पावन स्मृति विशेष Yaad-e-Murshid
याद-ए-मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ‘मेरे सतगुर, तेरी याद से है रोशन सारा जहां’

13,14,15 दिसम्बर पूज्य परम पिता जी को समर्पित

डेरा सच्चा सौदा में साध-संगत मौजूदा पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन दिशा-निर्देंशों पर मानवता भलाई कार्याें के प्रति पूरा वर्ष और हर समय सेवा के लिए तत्पर रहती है और विशेष कर दिसम्बर महीना पूरे का पूरा मानवता भलाई के कार्याें को समर्पित है। दिनांक 13, 14, 15 दिसम्बर के ये दिन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में बहुत अहम स्थान रखते हैं। इस दिन डेरा सच्चा सौदा में याद-ए-मुर्शिद परमपिता शाह सतनाम जी नि:शुल्क आँखों का विशाल कैंप आयोजित करके जरूरतमंद लोगों पर अंधता निवारण का परोपकारी-करम किया जाता है। पूज्य गुरु जी के पावन दिशा निर्देशन में सन् 1992 से 2019 तक 28 ऐसे परोपकारी कैंप आयोजित किए जा चुके हैं, जिनके द्वारा हजारों लोग लाभांवित हुए हैं।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पाक-पवित्र शिक्षाओं से आज पूरा विश्व लाभ उठा रहा है। मौजूदा गुरु पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन मार्ग दर्शन में डेरा सच्चा सौदा के मानवता भलाई के कार्याें की धुम आज पूरे विश्व में सुनी जा रही है। वैसे मानवता-भलाई के कार्य डेरा सच्चा सौदा में पूरा साल चलते रहते हैं, लेकिन विशेषकर दिसम्बर का यह पूरा अति पवित्र महीना मानवता भलाई के कार्य करके यहां दरबार में मनाया जाता है तथा बाहर देश-विदेश में, ब्लाकों में भी बढ़चढ़ कर मानवता भलाई के कार्य किए जाते हैं। इस महीने यानि 13-14-15 दिसम्बर के ये दिन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में एक अति अहम स्थान रखते हैं।

डेरा सच्चा सौदा के दूसरे पातशाह पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज दिनांक 13 दिसम्बर 1991 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर कुल मालिक परमपिता परमात्मा की अखंड ज्योति में समा गए थे। इसलिए 13-14-15 दिसम्बर के ये दिन, बल्कि पूरा दिसम्बर महीना डेरा सच्चा सौदा में पवित्रता के साथ मनाया जाता है। 29वीं पावन पुण्यतिथि के अवसर पर साध-संगत मानवता भलाई कार्यों के द्वारा अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही है।

संक्षिप्त परिचय

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील कालांवाली जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी ने जगत उद्धार के लिए पूजनीय पिता जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी के घर पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। आप जी पूज्य माता-पिता के बहुत ही लाडले, इकलौती संतान थे। आप जी के पूज्य पिता जी बहुत बड़े लैंड-लार्ड व आदरणीय जैलदार थे। इतने बड़े खानदान में हालांकि हर दुनियावी सुख-सुविधा अपार थी। कमी थी तो घर के इतने बड़े खानदान के वारिस की। पूज्य माता-पिता जी की साधु संत-महात्माओं की सेवा, राम-नाम की भक्ति में अटूट श्रद्धा थी। पूज्य माता-पिता जी का मिलाप एक बार एक मस्त फकीर से हुआ।

पूज्य माता-पिता जी के नेक -पवित्र स्वभाव तथा सेवा-भावना से वह बहुत ही प्रभावित हुए। वह बहुत संतोषी-महापुरुष थे। उस फकीर बाबा ने पूज्य माता-पिता जी से कहा कि आपकी सेवा-भावना ईश्वर को मंजूर है। परमेश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे। आपके घर कोई महापुरुष आपके बेटे के रूप में अवतार लेगा। पूज्य माता-पिता जी की शुद्ध-पवित्र भावना व उस फकीर बाबा की दुआ से पूज्य परम पिता जी ने लगभग 18 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद अवतार धारण किया। वो फकीर बाबा दोबारा फिर जब घर पर आए तो पूज्य पिता जी को ढेर सारी बधाई देते हुए कहा कि खुद परमेश्वर ने आप जी के घर अवतार लिया है।

