maha rehmo karam diwas - Dera Sacha Sauda - Sachi Shiksha

‘सतनाम’ खण्ड-ब्रहाण्ड हैं जिनके सहारे 61वां महा रहमो-करम दिवस मुबारक 28 फरवरी पर विशेष
28 फरवरी 1960 को परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने गजब का खेल रचा। अपनी रूहानी हस्ती को जग-जाहिर करने का यह उपयुक्त समय पूज्य बेपरवाह जी ने स्वयं निर्धारित किया।

आप जी ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को नए-नए नोटों के सिर से पांव तक लम्बे-लम्बे हार पहनाए और सरसा शहर में शाही जुलूस निकलवाया ताकि दुनिया को भी पता चले कि सार्इं मस्ताना जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) को डेरा सच्चा सौदा में अपना उत्तराधिकारी बना लिया है। दुनिया को बताने के लिए भी यह जरूरी था। हालांकि बेपरवाह जी ने पूरी तरह से ठोक बजा कर पूज्य परम पिता जी को अपने वारिस के तौर पर चुना था, ताकि दुनिया भी यह जान जाए कि उन्होंने सरदार सतनाम सिंह जी (पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) को डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया है।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को गुरगद्दी बख्शिश का 28 फरवरी 1960 का दिन निश्चित किया। पूज्य बेपरवाह जी के हुक्मानुसार इस शुभ दिन पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली आदि राज्यों से साध-संगत डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में पहुंच गई थी। बेपरवाही हुक्म के अनुसार पूजनीय परम पिता जी को सिर से पैरों तक नए-नए नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए। एक जीप को विशेष तौर सजाया गया था और उसमें एक कुर्सी भी सजाई गई थी। पूज्य सार्इं जी ने पूज्य परम पिता जी को उस कुर्सी पर विराजमान किया और सरसा शहर में शोभा-यात्रा, जुलूस निकालने का हुक्म फरमाया।

आप जी ने संगत में फरमाया कि ‘सरदार सतनाम सिंह जी बहुत बहादुर हैं। इन्होंने इस मस्ताना गरीब के हर हुक्म को माना है। इन्होंने हमारे लिए बहुत बड़ी कुर्बानी दी है। इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। आज से असीं इन्हें अपना वारिस, सच्चा सौदा गुरगद्दी का उत्तराधिकारी, खुद-खुदा, कुल मालिक बना दिया है।’ पूज्य बेपरवाह जी ने साध-संगत को भी हुक्म दिया कि सरसा शहर की हर गली, हर मुहल्ले में यह शोभा-यात्रा निकालनी है ताकि शहर (दुनिया) के बच्चे-बच्चे को भी पता चल जाये कि श्री जलालआणा वाले सरदार सतनाम सिंह जी को आज से ही सच्चा सौदा का वारिस बना दिया है। दरबार के हर शख्स को जुलूस में शामिल होने का हुक्म था कि ‘मौज के दर्शन करने हैं तो जुलूस में शामिल हो कर सरदार सतनाम सिंह जी के दर्शन करो। सरदार सतनाम सिंह जी को असीं अपना स्वरूप बना लिया है।’

शहनशाही हुक्मानुसार शाही शोभा यात्रा पूरे सरसा शहर में भ्रमण के बाद जब वापस पहुंची तो पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आश्रम के मुख्य द्वार पर पूज्य परम पिता जी का खुद स्वागत किया। सार्इं मस्ताना जी महाराज ने संगत में वचन फरमाया, ‘भाई! सरदार सतनाम सिंह जी को आज आत्मा से परमात्मा कर दिया है।’ जुलूस में शामिल सभी साध-संगत को पंक्तियों में बिठाकर पूज्य सार्इं जी ने स्वयं प्रसाद बांटा।

डेरा सच्चा सौदा की पहली पातशाही पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को अपने वारिस (डेरा सच्चा सौदा का उत्तराधिकारी) के रूप में बतौर दूसरे पातशाह प्रकट करके दुनिया को एक उस महान ईश्वरीय हस्ती के रूप में रू-ब-रू करवाया जिसके सहारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं, सब वेद, पुराणों संतों ने जिसका गुणगान किया है। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को पूजनीय परम पिता जी को घूकां वाली दरबार में सत्संग के बाद स्वयं आवाज देकर, बुलाकर अपने मूढे के पास बिठाकर नाम-शब्द दिया कि ‘आपको इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है।

