चौधरी बस पर नहीं जाना, भैंस के साथ जाना है -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
श्री हंसराज पुत्र श्री जीवन राम गाँव कोटली जिला सरसा से शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपने पिता पर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है :-
मेरे बापू श्री जीवन राम जी बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के चिताए हुए थे। वह अक्सर ही डेरा सच्चा सौदा में जाया करते थे। कई बार वह महीना-महीना डेरे में रहकर साध-संगत की सेवा किया करते थे। सन् 1959 का जिक्र है कि वह अपने सतगुरु जी के दर्शन करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा में गए। इस बार उन्होंने अगले दिन ही अपने घर वापिस लौटना था। उस दिन रात के समय मजलिस थी। जब सच्चे पातशाह जी मजलिस की कार्यवाही समाप्त करके गुफा में जाने लगे तो मेरे बापू जी ने पूज्य गुरू जी के चरणों में अर्ज कर दी कि सार्इं जी! मैंने पहली बस पर वापिस घर जाना हैै।
मुझे जरूरी काम है। सच्चे पातशाह जी अन्तर्ध्यान हो गए और कुछ पल रुक कर बोले, ‘पुट्टर, बस पर नहीं जाना। तूने भैंस लेकर जाना है। एक साधु साथ ले जा। वह तेरे साथ भैंस तेरे घर पहुंचा देगा।’ शहनशाह जी ने आगे फरमाया, ‘भैंस तुम्हें तंग न करे, इसलिए दो आदमी साथ ले जा।’ साधु गुरमुख ज्ञानी तथा एक सेवादार भैंस को मेरे बापू जी के साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए। भैंस को ब्याहने (ब्यांता) तक संभालने के लिए ले जाना था।
मेरे बापू जी के मन में ख्याल आया कि जब दो आदमी भैंस के साथ जा रहे हैं तो मैंने साथ जाकर क्या करना है। मेरे बापू जी साधु गुरमुख ज्ञानी को यह कहकर कि तुमने भैंस लेकर आ जाना और आप बस पकड़ने के लिए बस स्टैण्ड की तरफ चल पड़े। जब अंतर्यामी गुरू जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने मेरे बापू के पीछे एक आदमी भगा कर उसे वापिस बुलाया। त्रिकालदर्शी सतगुरु जी ने मेरे बापू जी को हुक्म फरमाया, ‘हमने तुम्हे बोला है, चौधरी बस पर नहीं जाना। भैंस के साथ जाना हैै।’ मेरे बापू जी ने सत्वचन कहा और भैंस लेकर उन दोनों के साथ चल पड़ा।
वे तीनों भैंस लेकर जब सिकन्दरपुर के बराबर पहुंचे तो उस समय वही हिसार जाने वाली पहली बस हमसे थोड़ा पीछे दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी। बस का बजरी से भरे ट्रक से बहुत भयंकर एक्सीडैंट हुआ पड़ा था। कई लोग मौके पर ही मर गए, अत्यन्त जानी तथा माली नुक्सान हुआ। इस प्रकार सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने मेरे बापू जी को बस पर चढ़ने से रोका तथा उसकी जान बचाई।
उक्त दुर्घटना से पहले रात के दो बजे बेपरवाह मस्ताना जी ने साधु न्यामत राम के द्वारा प्रेमी धन्ना राम लालपुरे वाले को संदेश भेजा कि वह पहली बस पर न चढ़े। क्योंकि धन्ना राम ने हिसार रोड के रास्ते डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम महमदपुर रोही जाना था। उसने वहां जाने के लिए शाम के समय पूज्य मस्ताना जी महाराज से आज्ञा भी ले ली थी। उसने उसी पहली बस पर चढ़ना था। अपने सतगुरु के हुक्मानुसार वह पहली बस की बजाए दूसरी बस पर चढ़ा था। रास्ते में उसने भी भयंकर दुर्घटना ग्रस्त बस तथा मृतक लोगों को अपनी आँखों से देखा था।
पूर्ण सतगुरु त्रिकालदर्शी होता है जो घट-घट व पट-पट की जानता है। वह पल-पल, क्षण-क्षण अपने जीवों की संभाल करता है और उन्हें भयंकर मुसीबतों से बचाता है।































































