सेवादार को बख्शी पुत्र की दात -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
पे्रमी सौदागर राम लाट साहिब रानियां जिला सरसा से पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपने पर हुई अपार कृपा का परमार्थी करिश्मा इस प्रकार वर्णन करता है:-
मैंने शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज के बारे में बहुत ही आश्चर्यजनक बातें सुनी थी। तो मैंने भी शहनशाह जी का सत्संग सुन कर नाम-शब्द ले लिया। मुझे सतगुरु जी ने इतना ज्यादा विश्वास दिया कि उनकी अपार कृपा से मैंने अपने आपको सेवा के लिए शहनशाह जी के चरण-कमलों में अर्पित कर दिया। उस समय मेरे दो लड़के थे। एक छ:- सात वर्ष का था और दूसरा तीन-चार वर्ष का था। दोनों एक महीने के अर्न्ताल में चल बसे।
सन् 1959 की बात है। एक दिन शहनशाह मस्ताना जी महाराज प्रेमी नाधा राम के घर गांव रानियां में विराजमान थे। वहां पर मैं और सुन्दर राम दोनों सच्चे पातशाह जी की हजूरी में खड़े थे। हमारे दो भतीजे भाग कर हमारे पास आए और उन दोनों ने मेरी कमीज को पकड़ लिया। बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाया, ‘इह लाट साहिब के लड़के हैं।’ सुंदर राम ने उत्तर दिया कि सार्इं जी, नहीं। लाट साहिब के तो दो लड़के थे, पर वे दोनों ही चल बसे हैं। इतनी देर में दोनों बच्चे वहां से दौड़ गए। कुछ देर बाद दोनों बच्चों ने दोबारा फिर आकर मेरी कमीज को पकड़ लिया। फिर अंतर्यामी सतगुरु जी ने वचन फरमाया, ‘भई! इह लाट साहिब के लड़के हैं। प्रेमी सुन्दर राम ने कहा, नहीं सार्इं जी, ये तो लाट साहिब के भतीजे हैं।’ सच्चे पातशाह जी ने मेरे चेहरे की तरफ देखकर और अपनी पावन दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘इह तो आप ही लड़कों जैसा है। इसके लिए शहनशाह दाता सावण शाह से लड़का लेंगे।
कुछ महीनों के बाद डेरा सच्चा सौदा रानियां में मकानों की उसारी की सेवा चल रही थी। प्रेमी भाई और बहनें सेवा कर रहे थे। मेरे घरवाली भी उस सेवा पर लगी हुई थी। सच्चे पातशाह जी ने सुन्दर राम को अपने पास बुलाया और मेरी पत्नी की तरफ इशारा करके वचन फरमाया, ‘इह बीबी कौन है?’ सुन्दर राम ने उत्तर दिया, ‘साईं जी ! इह बीबी लाट साहिब (श्री सौदागर राम) के घरवाली है। इसे लड़का होने वाला है। सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने वचन फरमाया, ‘करो पंचायत, सुन्दर राम पकड़ा गया। तेरे को क्या पता है कि लड़का होवेगा? पर हमें सुन्दर राम की लज्ज रखनी पड़ेगी। लड़का ही होगा। इस जैसा लड़का और कोई नहीं होवेगा।’ सतगुरु जी के वचनानुसार कुछ महीने बाद हमारे घर लड़के ने जन्म ले लिया। लड़का केवल पांच दिन का था कि बीमार हो गया।
उन्हीं दिनों में डेरा सच्चा सौदा रानियां में ईंटों की सीढ़ी चढ़ाई गई। शहनशाह जी ने मिस्त्री को वचन फरमाया, ‘इस सीढ़ी का ढूला सम्भल कर खोलना है।’ ज्यों ही मिस्त्री ने ढूला खोला, उसी समय सीढ़ी गिर गई। मिस्त्री इस बात में अपनी हानि महसूस करने लगा और परेशान हो गया। सच्चे पातशाह जी ने वचन फरमाया, ‘कोर्ड बात नहीं। काल मांगता था लाट का छोरा। दो गट्टे सीमेन्ट के मत्थे मारे, सावणशाह की दात नहीं दी।’ उसी दिन शाम के समय हमारा परिवार बीमार बच्चे को लेकर रानियां दरबार में आया और बच्चे की दादी ने शहनशाह जी के चरणों में अर्ज की कि सार्इं जी! इह बच्चा दूध नहीं पीता। सच्चे पातशाह जी ने अपनी पवित्र अंगुली बच्चे के मुंह में डाल दी।
बच्चा उसी समय अंगुली चूसने लगा। सतगुरु जी ने वचन फरमाया, ‘तुम कहते हो कि बच्चा दूध नहीं पीता, इह तो हमारी अंगुली खाए जाता है।’ सतगुरु जी की मेहर से बच्चा उसी दिन ठीक हो गया। कुछ दिनों के बाद हमारा परिवार बच्चे का नाम रखवाने के लिए डेरा सच्चा सौदा रानियां दरबार में आया। सतगुरु जी ने वचन फरमाए, ‘इह बच्चा पहले मां के पेट में लड़की था। इसका नाम मोन से मोना राम रखें।’ वास्तव में जो कुछ भी हुआ सतगुरु ने स्वयं किया। पर सतगुरु अपने पर नहीं लेता। इस प्रकार सतगुर के हुक्म में ही मोना राम का जन्म हुआ।
जिस दिन मेरे लड़के का जन्म हुआ उस समय मैं दरबार में सेवा कर रहा था। शहनशाह जी ने मेरे को अपना आदेश फरमाया, ‘तेरे घर लड़का हुआ है। टाल-मटोल नहीं करनी। तेरे से देसी घी का कड़ाह (हलवा) खिलाना है संगत को।’ फिर मैं सतगुरु के हुक्मानुसार अपने घर से देसी घी का हलवा बनाकर लाया और कुल मालिक के हुक्म से सारी संगत को खिलाया।
पूर्ण सतगुरु के पास सदा ही रहमतों के भण्डार भरे रहते हैं। वे जिसे जो चाहे, जब चाहे प्रदान कर सकते हैं, दे सकते हैं। दे सकते हैं और देते, बख्शते हैं। उनकी बख्शिश को ईश्वर भी नहीं रोकता। जैसे कि उपरोक्त साखी से स्पष्ट है।