पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
साधु भाई दादू पंजाबी डेरा सच्चा सौदा सरसा से शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:-
करीब 1957 की बात है। प्रेमी खेम चन्द भण्डारी डेरा सच्चा सौदा सरसा में उस समय लंगर-घर का इन्चार्ज था। एक दिन ऐसी बात हुई कि डेरा सच्चा सौदा सरसा के लंगर घर में आटा नहीं था। उन दिनों मेरी ड्यूटी भी लंगर घर में लगी हुई थी। मैंने खेमचन्द को कहा कि लंगर घर में आटा नहीं है, लंगर कैसे बनेगा! खेमचन्द ने लंगर घर में देखा तो सचमुच ही आटा नहीं था। खेमचन्द पश्चाताप करने लगा कि मैं तो भूल गया, न ही दरबार में आटा है और न ही गेहूं है। मैंने अपनी तसल्ली करने के लिए दोबारा गेहूं वाला कमरा खोल कर देखा तो उस में गेहूं बिल्कुल भी नहीं थी।
उस समय दिन के दस बज चुके थे। आटा न होने के कारण लंगर बनाने की कोई तैयारी भी नहीं की गई थी। इतने में अन्तर्यामी सतगुरु बेपरवाह मस्ताना जी महाराज गुफा (तेरावास) से बाहर आ गए। बाहर आते ही घट-घट की जाननहार सच्चे पातशाह जी ने खेमचन्द को वचन फरमाया, ‘अरे खेमा! लंगर चालू करवा दिया है?’ खेमचन्द ने शहनशाह जी से क्षमा मांगते हुए अर्ज की कि सार्इं जी, मैं तो भूल गया! लंगर घर में आटा खत्म है और कमरे में गेहूं भी नहीं है। आटा शहर से लाकर फिर लंगर तैयार करवाता हूं।
पूज्य बेपरवाह दातार जी ने पूरे जोश से वचन फरमाया, ‘कमरा खोल कर तो देखो! दादू से चाबी ले ले।’ शहनशाह जी के हुक्मानुसार खेमचन्द ने मुझसे चाबी लेकर जब कमरा खोल कर देखा तो दाईं तरफ पांच बोरी गेहूं की पड़ी हुई थी। सतगुरु जी का निराला चोज देखकर हम सब निरुत्तर हो गए और हमारी हैरानी की कोई सीमा न रही।
उस समय परम दयालु दातार जी नीम के पेड़ के नीचे विराजमान थे। खेमचन्द ने जाकर शहनशाह जी के चरणों में अर्ज की, ‘सार्इं जी! कमरे में पांच बोरी गेहूं की पड़ी हैं।’ सर्व-सामर्थ दयालु दातार जी ने वचन फरमाए, ‘खेमा! तू कैसे बोलता था, गेहूं नहीं है? तुझे सतगुरु पर विश्वास नहीं है? एक बोरी ले जाकर आटा पिसा ले। लंगर बनाओ। संगत भूखी है।’
एक घण्टे में आटा लंगर घर में आ गया। उसी समय ही लंगर पकाया गया। मैंने लंगर की घण्टी बजा दी। सारी संगत लंगर खाने के लिए लंगर-घर में पहुंच गई। मैंने संगत को लंगर बांटना शुरू कर दिया। इतने में बेपरवाह मस्ताना जी नीम के नीचे से उठकर लंगर घर में आ गए। प्यारे सतगुरु जी ने साध-संगत को दर्शन दिए और वचन फरमाए, ‘आज खेमा ने लंगर लेट कर दिया। खेमा बोल रहा था कि गेहूं नहीं है। सावण शाह दाता जी ने पांच बोरी गेहूं भेज दी। सब कुछ उसी का दिया हुआ है। सच्चा सौदा में कुछ भी खुटने वाला नहीं है।’ इतने वचन फरमा कर बेपरवाह जी गुफा में चले गए।
इस साखी से स्पष्ट होता है कि सतगुरु अथाह शक्तियों का भण्डार होता है। सतगुरु वो काम कर सकता है जिसके बारे में दुनिया सोच भी नहीं सकती। सतगुरु की रहमत से ही सच्चा सौदा का लंगर चलता रहा, चल रहा है और चलता रहेगा।