Experience of Satsangis

तुम हमारे होओगे तो… -सत्संगियों के अनुभव

पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

प्रेमी देस राज इन्सां निवासी शाह सतनाम जी नगर सरसा से अंतर्यामी सतगुरु पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज का एक बहुत ही दिलचस्प रहमो-करम का इस प्रकार बयान करते हैं। सन् 1957 की बात है। जैसा कि मैंने पिछले अंक में करिश्मे के रूप में बताया था कि पूज्य सतगुरु बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार मेरे पापा लछमन दास जी व मेरे चाचा श्री हजारा लाल जी इन्सां परिवार सहित मलोट से पूज्य दाता सार्इं मस्ताना जी महाराज की शरण में डेरा सच्चा सौदा में आ गए थे।

पूज्य दयालु शहनशाह जी ने दोनों परिवारों के लिए स्वयं पास खड़े होकर एक शानदार मकान बनवाया और उसमे दोनों भाइयों को प्रेम पूर्वक अलग-अलग रहने का वचन फरमाया। रोज़गार के लिए पूज्य बेपरवाह जी के हुक्मानुसार उन्होंने उसी मकान में ही चाय की एक दुकान खोल ली थी। एक दिन वे दोनों भाई आपस में अपने दिल में छुपी बात को साझी कर रहे थे। उस समय वहाँ पर केवल वो दोनों ही थे, तीसरा बंदा, कोई, यानि एक बच्चा भी वहां पर उनकी बातों को सुनने वाला नहीं था।

मेरे पापा ने मेरे चाचा से बात करते हुए कहा कि ‘हजारा लाल, अपने यहाँ आ तो गए हैं, मान लिया दाल-रोटी तो चलती रहेगी, लेकिन जिस बात का मुझे बार-बार ख्याल आता है तथा चिंता-फिक्र, टेंशन खाए जाती है कि कल को अपने बच्चे बड़े होंगे और उनकी शादियाँ भी करनी होंगी, अपनी बिरादरी वाले तो हमें हमारे यहां आने पर, हमारे बहुत खिलाफ हैं तथा अपनी बिरादरी के बगैर (गैर-बिरादरी) हम शादी-ब्याह करते ही नहीं। फिर कैसे बनेगा? जवाब में मेरे चाचा ने उन्हें हौसला दिया कि भाई जी, मालिक के हाथ बहुत लम्बे हैं।

वो सब कुछ कर सकता है। वह बड़े से बड़ा काम कर सकता है और यह तो उसके लिए बात ही कुछ नहीं! इस मामूली बात के लिए आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं! बात तो यह उन दोनों भाइयों के ही बीच और वह भी रात को सोने के समय में ही हुई थी, जबकि अगली सुबह प्रात: चार बजे ही घट-घट की जानने वाले अंतर्यामी सतगुरु शाह मस्ताना जी दाता रहबर स्वयं हमारे घर के आंगन में पधारे। उस समय मेरे पापा जी दुकान की सफाई आदि कर रहे थे। पूज्य बेपरवाह जी ने मेरे पापा को इशारे से अपने पास बुलाया और वचन फरमाया कि अरे लछमन! दौड़ के आ, तेरे को एक बात बताते हैं! जो ये दरबार बना है ये भीख मांगने वाले साधुओं का नहीं है। ये खुद-खुदा के हुक्म से बना है।

यहां पर तो बिना बताए, बिना मांगे ही सब काम होता है। तुम्हारे बच्चों की शादियाँ अपने-आप ही यहीं पर होंगी। तुम्हारे बिरादरी वाले रिश्तेदार स्वयं यहाँ पर आकर तुम्हारे से रिश्तेदारी करेंगे। तुम्हें किसी के पास नहीं जाना पड़ेगा। तुम्हारे सभी रिश्तेदार नाम-शब्द ले लेंगे। वो अपने-आप ही यहाँ आया करेंगे और तुम्हें किसी के पास भी जाना नहीं पड़ेगा और तुम्हें किराया भी खर्च नहीं करना पड़ेगा।’ पूजनीय सतगुरु सार्इं जी से ये बातें सुन कर मेरे पापा आश्चर्यचकित रह गए कि यह बात तो हम दोनों भाइयों के ही बीच हुई थी और हमारे में से किसी ने भी पूज्य सार्इं जी को जाकर कहा भी नहीं था, जबकि सार्इं जी तो प्रात: चार बजे ही घर पर पधारे थे। तो पूज्य सार्इं जी को फिर कब और किसने बताया है! तुरंत अंदर से ख्याल आया कि सतगुरु तो स्वयं जानीजान, वाली दो जहान है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है।

सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने यह भी फरमाया कि ‘लछमन! यदि तुम यहाँ हमारे पास रहोगे तो माया तो जुड़ेगी नहीं, पर दरबार में तुम्हारी दाल-रोटी का गुज़ारा चलता रहेगा और काम कोई कितने भी पैसे का हो, हज़ारों या लाखों का भी, वह काम नहीं रुकेगा। सतगुरु तुम्हारा साथ देता रहेगा। तुम हमारे होओगे तो सतगुरु हमेशा तुम्हारा हो जाएगा। कभी किसी चीज़ की कमी नहीं आएगी और जायज़ मांग जो भी मन में सोचोगे, सतगुरु पूरी करेगा।’ मेरे पापा ने उस समय पूज्य सतगुरु सार्इं जी से यही विनती की कि सार्इं जी, हमें आप जी (सतगुरु जी) चाहिए। हमें माया की ज्यादा जरूरत भी नहीं है। हम अपने सतगुरु के लिए ही यहाँ आए हैं।

पूज्य शहनशाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि ‘बहुत अच्छा बेटा! पुट्टर! तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं पड़ेगी। जब सतगुरु ही मांग लिया है, तो पीछे क्या चीज़ रह गई है!’ सर्व-सामर्थ अंतर्यामी सतगुरु सार्इं जी के वचनानुसार, हमारे सभी परिवारों में आज किसी भी चीज़ की कमी नहीं है। दूध, पुत्र, जमीन-जायदाद आदि सब कुछ है जैसा कि पूजनीय सतगुरु-सार्इं जी ने वचन किए थे। मालिक की कृपा से सारा परिवार आज भी ज्यों का त्यों डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हुआ है। पूज्य मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की प्रेरणा को ईलाही हुक्म मानते हुए हम सब लोग यथा-संभव सेवा, सुमिरन करते हैं। यही अरदास है कि ऐ शहनशाह सच्चे रहबर सार्इं जी! आखिरी स्वास भी यूँ ही आप जी के हुक्म में सेवा- सुमिरन करते हुए लग जाए जी।