ये आपके यहां 40 वर्षाें तक ही रहेंगे। उसके बाद अपने असल उद्देश्य अल्लाह, राम, वाहेगुरु, द्वारा सौंपे परोपकारी कार्य, जगत उद्धार (सृष्टि व समाज के उद्धार) के लिए उन्ही की सेवा में चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आपका बेटा बना कर भेजा है। आप जी की परम महानता के लिए ये वचन उस सच्चे फकीर बाबा जी ने पूजनीय माता-पिता को आपजी के जन्म से पहले भी और जन्म के बाद भी कर दिए थे। उस फकीर बाबा के वचन उस समय सच साबित हुए जब आप जी अपना घर-बार आदि सब कुछ अपने मुर्शिदे कामिल पूजनीय परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के नाम पर लुटाकर उन्हीं की शरण में डेरा सच्चा सौदा में आ गए। उस समय आप जी की आयु भी लगभग 40 वर्ष की थी। पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का नाम सरदार हरबन्स सिंह जी रखा था, लेकिन बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम बदल कर सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।

महान शख्सियत

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की शख्सियत अतिमहान थी।। आप जी के रूहानी जलवे, आप जी के पुरनूर नूरी मुखड़े के दर्श-दीदार पा के हर कोई नतमस्तक हो जाता। आप जी खेत में अथक किसान, पंचायत में प्रधान, बीमारों के लिए वैद्य लुकमान, दीन-दुखियों के मसीहा, बेसहारों का सहारा व सच्चे हमदर्द, माहिरों के माहिर उस्ताद, रूहानियत में सच्चे रहबर, दया-रहम के पुंज थे। आप जी की पवित्र रसना से अमृत के झरने चलते। आप जी का ईलाही नूरी स्वरूप ऐसा कि जो देखता, बस देखता ही रह जाता।

आप जी की नूरानी हर अदा हर शख्स को प्रेरित करती, अपनी ओर अकर्षित कर लेती थी। यह आप जी की रूहानी शख्सियत का ही प्रभाव था कि लोग सैकड़ोें कोस से आप जी के रूहानी सत्संग में खिंचे चले आते। इस प्रकार लाखों लोग अपनी बुराईयां छोड़ कर आप जी के श्रद्धालु बने। आप जी ने 18 अप्रैल 1963 से 26 अगस्त 1990 तक लगभग 27 वर्ष चार महीनों में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू.पी के सैकड़ों गांवों, शहरों, कस्बों में दिन-रात एक करके हजारों सत्संग लगाए। आप जी ने 11 लाख से भी ज्यादा नए जीवों को राम-नाम, गुरुमंत्र देकर उन्हें मोक्ष का अधिकारी बनाया।

अनगिनत उपकार दाता जाएं न गिनाए

पूजनीय परम पिता जी बुराई रहित आदर्श समाज की बुनियाद को मजबूत करने के लिए दिन-रात प्रयत्न शील रहते। मानवता-इन्सानियत की भलाई के लिए आप जी ने अपनी तरफ से कोई कोर-कमी नहीं छोड़ी। आप जी का पवित्र जीवन बचपन से ही समाज-भलाई के लिए समर्पित रहा। आप जी ने जहां समाज में फैली दहेज-प्रथा, शादी-विवाह, जन्म, मरने आदि की रूढिवादी प्रथाओं का जहां डट कर विरोध किया, वहीं स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए भी आप जी सदा प्रयत्नशील रहे । आप जी ने जहां छोटा परिवार रखने के लिए दुनिया को प्रेरित किया वहीं बेटा-बेटी को एक समान जानने के लिए भी संगत को आगाह किया।