आपको जिन्दाराम (रूहानियत) का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ बेपरवाही वचनों को उस समय कोई नहीं समझ पाया था। 28 फरवरी 1960 को पूज्य बेपरवाह जी ने पूज्य परम पिता जी को अपना वारिस घोषित किया तो उन वचनों की सच्चाई तब दुनिया समझ पाई। पूज्य बेपरवाह जी ने इससे पहले भी पूज्य परम पिता जी की महान हस्ती के बारे समय समय पर कई बार इशारे किए थे। ‘भाई, ये रब्ब की ही पैड़ है।’ जब बेपरवाह जी ने एक पैर के निशान को अपनी डंगोरी से घेरा बनाकर वचन किए कि ‘आओ भई तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं!’ हालांकि साथ वाले सेवादारों ने चाहे कुछ भी कहा लेकिन पूज्य सार्इं जी ने जमीन पर डंगोरी ठोक कर फरमाया कि ‘ये रब्ब की ही पैड़ है।’ और समय आने पर सार्इं जी ने रब्ब को जग-जाहिर भी कर दिया।

जीवन परिचय:

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी का नाम जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता जी का नाम पूज्य माता आस कौर जी था। पूज्य पिता जी बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक थे। घर में किसी भी दुनियावी पदार्थ की कमी नहीं थी। कमी थी तो अपने खानदान के वारिस की। 18 वर्षाें से पूज्य माता-पिता जी को संतान की चिंता सताए हुए थी। पूजनीय माता-पिता जी मालिक, वाहेगुरु, परमात्मा की भक्ति और साधु, संत-महात्माओं की सेवा में दृढ़ विश्वास रखते थे। एक सच्चे फकीर-बाबा के साथ उनका मिलाप हुआ। वो फकीर बाबा कई दिनों तक श्री जलालआणा साहिब में रहे। भोजन-पानी वो पूज्य माता-पिता जी के यहां ही किया करते थे। पूज्य माता-पिता जी अपने नेक स्वभाव के अनुसार उस फकीर बाबा की सेवा सच्चे दिल से करते, आदर पूर्वक बिठाते, भोजन-पानी कराते।

सार्इं बाबा ने पूज्य माता-पिता की पवित्र सेवा भावना से खुश होकर कहा, ‘ईश्वर आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। आपके घर आप का वारिस जरूर आएगा। केवल आपके खानदार का ही वारिस नहीं, वो कुल दुनिया का वारिस कहलाएगा।’ इस प्रकार फकीर बाबा की दुआओं और ईश्वर की कृपा से आप जी ने 25जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। इस शुभ मौके पर उस फकीर बाबा का एक बार फिर से गांव में आना हुआ। उसने पूज्य माता-पिता जी को बधाई देते हुए कहा, ‘भाई भगतो! आपके घर आपकी संतान के रूप में खुद परमेश्वर का अवतार आया है। इसे कोई आम बच्चा न समझना। ये खुद ईश्वरीय स्वरूप है।

ये आपके पास चालीस वर्ष तक ही रहेंगे उसके बाद सृष्टि-उद्धार(जीव-कल्याण) के जिस उद्देश्य के लिए ईश्वर ने इन्हें भेजा है, समय आने पर उसी पवित्र कार्य के लिए, उन्हीं के पास चले जाएंगे।’ पूजनीय परम पिता जी पूज्य माता-पिता की इकलौती सन्तान थे। आप जी सिद्धू वंश से सम्बंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था, लेकिन पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के सम्पर्क में आने पर उन्होंने आप जी का नाम बदल के सरदार सतनाम सिंंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया। आप जी के नूरी बचपन की अनोखी क्रीड़ाओं, बोलचाल, कार्य विहार, क्रिया-कलापों को देखकर गांव के सभी लोगों के मुंह पर था कि जैलदारों का काका(लड़का) आम बच्चों की तरह नहीं। ये कोई खास हस्ती है।

सार्इं मस्ताना जी का मिलाप:

