संस्कारी होते हैं बुजुर्गों की छत्र-छाया में पलने वाले बच्चे Children who grow up
बड़े-बुजुर्गों के आशीषों और शुभकामनाआें के साथ ही घर तरक्की करते हैं, लेकिन इनकी उपस्थिति का सबसे ज्यादा सकारात्मक प्रभाव छोटे बच्चों की परवरिश पर पड़ता है।
जो बच्चे बुजुर्गों के साए में पले-बड़े होते हैं, उनके व्यवहार से इसका पता चल जाता है। बुजुर्ग, बच्चों को न केवल संस्कार व प्यार देते हैं बल्कि समय-समय पर बच्चों के डॉक्टर, शिक्षक, दोस्त भी बन जाते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी की देखरेख में रहे लोग बड़े भाग्यशाली होते हैं। बड़ों का होना सुरक्षा, संस्कार, संवेदना, ज्ञान और अपनी पारिवारिक जड़ों से जोड़े रखने के लिए अति आवश्यक है।
बच्चों का जिंदा इतिहास से परिचय करवाना, किस्से-कहानियों के द्वारा उन्हें संस्कृति-धर्म की जानकारी देना, लोरियों व गानों के माध्यम से, लोक संस्कृति से रूबरू करवाना बुजुर्गों द्वारा ही संभव है। उनका जीवन जीने की कला सिखाने का अलग ही तरीका होता है जो प्यार और दुलार से भरा होता है।
अक्सर हम देखते हैं कि दादी-नानी बच्चों को प्यार से पारंपरिक खाने खिलाती हैं, कभी हाथ से चूरी कूटकर देना, उन्हें अपनी गोद में बिठाकर खाना खिला देना, प्यार से दूध पिला देना, बातों-बातों में उनकी जिद्द को तोड़कर काम करना इत्यादि। आज के युग में तो वैसे भी बुजुर्गों की कद्र नहीं हो रही, ऐसे में जरूरत है कि बुजुर्गों की परवरिश हो,
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आइए जानते हैं कि वो कैसे हमारे अनमोल गहने हैं।
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मुश्किल में राहत:
यदि कोई बुजुर्ग घर में हो तो ये सुनिश्चित हो जाता है कि बच्चे को छोटी-मोटी समस्याओं के लिए बार-बार डॉक्टर के पास ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। दादी-नानी ही बच्चे की पहली डॉक्टर बन जाती हैं। उसे (नवजात) कैसे उठाएं, कैसे सुलाएं, मालिश कैसे करें, क्या पहनाएं ये सब दादी-नानी की देखरेख में आसानी से संभव होता है। छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज घरेलू नुस्खों से कैसे करें, इसका एक विशाल खजाना नानी-दादी से ही हमें मिलता है। यह बच्चों को कई बीमारियों से बचाता है साथ ही उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है, जो कि बच्चों को जीवनपर्यन्त स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक भूमिका निभाता है।
विचारों में परिवर्तन:
ये बात पढ़ने में सामान्य लग सकती है लेकिन बहुत गहरी है। जो बच्चे बुजुर्गों के साथ रहते हैं उनके विचार दूसरे बच्चों की तुलना में बेहतर होते हैं। वे दूसरों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं और सबकी परवाह करते हैं। एकल परिवारों के बच्चों में केवल अपना और अपने परिवार का स्वार्थ देखने की आदत बनने के आसार अधिक होते हैं, वहीं बुजुर्गों के साथ रहने वाले बच्चे आसपास के लोगों, दोस्तों और समाज की भी फिक्र करते हैं।
प्यार-दुलार का पिटारा:
बच्चों को सबसे निछल और नि:स्वार्थ प्यार जो दे सकता है, वे होते हैं घर के बुजुर्ग। माता-पिता कई बार जिम्मेदारियों व नौकरीपेशा होने के कारण बच्चों को पर्याप्त समय व दुलार नहीं दे पाते वह कमी दादा-दादी, नाना-नानी पूरी करते हैं। वे अपना पूरा प्यार सूद सहित अपने पोता-पोती, नाती-नातिन पर उड़ेल देते हैं। वे खुद तो प्यार करते ही हैं, साथ ही माता-पिता के गुस्से से भी बच्चों को बचाते हैं। इसके अलावा, बच्चों के गलती करने पर उन्हें सही तरह से समझाना व सही व्यावहारिक ज्ञान देना भी बुजुर्ग बाखूबी समझते हंै। कई बार जब माता-पिता से बच्चे कोई बात नहीं समझते तो वो बात घर के बुजुर्ग आसानी से बच्चों को समझा देते हैं।
