बच्चे को सिखाएं ‘पैसा नहीं है सबकुछ’
बच्चे को पैसे जोड़ने की आदत सीखना जरूरी होता है। लेकिन साथ ही एक काम और जरूरी होता है, ये काम होता है, उन्हें बताना कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता हैं।
इसके बिना जिंदगी में दिक्कतें होंगी लेकिन जिंदगी इन्हीं पैसों से पूरी नहीं होती है। बल्कि परिवार का साथ, योग्यता और अच्छा इंसान बन कर अच्छी जिंदगी काटी जा सकती है। पैसे सबकुछ नहीं होते हैं। और ये बात समझने के लिए उसे आपको कुछ कदम आगे बढ़ाने होंगे। हो सकता है आपको खुद का उदाहरण भी उनके सामने रखना होगा।
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आपको क्या-क्या करना होगा, जान लीजिए-
पैसा नहीं है सबकुछ:
बच्चा आपको अक्सर सामान खरीदते या फिर उनके लिए खिलौने खरीदते देखता होगा। वो ये बात समझता होगा कि हर चीज पैसे से मिल जाती है। जबकि ये सच बिलकुल नहीं है। आपका उनके लिए प्यार अनमोल है। उनको पैसे से नहीं तौला जा सकता है। ऐसी ही कई और चीजें हैं, जिन्हें पैसे से नहीं तौला जा सकता है। आपके बच्चे को ये बात समझाने के लिए उन्हें अपने प्यार का उदाहरण दीजिए। यकीनन वो जरूर समझेंगे।
पैसों से प्यार नहीं:
अब आपको समझाना होगा कि देखो मम्मा का प्यार तुम्हें पैसों से नहीं मिल सकता है। वैसे ही तुम्हें बहुत सारे लोग ऐसे मिलेंगे, जिनका प्यार तुम्हारे लिए जरूरी होगा। तुम पैसों से ये प्यार नहीं खरीद सकते हो। और इसके लिए तुम्हें सिर्फ और सिर्फ बदले में प्यार ही देना होगा। प्यार के लिए खुद को अच्छा इंसान बनाना होगा ना कि अमीर इंसान।
जमीनी एक्टिविटी:
बच्चों को आप अक्सर मॉल ले जाती होंगी। उन्हें जरूर वहां मजा आता होगा। वो खाते-पीते होंगे फिर खेलते भी होंगे। बिलकुल अल्ट्रा मॉडर्न स्टाइल में वो गेम्स खेलते हैं। इन सबमें आप खूब खर्चा करती हैं। बच्चा देखता और समझता है कि उनकी खुशियां पैसों से खरीदी जा सकती हैं। लेकिन यहीं पर एक दिन अचानक से मॉल वाली ट्रिप की जगह उन्हें बगल वाले पार्क ले जाइए। उनके साथ खेलिए, मस्ती कीजिए। उन्हें पूरी ट्रिप में सिर्फ आइस्क्रीम खिला दीजिए। देखिएगा उन्हें मजा खूब आएगा वो बिना ज्यादा पैसे खर्च किए। उन्हें बातों-बातों में बता दीजिए कि देखो पिछली बार 1000 रुपए मॉल में खर्च हुए थे लेकिन इस बार पार्क में 100 रुपए में ही काम हो गया। वो फील कर पाएंगे कि खुश रहने के लिए अपनों का साथ चाहिए होता है ना कि ज्यादा पैसे।
हॉबी को समय दें:
बच्चे को जिस भी चीज का शौक हो उसे उस काम में समय लगाने का सुझाव देते रहिए। ये सुझाव तब और बढ़ा दीजिए जब-जब वो बाहर की चीजें कुछ ज्यादा ही खाने की बात कहे। जब वो बाहर चलने की जिद करे। उसे भले ही डांट कर कहना पड़े। उसे कह जरूर दीजिए कि अपनी हॉबी पर ध्यान दो। उसे उसमें इतना व्यस्त कर दीजिए कि वो पैसों से जुड़ी अपनी चाहतों को भूल ही जाए। एक समय आएगा जब वो अपने शौक को ही प्राथमिकता देगा, उसे पैसे खर्च करके मिलने वाली खुशी याद भी नहीं रहेगी। कह सकते हैं हॉबी भी उसे ये बता देगी कि पैसे ही सबकुछ नहीं हैं, हुनर भी बहुत संतुष्टि देता है।
जैसी आप, वैसा बच्चा:
बच्चे को पैसे के आगे जिंदगी का स्वाद चखाने से पहले खुद ये बात भी मान लीजिए। ये आपको करना ही होगा क्योंकि बच्चे कहीं न कहीं आपकी बॉडी लैंगवेज से सीखते हैं। इसलिए आप पहले खुद में सुधार कीजिए। जैसे खुद से सवाल पूछिए कि क्या आपको भी लगता है कि कार, घर बैंक बैलेंस आपके लिए बाकी सब चीजों से ज्यादा जरूरी है। अगर हां, तो आप जो बात बच्चों को समझाना चाहती हैं, वो पहले खुद समझ लीजिए। मान लीजिए कि पैसे आपको जिंदगी की हर खुशी नहीं दे पाएंगे। इसके लिए आपको बच्चे से पहले खुद पर काम करना होगा।
मिले सीख:
बच्चों को वो कहानियां पढ़ने को कहं, जिसमें मुख्य किरदार संघर्ष व मेहनत से सफल होता है। ऐसी फिल्में भी दिखा सकते हैं जहां हीरो गरीब होने के बाद भी खुश रहने की पूरी कोशिश करता है। वो दूसरों को भी खुश रखता है और खुद भी मुस्कुराता रहता है। बच्चे ऐसे हीरो को देखकर भी समझेंगे कि जिंदगी पैसे से नहीं चलती है। अच्छी जिंदगी के लिए इससे भी आगे की बात सोचनी, समझनी पड़ती है।