सतगुरु प्रत्येक क्षण अपने शिष्य की सम्भाल करता है
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी चरण दास पुत्र श्री गंगा सिंह गांव कबरवाला तहि. मलोट जिला श्री मुक्तसर साहिब हाल आबाद गांव ढंडी कदीम तहि. जलालाबाद जिला फाजिल्का से बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अद्भुत रहमत का एक कमाल इस प्रकार वर्णन करता है:- सन् 1958 की बात है कि जब डेरा सच्चा सौदा सांझा धाम पंजाब मलोट में बन रहा था तो उसके बनाने की सेवा जोरों पर चल रही थी।
उस समय मैं गांव कबरवाला में रहता था। जब भी बेपरवाह मस्ताना जी महाराज दरबार मलोट में आते तो मैं अपना अधिक समय मलोट दरबार में ही गुजारता था। एक दिन मैं अपने साईकिल पर सेवा करने के लिए मलोट दरबार को जा रहा था। जब मैं मलोट के रेलवे फाटक पर पहुंचा तो फाटक बंद था क्योंकि रेल गाड़ी आ रही थी।
मैंने अपना साईकिल फाटक के पीछे ही खड़ा कर दिया और स्वयं पैदल ही रेलवे लाईन पार कर के दरबार में पहुंच गया और सेवा करनी आरम्भ कर दी। मुझे दरबार में सेवा करते-करते चार दिन बीत गए परन्तु मुझे इस बात का ध्यान न रहा कि मैं अपना साईकिल फाटक पर खड़ा करके आया हूं। चौथे दिन शहनशाह वाली दो जहान जी ने मुझे बुलाया और वचन फरमाया, ‘अपने साईकिल का ध्यान करो असीं तुम्हारे नौकर तो नहीं लगे।’ बेपरवाह जी के डांटने पर मुझे होश आई कि ओह! मेरा साईकिल तो फाटक पर ही खड़ा है।
क्या मालूम कि उसे कोई उठा कर ही न ले गया हो। मैं अपनी गलती का पश्चाताप भी कर रहा था और बेपरवाह जी से क्षमा भी मांग रहा था। फिर मैं तुरंत बड़ी तेज रफ्तार से फाटक पर पहुंचा। जिस जगह पर मैंने साईकिल खड़ा किया था, उसे उसी स्थान पर खड़ा देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही। मैं मन ही मन में पश्चाताप कर रहा था कि मेरी गलती के कारण बेपरवाह जी को मेरे साईकिल की निगरानी करनी पड़ी। मैं अपने सतगुरु का धन्यवाद करते हुए साईकिल दरबार में ले आया। फिर मैं अपनी सेवा पर लग गया।सेवा करते समय मेरे मन में ख्याल आया कि पूजनीय शहनशाह जी कई सेवादारों को अपने कर-कमलों द्वारा प्रसाद देते रहते हैं लेकिन क्या कभी मुझे भी शहनशाह जी अपने कर-कमलों द्वारा प्रसाद देंगे? सतगुरु तो अन्तर्यामी होते हैं।
उसी दिन बेपरवाह जी ने हुक्म फरमाया, ‘जाओ! अपने घर का काम करो। फिर आ जाना।’ फिर अन्तर्यामी दातार जी ने मुझे पास बुला कर आम का प्रसाद दिया। सतगुरु जी की इलाही रहमत का प्रसाद मैंने पूरा ही अपने मुंह में डाल लिया और मुझे पता नहीं कि वह कैसे खुर-खुरकर अंदर चला गया। ये तो मालिक ही जानता है। उस प्रसाद ने मेरे अंदर ऐसी ताकत और बेअन्त खुशी दी जिसका ये जिह्वा वर्णन नहीं कर सकती। सारा ध्यान मालिक के चरणों में लग गया और मस्ती चढ़ गई।उस मस्ती में अपने साईकिल पर सवार होकर मैं अपने गांव की ओर चल पड़ा। गाड़ी के फाटक को पार करता हुआ मैं अभी करीब एक किलो मीटर ही गया था कि पीछे से मिलट्री वाली गाड़ी आई और मेरे ऊपर से निकल गई। मुझे पता नहीं कि मेरे सतगुरु ने कैसे मुझे उठाकर सड़क के एक किनारे फैंक दिया और बेपरवाह मस्ताना जी की दया मेहर से मुझे कोई भी चोट नहीं लगी, परन्तु मेरे साईकिल को गाड़ी ने टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
मैं खड़ा होकर साईकिल के टुकड़े इकट्ठे करने लगा। इतने में मिलट्री वाले गाड़ी रोक कर मेरे पास आए और कहने लगे कि तू मरा नहीं! साईकिल के टुकड़े इकट्ठे कर रहा है। फिर पूछने लगे, तू कहां से आ रहा है? मैंने उनको बताया कि यहां डेरा सच्चा सौदा मलोट में मेरे सतगुरु का सत्संग था। मैं सत्संग सुनकर आ रहा हूं। यह बात सुनकर उन पर काफी प्रभाव पड़ा और बोले, तेरा सतगुरु तो बहुत महान् है जिसने तुझे बचाया है। नहीं तो तेरे बचने की कोई उम्मीद ही नहीं थी क्योंकि तुम्हारा साईकिल तो टुकडेÞ टुकड़े हो चुका है। वह कहने लगे ऐसे महान् सतगुरु के हमें भी दर्शन करवाओ और मुझे अपनी गाड़ी में बैठने के लिए कहा। मैं डर गया कि ये मुझे कहीं और ही न ले जाएं परन्तु उन्होंने मुझे बड़े पे्रम व जिद्द करके अपनी गाड़ी में बैठा लिया तथा मलोट दरबार की ओर चल पड़े।
इधर अन्तर्यामी सतगुरु जी संगत को कह रहे थे थोड़ी देर बाहर रुकेंगे फोर्स आ रही है। इतने में हम दरबार में पहुंच गए मिलट्री वाले दौड़कर शहनशाह मस्ताना जी के पास चले गए और हाथ जोड़कर क्षमा मांगी कि बाबा जी! हमारे से आपका एक शिष्य मर गया है। इस पर बेपरवाह जी ने उनसे पूछा,‘वरी! कहां मर गया है? उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए बताया, वो जो पैदल आ रहा है। ये सुनकर परम दयालु दातार जी हँस पड़े तथा फरमाने लगे, ‘पुट्टर! अगर वो मर गया होता तो वह चला कैसे आ रहा है?’ तो आगे से वह कहने लगे, बाबा जी! हमारी गाड़ी ने तो मारने में कोई कमी नहीं छोड़ी, इसे तो आपजी की रहमत ने ही बचाया है।
फिर अन्तर्यामी दातार जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘क्यों बई? साईकिल पर जाते जाते ही सो जाते हो। हम तुम्हारे बाप के नौकर हैं, तुम्हारी रक्षा करें। साईकिल के ऊपर न सोया करो। आगे से ऐसा नहीं करना।’
कुल मालिक शहनशाह जी ने उन मिलट्री वालों को प्रसाद दिया और वे आज्ञा लेकर चले गए। इस प्रकार शहनशाह जी ने मेरी संभाल की।