बड़े होने पर आप जी द्वारा किए जा रहे परमार्थी-कार्याें व परम पिता परमात्मा की भक्ति का दायरा भी और विशाल हो गया। अल्लाह, वाहेगुरु, राम की सच्ची वाणी को हासिल करने के लिए हालांकि आप जी ने अनेकों साधु-महापुरुषों से भेंट की, परन्तु कहीं से भी अंदर की तसल्ली नहीं हुई। उपरान्त जैसे ही आप जी का मिलाप बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से हुआ, पवित्र मुख की इलाही वाणी को सुना, आप जी की अंदर-बाहर से पूरी तसल्ली हुई, सच्ची संतुष्टी का अहसास आप जी को हुआ। आप जी ने अपने-आप को पूर्ण तौर पर उनके सुपुर्द कर दिया था।

और उसी तरह पूज्य बेपरवाह जी ने भी आप जी को अपने भावी उत्तराधिकारी के रूप में पा लिया था। रब्ब की पैड़, ‘जिन्दाराम का लीडर’ आदि रब्बी कलाम पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी के बारे साध-संगत में इशारों-इशारों में ज़ाहिर किया। और नाम-शब्द प्रदान करने के बाद तो पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी आप जी को डेरा सच्चा सौदा के भावी वारिस के रूप में ही निहारने लगे थे।

सख्त परीक्षा:

पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूज्य परम पिता जी को पहले दिन से ही अपनी नूरी नजर में ले लिया था और साथ-साथ आप जी के लिए पल-पल, कदम-कदम पर इम्तिहान भी शुरू कर दिए थे। रूहानी परीक्षाओं के सम्बंध में एक बार पूज्य बेपरवाह जी श्री जलालआणा साहिब में पधारे। उन दिनोें पूज्य बेपरवाह जी लगातार 18 दिन तक श्री जलालआणा साहिब दरबार में ठहरे। उसी दौरान पूज्य बेपरवाह जी ने गदराना का डेरा गिरवा दिया और कभी रातों रात चोरमार का डेरा गिरवा कर डेरे का मलबा श्री जलालआणा साहिब में मंगवा लिया।

इधर पूज्य परम पिता जी गिराए गए डेरों का मलबा ढोने में लगे रहे तो दूसरी तरफ पूजनीय बेपरवाह जी ने वहां इकट्ठा किया गया मलबा घूकांवाली दरबार के लिए सेवादारों को उठवा दिया और गदराना वालों को भी आदेश दे दिया कि मलबा उठाकर ले जाएं, डेरा फिर से बनाएं बल्कि स्वयं पास खड़े होकर अलग-अलग डेरों में मलबा भिजवाया। यह एक रूहानी रहस्यमयी बेपरवाही अलौकिक खेल था। दूसरे शब्दों में पूजनीय परम पिता जी का इम्तिहान था। परन्तु आप जी तो पहले दिन से ही अपने पीरो-मुर्शिद पर अपना तन-मन-धन और सब कुछ कुर्बान कर चुके थे। पूजनीय बेपरवाह जी जो भी हुक्म आप जी को फरमाते, आप जी अपने खुदा, प्यारे सतगुरु जी के हर हुक्म को सत्बचन कह कर वचनों पर फूल-चढ़ाते। इस प्रकार पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को हर तरह से योग्य पाया और एक दिन आखिर अपने इस अलौकिक खेल का रहस्य प्रकट करते हुए साध-संगत में फरमाया कि ‘असीं सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता जी) का इम्तिहान लिया, पर उन्हें पता भी नहीं चलने दिया।’

हवेली (मकान) तोड़ना (कर दी र्इंट से र्इंट):

फिर एक दिन जैसे ही पूजनीय बेपरवाह जी की तरफ से मकान (हवेली) को तोड़ने और सारा सामान डेरे में लाने का आदेश आप जी को मिला, आप जी ने तुरन्त हुक्म की पालना की और अपने हाथों से हवेली नुमा मकान की एक-एक र्इंट कर दी। दुनिया की नजर से देखा जाए तो यह एक बहुत सख्त परीक्षा थी, लेकिन आप जी ने दुनिया की लोक लाज की जरा भी परवाह नहीं की। आप जी ने अपनी इतनी बड़ी हवेली की एक-एक र्इंट, छोटे कंकर तक(बेपरवाही आदेश के अनुसार) लकड़-बाला, शतीर, लोहे के गार्डर और घर का सारा सामान (सूई से लेकर हर चीज) ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार मेें लाकर रख दिया।