पूज्य परम पिता जी का कथन, ‘हम दो हमारे दो’, मौजूदा समय में पूज्य गुरु जी का वचन, ‘हम दो हमारा एक ही काफी, वरना दो के बाद माफी’, बढ़ती जन संख्या को लगाम देने के लिए एक कारगर नुक्ता साबित हुआ। आप जी ने अपनी पवित्र शिक्षाओं के द्वारा साध-संगत को बेटा-बेटी को बराबर मानने के लिए प्रेरित किया, कि लड़का-लड़की को बराबर मानो, बराबर शिक्षा दो, घर, समाज में दोनों को एक समान दर्जा हो, उन्हे अच्छे संस्कार दो। आप जी ने अपने वचनों में लोगों को समझाया कि बेटे की चाहत में कई बार परिवार बहुत बड़ा हो जाता है, तो परिवार व बच्चों की उचित परवरिश नहीं हो पाती। बड़ा परिवार होने पर सब की जरूरतों को पूरा करना असंभव हो जाता है। घर में गरीबी तथा अन्य सामाजिक समस्याएं पनप उठती हैं। छोटा परिवार (एक या दो बच्चों वाला) देश के हित में भी बहुत बड़ा योगदान है।

दहेज का लेन-देन भी समाज के लिए कलंक है। पूज्य परम पिता जी सादगी पूर्ण व बिना दान-दहेज की शादी की प्रशंसा करते। आप जी ने साध-संगत की भलाई के लिए दरबार में बिना दान-दहेज के सादगी पूर्ण विवाह-शादियों की परम्परा चलाई। यह पवित्र परम्परा आज भी ज्यों की त्यों प्रचल्लित है। लड़का-लड़की आपस में दिलजोड़ माला पहना कर शादी के बंधन में बंधते हैं और इसी मर्यादा के तहत दरबार में अधिकतर डेरा सच्चा सौदा के प्रेमी अपने बच्चों के शादी-विवाह करते हैं। आप जी के इस परोपकार का आज लाखों परिवार फायदा उठा रहे हैं न कोई रूठना-मनाना, न कोई लेन-देन का झंझट और न ही कोई और परेशानी। सचमुच ही साध-संगत के लोग पूज्य परम पिता जी के इस पवित्र परोपकार का दिल से सत्कार करते हैं

पावन मार्ग-दर्शन

डेरा सच्चा सौदा में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज, पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज द्वारा शुरू किए गए मानवता भलाई के सेवा कार्याें को पूज्य गुरु जी संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने तूफान मेल गति प्रदान कर के विश्व स्तरीय बना दिया है। मानवता व समाज भलाई के सेवा कार्याें की ऐसी जबरदस्त लहर कि जिससे डेरा सच्चा सौदा की पूरे विश्व में पहचान बन गई है।

पूज्य गुरु जी के मार्ग दर्शन में डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए जा रहे 134 मानवता भलाई के कार्य जरूरतमंदों का सहारा बने हैं। गरीबों के लिए, अनाथ बच्चों के लिए, बीमारों के लिए विधवाओं के लिए परमार्थी कार्य तथा वेश्यवृति, तम्बाकू सेवन आदि नशों को रोकने, गर्भ सुरक्षा, कन्या भ्रूण हत्या रोकने, जीते जीअ रक्तदान, मृत्युपरान्त आंखें दान, मेडिकल खोजों के लिए शरीरदान आदि समाज सेवा के हर क्षेत्र में डेरा सच्चा सौदा के ये मानवता भलाई के 134 कार्य एक लहर, एक मुहिम के रूप में जन-जन तक पहुंच चुके हैं और लोग लाभांवित हो रहे हैं।

महान साहित्यकार

पूजनीय परम पिता जी ने अनेक ग्रन्थों की रचना की। पूजनीय परम पिता जी द्वारा रचित हजारों भजन-शब्द हिन्दी व पंजाबी की सरल भाषा में साध-संगत द्वारा बड़े सत्कार सहित पढ़े व सुने जाते हैं। पूज्य परम पिता जी ने 23 सित्म्बर 1990 को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना उत्तराधिकारी बनाया और वचन किए हम थे, हैं और रहेंगे। वोही बेपरवाही जोत पूज्य गुरु जी में प्रत्यक्ष देखी जा सकती है।

पूज्य परम पिता जी की ही प्रेरणा से पूज्य गुरु जी ने भी अनेक ग्रन्थों की रचना अपनी कलम से की। पूज्य गुरु जी द्वारा किए जा रहे रूहानियत व इन्सानियत की सेवा तथा लोक-भलाई के कार्याें से हर कोई लाभांवित हो इस उद्देश्य के प्रति पूज्य गुरु जी निरंतर प्रयत्नशील हैं। डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों श्रद्धालु पूज्य गुरु जी की शिक्षाओं को अपने हृदय में बसाए हुए हैं।

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