बचाएंगे समाज को पूज्य गुरु जी -सम्पादकीय
अपने देश भारत में जो अपनापन, परिवार का मिलकर बैठना और जो आपसी मेल-मिलाप है, वो विदेशों में कहीं नहीं देखा जा सकता। यह सांझी बात विदेशों से लौट रहे लोग अकसर बताते हैं। उनका यह भी कहना है कि वहां पैसे और सिस्टम आदि की कमी नहीं है, वहां का सिस्टम सराहनीय है। उनका यह भी कहना है कि आपसी प्यार, सत्कार और रिश्तों के प्रति भावना विदेशों में लगभग अलोप हो चुकी है और इधर देश में भी पश्चिमी देशों के प्रभाव में बहने के कारण लगातार कमजोर होती जा रही है।
वास्तव में पश्चिमी संस्कृति और आर्थिक तब्दीलियों के कारण भारतीय संस्कृति को कमजोर किया है। वैसे भारतीय संस्कृति बहुत महान है, जिसे जिंदा व बरकरार रखना बहुत जरूरी है। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने देश भारत की संस्कृति को बचाने के लिए विशाल स्तर पर प्रभावशाली मुहिम चलाई है। पूज्य गुरु जी की मुहिम से जुड़कर और आपजी की प्रेरणा से करोड़ों लोगों ने अपनी जीवन शैली को बदला है, जिससे परिवारों में रौनकें, खुशियां लौट आई हैं। एक सर्वे के अनुसार पिछले दस सालों में स्मार्टफोन्स के अंधाधुंध प्रयोग से लोगों के निजी जीवन, लोगों की अपनी जिंदगी को सीमित कर दिया था कि घर में पांच-सात सदस्य होने के बावजूद भी खामोशी छाई रहती थी। घर का लगभग हर सदस्य अपने-अपने मोबाइल फोन पर उंगलियां चलाने में मस्त थे।
कोई वीडियो देख रहा है तो कोई मोबाइल पर गेम खेल रहा है। घर के बुजुर्ग बेचारे तरस रहे थे, क्योंकि मोबाइल फोन्स में मस्त कोई उनकी आवाज भी नहीं सुन रहा था। बेचारे आवाजें लगा-लगाकर परेशान हो जाते थे। पूज्य गुरु जी ने श्रद्धालुओं को शाम 7 बजे से 9 बजे तक नो फोन, नो टीवी यानि फोन और टीवी को इस समय दौरान बंद रखने, मानवता भलाई का 146वां कार्य ‘सीड’ मुहिम से जुड़ने का प्रण दिलाकर परिवारों में खुशियां ला दी। इसी तरह बच्चों की अपने माता-पिता, बुजुर्गों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लेने का भी प्रण करवाया और हफ्ते में कम से कम सारा परिवार सब बड़े-छोटे इकट्ठे बैठकर खाना खाने के वचन पूज्य गुरु जी ने फरमाए हैं।
ये असल व पुरातन भारत की साकार तस्वीर है। ये सभी संकल्प सामाजिक तबदीली के गवाह बनेंगे। असल में आधुनिकतावादी जीवनशैली ने इन्सान को सिर्फ एक मशीन बना कर रख दिया है, जो निजी जिंदगी से आगे समाज और परिवार से इन्सान दिन-प्रतिदिन टूट रहा है। इस प्रकार अकेला पड़ा इन्सान तनावग्रस्त होकर कई बीमारियों का भी शिकार हो जाता है। केवल यही नहीं, ये समस्याएं आगे खुदकुशी जैसे बुरे नतीजों को भी जन्म देती हैं, जबकि दूसरी तरफ अगर निगाह मारें, तो भारतीय जीवन मूल्य जिंदगी को प्रफुल्लित करने वाले थे। बच्चों का मां-बाप से प्रेम-प्यार, दादा-दादी का पोते-पोतियों से मोह-प्यार उनको बुढ़ापे से चैन, सुकून से भरपूर कर देता था।
हर दु:ख-सुख से भी जिंदगी भरी-भरी और चढ़दी कलां वाली होती थी। क्योंकि परिवार कोई अकेला नहीं था। बच्चे अपने बूढ़े मां-बाप की संभाल किया करते थे। लेकिन इस आधुनिकतावादी और व्यक्तिवादी सोच ने बुढ़ापे को बेबस, नीरस, कमजोर व बदहाल कर दिया है। इस बदहाली से अनाथ वृद्ध आश्रमों ने जन्म लिया है। बुजुर्गों का अनाथ होना भारतीय संस्कृति में आई विकृतियों का ही नतीजा है।
पूज्य गुुरु जी का समाजशास्त्री व मानवतावादी नजरिया समाज को फिर से अपनी खुशहाल व सुनहरी संस्कृति से जोड़ रहा है। पूज्य गुरु जी की ये मुहिम बहुत ही सराहनीय व देश के लिए खुशकिस्मतवाली बात है। पूज्य गुरु जी के इन प्रणों से जुड़कर परिवार व समाज खुशहाल बनेंगे। पूज्य गुरु जी ने परिवारों और समाज व देश को उनकी खुशहाली का अच्छा रास्ता दिखाया है, जिस पर चलकर परिवार खुशहाल होंगे तथा समाज में वाकई सुधार आएंगे।