बेटा, तू खुद ही जाले झाड़ लेना:
सत्संगियों के अनुभव पूजनीय परम पिता जी का अपार रहमो करम
बहन ब्रह्मादेवी इन्सां पत्नी सचखंडवासी मास्टर ओमप्रकाश इन्सां निवासी कल्याण नगर सरसा।
बहन पूजनीय सतगुरु मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के उपरोक्त अनुसार रहमो करम का वर्णन लिखित में इस प्रकार बताती है।
साल 1985 की बात है, पूज्य परम पिता जी रोजाना की तरह उस दिन भी रूहानी मजलिस में साध-संगत को अपार खुशियां प्रदान कर रहे थे।
इसी दौरान अचानक मेरे से पूछ लिया बेटा, तुम्हारा घर बंद रहता है ? वर्णनीय है कि मेरी ससुराल जिला भिवानी के गांव छपार में है, मास्टर जी (मेरे पति ओम प्रकाश जी) की सर्विस जिला सरसा में थी, इसलिए हम लोग अपने बच्चों सहित कल्याण नगर में अपने मकान में रहते है और वहां गांव में मेरे सास-ससुर रहते थे।
पूज्य शहनशाह जी की पावन हजूरी में मैंने अर्ज की, पिता जी, वहां घर मेंं मेरी सास रहती है और घर तो खुला ही रहता है। पूज्य सतगुरु दाता जी ने वचन फरमाया, बेटा अपनी सास को कहना कि जाले झाड़ लेगी।’ लेकिन साथ में यह भी वचन फरमा दिए कि बेटा, वह बुजुर्ग है, उसने क्या झाड़ने हैं, तू ही झाड़ लेना।
मैं दिल में सोचां कि घर तो खुला रहता है, फिर भी कहीं न कहीं जाले भी जरूर लगे होंगे, हो सकता है मेरी बूढ़ी सास के ध्यान में नहीं हो यह बात।
इसके कुछ दिनों बाद मैं गांव में गई, पूज्य शहनशाह जी के वचन मुझे ज्यों के त्यों याद थे, मैंने जाते ही सबसे पहले पूरे घर को टटोला यानि घर का एक-एक कोना मैंने पूरे ध्यान से देखा, जहां वो लोग रहते थे, उसमें तो जाला मुझे किधर भी नजर नहीं आया लेकिन घर का एक पोर्शन (हिस्सा) उन्होंने पता नहीं क्यों बंद कर रखा था, जैसे ही मैंने बंद पड़े उस पोर्शन मकान का दरवाजा खोला, तो देखकर मैं हक्की-बक्की, (आश्चर्य चकित) रह गई।
उस पोर्शन मकान में मुझे सिवाय जालों के कुछ नजर भी नहीं आया। उस पूरे पोर्शन के हर कोने में, छत पर, दीवारों के साथ हर जगह बड़े-बड़े जाले लटक रहे थे, और इतनी बड़ी-बड़ी मकड़ियां कुछ सूखी हुई और कुछ जिंदा उनमें चिपटी हुई थी। पानी वैगरह पीकर मैंने झाडू आदि से सभी जालों को निकाल कर पूरे पोर्शन की बढ़िया सफाई कर दी।
और हुक्मानुसार किए इस कार्य में मुझे बहुत खुशी भी मिली व वैराग्य भी बहुत आया कि सतगुरु दाता प्यारे पिता जी अपने बच्चों की हर चीज, छोटी से छोटी बात के प्रति भी कितने फिक्रमंद रहते हैं।
मैंने तहेदिल से सतगुरु प्यारे का धन्यवाद किया कि पूज्य पिता जी ने दरबार में मौजूद रहते हुए भी हमें हमारे घर (मकान) की सफाई रखने के प्रति सुचेत किया है हालांकि हम अकसर या जब कभी भी समय मिलता है, गांव आते-जाते रहते हैं लेकिन जालों का न हमें ध्यान था और न ही कभी मैंने ध्यान दिया ही था।
