हार्ट अटैक: छाती के दर्द को न करें नजरअंदाज Heart attack: Do not ignore chest pain -हृदयाघात और हृदय से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती संख्या भारत ही नहीं, अपितु दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। पहले जहां 60 वर्ष से अधिक की उम्र वाले लोगों में हृदय की समस्याएं देखी जाती थी। किंतु आज यह 40 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में भी सामने आने लगी हैं।

‘सच्ची शिक्षा’ से विशेष बातचीत में शाह सतनाम जी स्पैशलिटी हॉस्पिटल सरसा के एमडी, डीएम (कार्डियोलॉजी) डॉ. अवतार सिंह ने हृदय की समस्याओं के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि इसका एक ही उपाय है कि हर व्यक्ति सतर्क रहकर समय-समय पर अपनी जांच करवाए और हृदय संबंधी सामान्य समस्याओं को भी गंभीरता से ले। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 6-8 प्रतिशत आबादी हृदय रोग से पीड़ित हैं। पूरी दुनिया में हर साल करीब दो करोड़ लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।

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डॉ. अवतार सिंह ने हृदयघात से जुड़े कई भ्रांतियों को दूर करते हुए अलग-अलग विषयों पर चर्चा की, प्रस्तुत हैं बातचीत के खास अंश:

प्रश्न: Angina (ऐजाइना) और Heart Attack(हार्ट अटैक) में क्या अंतर है?

डॉक्टर: Angina मुख्यत: हृदय रोग की वजह से छाती में होने वाला दर्द ही है। हृदय पर किसी भी तरह का दबाव होने पर जैसे कि तेजी से चलना, पहाड़ी पर चढ़ना, दौड़ना, ठंड में पैदल चलना। इन परिस्थितियों में यदि मरीज छाती पर दबाव/ दर्द महसूस करता है और आराम करने पर यह दर्द कम हो जाता है तो इसे Stable Angina कहा जाता है। जिसके लिए आगे हृदय की जांचें करवाना आवश्यक है। यदि यही दर्द आराम की अवस्था में भी लगातार 15-20 मिनट तक बना रहे तो यह unstable Angina अथवा हार्ट अटैक का सबब बन जाता है।
सामान्यत: हार्ट अटैक दो तरह का होता है। एक, जिसमें ईसीजी (ECG) में परिवर्तन तुरंत दिखाई देने लगते हैं और दूसरी तरह के केस में ईसीजी में कई बार परिवर्तन तुरंत नहीं दिखाई देते हैं। कुछ ब्लॅड टैस्ट ऐसी परिस्थिति में सहायक सिद्ध होते हैं (जैसे CPKMP,TROPONOIN)।

प्रश्न: क्या किसी भी तरह का छाती दर्द हार्ट अटैक है? छाती दर्द के बिना भी हार्ट अटैक हो सकता है?

डॉक्टर: सीने में अचानक होने वाला दर्द जो लगातार 15-20 मिनट से अधिक बना रहता है। यह दर्द ज्यादातर मामलों मेें सीने के बीचों-बीच दबाव की तरह, पसीने के साथ, लगातार बढ़ता जाता है। यह दर्द हाथों की तरफ जा सकता है। पेट के बीच के हिस्से से लेकर जबड़ों तक यह खिंचाव/जकड़न की तरह भी कुछ मामलों में हो सकता है। कुछ मामलों में यह सिर्फ पेट दर्द और लगातार उल्टियों के साथ भी मिल सकता है।

प्रश्न: Silent Heart Attack क्या है?

डॉक्टर: कई बार खासतौर पर डायबिटिज के मरीजों में लक्षण ना के बराबर अथवा सिर्फ हल्का दर्द, बैचेनी और पसीना आना भी संभव है। मरीज घबराहट, बैचेनी महसूस करता है और उसका ब्लॅड प्रैशर कम होने लगता है या अत्यधिक बढ़ने लगता है।

प्रश्न: हार्ट अटैक का खतरा किन लोगों को अधिक माना गया है?

डॉक्टर: यद्यपि आजकल की जीवनशैली, खान-पान, प्रदूषण के दौर में नवयुवक भी इसके शिकार हो रहे हैं, परंतु सामान्यत: 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग, डायबिटिज (शूगर) के मरीज, धूम्रपान, तंबाकू का सेवन करने वाले, अत्याधिक मोटापे के शिकार लोग एवं ऐसे लोग जिनके परिवार (माता-पिता एवं भाई-बहन व सगे-संबंधी आदि) में किसी को कम उम्र में हृदय की समस्याएं आई हों। ऐसे लोगों को हृदयाघात की संभावना अधिक रहती है।

प्रश्न: ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए?

