Basant

Basant भीनी-भीनी खुशियां बिखेरे ऋतुराज बसंत

ओढ़ चुनरिया पीली-पीली
झूले सरसों हर्षीली-गर्वीली
आई बसंती हवा उन्मादी
नटखट प्रपंच करे उस्तादी
डाल-डाल को खूब छकाया है,
ऋतुराज बसंत आया है।

भारत त्यौहारों का देश है। देशवासी प्रत्येक ऐसे अवसर को त्यौहार के रूप में मनाकर अपनी खुशी का इज़हार करते हैं। हमारे देश के त्यौहार केवल धार्मिक अवसरों को ध्यान में ही रखकर नहीं मनाए जाते, बल्कि ऋतु परिवर्तन के मौके का भी पर्व के रूप में ही स्वागत किया जाता है। ऋतु परिवर्तन का ऐसा ही एक त्यौहार है ‘बसंत पंचमी’। यह ऋतु अपने साथ कई परिवर्तन लेकर आती है।

बसंत पंचमी के अवसर पर चारों ओर पीली सरसों लहलहाने लगती है तथा मानव मन भी खुशी से झूमने लगता है। बसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। सभी (जीव-जन्तु, सभीजन) गीतों में मदमस्त होकर झूमने लगते हैं। ये गीत होते हैं प्रेम के, यौवन के, मस्तियों के खिलने के, बिखरने के, छितरा जाने के भी। हरे-भरे खेतों में सरसों के फूल अपनी पीली आभा के साथ मीलों-मील छितरा जाते हैं, क्योंकि यह बसंत के पर्व का अवसर होता है। इस मौसम में कोयलें कूक-कूककर बावरी होने लगती हैं, भौरे इठला-इठलाकर मधुपान करते हैं और रंग-बिरंगी तितलियों की अठखेलियां भी हर मन को भाती है।

बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, उसका तो कहना ही क्या! वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाते।

धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं, तो वहीं निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने पर सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच में, प्रकृति तो मानो उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगत, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है।

Basant बसंत और पीला रंग:

यह रंग हिन्दू संस्कृति में शुभ रंग माना गया है। बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे, बड़े, बूढ़े आदि सभी पसंद करते हैं। अत: इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है। प्रकृति भी खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोगों के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवतियां एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। धान व फलों को बरसाया जाता है। गृहलक्ष्मी बेर, संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती है।

Basant पतंग उड़ाते समय रखें सावधानियां:

बसंत ऋतु के आते ही सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। कम्बलों एवं रजाई में दुबके लोगों के शरीर में नई उर्जा का संचार होता है। पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों में भी नई जान-सी आ जाती है। रंग-बिरंगे फूलों से धरती का आंचल सजने लगता है। सर्दी की कंपकपाहट से मुक्ति दिलाने हेतु बसंत ऋतु को धरती पर भेजने के लिए ईश्वर का धन्यवाद करने के लिए लोग उसकी पूजा करते हैं और इसके बाद भिन्न-भिन्न तरीके से खुशियों को ज़ाहिर करते हैं। इनमें से एक तरीका है पतंगबाजी।

बच्चे व किशोर बसंत पंचमी का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। आखिर, उन्हें पतंग जो उड़ानी है! वे सभी घर की छतों या खुले स्थानों पर एकत्रित होते हैं और तब शुरू होती है पतंगबाजी की जंग। कोशिश होती है प्रतिस्पर्धी की डोर को काटने की। जब पतंग कटती है, तो उसे पकड़ने की होड़ मचती है। इस भागम-भाग में सारा माहौल उत्साहित हो उठता है!