संस्कृति से परिचय:
रात में सोते समय कहानियां सुनाना, गाने, भजन, लोरी सुनाना बुजुर्गों की खासियत होती है। वे यह सब सिर्फ़ बच्चों का मन बहलाने को नहीं बल्कि इनके माध्यम से बच्चों का इतिहास व संस्कृति से परिचय करवाने के लिए भी करते हंै। साथ ही वे संस्कार के बीज भी रोपित करते हैं। परिवार के रीति-रिवाजों के बारे में ज्ञान भी हमें उन्हीं से मिलता है। तीज-त्योहारों का महत्व, उन्हें मनाने की पद्धति की सही जानकारी घर के बुजुर्गों से ही प्राप्त हो सकती है। घर का कोई भी शुभ कार्य हो या संस्कार का अवसर हो, इनको बुजुर्गों के बिना पूरा करना असंभव है।
बुजुर्ग घर की अहम कड़ी:
माता-पिता अपने बच्चों से भविष्य में क्या उम्मीद रखते हैं यह वे अपने व्यवहार से बच्चों को सिखा सकते हैं। यदि घर में बुजुर्ग हैं और माता-पिता उनका सम्मान व उनकी इच्छाओं का ध्यान रखते हैं तो बच्चे अपने आप ही बड़ों का सम्मान व सबका ध्यान रखना सीख जाते हैं। माता-पिता व बच्चों के रिश्ते को और अधिक मजबूत बनाने का कार्य भी बुजुर्ग करते हैं। साथ ही परिवार के हर सदस्य का आपसी प्रेम बना रहे, इसकी जिम्मेदारी भी बुजुर्गों की होती है। बच्चों के मन में संवेदना पैदा करने का कार्य घर के बड़ों से अच्छा कोई और नहीं कर सकता।
कुछ बातें जो बच्चों को समझनी जरूरी हैं:
- बच्चे, बड़े-बुजुर्गों के पास तब जाते हैं जब वे दुखी या किसी बात से निराश होते हैं या फिर कहीं असफल होकर लौटते हैं। अमूमन बच्चे पैसे की जरूरत होने पर बड़ों के पास जाते हैं। माता-पिता से बात मनवानी हो तो बच्चों को बुजुर्गों की याद आती है। ऐसा न करें, बड़ों के पास नियमित रूप से बैठें और उन्हें अपनी दुनिया में शामिल करें।
- बुजुर्ग, बच्चों के लिए बिन उम्मीद बहुत कुछ करते हैं। बच्चों का भी कर्तव्य बनता है कि वे उनका ख्याल रखें।
- बुजुर्ग बढ़ती उम्र में अकेलापन महसूस करते हैं, खासतौर पर अपने साथी के जाने के बाद। इसलिए उनके साथ समय जरूर बिताएं। उन्हें ये एहसास न होने दें कि वे अकेले हैं।
- आपके फैसले बेशक छोटे होते हों लेकिन बड़ों से सलाह लें और उन्हें अपने निर्णयों में शामिल करें।
- घर के बुजुर्गों के साथ नियमित रूप से थोड़ा वक्त जरूर बिताएं। उनसे कहकर ही घर के बाहर जाएं और वापस आकर भी उन्हें अपने लौटने की सूचना दें। इससे बुजुर्गों को ना केवल प्रेम और परवाह का अहसास होता है, बल्कि वे अपने आपको घर का बड़ा समझकर खुश भी होते हैं।
- जिस तरह बुजुर्ग बच्चों से नि:स्वार्थ भाव से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार बच्चों को भी चाहिए कि वे अपने बुजुर्गों से आत्मीयता से प्रेम करें।
- बच्चों का सोने का समय बुजुर्गों के साथ ही निश्चित करें। इससे बुजुर्गों और बच्चों का साथ अधिक समय तक रहता है, जिससे बच्चे उनसे अच्छा सीख पाते हैं।
- उनके जन्मदिन, शादी की सालगिरह का उत्सव जरूर मनाएं।
“बच्चों को सबसे निछल और नि:स्वार्थ प्यार जो दे सकता है, वे होते हैं घर के बुजुर्ग। माता-पिता कई बार जिम्मेदारियों व नौकरीपेशा होने के कारण बच्चों को पर्याप्त समय व दुलार नहीं दे पाते वह कमी दादा-दादी, नाना-नानी पूरी करते हैं। वे अपना पूरा प्यार सूद सहित अपने पोता-पोती, नाती-नातिन पर उड़ेल देते हैं। “