Groom the kids properly

बच्चों को संवारिए सलीके से

बच्चे माँ-बाप की ‘आँख के तारे’ होते हैं। बच्चों से ही घर घर लगता है ! बच्चे माँ-बाप के कलेजे का टुकड़ा होते हैं। ये सब कहावतें बहुत सच्ची हैं। इनमें तनिक भर भी झूठ नहीं। फिर भी आधुनिक युग में बच्चे और माता-पिता में ठनी रहती है, क्योंकि बच्चे माता-पिता की बात का अनुसरण न कर जो अपने आस-पास देखते हैं, उसे जल्दी से सीख लेते हैं। इसलिए माँ-बाप को नाजुक समय देखते हुए बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए और कद्र भी करनी चाहिए।

बच्चों पर कभी भी अपने विचारों को नहीं थोपना चाहिए। तभी हम उनमें अपने प्रति कुछ इज्जत और सद्व्यवहार देख पाएंगे। वैसे तो आरंभ से यही माना जाता है कि बच्चे की प्रथम पाठशाला बच्चे का घर होता है। जो व्यवहार-कुशलता वह देखता है, वही ग्रहण करता है। यदि कभी कमी रह जाए तो माता पिता को चाहिए कि वे बच्चों की उन कमियों को सलीके से संवारें।

बच्चे की जिज्ञासा शांत करना माता-पिता का काम है। उनके प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा शान्त करें। ऐसे में अपना आपा न खोकर धैर्य रखें पर कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आती हैं जब संतुष्टिपूर्वक उत्तर नहीं दे पाते तो प्यार से उसे समझाएं कि आपको उतना ही ज्ञात है। बचपन से ही बच्चों को शिष्टाचार सिखाएं जो ताउम्र उनका साथ देगा जैसे बड़ों की इज्जÞत करना, झूठ न बोलना, प्यार से बात करना, बड़ों को सामने से जवाब न देना आदि आदतों को आरंभ से ही डलवाएं।

बच्चों के साथ उन शब्दों का प्रयोग करें जिन्हें यदि वे हमारे या किसी के साथ दोहराएं तो आपको शर्मिन्दगी न उठानी पड़े। बच्चों में अच्छी आदतों को डलवाने में लापरवाही नहीं बर्तनी चाहिए। बच्चे की गलती पर उसे मारें और डांटें नहीं, पहले प्यार से उसे समझाएं। न मानने पर थोड़ी सख्ती दिखाएं ताकि बच्चे के जÞहन में यह बात बैठ जाए कि जो मैंने किया, वो गलत है। इसीलिए मेरे माता-पिता उसे स्वीकृत नहीं करेंगे।

बच्चों को ऐसे उपनाम न दें जिनसे बच्चे चिढ़ कर जिद्दी बन जाएं और उन पर डांट, प्यार का असर ही न हो। बच्चों को बार-बार बेवकूफ, नालायक, तुम तो कुछ कर ही नहीं सकते आदि ऐसे नकारात्मक शब्दों से संबोधित न करें। यदि बच्चा धीरे-धीरे काम करता है या सीखने में स्लो है तो उसे बार-बार कोशिश करके आगे बढ़ने में उत्साहित करें।

बच्चों के लिए जो भी नियम बनाएं, उन पर सख्ती से पेश न आएं। संतुलित रहें ताकि बच्चे उन नियमों पर चलने में झिझकें नहीं। बच्चों की जिद्द करने की और बात बात पर चिढ़ने की आदत को बदलने का प्रयास करें ताकि बच्चा बड़ा होकर जिÞद्दी प्रवृत्ति का न बन सके। उसका ध्यान दूसरे कामों में समय देखकर परिवर्तित करने का प्रयास करें।

बच्चे के साथ दिन भर में कुछ समय अवश्य बिताएं और उनसे उनकी दिनचर्या पर बात करें कि आज स्कूल में क्या हुआ और सप्ताहंत में उन्हें घुमाने ले जाएं ताकि घर से बाहर के वातावरण का मज़ा ले सकें। कभी-कभी बच्चों को शॉपिंग पर ले जाएं ताकि प्यार का नाजुक रिश्ता डोर से बंधा रहे। बच्चे की गलत हरकतों को कभी नज़र अंदाज़ न करें। बल्कि उन्हें प्यार पूर्वक समझाएं। बच्चों को हर हालात में प्यार दें पर उनकी गलतियों, उनकी गलत हरकतों के लिए उन्हें कभी भी उत्साहित न करें। उन्हें बताएं कि हम आपसे बहुत प्यार करते हैं पर आपकी इन हरकतों को पसंद नहीं करते।

बच्चों के सामने माता-पिता भी संयमित रहें। न तो बुरे लफ्जों का प्रयोग करें और न फालतू की बहस करें, न ही बच्चों के सामने झूठ का सहारा लें। ये सब बातें बच्चे जल्दी ग्रहण करते हैं और उन्हें समझाने पर वे हम पर ही वार करते हैं कि फलां समय आपने ऐसा किया था।

बच्चों को प्यार से छोटे-छोटे काम में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करें। अच्छे काम के लिए प्रशंसा भरे शब्दों में कंजूसी न बरतें। हर काम को करवाने के लिए बच्चों को लालच न दें। कभी कभी खेल तमाशे के रूप में तो ठीक है पर उनकी आदत न बिगाड़ें। अच्छे कामों के लिए उन्हें कुछ अंक दें और गलत काम के लिए अंक काट लें। महीने के अंत में उन्हें बताएं कि वे कहां ‘स्टैंड‘ करते हैं। अगली बार और अच्छा करने को उत्साहित करें।

कभी कभार माता पिता से कुछ गलती हो जाए तो बच्चों को ‘सॉरी‘ कहने से न कतराएं। अपने प्रति माता-पिता के इस व्यवहार को देखकर बच्चे भी अपनी गलतियों को दुबारा नहीं दोहराएंगे। उनकी कमियों को बार-बार उजागर न करें। माता पिता और अपने लाडले-लाडलियों के रिश्ते की गरिमा को बना कर रखें। उन पर हुक्म न चला कर उनके संरक्षक और निर्देशक बन उनका मार्गदर्शन करें। -नीतू गुप्ता