वो बिना तारों के टेलीफोन सुनता है -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत
बहन प्यारी इन्सां उर्फ राम प्यारी इन्सां पत्नी सचखंडवासी दिवान चंद जी इन्सां कीर्ति नगर सरसा से अपने पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने साथ बीती कुछ अलौकिक घटनाओं का जिक्र करती है:
करीब 1980 की बात है। उस समय कपास-नरमे की चुगाई की सेवा चल रही थी। सरसा शहर की हम पांच-छ: बहनें पूजनीय परमपिता जी के दर्शनों के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में आई हुई थी। हमने आपस में विचार-विमर्श किया कि हम भट्ठे वाले खेत में नरमा चुगने के लिए चलें। वह खेत शाह मस्ताना जी धाम से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है। हम पैदल चलकर खेत में पहुंच गर्इं और नरमा चुगने लगी।
फिर हमें ख्याल आया कि हमें दरबार के लंगर-घर में बताकर आना चाहिए था कि हम खेत में नरमा चुगने के लिए जा रही हैं और जब हमने बताया ही नहीं, तो हमारे लिए चाय, लंगर कहां से आएगा। हम पश्चाताप करने लगी कि हमें बताकर आना चाहिए था। फिर हमने आपस में विचार करके ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा लगाया और अपने सतगुरु पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को हाजिर-नाजिर मानते हुए अरदास कर दी कि पिता जी, हमें माफ करना, हम लंगर-घर में बताना भूल गई। पिता जी, आप जी ही तेरावास की खिड़की खोलकर लंगर-घर में कह दो कि भट्ठे वाले खेत में सेवादार लांगरी लंगर ले जाओ।
अरदास के कुछ समय बाद ही सेवादार लांगरी चाय, पानी, लस्सी और लंगर लेकर भट्ठे वाले खेत पहुंच गए। उन सेवादारों ने हमें बताया कि हमें पूजनीय परमपिता जी ने स्वयं लंगर-घर में संदेश भेजा है कि जल्दी से जल्दी चाय, पानी, लस्सी, लंगर लेकर भट्ठे वाले खेत जाओ, वहां पर माता-बहनें नरमा चुग रही हैं।
इतना सुनकर हमें बहुत खुशी हुई। फिर शाम को जब हम वापिस दरबार में आई, तो पूजनीय परमपिता जी ने मुझसे पूछा, ‘बेटा, तुम लंगर-घर में बताकर क्यों नहीं गई?’ हम सभी बहनों ने पूजनीय परमपिता जी से माफी मांगते हुए कहा कि पिता जी, हम सबने आप जी से फरियाद की थी कि आप जी तेरावास की खिड़की खोलकर लांगरियों को कह दो कि भट्ठे वाले खेत में लंगर पहुंचा दें। पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया, ‘हमने फिर खिड़की खोलकर लांगरियों को कह दिया ना! आइन्दा वास्ते ऐसी गलती नहीं करनी। लंगर-घर में कहकर, बताकर जाना है। वहां पर चाय-पानी, लंगर न पहुंचता तो तुम्हें कितनी परेशानी होती!’ इस प्रकार पूजनीय परमपिता जी के पास बिना तारों के टेलीफोन पहुंच गया।
फिल्में बनाएंगे:
बहन प्यारी इन्सां बताती हैं कि दोपहर का समय था। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तेरावास से बाहर आए हुए थे। पूजनीय परमपिता जी कुर्सी पर विराजमान हो गए। हम सेवादार बहनें जो शाह मस्ताना जी धाम में सेवा कर रही थी, भागकर पूजनीय परमपिता जी की पावन हजूरी में आ गई। पूजनीय परमपिता जी ने हम पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘बेटा, तुम सेवा छोड़कर आ गई!’ हमने कहा कि पिता जी, हम तो आप जी के दर्शन करने के लिए आई हैं जी।
हम सभी बहनों ने जो बात पहले सोच रखी थी वो ही बात पूजनीय परमपिता जी की हजूरी में अरदास कर दी कि पिता जी, अपने साथ हमारी फिल्म बना दो। तो पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया, ‘जब हम फिल्में बनाएंगे, तो तुम्हारी भी बना देंगे।’ हमने अर्ज की कि पिता जी, हमारी तो अभी बना दो, आप अपनी बाद में बना लेना। पूजनीय परमपिता जी ने उसी शाम को फिल्म बनाने के लिए कैमरे वाले भाई को बुला लिया और हम सभी सेवादार बहनों की अपने पवित्र कर-कमलों से एक-एक की फिल्म (वीडियो) बनाई, फोटो ली।
पूजनीय परमपिता जी ने वचन किए थे कि ‘हम फिल्में बनाएंगे’, तो अपने वो बेपरवाही वचन पूजनीय परमपिता जी ने पूज्य मौजूदा गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के स्वरूप में पूरे किए। पूज्य गुरु जी ने ‘एमएसजी’ के नाम से कई साफ-सुथरी व स्वस्थ फिल्में बनाई हैं, ये सभी साध-संगत जानती है। पूजनीय परमपिता जी, और मौजूदा स्वरूप सच्चे रूहानी रहबर पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से मेरी यही अरदास है कि मुझे सेवा-सुमिरन का बल बख्शना जी और मेरी ओड़ निभा देना जी।