माहवारी सत्संग का दिन था, सामान का इतना बड़ा ढेर डेरे में लगा था। बेपरवाह जी ने शनिवार रात को सामान तुरंत बाहर निकालने का हुक्म फरमाया कि कोई हमसे पूछे कि यह किसका सामान है तो हम क्या जवाब देंगे और अपने सामान की खुद रखवाली करने का भी हुक्म दिया। सर्दी की ठण्डी रात, शीतलहर और ऊपर से बूंदा-बांदी, इतनी कड़ाके की ठंड कि हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे। आप जी ने अपने दाता रहबर के इस इलाही फरमान को हंस कर दिल से लगाया। किसी भी चीज को इलाही रास्ते की रूकावट नहीं बनने दिया। अगले दिन बेपरवाही रजा के अनुसार एक-एक चीज अपने हाथों से साध-संगत में बांट दी और निश्चिंत होकर पावन हजूरी में बैठकर अपार खुशियां प्राप्त की।

आप जी ने अपने एक भजन में भी लिखा है:-

प्रेम देआं रोगियां दा दारू नहीं जहान ते,
रोग टुट्ट जांदे दारू दर्शनां दी खाण ’ते।
प्रेम वाला रोग ‘शाह सतनाम जी’ वी देखेआ,
आपणी कुल्ली नूं हत्थीं अग्ग ला के सेकेआ।
कर ता हवाले वैद ‘शाह मस्तान दे’, रोग टुट्ट जांदे…।।

सतनाम (कुल मालिक का नाम) खण्ड-ब्रह्मण्ड हैं जिसके सहारे:

पूजनीय परम पिता जी की इस महान कुर्बानी पर बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘हरबन्स सिंह(पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज), आपको आप की कुर्बानी के बदले ‘सच ’ देते हैं, आपको ‘सतनाम’ करते हैं।’ पूज्य सार्इं जी ने साध-संगत में फरमाया, ‘असीं सरदार सतनाम सिंह जी को सतगुरु, कुल मालिक बना दिया है। मालिक ने सरदार सतनाम सिंह जी से बहुत काम लेना है।’ डेरा सच्चा सौदा दरबार में एक तीन मंजिली अनामी गुफा विशेष तौर पर पूज्य परम पिता जी के लिए ही बनाई गई और पूज्य बेपरवाह जी ने खुद आप जी को उस अनामी गुफा में विराजमान किया। बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘ये अनामी गुफा सरदार सतनाम सिंह जी को इनकी कुर्बानी के बदले ईनाम में दी जाती है।’ ये तीन मंजिली गुफा जो स्वयं बेपरवाह सार्इं जी ने अपने दिशा-निर्देशन में तैयार करवाई और जिसमें र्इंट, लक्कड़-वाला, शतीर, गार्डर आदि सामान पूज्य परम पिता जी की हवेली का प्रयोग किया गया है।

ये गोल गुफा सतगुरु के हुक्म से ही बनाई गई है जो सरदार सतनाम सिंह जी को ईनाम में दी गई है। यहां हर कोई रहने का अधिकारी नहीं है। ‘उपरान्त पाठी से ग्रंथ से श्री कृष्ण जी का गोपियों के प्रति संवाद पढ़वा कर संगत में सुनाया जो कि इस प्रकार है-कि श्री कृष्ण जी महाराज गोपियों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि तुमने लोहे के सामान अटूट बंधनों को तोड़कर मुझ से अति दर्जे की प्रीत की है और इसके बदले मैंने तुम्हें जो राम-नाम का रस प्रदान किया है वह बहुत तुच्छ (कम) है, इसलिए मैं क्षमा का प्रार्थी हूं (मुझे क्षमा करना)। इस पर पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘उन गोपियों की तरह सरदार सतनाम सिंह जी ने भी अपने सतगुरु के नाम पर इतनी बड़ी जो कुर्बानी दी है, इसके बदले में असीं जो इन्हें राम-नाम का रस दिया है, वह बहुत ही कम है। इसलिए असीं भी माफी के अधिकारी हैं।’

न हिल सकें न कोई हिला सके:

