज्यादा बेहतर है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रात: समय कम होता है, अत: तब उनसे ज्यादा उम्मीद न रखें। स्कूल से आने के बाद थोड़े काम जिम्मेदारी के रूप में बताएं और शाम को भी थोड़ी मदद लें। बच्चा अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगा।

बच्चों को उनके इंटरेस्ट का काम दें

अगर बच्चे को गार्डनिंग का शौक है तो छुट्टी वाले दिन उससे पौधे साफ करवाएं,पानी दिलवाएं। अगर पेंटिग या चित्र बनाने का शौक है तो छुट्टी वाले दिन उसे उसके शौक पूरा करने दें। उसके साथ उससे अन्य कामों की भी मदद लें ताकि वह खुशी खुशी आपके काम कर सकें। उसके शौक को नजरअंदाज न करें।

मात्र बिजी रखने हेतु काम न करवाएं

बच्चों की उम्र और ग्रोथ के अनुसार उन्हें काम सिखाएं ताकि उनका मानसिक विकास हो सके। ऐसा न हो कि बच्चे को मात्र बिजी रखने हेतु काम पर लगाएं। उनके इंटरेस्ट का भी ध्यान रखें, ताकि वे बोर न हों और आउटपुट भी रहे। छोटे हैं तो ब्लाक्स से कुछ कुछ बनाते रहें, उन्हें साइज और रंग अनुसार अलग करें। थोड़ा बड़ा होने पर ब्लाक्स की गिेनती करें कि कितने ब्लाक उन्होंने कुछ बनाते हुए प्रयोग किए हैं। इस प्रकार उनका मानसिक विकास भी होगा और हाथ भी काम करते रहेंगे। बाद में उन्हीं ब्लाक्स को इक्ट्ठा कर टोकरी में डालने को कहें।

धैर्य न खोएं

छोटे बच्चों को काम पर लगाना माता-पिता के लिए एक चैलेंज होता है। उसके लिए धैर्य अवश्य रखें। तभी आप बच्चों की योग्यता और क्षमता समझ पायेंगे। अगर आप बार-बार झुंझलाएंगे तो बच्चे सीख भी नहीं पाएंगे और कुछ समय बाद वे आपसे मिक्स होना भी कम कर देंगे। उनसे प्यार व सहानुभूति से बात करें और सिखाएं तो वे भी उसी तरह से आपसे बात करेंगे और सुनेंगे। -मंजु पटेल

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