बेटा! तेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे… -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी दर्शन सिंह मुखी इन्सां पुत्र स. मिठ्ठू सिंह मौहल्ला गुरु नानकपुरा बठिंडा शहर से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमत का वर्णन करता है:-
20 मार्च 1993 की बात है। मैं खच्चर रेहड़ी का काम करता था। मैं अपनी रेहड़ी पर 25 बोरियां सीमेंट किसी दुकानदार के घर ले जा रहा था। उस दुकानदार के घर का गेट छोटा था तथा गली तंग थी। जब रेहड़ी अंदर जा रही थी तो मैं पीछे से रेहड़ी को धक्का लगाने लगा। तो खच्चर रेहड़ी पीछे की ओर आने लगी। खच्चर ने मुझे दिवार तथा रेहड़ी के बीच में ले लिया। इस घटना में मेरी टांग टूट गई और मैं बेहोश होकर गिर पड़ा। किसी ने इस घटना बारे प्रेमी बाई जगजीत सिंह को बता दिया। वह कुछ और डेरा प्रेमियों तथा गली वालों को साथ लेकर मुझे उठाकर हस्पताल ले गए। डॉक्टर ने टांग जोड़कर पलस्तर चढ़ा दिया। लेकिन मेरी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई।
उन दिनों में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां श्री गुरुसर मोडिया में पधारे हुए थे। मेरा परिवार व सेवादार पे्रमी मुझे श्री गुरुसर मोडिया में ले गए कि मरीज को पिता जी से प्रशाद दिला देंगे तथा पिता जी के वचनानुसार ईलाज करवाएंगे। प्रेमियों की मदद से मुझे जीप में लेटा कर श्री गुरुसर मोडिया में ले जाया गया। सेवादार मोहन लाल ने पूज्य हजूर पिता जी को मेरी हालत बारे बताया कि प्रेमी की टांग की हालत बहुत खराब है। पूज्य हजूर पिता जी उसी समय मेरे पास आ गए, जहां पर मुझे जीप में लेटाया हुआ था। पूज्य पिता जी ने पूछा, ‘पे्रमी को क्या हुआ?’ प्रीतम सिंह ने कहा, पिता जी! इसकी टांग बहुत बुरी तरह से टूट गई है। पिता जी ने मेरे मुंह से कम्बल उठा कर वचन किए, ‘बेटा, तेरा बाल भी बिंगा नहीं होने देंगे। जैसे पहले चलता था, उसी तरह ही चलेगा।
’ सेवादार ने पिता जी के हुक्मानुसार बर्फी का प्रशाद मेरे मुंह में डाल दिया। पिता जी ने मेरे परिवार को वचन किए, ‘भाई, इसे श्री गंगानगर लेकर जाना है।’ पूज्य पिता जी के वचनानुसार मुझे श्री गंगानगर ले जाया गया। जब हम हस्पताल में पहुंचे तो डॉक्टर ने मुझे चैक-अप करके मेरे परिवार को कहा, दो बोतल खून की तैयार कर लो। मैं इस मरीज को पन्द्रह दिन में चला कर दिखा दूंगा। रात को मेरा आॅपरेशन होना था। मुझे घबराहट हो रही थी। रात को अर्द्ध निद्रा की अवस्था में पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे दर्शन दिए और वचन फरमाया, ‘एक लाश जो कि टी.वी.टॉवर के पास पड़ी है, उसके स्वास निकाल कर तेरे में डाले हैं।’ पिता जी ने वह लाश मुझे टी.वी. टावर बठिंडा के पास पड़ी दिखाई जो कि सफेद चद्दर से ढकी हुई थी। सुबह हो गई थी।
जब सुबह के पांच बजे मुझे स्ट्रैचर में डालकर आॅपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था तो उस समय मेरी पत्नी तथा मेरी बहन रोने लग गई। उससे पहले उनसे हस्ताक्षर करवा लिए थे कि मरीज की मृत्यु होने की सूरत में डॉक्टर की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी। उस समय मुझे एक तरफ पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तथा दूसरी तरफ पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के दर्शन हो रहे थे। डॉक्टर ने बेहोशी का टीका लगाया।
अब मेरा आॅपरेशन हो चुका था। उसके बाद मुझे थोड़ी-थोड़ी बेहोशी थी। पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे अपने दोनों पवित्र हाथों से आशीर्वाद दिया और फरमाया, ‘बेटा! घबरा ना, हम तेरे साथ हैं।’ अगले दिन पूज्य हजूर पिता जी ने श्री गुरुसर मोडिया से मेरे लिए स्पैशल प्रशाद भेजा। 12 दिनों के उपरान्त मुझे हस्पताल से छुट्टी मिली तो डाक्टर ने कहा कि ये जो प्लेटें हैं, ये तुमने एक साल में निकलवा देनी हैं। दो दिनों के बाद मैं पूज्य हजूर पिता जी के दर्शन करने के लिए सरसा दरबार गया। जब मुझे मिलने का समय मिला तो मैंने जी भर कर पूज्य पिता जी के दर्शन किए।
पूज्य पिता जी ने मुझे वचन फरमाए, ‘बेटा! कुछ दिनों में तेरी ये फौड़ियां भी छुड़ा देंगे।’ कुछ समय बाद मैं बिल्कुल ठीक हो गया। उसके बाद मैंने पूज्य पिता जी को मिलकर उनका लाख-लाख बार धन्यवाद किया तथा अर्ज की, पिता जी, मैं कोई काम करना चाहता हूं। पूज्य पिता जी ने वचन किए, ‘बेटा! हमारा आशीर्वाद तेरे साथ है, तू जो भला काम करेगा।’ उसके बाद मैंने टमाटर का काम शुरू किया, जो आज भी पूज्य पिता जी की रहमत से कर रहा हूं। मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। मैं पूज्य पिता जी के अपने पर किए उपकारों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकता। बस! धन्य-धन्य ही कर सकता हूं।