अनामी गुफा (तेरा वास) में आप जी को विराजमान करके बेपरवाह सार्इं जी ने एक बार फिर से फरमाया ‘सरदार सतनाम सिंह जी का नाम पहले सरदार हरबंस जी था। ये ईश्वरीय शक्ति गांव श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले हैं। राम नाम को हासिल करने के लिए (अपने सतगुरु के लिए) इन्होंने अपना मकान तोड़ा और दुनिया की बदनामी सही, इसलिए ये गुफा इन्हें ईनाम में मिली है। हर कोई यहां रहने का अधिकारी नहीं है। जिसे ऊपर से सतगुरु का हुक्म होता है यहां पर उसी को ही जगह मिलती है। पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘जिस तरह मिस्त्रियों ने इस बिल्डिंग(गुफा) की मजबूती के लिए इसमें तीन बंद लगाए हैं असीं भी सरदार सतनाम सिंह जी को(हाथ से इशारा करते हुए) एक-दो-तीन बंद लगा दिए हैं। बारिश आए, झख्खड़ आए, आंधी आए, ना ये हिल सकेंगे और न ही इन्हें कोई हिला सकेगा।’

गुरगद्दी की रस्म:

28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार शाही स्टेज को विशेष तौर पर सजाया गया। उपरान्त पूज्य बेपरवाह जी ने सेवादारों को सम्बोधित करते हुए हुक्म फरमाया, ‘भाई! सरदार सतनाम सिंह जी को गुफा से लेकर आओ।’ बेपरवाह जी का आदेश पाकर दो-एक सेवादार गुफा की तरफ दौड़े, पूज्य सार्इं जी ने उन्हें रोकते हुए फरमाया, ‘भाई, ऐसे नहीं! दस सेवादार भाई (पंचायत रूप में) इकट्ठे होकर जाओ और सरदार सतनाम सिंह जी को पूरे आदर-सम्मान सहित स्टेज पर लेकर आओ।’ पूज्य बेपरवाह जी ने अपना भरपूर स्रेह प्रदान करते हुए आप जी को अपने साथ स्टेज पर विराजमान किया।

उपरान्त पूज्य बेपरवाह जी ने अपजी को नोटोें के हार पहनाए और साध-संगत में, जो इस शाही नज़ारे को उत्साहित हो कर देख रही थी, वचन फरमाए, ‘दुनिया सतनाम, सतनाम जपदी मर गई, किसी ने देखा है भाई!’ संगत में एकदम सन्नाटा था, कोई कुछ नहीं बोल सका। बेपरवाह सार्इं जी ने जोश भरी आवाज में फरमाया, ‘भई, जिस सतनाम को दुनिया जपती-जपती मर गई पर सतनाम नहीं मिला। वो सतनाम(आप जी की तरफ पावन इशारा करते हुए) ये हैं।

ये वोही सतनाम है जिसके सहारे ये सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं। इन्हें सावण शाह सार्इं जी के हुुक्म से मालिक से मंजूर करवा कर लाए हैं और तुम्हारे सामने बिठा दिया है।’ पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया ‘इनके (पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महारज के) भाईचारे का कोई आदमी या इनका कोई रिश्तेदार (संबंधी) आकर पूछे, गरीब मस्ताने ने तेरा घर-बार तुड़वाया है, तेरे को क्या मिला? तो भाई, ये उन्हें ये गोल गुफा दिखा सकते हैं! यह गोल गुफा तो भीतों (पक्की र्ईंटों) से बनी है, परन्तु जो असली गोल गुफा(अपनी दोनों आंखों के बीच इशारा करते हुए) इनको दी है, उसके एक बाल के बराबर ये तीन लोक भी नहीं हैं।’

इस प्रकार पूज्य बेपरवाह सार्इं जी ने गुरगद्दी की पवित्र रस्म को स्वयं गुरु-मर्यादा के अनुसार पूर्ण करवाया। पूज्य बेपरवाह जी ने डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत के सभी अधिकार और अपनी समस्त जिम्मेदारियां भी उसी दिन से ही आप जी को सौंप दी और अपना (खुदा का) इलाही स्वरूप भी आप जी को बख्श कर खुद-खुदा बना दिया। गुरगद्दी रस्म की यह पवित्र कार्रवाई दुनिया के सामने एक अद्वितीय उदाहरण है। वर्णनीय है कि पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज उस दिन के बाद आप जी को भेंट की गई इस अनामी गुफा में कभी नहीं गए बल्कि आश्रम में एक अलग कमरे को अपना निवास बनाया।

