christmas par nibandh in hindi essay- sachi shiksha

Christmas Par Nibandh in Hindi: 25 दिसम्बर का दिन मसीही समुदाय के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन उनके आराध्य प्रभु ईसा मसीह का जन्म हुआ था। इस दिन को ‘ईसा मसीह जयंती’ के रूप में मनाया जाता है। इस जन्मोत्सव के दिन को मसीही समुदाय पूरी दुनिया भर में धूमधाम के साथ मनाता है। इसे बड़ा दिन एवं क्रिसमस-डे भी कहा जाता है।

हार्ड वर्क, दिमागी मेहनत और शारीरिक मेहनत, यानि मेहनत, हक-हलाल की कमाई करो व प्रभु का नाम जपो, इन्सानियत का भला करो। प्रेम करो, आपस में प्रेम करो, सबसे प्रेम करो। अन्य सभी बरकतें अपने-आप आ जाती हैं।
प्रेम ईश्वर का ही स्वरूप है। जहां प्रेम है, वहां ईश्वर, प्रभु मौजूद हैं। जहां प्रेम नहीं, परमेश्वर वहां से करोड़ों कोस दूर है। ‘लव इज गॉड, गॉड इज लव’

जन्म

ईशु का जन्म बेतलहम में हुआ था। यह स्थान इजराइल में है। ईसा मसीह साढ़े सैंतीस वर्ष जीवित रहे किन्तु वे अपने अल्प जीवनकाल में प्रेम एवं भाईचारे का प्रकाश फैलाते रहे। ईसा मसीह के जन्म के समय रोमन साम्राज्य का शासक कन्सटिनटैन नावेल था। उनके शासनकाल में ही क्रिसमस पर्व मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई थी।

विश्व में लगभग 150 करोड़ लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं, अर्थात् भारत की कुल आबादी में से 2.5 प्रतिशत ईसाई हैं।

सांता क्लाज

प्राचीन कान में सांता क्लाज नामक एक मसीही संत था। यह ईसा के जन्म के दिन निर्धन, अनाथों एवं बच्चों को उपहार बांटता था। यह अब बच्चों के बीच बड़ा लोकप्रिय पात्र बन चुका है। यह बच्चों की इच्छा एवं सपने को पूरा करने वाले के रूप में माना जाता है। बर्फीले देश का सांता क्लाज जो लंबी सफेद दाढ़ी रखता एवं चोगेदार लाल पोशाक पहनता या अब जैसा देश वैसा भेष को धारण करते विविध रूपधारी बन गया है।

उपहारों का त्यौहार है क्रिसमस

क्रिसमस का त्यौहार ईसाइयों का सबसे बड़ा व पवित्र त्यौहार है। यह त्यौहार सभी जगहों में अपनी सुविधानुसार बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। लोगों को दिसम्बर माह का इंतजार रहता है। दिसम्बर माह के आते ही क्रिसमस की तैयारी में जैसे एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ सी लग जाती है। घर और दुकान इस तरह सजाये जाते हैं जैसे क्रिसमस का सबसे बड़ा प्रदर्शन यहां होने वाला है।

एक साधारण बढ़ई के घर पले व बढ़े हुए प्रभु ईशु ने तीस साल की उम्र से लोगों को परमपिता परमेश्वर के दिव्य वचनों का उपदेश देना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने भक्तों से कहा- ‘मैं इसलिए आया कि तुम्हें जीवन मिले और बहुतायत से मिले।’ यीशु गरीबों और बेसहारों के मसीहा थे। उन्होंने मूर्तिपूजा की जगह लोगों को निराकार परमेश्वर की पूजा का मार्ग बताया। वे लोगों को सांसारिक जीवन व्यतीत करते हुए भी परमेश्वर से निकटता बनाए रखने को प्रेरित किया करते थे।

उनका मध्यम मार्ग का सिद्धांत तो आज भी प्रासंगिक है जिसके अनुसार इंसान अपनी इच्छाओं को काबू में रखकर ही मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य पा सकता है। परमात्मा की प्राप्ति प्रेम से ही होती है। दिसम्बर माह के स्मरण मात्र से हृदय उत्साहित हो जाता है। वाह! क्रिसमस की छुट्टियां तथा उल्लास और साथ में ढेर सारे उपहार। यह उल्लास है उस पैगंबर, संत, परमात्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले सर्वशक्तिमान के अंश स्वरूप, धर्म की मर्यादा समझने वाले प्राणियों के मसीहा-‘प्रभु ईशु’ का।

प्रेरणादायक

एक बार, एक गांव में प्रभु ईशु ने लोगोंं को एक दृष्टांत बताया कि एक चिड़िया अन्न के कुछ दाने ले जा रही थी। ले जाते समय अन्न के कुछ दाने काली मिट्टी पर, कुछ मेढ़ पर और कुछ मुंंडेर पर गिर गये। जो दाने मुंडेर पर गिरे, वे अंकुरित नहीं हुए, जो मेढ़ पर गिरे, वे अंकुरित हुए किन्तु खरपतवार के कारण समाप्त हो गये और जो काली मिट्टी में गिरे, वे अंकुरित हुये व पल्लवित होकर, उत्तम फलदायी हुए।

इस दृष्टांत का अर्थ समझाते हुए प्रभु ईशु ने कहा कि ‘जो दाने मुंडेर पर गिरे और समाप्त हो गये, वे उन लोगों के समान हैं जो परमात्मा की बातें सुनते हैं लेकिन अमल में नहीं लाते। मेढ़ पर गिरे हुए दाने उन लोगों के समान हैं, जो परमात्मा की बातें सुनते हैं, अमल में लाते हैं लेकिन जल्दी ही शैतान के बहकावे में आकर सत्यमार्ग से हट जाते हैं। काली मिट्टी पर गिरे अन्न के दाने उन लोगों के समान हैं जो परमात्मा की बातों पर विश्वास करते हैं और पूरी तरह अमल में लाते हैं। ऐसे लोगों को समय आने पर आशा से अधिक फल की प्राप्ति होती है।’ समस्त उपदेशों का सार ईशु मसीह ने ‘प्रेम’ कहा है।

उन्होंने मानव मात्र से प्रेम करने को कहा। परस्पर प्रेम भाव से रहने को कहा एवं सेवा भावना से ओतप्रोत हो और कर्म करो। यही है उनके उपदेशों का सार है। ब्रहमज्ञान का भी यही सार है कि प्राणी कितना भी ज्ञानी हो जाये, ‘परमात्मा’ की प्राप्ति ‘प्रेम’ से ही होती है। ज्ञान वह शस्त्र है, जिससे माया रूपी पर्दे को काटा जाता है, और प्रेम वह शक्ति है, जिससे परमात्मा, भक्त के प्यार में बंदी बनकर आ जाते हैं।

– कृष्णा दुबे

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