फिर देखते हैं, कैंसर क्या कहता है! -सत्संगियों के अनुभव -पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
सचखंडवासी अमर सिंह गांव मूम जिला बरनाला (पंजाब) अपनी पत्नी नसीब कौर पर हुई पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की रहमत का वर्णन करते हुए बताते हैं:- करीब बीस साल पहले की बात है, मेरी पत्नी नसीब कौर घोड़ी को दाना डालकर जब मुड़ने लगी तो घोड़ी ने उसकी छाती में टांग दे मारी। कुछ महीनों के बाद उस जगह पर एक बड़ी गांठ बन गई और उसमें दर्द होने लगा। परिवार को चिंता हो गई कि यह क्या बन गया। हमने बरनाला शहर में डॉक्टर से चैकअप करवाया तो वे कहने लगे कि तुम लेट हो गए हो।
काम खराब है, तुम किसी बड़े अस्पताल में किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ। फिर हमने जगराओ के मशहूर डॉ. गुप्ता से चैकअप करवाया। उन्होंने छाती से पीस लेकर लैबोरेट्री में भेज दिया कि रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा कि क्या बीमारी है। जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टर ने देखकर कहा कि यह तो कैंसर है। अब भाई, तुम देखो कि कैसे करना है। मैं घबरा गया, परंतु मैंने अपनी पत्नी को नहीं बताया। मुझे चिंता हो गई, परंतु मालिक-सतगुरु ने मुझे अंदर से ख्याल दिया कि इसका इलाज तो सरसा में है। पूज्य हजूर पिता जी के पास जाएंगे, जैसा हुक्म होगा, वैसा ही करेंगे। इस बात की सारे परिवार में चिंता हो गई। फिर मैंने परिवार को हौंसला दिया कि घबराओ ना, नाम का सुमिरन करो।
अपने सुबह सरसा दरबार चलेंगे। मालिक सतगुरु कोई हल निकालेंगे और जैसा हुक्म हुआ, वैसा करेंगे। अगले दिन मैं अपनी पत्नी तथा बड़ी लड़की को साथ लेकर गाड़ी से सरसा की तरफ चल पड़ा। रास्ते में दो-तीन बार पत्नी को गाड़ी से नीचे उतारा। वह कभी बैठती, कभी लेटती, क्योंकि तकलीफ बहुत ज्यादा थी। वह खाती कुछ नहीं थी। हम शाह सतनाम जी धाम में आ पहुंचे। मैं जीएसएम भाई मोहन लाल जी से मिला। वे मुझे कहने लगे कि तू घबराया हुआ क्यों है? मैंने जब पूरी बात बताई तो वे कहने लगे कि फिक्र न कर, पिता जी कैंसर उड़ा देंगे। सेवादार भाई ने मुझे बताया कि जब पूज्य पिता जी मजलिस के बाद तेरावास जाते हैं तो मरीजों को प्रशाद देते हैं। तू अपनी पत्नी को उन मरीजों में बिठा देना और तुझे तेरावास में पूज्य पिता जी से भी मिला देंगे।
जब पूज्य हजूर पिता जी ने मरीजों को प्रशाद दिया तो वचन किए कि भाई कोई भी दवाई लो, दवाई लेने से पहले आधा-पौना घंटा सुमिरन करना है, फिर दवाई लेनी है। जब मेरी पत्नी ने वह प्रशाद खाया तो उसी समय उसे फर्क पड़ने लग गया। उसने आधा लंगर खा लिया जबकि वह कई दिनों से कुछ भी नहीं खा रही थी। फिर शाम को मैं तेरावास में पूज्य गुरु जी से मिला। जीएसएम भाई ने पहले ही बीमारी वाली पर्चियां ले ली थी। जब मेरी पत्नी वाली पर्ची पढ़ी तो पूज्य हजूर पिता जी ने मुझसे पूछा, बेटा! कहाँ-कहाँ से चैकअप करवाया है? मैंने बताया कि पिता जी, बरनाला और जगराओं से। पूज्य पिता जी दो कदम पीछे हट गए, कुछ देर चुप रहने के बाद फरमाया, ‘अपने डॉक्टरों को दिखाओ बेटा, फिर देखते हैं, कैंसर क्या कहता है।’ फिर हम डॉक्टरों से मिले तो उन्होंने चैकअप करके जांच के लिए नमूना लेकर लैबोरेट्री में भेज दिया। कहने लगे कि रिपोर्ट आने पर पता चलेगा कि क्या बीमारी है।
जब रिपोर्ट आई तो उसमें कुछ नहीं आया। डॉक्टर को भ्रम पड़ गया कि पहली रिपोर्ट कैंसर बताती है, जबकि इसमें कुछ भी नहीं आया। फिर उसने एक और नमूना लेकर जांच के लिए भेज दिया। जब रिपोर्ट आई तो उसमें भी कुछ नहीं आया। वह डॉक्टर कहने लगा कि मेरी समझ से बाहर है। पहली रिपोर्टें कैंसर बताती हैं, परंतु मेरी रिपोर्ट में कुछ नहीं आया। डॉक्टर कहने लगे कि माता जी, तेरा इलाज तो पिता जी ने कर दिया है। यह तो मामूली गांठ है, जो दवाई खाने से ठीक हो जाएगी, अगर जरूरत पड़ी तो निकाल देंगे।
हम दवाई लेकर घर आ गए। अगले दिन शाम को ही मैं फिर से पूज्य पिता जी को मिलने पहुंच गया। पूज्य पिता जी से अर्ज़ की कि पिता जी, आपजी ने तो सारा कुछ ही खत्म कर दिया। कैंसर तो उड़ा दिया। इस पर सर्वसामर्थ दातार जी ने फरमाया, ‘भई, सुमिरन किया करो।’ हमने सुमिरन किया, कुछ दिन दवाइयाँ ली और वह गांठ भी खत्म हो गई। मेरी पत्नी बिल्कुल ठीक हो गई। इस महान परोपकार के लिए हमारे सारे परिवार ने पूज्य पिता जी का कोटि-कोटि धन्यवाद किया। पूज्य पिता जी के चरणों में यही अरदास है कि सेवा-सुमिरन का बल बख्शना जी और इसी तरह रहमत बनाए रखना जी।