अपने लिए भी जिएं | Live for yourself
महिलाएं अपने लिए जीने को बुरा समझते हुए इस सोच को नीची दृष्टि से देखती हैं। शायद यह हमारे संस्कारों के कारण ही है। अपने लिए जीना मानो पाप है, वे ऐसा प्रदर्शित करती है। जब पंछी घोंसला छोड़कर उड़ जाते हैं, तब भी महिलाएं इस सोच में मुक्त नहीं हो पातीं। कुछ औरतें यह दुस्साहस करती भी हैं तो उन्हें कंडेम करने के लिए दूसरी गठबंधन कर लेती हैं। एक रिसर्च के अनुसार, हमेशा उनके लिए पति, बच्चे, दोस्त, पड़ोसी और उनकी निजी जिन्दगी महत्त्वपूर्ण रहती है सिवाय खुद के।
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यह शायद उसमें जन्मजात गुण है
एक जरूरत है सदा दूसरों को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते रहना। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर कुंदा खेड़कर के मतानुसार, महिलाएं अपने चहेतों को खुश रखना पसंद करती हैं। एक पत्नी और मां का रोल निभाते हुए यह भूल जाती हैं कि हमारी अपनी भी कुछ जरूरतें व प्राथमिकताएं हैं। परिणामस्वरूप बहुत सी स्त्रियां यह नहीं समझ पातीं कि वे जीवन में क्या चाहती हैं। अपने को अहमियत देना स्वास्थ्य और दिमागी संतुलन के लिए आवश्यक है। आपको अपनी जरूरतों को समझ कर खुश रहने के लिए उन्हें पूरा करना आना चाहिए। आपकी जरूरतें दूसरे समझें, इस बात पर निर्भरता आपको केवल निराश ही करेगी।
खुशी ढूंढने के लिए सर्वप्रथम आपको जो करना है वो हैं
सोच नकारात्मक न होने दें Live for yourself
आशावादी होकर ही आप हर मुश्किल से जूझ सकती हैं, उस पर विजय पा सकती हैं। पॉजिटिव सोच से हमारा इम्यून सिस्टम बेहतर होता है। पॉजिटिव सोच की महत्ता को देखते हुए ही आज कई छोटे बड़े शहरों में लाफ्टर क्लब खुल गए हैं। अध्ययन दर्शाते हैं कि प्रार्थना बीमारी में चंगा होने में इसलिए मदद करती है क्योंकि वह बीमार को आशावादी बनाती है। इसी प्रकार अपने अतीत और वर्तमान को मथना भी तनाव कम करता है और सही सोच को दिशा देता है।
माइंडसेट बदलें
दूसरों के संदर्भ में जीना कम करें। अपने पर भरोसा लाएं। सबसे भली बनने के फेर में अपने को मिटा न डालें। इससे कुछ हासिल न होगा। मसीहा बनने की कोशिश व्यर्थ है। पहले घर रोशन करें, फिर मंदिर। अपने को स्वीकार करना सीखें, अपनी कमजोरियों सहित। अपनी शर्तों पर जियें। कभी-कभी समझौता भी करने में हर्ज नहीं और यह तभी हो सकता है जब आप अपने को इस काबिल बना लें कि आपकी बातों के सब कायल हों। जीवन में व्यवस्थित रह कर अपनी प्राथमिकताएं तय करें और चल पड़ें जीवन पथ पर।
अपनी जरूरतों को समझें
आप कब क्या चाहती हैं, आपके सपने क्या हैं, सबसे पहले यह जानना जरूरी है। जानकर ही तो आप उन्हें पूरा करने के बारे में सोच पाएंगी, प्लान कर सकेंगी। अगर अपनी जरूरतों को समझ नहीं पाएंगी तो यह बात अंदर ही अंदर आपको सताती रहेगी। इससे आप में क्षोभ पनपने लगेगा जो आपके व्यक्तित्व को कुंठित कर देगा। अपने विवेक और कर्तव्यबोध के साथ ही आपको अपनी खुशियां देखनी हैं। इनमें टकराव हो सकता है लेकिन ऐसी नौबत न आए, यह आपको स्वयं देखना है।
जो मिला है उसकी कद्र करें
हमारे पास कितना कुछ है लेकिन अक्सर और सभी की तरह हम उसकी तरफ से आंखें मूंदे रहते हैं। अपने पर दया करना लोगों की आदत में शुमार हो जाता है। यह सोच कि स्थिति इससे बदतर हो सकती थी, काफी ढांढस बंधाती है।
अपनी उपलब्धियों को जानें, उन पर नाज करें। दूसरों को हर समय ब्लेम करना, उनसे ईर्ष्या करना छोड़ें। आप स्वयं देखेंगी आप कितना ‘फीलगुड’ कर रही हैंं।
आगे बढ़ना ही जीवन है
जीवन की धारा रूकनी नहीं चाहिए। इसे तो बहना है, निर्झर की तरह गतिशील रहकर। अब मान लो आपके साथ जीवन में कोई हादसा हो गया, कोई दुर्घटना घटी थी तो उसे लेकर उस कदर दुख में न डूब जायें कि उससे बाहर ही न निकल सकें। कभी किसी ने आपके साथ कुछ बुरा किया हो तो उसे लेकर कुढ़ते रहने से आप ही का नुकसान है। जीवन बार-बार नहीं मिलता। इसे इस तरह क्यों गंवाया जाए। माफ करो और भूल जाओ की नीति अपनाएं और आगे बढ़ें। जीवन बांहें फैलाये आपका स्वागत करने को तैयार मिलेगा।
प्यार, उमंग, चाव न हो कम
एक स्वस्थ लंबी आयु के लिए जीवन में प्यार, उमंग, चाव जरूरी है। ये शेयर हमेशा याद रखें ‘जिÞन्दगी है जिन्दादिली का नाम, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं।’ मन को कभी बुझने न दें। अवसाद के पलों से निपटना सीखें, मन को डायवर्ट करें। अच्छी किताबें, म्युजिक, प्रकृति, कोई हॉबी या हल्की-फुल्की गप्पबाजी इसमें मदद करेगी।
वर्तमान में जिएं
भविष्य का सोच-सोच क र कई लोग हर समय दुखी रहते हैं। न जाने क्या होने वाला है। कहीं मेरा बेटा किडनैप न कर लिया जाय। जवान बेटी के साथ कोई वैसी बात न हो जाए। गरज यह कि दुनिया-भर की मुसीबतों को सोचकर हलकान होना, दूसरों में भी नेगेटिव वाइब्स पैदा करना, जीने का सही अंदाज नहीं। इसी तरह हर समय बीती बातों को याद करना और उनसे दूसरों को बोर करना आपके जीने की गुणवत्ता कम करता है। वर्तमान में जिएं और उसे भरपूर एंजाय भी करें।
उषा जैन ’शीरीं‘
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