मुंशी राम ही अब राजकुमार है -सत्संगियों के अनुभव -पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता बागां बाई इन्सां पत्नी प्रेमी नादर राम, निवासी रानियां जिला सरसा। माता बागां बाई पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के अनोखे करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करती हैं:
सन् 1959 की बात है। मैंने पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के रानियां में हुए रूहानी सत्संग में नाम-शब्द, गुरुमंत्र लिया। उस समय डेरा सच्चा सौदा सतगुरु धाम रानिया में उसारी की सेवा चल रही थी। मैं भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दरबार में सेवा करने जाया करती थी तथा दिन-रात सुमिरन भी करती रहती। जिस समय मैंने नाम लिया, उस समय मेरा बेटा मुन्शी राम मेरी गोद में था। उसकी आयु करीब एक वर्ष थी।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज, समय आने पर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपनी रूहानी ताकत बख्श कर, दूसरे शब्दों में डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर विराजमान करके स्वयं 18 अप्रैल 1960 को जोति-जोत समा गए। मुन्शी राम को नाम दिलाना हम भूल गए। समय गुजरता गया। करीब 17-18 वर्ष की नौजवान आयु में यानि सन् 1977 में मेरे बेटे मुंशी की अचानक मृत्यु हो गई।
मेरे पति का शहर के एक सेठ नोता राम से भाइयों जैसा संबंध था। मेरा बेटा मुंशी राम उन दिनों खेती के काम में सेठ का ट्रैक्टर चलाया करता था, बल्कि उस दिन हमने अपने धान से खरपतवार निकालने के लिए अपने 35-40 रिश्तेदार संबंधी भी बुलाए हुए थे। मुंशी राम ने अपने रिश्तेदारों से कहा कि वह सेठ का ट्रैक्टर उसके खेत में छोड़कर अभी वापिस आ रहा है। वह ट्रैक्टर सेठ के यहाँ छोड़ने के लिए चला गया। जब वह ट्रैक्टर उसके यहाँ छोड़कर वापिस आने लगा, तो सेठ ने कहा कि आज कोई मजदूर नहीं है, एक ही नौकर है, इसके साथ धान में दवाई डलवा दे।
मुंशी राम सेठ को जवाब न दे सका। तो दोनों ने मिलकर सेठ के धान के खेतों में दवाई डालनी शुरु कर दी। उन दिनों मुंशी राम के पांव पर एक जख्म था। वह जहरीली दवाई उस जख्म के द्वारा मुंशी राम के शरीर में प्रवेश कर गई और देखते ही देखते वह अचेत जमीन पर गिर पड़ा। उसे उसी समय शहर में डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया, क्योंकि जहरीली दवाई के कारण उसकी तुरंत मृत्यु हो चुकी थी।
मैं अपने बेटे के वियोग में तड़पती रहती। मैं नाम का सुमिरन करती और अपने सतगुरु के आगे अर्ज़ करती कि मेरा बेटा कहां है? मुझे दिखा दो! एक रात अर्द्ध-निंद्रा अवस्था में मुझे पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दर्शन दिए। उन्होंने मुझे मेरा मुंशी राम दिखाया। मुंशी राम ने मुझे कहा कि मां, मैं अब नेजिया डेरा सच्चा सौदा में हूं। मेरा कमरा नेजिया में बनी गुफा (तेरावास) के पास है। पूजनीय सार्इं जी ने मुझे डेरा सच्चा सौदा सतलोक पुर दमदमासाहिब नेजिया खेड़ा डेरे का सारा सीन दिखाया।
मुझे मालूम नहीं था कि नेजिया गांव में बेपरवाह जी का डेरा सच्चा सौदा बना हुआ है। मैंने पूछताछ की तो पता चला कि नेजिया गांव में डेरा सच्चा सौदा सतलोक पुर धाम डेरा है और वहां पर नामचर्चा होती है। मैं वहां जाने के लिए तैयार हो गई। मेरे पति ने मुझे वहाँ जाने से रोका कि लोग कहेंगे कि वह अपने नौजवान बेटे के गम में पागल हो गई है। वह मरने वाला मर गया, शायद उसकी इतनी ही लिखी थी। लेकिन मैं रूकी नहीं और नेजिया चली गई। मैंने वहाँ पर जाकर देखा तो जो कुछ मुझे शहनशाह जी ने सपने में दिखाया था, सब कुछ ज्यों का त्यों बना हुआ था। मुझे विश्वास हो गया कि मेरा बेटा भी जरूर यहीं आस-पास होगा। लेकिन उस दिन मैं उसे नहीं मिल पाई और वापिस आ गई।
कुछ दिनों बाद हमें डेरे के एक जीएसएम सेवादार नानक जी से पता चला कि यहाँ पर चार साल का एक लड़का है, जो कुछ अजीब-अजीब बातें करता है। वह कहता है कि रामपुर थेड़ी और रानिया वाला डेरा तो म्हारा देखड़िया (देखा हुआ) है। वह यह भी कहता है कि रानिया में म्हारा घर है। म्हारे कच्चे मकान हैं। म्हारे घर बाई लॉरस ट्रैक्टर है। उन्हीं भाई जी से पता चला कि उस लड़के का नाम राजकुमार है और उसके बाप का नाम दीवान चंद और दादा का नाम रामेश्वर दास है। वह सारा परिवार डेरा सच्चा सौदा का प्रेमी है।
