कोरोना महाबीमारी का दूसरा दौर भी देश में फिर तेजी से फैलने लगा है। हालांकि भारत देश में कोरोना महाबीमारी की रोकथाम के लिए दो वैक्सीन भी बन गई है, लेकिन फिर भी महाबीमारी का कहर दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है।
कोरोना के पहले दौर ने भारत के अलावा दुनिया के अधिकतर देशों को अपने आगोश में लिया था। शायद ही कोई ऐसा देश बचा हो जो कोरोना से अछूता रहा हो। तब विश्वभर में पीड़ितों का आंकड़ा 12 करोड़ से ऊपर पहुंच गया था।
हालांकि इनमें से करीब 7 करोड़ लोगों ने कोरोना को मात भी दी, लेकिन फिर भी 26.60 लाख लोग कोरोना के पहले दौर में अपनी जान गंवा बैठे। यदि भारत में कोरोना संक्रमितों की बात की जाए तो यहां भी संख्या 1.14 करोड़ को पार कर गई थी, जबकि इनमें 1.10 करोड़ लोग कोरोना के साये से बाहर भी निकल आए, लेकिन 1.58 लाख से अधिक लोग इस महाबीमारी की भेंट चढ़ गए। इस वर्ष की शुरूआत में बेशक इस खतरनाक वायरस से कुछ राहत की खबरें मिलने लगी थी, लेकिन मार्च महीने में यह वायरस फिर से कमबैक करने लगा है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार मार्च से देश के 70 जिलों में कोरोना के मामलो में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का मानना है कि कोरोना वायरस के 79.54% नए मामले महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु से हैं। ऐसे में आने वाले दिनों को लेकर सतर्क रहना लाजमी हो गया है। इस वायरस से बचने के लिए डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने संगत के नाम भेजे अपने पिछले पत्रों में जहां काढा पीने की सलाह दी थी, वहीं सोशल डिस्टेंसिग (कम से कम दो गज की दूरी) और चेहरे पर मास्क इत्यादि का इस्तेमाल कर कोरोना से बचाव नियमों का सख्ती से पालन करने की हिदायत दी थी।
पूज्य गुरु जी ने अपने चौथे पत्र में भी मास्क पहनने की सलाह देते हुए कहा है कि घर से बाहर जाएं तो चेहरे पर मास्क जरूर पहनें। माना जाता है कि भले ही कई देश कोरोना माहमारी के आगे घुटने टेक गये हों, चाहे उनके यहां सभी अत्याधुनिक मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध रही हैं, परंतु भारत पारंपरिक औषधियों और तरीकों को अपनाते हुए इस बीमारी से लोहा लेता रहा है।
शायद यही वजह थी कि यहां के लोगों ने भिन्न-भिन्न काढ़े व अन्य औषधियों से अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखा है। यह भी सत्य है कि यह बीमारी ग्रामीण भारत में अपना व्यापक प्रभाव जमाने में नाकाम रही है, जिसका कारण भारतीय ग्रामीण जीवनशैली और परंपरागत औषधीय गुणों वाली वनस्पतियों का उपयोग बताया गया है। वैसे आयुर्वेदा चिकित्सा को अपनाकर गोवा कोरोनामुक्त हो गया है। गुजरात में भी आयुर्वेद चिकित्सा एवं औषधियों से करीब 8 हजार कोरोना रोगी ठीक हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के 179 केंद्रों पर 6210 पीड़ितों में आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा इस रोग को खत्म करने में सफलता मिली है। संखमनीबटी, दशमूल क्वाथ, त्रिकूटचूर्ण और हल्दी आदि आयुर्वेदिक औषधियां, इसके अतिरिक्त रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली वनस्पतियों का अर्क, काढ़ा आदि का नियमित सेवन एवं सोने से पहले हल्दी वाले दूध का उपयोग तथा योग, प्राणायाम, व्यायाम और साथ में गिलोय, सियाम तुलसी, अश्वगंधा जैसी परम्परागत औषधियां हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में कारगर साबित हुई हैं।
हालांकि सरकारें भी इस महामारी को फैलने से रोकने के हर संभव यत्न कर रही है, फिर भी हर इन्सान का भी यह फर्ज है कि कोरोना के प्रति दी गई हिदायतों के अनुसार चलना चाहिए। पूज्य गुरु जी के वचनानुसार घर से जब भी बाहर जाएं मास्क जरूर लगाएं तथा सेवा-सुमिरन, परमार्थ करें। पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को कुल सृष्टि का फिक्र है। वे देश की उन्नति, खुशहाली और सबकी भलाई के लिए हर समय ईश्वर से दुआ-प्रार्थना करते हैं कि भगवान सबका भला करें, आगे उसकी जो रजा है हम उसी में राजी हैं।