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चर्चा का विषय बना नीम

खेत, खलियान, सड़क किनारे व घरों के आसपास दिखाई देने वाला गुणकारी नीम का पेड़ इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहा है। पूरा बसंत बीत जाने के बावजूद भी नीम के पेड़ पर अभी तक नए पत्ते नहीं आए हैं, बल्कि नीम के पेड़ों पर मुर्झाये पत्ते अभी तक वैसे ही लटके हुए दिखाई दे रहे हैं। कृषि एवं बागवानी वैज्ञानिकों ने इसको लेकर चौंकाने वाला खुलाया किया है।

नीम का पेड़ बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम माना जाता है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इसी फंगस रोग के प्रकोप के कारण पिछले तीन वर्षों से नीम के पेड़ लगातार सूखते जा रहे हैं। तेलंगाना राज्य के कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जयशंकर ने फंगल प्रकोप का अध्ययन करने और उपाय सुधारने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना भी की है, जिसमें पौधे रोग विज्ञानी, कृषि विज्ञानी और एंटोंमोलॉजिस्ट को शामिल किया गया है, जो इस समस्या को सुलझाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं। वहीं सरसा के जिला वन अधिकारी हरिपाल सिंह का कहना है कि इस सीजन में सर्दी का प्रकोप अत्याधिक रहा है, जिसका असर नीम के पेड़ पर दिखाई दे रहा है।

हालांकि सर्दी के बाद नीम के पेड़-पौधों के पत्ते एकदम से इस कदर सूख गए हैं, जैसे आग की लपटों से झुलसे हों। खास बात यह भी कि लगभग अप्रैल महीना शुरू होने के बावजूद भी नीम के पेड़ों पर नई कोंपलें बहुत कम दिखाई दे रही हैं। बागबानी की देखभाल करने वाले पुष्पेंद्र कुमार ने बताया कि सर्दी के मौसम में हुई बरसात भी पेड़ों के सूखने का एक कारण है, क्योंकि वातावरण में कार्बन मोनो आॅक्साईड की अधिकता के कारण हुई अम्लीय बरसात भी नीम के पेड़ों पर विपरीत प्रभाव डालती है। दूसरी ओर ठंड का ज्यादा असर नीम पर इस कदर पड़ा है कि अभी तक उस प्रकोप से यह पौधे बाहर नहीं निकल पाए हैं। देखने में आया है कि पहले तो नीम की टहनियां काली पड़ती हैं और फिर धीरे-धीरे सूख जाती हैं। आस-पास व सड़कों के किनारे खड़े कीकर, शीशम, बबूल सहित अन्य पेड़ हरे भरे हैं, लेकिन नीम के पेड़ों के पत्ते सूखकर पेड़ों पर ही अटके हुए हैं।

बता दें कि नीम एक ऐसा पौधा या पेड़ है जो किसानों की आय का भी साधन माना जाता है। जिस खेत में कुछ भी पैदा नहीं होता है, वहां पर नीम के पौधे लगा देते हैं। क्योंकि नीम के पेड़ के पत्ते व इसकी निंबोली विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक व एलोपैथिक दवाइयां बनाने के काम आती है। ग्रामीण इलाकों में तकरीबन हर घर के आगे नीम का एक पेड़ मिलता है। टूथ ब्रश और टूथ पेस्ट के बढ़ते प्रभाव के बीच गांवों में आज भी ज्यादातर लोगों के सुबह की शुरूआत नीम के दातून से होती है। चिकित्सकों की मानें तो नीम का पेड़ बैक्टीरिया से लड़ने वाला होता है। इसके फंगस से लड़ने वाला होने के साथ ही यह एंटीआॅक्सीडेंट भी होता है। यही नहीं, आयुर्वेद में तो नीम के पत्ते सांप के जहर के असर को कम करने के लिए भी प्रयोग किए जाते हैं। चमड़ी संबंधित कोई भी रोग होने पर एलोपैथिक डॉक्टर भी मरीज को नीम के पत्तों को पानी में उबालकर नहाने की सलाह देते हैं।

दरअसल मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है, इस बार सर्दी दिसंबर महीने के आस-पास यानि लेट से शुरू हुई और मार्च के अंत तक जारी रही है। यही बड़ा कारण है कि पाले की मार से नीम के पेड़ ज्यादा प्रभावित हुए हैं। हालांकि 95 प्रतिशत नीम के पेड़ों में दोबारा फुटाव शुरू हो चुका है, लेकिन 5 प्रतिशत अभी भी सर्दी की मार से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
हरिपाल, वन विभाग के अधिकारी, सरसा

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