वह समय भी था कि मोबाइल तो कोई जानता नहीं था। फोन भी इक्का दुक्का घरों में होते थे। जरूरी बात करनी होती थी तो वहीं जा कर की जाती थी। आज हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है। हैरानी की बात तो यह है कि फोन आज हाथ के रुमाल से अधिक जरूरी हो गया है।
12वीं तक के लगभग 50 प्रतिशत बच्चे स्कूल में मोबाइल रखते हैं। जिससे इनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है। विद्यार्थियों के पास सभी प्रकार के सेट उपलब्ध हैं। नई तकनीक का उपयोग बच्चों को साइबर क्राइम की ओर ले जा सकता है। ऐसे में विद्यार्थी अभिभावकों व शिक्षकों की नजर से चाहे बच जाते हैं, लेकिन मोबाइल का अवांछित उपयोग इन्हें गलत दिशा में ले जा सकता है। कई स्कूली बच्चे इसका गलत उपयोग भी कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी अभिभावकों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
नहीं है कोई रोकटोक
मोबाइल रखने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, इसी को देखते हुए कुछ स्कूलों द्वारा मोबाइल पर प्रतिबन्ध भी लगाया गया था। शुरूआत में स्कूल प्रबंधकों ने सख्ती भी बरती, लेकिन धीरे धीरे ये प्रतिबन्ध बेअसर हो गया। शुरूआत में कुछ स्कूलों में यह सूचना दी गई थी कि मोबाइल का उपयोग दंडनीय है, लेकिन अब न तो सूचना पटल हैं और न ही इन्हे कोई रोकने वाला। अधिकांश छात्र तो खुलेआम मोबाइल का उपयोग करते हैं और कुछ अनुशासित छात्र चोरी से मोबाइल पर बात करते दिखते हैं।
साइलेंट मोड में मोबाइल
अब तो छात्र किसी भी हालत में इसके बिना नहीं रह सकते। स्कूलों के छात्रों ने बताया कि कक्षा में कुछ छात्र ऐसे हैं, जो स्कूल के अंदर व बाहर मोबाइल में मशगूल रहते हैं। जैसे ही टीचर स्कूल में आते हैं, तो मोबाइल को साइलेंट कर छुपा लेते हैं। ऐसा करने से उनकी पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है। कक्षाओं में कई छात्रों के मोबाइल बज उठते हैं, जिन पर स्कूल प्रबंधन भी कोई कार्यवाही नहीं करता।
कम दोषी नहीं है अभिभावक
स्कूलों में बच्चों के साथ शिक्षकों को भी मोबाइल पर बात करना प्रतिबंधित है। हालांकि शिक्षक स्कूल परिसर में मोबाइल रख सकते हैं, लेकिन कक्षा के अंदर किसी भी हालत में मोबाइल पर बात करना प्रतिबंधित है। शहर के अधिकांश स्कूलों में शिक्षक व शिक्षिकाएं भी मोबाइल पर बात करते नजर आते हैं। कक्षा में मोबाइल पर बात करने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। जिससे शासन द्वारा शिक्षकों पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया है। इसके बाद भी स्कूलों में इस चलन पर रोक नहीं लग पा रही है। खास बात तो यह है, कि अभिभावक खुद अपने बच्चों को मोबाइल की लत लगा रहे हैं। वे उन्हें महंगे से महंगे फोन सेट उपलब्ध करा रहे हैं।
चैटिंग से वक़्त की बर्बादी
यदि बच्चों को जरुरी सूचना और आपात की स्थिति में घर तक खबर देने के लिहाज से मोबाइल रखना जरुरी है तो कॉमन सेट से भी काम चलाया जा सकता है। लेकिन स्टेटस सिंबल बन चुके मोबाइल रखने के शोक में अभिभावकों ने बच्चों को भी सेट थमा दिए हैं, लिहाजा बच्चों के अपने क्लासमेट के संग फेसबुक व वाट्सएप में लम्बी चौड़ी चैटिंग आम हो गई है। चैटिंग के दौरान बड़े ग्रूपों से जुड़ने पर बच्चों के सेट में अनचाहे अवांछित मैसेज भी मिलते हैं जिससे उनमें मनोविकार लाजमी है। स्कूल के साथ अभिभावकों को चाहिए कि वे बैग व शैक्षणिक सामग्री के अलावा मोबाइल पर भी नजर रखें।
मोबाइल से क्राइम कनेक्शन
संचार क्रांति के इस दौर में मोबाइल से जहाँ एक ओर बच्चों का सामान्य ज्ञान तेजी से विकसित हो रहा है, देश ओर दुनिया के घटनाक्रम को वे पल भर में समझ रहे हैं। तकनीकी ज्ञान में बच्चे बड़ों को भी पीछे छोड़ रहे हैं। इन तमाम खूबियों के बावजूद मोबाइल के जरिए बच्चों में आपराधिक मानसिकता का भी प्रवेश हो सकता है इतने यू ट्यूब चैनल, इतने मैसेजिस इतनी भरमार हर समय आँखों के सामने घूमती रहती है कि बच्चे भ्रम में आ जाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। वह इसमें ही उलझ कर गलत को सही समझ कर आगे बढ़ने लगते हैं और इस तरह गलत मानसिकता के शिकार हो जाते हैं।
कई बार बच्चे अपने रोगों को घर में बड़ों से छुपाते हैं, मोबाइल पर उसके संबंध में पढ़ कर स्वयं ही अपना इलाज करने लगते हैं, जो कि कभी-कभी जानलेवा भी हो जाता है। अभिभावकों को चाहिए कि कोशिश करे कि बच्चों को स्मार्ट फोन स्कूल में न दें। इस विषय में अभिभावकों व टीचर्स को मिल कर कदम उठाने होंगे। स्कूल में तो फोन लाने की सख्त मनाही होनी चाहिए। घर में भी फोन माता पिता की नजरों में होना चाहिए। कभी कभी यह चेक भी करना चाहिए कि बच्चे फोन पर क्या कर रहे हैं।
-विनीता राज