डॉक्टर: ऐसे लोगों को कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे –

  • बीड़ी-सिगरेट व तंबाकू का सेवन ना करें।
  • जीवनशैली और खान-पान में सुधार करें।
  • व्यायाम और सात्विक भोजन लें।
  • वजन कम करें।
  • समय-समय पर ब्लॅड शूगर, ब्लॅड प्रैशर (बीपी), कोलेस्ट्रॉल की जांच करवाएं।
  • आवश्यकता पड़ने पर हृदय चिकित्सक के परामर्श एवं दिशा निर्देश में TMT,2D ECHO,ECG.,CT CORONARY Angiography जांच करवाएं।

प्रश्न: ऐसी कौन-सी प्रारंभिक जांचें हैं जिनसे हार्ट अटैक का पता चल सकता है?

डॉक्टर: ऐसी कुछ जांचें हैं, जिनसे हार्ट अटैक का पता चल सकता है, जैसे

  • ECG: प्रारंभिक स्तर पर तुरंत होने वाला आवश्यक टैस्ट है।
  • BLOOD TEST : TROPONOIN,CPKMB जो हृदयघात के कारण हृदय की मांसपेशियों पर होने वाले असर को दर्शाते हैं।
  • ECHO-Cardiograph:  यह हृदय की पंपिंग क्षमता एवं हृदय वाल्वों की क्रिया प्रणाली को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड आधारित सामान्य टैस्ट है, जो हृदय चिकित्सक द्वारा तुरंत किया जाता है।

प्रश्न: अगर हृदयाघात की आशंका प्रबल हो एवं निकटस्थ उपलब्ध चिकित्सक इसकी पुष्टि करे, तो कौन-सी एमरजेंसी दवा मरीज को तुरंत लेनी चाहिए?

डॉक्टर: घर में अगर एस्प्रिन (300/325 एमजी) की टेबलेट उपलब्ध हो तो इसे चबाकर अथवा पानी में घोलकर तुरंत लेना चाहिए एवं शीघ्रातिशीघ्र निकटस्थ हृदय चिकित्सक केंद्र पर पहुंचना चाहिए।

प्रश्न: Coronary Angiography एवं Angioplasty (एंजियोप्लास्टी) में क्या अंतर है?

डॉक्टर:Coronary Angiography (कोरोनरी एंजियोग्राफी) एक  Diagnostic Procedure (जांच) है, इसमें नस के द्वारा (हाथ की अथवा पैर की नस) तार एवं catheter की सहायता से हृदय की नसों की Dye द्वारा जांच की जाती है एवं ब्लॉकेज का पता लगाया जाता है। इसमें किसी किस्म की चीराफाडी या टांकों का प्रयोग नहीं किया जाता। सिर्फ सुई की चुभन जितना दर्द ही सामान्यत: होता है। यह प्रक्रिया 10 से 15 मिनट में ही पूरी हो जाती है। मरीज को बेहोश/ या सुलाने की भी आवश्यकता नहीं होती है।

एंजियोप्लास्टी एक तरह इसमें आगे के इलाज की प्रक्रिया है। जहां अगर ब्लॉकेज 70-80 प्रतिशत से अधिक है एवं उसे खोलना मरीज के हित में आवश्यक है तो इस तरह की ब्लॉकेज को मरीज/परिजनों की सहमति से खोला जाता है।
पहले ब्लॉकेज में सूक्ष्म तार पर सूक्ष्म गुब्बारों की सहायता से उसे खोला जाता है। फिर रक्त प्रवाह सामान्य होने पर छल्ले (२३ील्ल३) से उस ब्लॉकेज को पूरी तरह से सामान्य करने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न: Angiography एवं Angioplasty के लिए किस तरह की मशीन का प्रयोग किया जाता है?

डॉक्टर: इस प्रक्रिया के लिए Cath Lab. Machine का इस्तेमाल होता है। यह X-Ray आधारित मशीन है। हमारे अस्पताल (शाह सतनाम जी स्पैशलिटी हॉस्पिटल) में विश्वस्तरीय आधुनिक मशीन इस हेतु उपलब्ध है।

प्रश्न: Primary Angioplasty (प्राइमरी एंजियोप्लास्टी) क्या है? क्या यह दूसरी किसी एंजियोप्लास्टी से भिन्न है?

