स्वास्थ्य हेतु डकार का महत्त्व :
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साधारणत :
लोग डकार के आने को पेट भर जाना समझते हैं और कुछ लोग उसे बदहजमी की शिकायत कहते हैं। संसार के कुछ हिस्सों में डकार लेने को असभ्यता माना जाता है। विवाह एवं अन्य पार्टी आदि में खाना खाते समय जब अचानक डकार आ जाती है तो जहां खाना खाने वाला कहता है कि बस भई, पेट भर गया है,
वहां खिलाने वाला भी स्वत :
समझ जाता है कि परोसना बंद किया जाये, क्योंकि खाने वालों के पेट भर गये हैं। यानी उन्हें डकार आने लगी हैं।
लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। डकार का आना शारीरिक-क्रि या का एक अंग है। कुकर में जिस प्रकार दाल या सब्जी पकाते समय जब गैस अधिक बन जाती है तो सेफ्टी बाल्व के स्वत: खुलने पर वह बेकार गैस जिस प्रकार आवाज के साथ बाहर निकलती है, उसी प्रकार पेट में एकत्रित अधिक गैस आवाज के साथ जब मुंह व गले द्वारा बाहर निकलती है तो उसे डकार आना कहा जाता है न कि खाना खाने पर पेट भर जाना!
डकार कैसे आती है :-
जब हम खाना खाते हैं तो भोजन के साथ कुछ वायु पेट में प्रवेश कर जाती है। भोजन नली और पेट के मध्य एक दरवाजा होता है जो भोजन करते समय खुल जाता है।
भोजन के पेट में प्रवेश हो जाने के बाद यह स्वत :
ही बंद हो जाता है जिससे पेट में कुछ वायु इकट्ठी हो जाती है।
भोजन के पचने में भी कुछ गैस पेट में एकत्रित हो जाती है।
लेमन सोडा आदि पेय पदार्थो के पीने से भी पेट में अधिक गैस पैदा हो जाती है, जिससे शरीर के कन्ट्रोल रूम रूपी मस्तिष्क का उक्त बेकार गैसों को बाहर निकालने का आदेश होते ही पेट की मांसपेशियां कुछ सख्त हो जाती हैं जिससे भोजन नली में छाती और पेट के बीच बना दरवाजा क्षण भर के लिए खुल जाता है। डकार के रूप में वायु गले और मुंह से होती हुई बाहर आ जाती है जिसे आमतौर से डकार आना कहा जाता है जो न तो पेट भरने का परिचायक है और न ही किसी विशेष क्षेत्र की असभ्यता का द्योतक है।
डकार आने पर आवाज का कारण :-
जब पेट में एकत्रित वायु क्षण भर के लिए दरवाजा खुलने पर पेट से भोजन नली में आती है तो एक प्रकार का कंपन करने लगती है जो गले और मुंह से बाहर निकलने पर आवाज करती है। यदि पेट की वायु बाहर निकलने पर कंपन न करे तो आवाज नहीं हो सकेगी, जो असंभव है क्योंकि शारीरिक क्रि या स्वत: हर समय होती रहती है भले ही प्राणी जागृत अवस्था में हो या निद्रावस्था में। बाय (पाद) के रिजने का भी यही कारण है।
डकार न आने पर :-
यदि डकार या बाय (पाद) न आएं यानी मस्तिष्क पेट में एकत्रित गैस को बाहर निकालने हेतु आदेश देने में कुछ विलम्ब कर दे अथवा छाती और पेट के बीच बने सैफ्टी बाल्व रूपी दरवाजा न खुले तो प्राणी बड़ा व्याकुल हो उठता है। उसे अनेक व्याधियां घेर लेती हैं। पेट में अक्सर दर्द की शिकायत रहने लगती है। भूख कम लगने लगती है। पाचन क्रि या शिथिल पड़ जाती है।
शरीर टूटा-टूटा सा और कमजोरी की शिकायत होने लगती है।
ठीक प्रकार से न खाने और न पचने के कारण रक्त विभाग एवं प्रवाह में कमी आने पर व्यक्ति परेशानियों के जाल में फंस जाता है। शरीर की एक छोटी क्रि या के लापरवाही बरतने पर स्वास्थ्य खराब होने में जिन्दगी का आनन्द तक समाप्त होने की संभावनाएं बन जाती हैं।
कुकर में जिस प्रकार बेकार गैस न निकलने पर वह फट सकता है, स्टोव में अधिक गैस के भरने से जैसे उसकी टंकी फट सकती है, उसी प्रकार शरीर में पेट का बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसमें एकत्रित बेकार गैसों की यदि निकासी न हो तो जिन्दगी दूभर हो जाती है। अत: जीने के लिए स्वास्थ्य का और स्वास्थ्य के लिए डकार का आना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
– डा. वी.के. राघव