बसंत पंचमी के दिन पतंग उड़ाने का भी खास महत्व है। आसमान में ऊंची उड़ती पतंग हमारी उम्मीदों की उड़ान की भी प्रतीक है। यह हमें ऊंचाई तक पहुंचने और बड़े सपने देखने का हौसला देती है। इसलिए आसमान में पेंच लड़ाने के लिए पतंगबाज खास तैयारी करते हैं, वहीं बाजार में भी विभिन्न रंगों व डिज़ाइनों की आकर्षक पतंगें नज़र आती हैं।

लेकिन आजकल हर त्यौहार पहले जैसा नहीं रह गया है। पिछले कुछ समय से चाइनीज मांझे की भरमार है। पतंगबाजी के शौकीन लोगों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि यह चाइनीज मांझे बहुत ही खतरनाक हैं। इससे एक तरफ जहां आपके हाथों में कट लगने की संभावना बनी रहती है, वहीं इनकी चपेट में आकर पक्षियों की मौत तक हो जाती है। इसलिए ऐसे मांझे कतई प्रयोग न करें।

इसके अलावा पतंगबाजी करते वक्त निम्न बातों का खास ध्यान रखें:-Basant

पतंग बाजी के शौकीन डोर या मांझा खरीदते समय ध्यान रखें, खासकर छोटे बच्चे, क्योंकि मांझा बनाने का तरीका बेहद ही खतरनाक है। मांझा बनाने के लिए एक खास किस्म की लेई तैयार की जाती है, जिसमें चावल का आटा, आलू, सरेस, गोंद, पिसा हुआ बारीक कांच का बुरादा और रंग मिलाया जाता है। इसे हाथों में रखकर या दो खंभों के बीच बांधे गए सूत के सफेद धागों पर उस लेई की अनेक परतें चढ़ाई जाती हैं और इस प्रकार खतरनाक मांझा तैयार होता है। इस मांझे से हाथ, गले में चोट लगने का खतरा ज्यादा रहता है। पतंग उड़ाने वाली डोर में नायलॉन का इस्तेमाल होता है, जिस पर कांच का बुरादा चढ़ा होने के कारण यह लोगों और आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए इस तरह की डोर का इस्तेमाल बिल्कुल भी न करें।

  • पतंग उड़ाने में कई बार हाथों में कट लग जाता है। इसलिए उचका पकड़ने व पतंग उड़ाने वाले में सही तालमेल होना चाहिए।
  • सड़क पर पतंग लूटना भी परेशानी का कारण बन सकता है। अत: चारों तरफ ध्यान देकर ही पतंग लूटने का मजा उठाएं।
  • पतंग उड़ाने से पहले अपने आसपास जरूर देख लें। बिना फेंसिग वाली छत से पतंग न ही उड़ाएं, तो बेहतर है। इसी असावधानी के चलते हर साल पतंग उड़ने के दौरान छत से गिरने के मामले सामने आते हैं। ऐसे में सावधानी जरूर बरतें।
  • कई बार पतंग बिजली के तारों पर अटक जाती है, इसे निकालने के लिए आप खुद मास्टर न बनें, क्योंकि खंभे से पतंग निकालने के चक्कर में करंट भी लग सकता है।
  • पतंग उड़ाने के दौरान फर्स्ट एड किट साथ रखें। कभी-कभी पतंग के मांझे से हाथ में कट लग जाता है। फर्स्ट एड साथ होगा, तो जल्द ही राहत मिलेगी।
  • पतंग उड़ाते समय आँखों का विशेष ख्याल रखें। दरअसल, पतंग उड़ाते समय सूर्य की सीधी रोशनी आंखों पर पड़ती है, जो आंखों के लिए नुकसानदायक है।
  • पावर लाइन्स और पोल्स के आसपास पतंग न उड़ाएं।
  • यदि ज्यादा कोहरा हो, तो पतंग उड़ाने से बचें।
  • अगर आप साइज में बड़ी पतंग उड़ा रहे हैं, तो हाथों में ग्लव्ज पहनना न भूलें।

सुरक्षा में ही बचाव है। सुरक्षित रहते हुए बसंत के त्यौहार पर पतंगबाजी का दिलभर के मजा लीजिए।

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