दुनिया में बज रहा राम-नाम का डंका:

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने 28 फरवरी 1960 को डेरा सच्चा सौदा में दूसरी पातशाही गद्दीनशीन हो कर करीब 31 वर्ष तक (अप्रैल 1963 से अगस्त 1990 तक) ग्यारह लाख से भी ज्यादा लोगों को नाम-गुरमंत्र प्रदान कर उन्हें पाप बुराइयों से छुटकारा कराया, वहीं राम-नाम के द्वारा उनकी जीवात्मा को जन्म-मरण से मुक्त किया। आज करोड़ों लोग आप जी की पवित्र शिक्षाओं को धारण कर बेफिक्री का जीवन जीअ रहे हैं।

रहमो-करम जो ब्यान न हो सके:

साध-संगत के प्रति आप जी के अनगिनत परोपकार हैं। आप जी के अपार रहमो-करम का वर्णन नहीं हो सकता। साध-संगम के प्रति आप जी के वचन कि साध-संगत तो हमें दिलो जान से, अपनी संतान से भी अधिक प्यारी है। हम दिन-रात साध-संगत के भले की, साध-संगत की चढ़दी कला की परम पिता परमात्मा को दुआ-करते हैं।

एक और परोपकार जो कहने-सुनने से परे है:

आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं अपने पवित्र कर कमलों से डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान कर के साध-संगत पर अपना महान रहमो-करम फरमाया है। बल्कि आप जी स्वयं भी करीब 15 महीने साथ रहे। आप जी के वचन कि ‘ये(पूज्य गुरु जी) हमारा स्वरूप हैं। अब हम इस नौजवान बॉडी में स्वयं काम करेंगे।’

पूजनीय मौजूदा गुरु जी की पवित्र प्रेरणा अनुसार डेरा सच्चा सौदा रूहानियत तथा-समाज व मानवता भलाई कार्याें में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। आप जी के दर्शाए सच के मार्ग पर चलते हुए आज करोड़ों लोग नशे, भ्रष्टाचार, वेश्यावृति, हरामखोरी आदि बुराइयों को त्याग कर राम-नाम, परमपिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े हैं। घर-घर में प्रेम-प्यार की गंगा बह रही है। घर-घर में राम-नाम की चर्चा है और वहीं दीन-दुखियों को साध-संगत के द्वारा सहारा मिल रहा है। मानवता, इन्सानियत के तौर पर साध-संगत आज हर दुखिए के लिए आशा व उम्मीद की किरण बन चुकी है।

पूज्य गुरु जी की प्रेरणानुसार डेरा सच्चा सौदा के ब्लड पंप(सेवादार) जरूरतमंद-बीमारों, थैलिसीमियां पीड़ितों के लिए कोविड-19 लॉक डाउन के दौरान भी बढ़ चढ़ कर अपना रक्तदान करते रहे हैं, वहीं जरूरमंदों का इलाज, करवाया जा रहा है, तो कहीं जरूरतमंद परिवारों को घर (पक्के मकान) बना कर दिए जा रहे हैं और कहीं गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी में मदद की जा रही है। इस तरह साध-संगत आप जी की प्रेरणानुसार मानवता भलाई के कार्याें में लगी हुई है।

ये 28 फरवरी का दिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का ये पाक पवित्र गुरुगद्दी नशीनी दिवस है। पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा में गद्दीनशीन हो कर साध-संगत पर अपना अपार रहमोकरम फरमाया। पूजनीय परम पिता जी के परोपकारों की गणना नहीं हो सकती। पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पवित्र प्रेरणानुसार यह पाक-पवित्र दिन डेरा सच्चा सौदा में ‘महा रहमो-करम दिवस’ के रूप में हर साल भण्डारे के रूप में साध-संगत मनाती है और इसदिन बढ़-चढ़ कर मानवता की सेवा हित कार्य किए जाते हैं।

पवित्र महा-रहमो करम दिवस की सारी साध-संगत को बहुत-बहुत बधाई हो जी!!

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