…बेटा! दुनिया की निगाह से भी बचना है -सत्संगियों के अनुभव Experiences of Satsangis – पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
प्रेमी मुख्तयार सिंह इन्सां पुत्र सचखंडवासी जग्गर सिंह निवासी गांव दयोण जिला भटिंडा पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने तथा अपने गाँव की साध-संगत पर हुई अपार रहमत को इस तरह बयान करता है:-
सन् 1975 की बात है। पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की कृपा से गांव कोट भाई जिला श्री मुक्तसर साहिब का सत्संग मंजूर हो गया। आस-पास के गाँवों में इस बात को लेकर बहुत ही खुशी हुई।
सत्संग के उपलक्ष्य में हमारे गांव में एक स्पेशल नामचर्चा रखी गई। नामचर्चा की समाप्ति पर ‘सच्चे प्रेमी सेवक’ ने साध-संगत को सूचनार्थ विनती की कि कल यानि 2 अगस्त दिन शनिवार को गांव कोट भाई में पूजनीय परमपिता जी का सत्संग है और सत्संग सुबह 11 बजे से दोपहर एक बजे तक होगा जी। सत्संग पर जाने के लिए अपने को यानि साध-संगत के लिए एक ट्रैक्टर-ट्रॉली की जरूरत है। तो मैं साध-संगत में खड़ा हो गया कि ट्रैक्टर तो मैं अपना लेकर जाऊंगा, परंतु ट्रॉली मेरे पास नहीं है।
मैंने उस समय के दौरान ही नया ट्रैक्टर लिया था। प्रेमी सेवक ने कहा कि जी, ट्रॉली हम अपने-आप ढूंढ लेंगे। अगले दिन यानि सत्संग वाले दिन प्रेमी सेवक ने मेरे ट्रैक्टर के पीछे गांव के किसी व्यक्ति से ट्रॉली डलवा दी। मैं ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर प्रेमी सेवक के ही घर के पास पहुँच गया। साध-संगत धीरे-धीरे आती रही। मैं करीब दस बजे नारा ‘धन धन सतगुुरु तेरा ही आसरा’ बोलकर साध-संगत से भरी ट्रॉली लेकर कोट भाई गांव के लिए चल पड़ा। हम किल्ली, अबलू, चोटियां आदि गांवों से होते हुए कोट भाई के रास्ते जा रहे थे। जब हम अबलू गांव में पहुँचे तो ट्रॉली के बैरिंग की आवाज आने लगी। साध-संगत ने मुझे कहा कि बराड़ साहिब, ट्रैक्टर रोको और ट्रॉली को चैक करो, बैरिंगों की आवाज़ आ रही है।
मैंने ट्रैक्टर से उतर कर पहले साधारण सी निगाह से देखा और फिर ट्रैक्टर स्टार्ट कर ट्रॉली को थोड़ा आगे-पीछे करके भी तसल्ली की। फिर मैंने कहा कि सब ठीक है, चलते हैं। मैंने बैरिंगों की कोई चिंता नहीं की। क्योंकि जवानी का खून था तथा नया ही ट्रैक्टर था। मैंने कहा कि कुछ नहीं होता। जब चोटियां गाँव के आगे गए तो ट्रॉली काफी आवाज करने लग गई। तो साध-संगत ने मुझे फिर कहा कि बराड़ साहब, ट्रॉली के बैरिंगों की आवाज है, देख लो और काफी बदबू-सी भी आ रही है। मैंने फिर ट्रैक्टर रोका और ट्रॉली के दोनों टायरों को देखा। मैंने मन में सोचा कि कोट भाई तो यहाँ से नजदीक ही है! अभी पहुँच जाएंगे! मालिक खुद ही पहुंचा देगा! मैं मालिक का नारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ लगाकर चल पड़ा। मैंने साध-संगत से कहा कि फिक्र न करो, कुछ नहीं होता। अभी कोट भाई पहुंच जाएंगे।
मैंने बैरिंगों से आ रही तेज आवाज व बदबू की कोई परवाह नहीं की। मैंने फिर ट्रैक्टर को रेस देकर भगा दिया। मालिक-सतगुरु की मस्ती थी कि समय पर पहुंच कर अभी मालिक-सतगुरु के दर्शन करते हैं। और इस तरह हम कुछ ही समय में कोट भाई सत्संग पंडाल में पहुंच गए। हमने वहां चाय-पानी पिया और फिर सत्संग में साध-संगत के साथ बैठकर पूजनीय सतगुरु शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए और बड़े प्यार से नाम लेने आए नए जीवों को नाम-गुरुमंत्र दिला दिया। सत्संग के बाद लंगर-भोजन खाने के बाद साध-संगत धीरे-धीरे ट्रैक्टर-ट्रॉली के पास आने लगी और मैं भी ट्रैक्टर के पास पहुंच गया। इतने में पूजनीय परमपिता जी नामाभिलाषी जीवों को नाम शब्द देकर उतारे वाले मकान में पहुँच गए।
परमपिता जी ने मुख्य सेवादारों से पूछा कि भाई! दयौण से कितनी संगत आई है। तो सेवादारों ने बताया कि ट्रॉली भर कर आई है जी। घट-घट की जानने वाले सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने उतारे वाले घर से एक प्रेमी को हुक्म फरमाया कि भाई, दयौण वालों को बुलाओ, कहीं चले न जाएं। जब उस प्रेमी भाई ने हमें यह बताया कि दयौण वालो, तुम्हें परमपिता जी ने बुलाया है तो हम जो जिम्मेवार प्रेमी थे, खुशी में झूम उठे कि अपने को खुद-खुदा ने बुलाया है। जब हम परमपिता जी की पावन हजूरी में पहुंचे तो पूजनीय शहनशाह जी हमें देखकर अपने कमीज के बटन खोलने लग गए। परमपिता जी के पूछने पर एक प्रेमी ने बताया कि पिताजी, ट्रैक्टर प्रेमी मुख्यतयार सिंह लेकर आया है जी।
पिताजी, इसने नया ट्रैक्टर लिया है जी। परमपिता जी ने मुझे अपने पास बुला लिया और अपने कंधे से कमीज उतार कर फरमाया, ‘देख बेटा, हमने अबलू गाँव से ही ट्रॉली को अपना कंधा लगा लिया था और आपने कुछ भी नहीं देखा।’ जब मैंने परमपिता जी के कंधे की तरफ देखा तो उसमें तीन कील धंसे हुए के निशान थे। मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी और आँखों से अश्रुधारा बह निकली कि हमारे कर्म किस तरह पिता जी अपने पर लेकर उठाते हैं।
मैंने परमपिता जी से हाथ जोड़कर माफी मांगी की कि पिता जी, आगे से कभी भी ऐसी गलती नहीं होगी जी। परमपिता जी ने आगे फरमाया कि ‘बेटा, आराम से और थोड़ा ध्यान से ट्रैक्टर चलाया करो। बेटा, दुनिया की निगाह से भी बचना है। आगे से ध्यान रखना और रास्ते में ट्रैक्टर को साइड पर खड़ा करके एक बार उसे अच्छी तरह से देख लिया करो।’ फिर परमपिता जी ने हमें अपने पावन आशीर्वाद सहित प्रशाद दिया।
मेरी पूजनीय परमपिता जी के मौजूदा पावन स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में यही अरदास है कि सतगुरु सेवा, सुमिरन का बल बख्शना जी तथा अपना रहमो-करम हमेशा इसी तरह बनाए रखना जी कि हमारा आपजी के प्रति दृढ़ विश्वास हमेशा-हमेशा के लिए बना रहे जी।

































