डॉक्टर: यह एंजियोप्लास्टी ही है। कुछ हार्ट अटैक इस तरह के होते हैं, जिन्हें STEMI (ST Elevation MI ) कहा जाता है। इस तरह के हृदयाघात में एंजियोग्राफी तदुपरांत एंजियोप्लास्टी जितना जल्दी संभव हो सके, की जानी चाहिए। तुरंत की जाने वाली एंजियोप्लास्टी को प्राइमरी एंजियोप्लास्टी कहते हैं। जिसके फायदे हैं कि दर्द तुरंत कम होना, जान का खतरा टल जाना एवं हृदय की पंपिंग क्षमता का ज्यादा कम ना होना। इस तरह के हार्ट अटैक में यदि देरी हो तो हृदय की पंपिंग क्षमता काफी कम हो जाती है, जिससे आने वाले जीवन में हार्ट फेलियर का रिस्क बढ़ जाता है।

इसलिए हार्ट अटैक के मरीजों को जितना जल्दी हो सके एंजियोग्राफी, तदुपरांत एंजियोप्लास्टी (छल्ले डालने की अगर आवश्यकता हो तो) की सलाह दी जाती है ताकि हृदय की पंपिंग क्षमता को कम होने से बचाया जा सके।
कई बार देखा गया है कि हृदयाघात होने के तुरंत बाद यदि मरीज को एंजियोप्लास्टी की सुविधा मिल जाए तो उसकी हृदय पंपिंग की क्षमता पुन: सामान्य भी हो जाती है।
इसलिए सभी चिकित्सक इस बात की सलाह देते हैं कि जितना जल्दी हो सके हृदयाघात के मरीजों को ऐसी स्थिति में हृदय चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।

स्टेंट (छल्ले) डालने से जुड़ी कुछ भ्रांतियां

प्रश्न: क्या सभी तरह के हार्ट अटैक में स्टेंट डाला जाना आवश्यक है?

डॉक्टर: हार्ट अटैक अथवा एंजाइना के मरीजों में कोरोनरी एंजियोग्राफी को जांच की सलाह दी जाती है, जिसमें हृदय की नसों की ब्लॉकेज का पता लगाया जाता है। सामान्यत: यदि नसों में ब्लॉकेज 70-80 प्रतिशत से अधिक हो, धमनी (नस) का कैलीबर (आकार) स्टेंट (छल्ले) डालने के योग्य हो एवं यदि उसमें छल्ला डालने से मरीज को फायदा पहुंचना हो तभी छल्ला डालने की सलाह दी जाती है।

कई बार नसें बहुत बारीक हों या ब्लॉकेज बहुत अधिक हो अथवा सभी नसों में हो तो बाईपास की सलाह भी मरीज को दी जाती है। कम ब्लॉकेज होने पर मरीज को सिर्फ दवा लेने की सलाह भी दी जाती है।
इसलिए यह कहना गलत है कि हर बार एंजियोग्राफी के बाद छल्ला डाला ही जाता है। स्टेंट बाईपास अथवा दवा का निर्णय एंजियोग्राफी के बाद ब्लॉकेज के आधार पर मरीज एवं परिजनों से पूर्ण विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाता है।

प्रश्न: क्या स्टेंट कम उम्र के मरीज में डालना उचित है?

डॉक्टर: वर्तमान दौर में खास तौर पर भारत में हृदयघात की बीमारी कम उम्र में भी मिलने लगी है। छल्ले डालने का निर्णय नसों के ब्लॉकेज एवं मरीज की स्थिति के आधार पर लिया जाता है, उम्र के आधार पर नहीं। स्टेंट (छल्ले) डालने का इलाज विश्वस्तरीय गाइडलाइन (मानकों) के आधार पर ही लिया जाना चाहिए।

प्रश्न: स्टेंट तो समय के साथ खराब हो जाते हैं, बाईपास के साथ ऐसा नहीं होता?

डॉक्टर: स्टेंट अथवा बाईपास दोनों ही परिस्थितियों में समय के साथ ब्लॉकेज आने की संभावना रहती है। किंतु यह बहुत सारी परिस्थितियों पर निर्भर करता है, यदि मरीज खून पतला करने वाली (ऐटिप्लेटलेटस) कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने वाली दवाओं (स्टेटिनस) का सेवन नियमित रूप से हृदय चिकित्सक की निगरानी में करता है, धुम्रपान नहीं करता, खान-पान का परहेज, ब्लॅड शूगर को कंट्रोल (नियमित) रखता है तो ऐसे मरीजों में स्टेंट या बाईपास में खराबी आने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

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