माता बागां बाई ने बताया कि फिर एक दिन हम सारा परिवार डेरा सच्चा सौदा नेजिया खेड़ा पहुंचे और जीएसएम सेवादार से उस लड़के के परिवार को मिलने की अपनी इच्छा बताई। इस पर उन्होंने राजकुमार के परिवार को वहीं डेरे में बुला लिया। उस लड़के (राजकुमार) ने आते ही मुझे (मां), मेरे पति (बाप) तथा मेरे बेटे (भाई) और मेरी पुत्र-वधु को पहचान लिया। उस परिवार से पूरे प्यार सत्कार से मिलकर हम उन्हें अपने घर रानिया में आने का बुलावा देकर वापिस लौट आए। उसकी बातों से हमें पूरा यकीन हो गया कि हमारा बेटा मुंशी राम ही अब राजकुमार के रूप में यहां पर है।
कुछ दिनों के बाद राजकुमार अपने माता-पिता व परिवार सहित हमारे घर रानिया में आए। हमने अपने सभी रिश्तेदारों व संबंधियों को भी बुलाया हुआ था। आपस में मिलने के बाद मेरे पति ने अपनी सगी बहन की तरफ इशारा करते हुए राजकुमार से पूछा कि बेटा, ये कौन है? राजकुमार ने कहा कि यह तुम्हारी बाई जी (बहन) यानि मेरी बुआ जी है राजस्थान वाली। उसने उसका नाम भी सही बताया। सेठ नोता राम को जब पता चला, तो वह भी राजकुमार को मिलने आया। उसने प्यार व सत्कार से दो सौ रुपए उसे दिए।
इस पर राजकुमार ने कहा कि अंकल, अभी भी अपना हिसाब बाकी है, क्योंकि वह सेठ का ट्रैक्टर चलाने की तनख्वाह लेता था और उसकी तनख्वाह के पैसे सेठ की तरफ रहते थे। वह अपने एक सहपाठी रहे सलवंत सिंह पुत्र करतार सिंह को उसका नाम लेकर व उसे जफ्फी पाकर मिला। बाजीगर बिरादरी से दर्शन सिंह जो भेड़-बकरियाँ चराता था, उससे उसने पूछा कि अब भी भेड़ें ही रखता है या कोई और काम करता है? उसके बाद उसका छोटा बेटा कन्हैया उसे (राजकुमार को) अपनी जीप में बैठाकर अपना खेत दिखाने ले गया। रास्ते में जब सेठ का खेत आया, तो राजकुमार ने वहाँ खेत में पहले से बनी कोठड़ी की तरफ इशारा करके कहा कि ये वो ही कोठड़ी है जहाँ पर मेरी मौत हुई थी।
एक दिन राजकुमार अपने साथी सीताराम को लेकर अपने आप हमारे घर आ गया। उसकी उम्र 24-25 वर्ष की हो चुकी थी। जब हम नेजिया में उसे मिले थे, तब वह 3-4 साल का था। अब लगभग 20-21 वर्षों बाद जब वह हमारे घर आया, तो सबको पहचान गया और बताने लगा कि आप नेजिया में आए थे। मैंने तब भी आप सब को पहचान लिया था और आज भी मुझे सब कुछ ज्यों का त्यों याद है। वह मेरे पति को कहने लगा कि बापू, अपने कच्चे मकान कहां हैं? मेरे पति ने कहा कि वो सामने नजदीक ही हैं। मैं रसोई में थी और खीर बना रही थी।
राजकुमार रसोई में मेरे पास आकर बोला कि मां, आपने उस दिन (मृत्यु वाले दिन) भी खीर बनाई थी और आज भी खीर बनाई है। फिर उसने कहा कि मैं कुछ भी भूला नहीं हू। मुझे अपने इस घर की और आस-पड़ौस का पूरा याद है। राजकुमार की इन बातों से मैं हैरान रह गई। उसने हम सबके साथ उस दिन बहुत सारी बातें की, जो उसके पिछले जन्म की थी। उसके बाद राजकुमार का हमारे घर आना-जाना लगा रहा और आज भी हम दोनों परिवार खूब मिलते हैं और राजकुमार को हम अपने बेटे मुंशी राम की तरह ही प्यार करते हैं।
मुंशी राम ने पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के दर्शन किए थे और पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के भी सत्संग सुने और दर्शन किए थे। हम उसे नाम नहीं दिला पाए थे। रूहानी फकीरों के वचन हैं कि कोई भी रूह मालिक के नाम के बिना सतलोक, सचखंड नहीं जा सकती। मालिक सच्चे सार्इं जी ने ही उसे दोबारा मनुष्य जन्म देकर नेजिया में एक सत्संगी परिवार में राजकुमार के नाम से भेजा है और वो सारा दृश्य पूज्य सार्इं जी ने ज्यों का त्यों मुझे उस रात सपने में पहले ही दिखा दिया था कि यह लड़का मेरा बेटा मुंशी ही है।
सर्व-सामर्थ सतगुरु अथाह रूहानी ताकतों के मालिक एवं स्वयं ही करता-धरता होते हैं। पूज्य मौजूदा गुरु जी से विनती है कि हमारे परिवार का प्यार व दृढ़ विश्वास दरबार सच्चा सौदा व सतगुरु के प्रति हमेशा बना रहे जी।