कुल मालिक के इसी रहमो करम की कड़ी के अंतर्गत सन् 1984 में एक बार हम पति-पत्नी (दोनों) आषाढ़ी की फसल को संभालने के लिए अपने गांव गए। तब चनों की फसल निकाली जा रही थी। चनों के ढेर को देखकर मुझे अंदर से इस बात का आभास हुआ कि 28 बोरियां भर जाएंगी और यह बात मैंने मास्टर जी से भी कह दी।
लेकिन जब बोरियों में चने भरने शुरू किए गए तो बीस बोरियां ही भरी बाकी उस ढेरी में थोड़े बहुत चने ही लगते थे मैंने झाडू आदि से बिखरे चनों का इकट्ठा किया, कुल मिलाकर मुझे यही लगा कि ये तो डेढ़-दो बोरियों से ज्यादा नहीं होंगे। इस बात की मुझे तो टेंशन हो गई कि पूरी 28 बोरियां भरनी चाहिए थी।
पूज्य दाता जी ने मुझे ख्याल दिया कि ढेरी को ढक दे, और फिर सुमिरन करते हुए बोरियों को भरना है। सतगुरु मालिक बरकत डालेंगे।
मैंने मास्टर जी से कह दिया कि अभी कुछ देर तक मुझे न बुलाना, आप जो काम कर रहे हैं, अपना लगन से करते रहें, और इसके साथ ही मैं मन ही मन चुपचाप सुमिरन भी करती रही तथा चनों का छाज में भर-भर कर बोरी में भी डालती रही। मैं सच बता रही हूं कि सतगुरु प्यारे की अपार दया-मेहर से एक बोरी, दो बोरी और करते कराते उन बचे चनों की पूरी आठ बोरियां मैंने और भर दी, जो लगता था मात्र दो ही बोरियां भर पाएंगी।
वर्ष 1983 की भी एक दिलचस्प घटना मुझे याद आई, तब हम लोग बाजेकां गांव में रहा करते थे। उस दिन रविवार का दिन था, हम लोग मजलिस में आना चाह रहे थे, लेकिन लगातार थोड़ी-थोड़ी बारिश हो रही थी, हम इस इंतजार में कि बारिश कुछ रूके तो हम घर से निकलें।
कुछ देर बाद जैसे ही बारिश रूकी हम साइकिल से दरबार में पहुंच गए।
रूहानी मजलिस में प्यारे दाता जी के दर्शन किए और मजलिस की समाप्ती पर हम साइकिल से घर लोट रहे थे। डर तो यही था कि बारिश में कहीं भीग न जाएं। छाता (छतरी) वगैरा भी तब साथ नहीं लिया था, क्योंकि जब हम घर से चले थे बारिश रुकी हुई थी। बस, फिर वो ही बात कि अभी रास्ते में ही थे कि बारिश शुरू हो गई।
लो, अब तो भीगेंगे ही। मैंने मन ही मन सतगुरु प्यारे के पवित्र चरण-कमलों में अरदास की, पिता जी, आप जी की मर्जी अगर भिगोना है तो…!
बस, मालिक की ऐसी अद्भुत लीला देखी, हमारे दायीं ओर भी खूब बारिश हो रही थी और बार्इं ओर भी बराबर खूब तेज बारिश हो रही थी, लेकिन सतगुरु वाली दो जहान पिता जी ने अपनी दया-मेहर का ऐसा कोई छाता मानो ओढ़ा दिया था कि हमारे दायें-बाएं मूसलाधार बारिश होने पर भी हमारे ऊपर बारिश की एक कणी, एक बूंद भी नहीं गिरने दी थी।
प्यारे दाता जी के कौन-कौन से और कितने दया-मेहर, उनके रहमो करम का वर्णन करूं। इतने रहमो करम कि कागज, कलम आदि सारी सामग्री सिमट सकती है, पर दाता प्यारे सतगुरु मुर्शिद के उपकारों का पूर्णतौर पर वर्णन नहीं हो सकता। ऐ मालिक आप जी का कोटि-कोटि धन्यवाद। अपनी शरण में लिया है, हमेशा लगाए रखना जी। एकपल भी दूर न होने देना जी।


































































