Experiences of Satsangis

जैसा सोचा, जैसा मांगा, वैसा ही मिला :सत्संगियों के अनुभव -पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

प्रेमी शमशेर सिंह इन्सां पुत्र सचखंडवासी श्री तेलू सिंह जी निवासी 6पी तहसील अनूपगढ़, जिला श्री गंगानगर (राज.) प्रेमी जी पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:
प्रेमी बताता है कि हमारे घर तब बहुत गरीबी थी। मैं भेड़-बकरियाँ चराया करता था और हर तरह के नशे भी किया करता था। प्रेमियों की प्रेरणा से फिर मैंने अपनी सभी बुराइयां तथा नशे आदि छोड़कर पूज्य गुरु जी से नाम-शब्द ले लिया। पूज्य सतगुरु जी की रहमत से मैं रोजाना रूटीन में प्रात: दो-तीन बजे उठकर मालिक के नाम का सुमिरन करने लगा और अपने माता-पिता जी को भी सुमिरन करने के लिए जगा देता।

करीब 1998 की बात है कि मैंने रूई धुनने वाला पेंजा खरीदने की योजना बनाई। पेंजा लेने के लिए तो घर में पैसे थे। मैंने योजना बनाई कि हवा भरने वाली टंकी भी घर में लगा ली जाए। परंतु टंकी खरीदने के लिए पैसा मेरे पास नहीं था। ऐसा सोचकर मैं श्री गंगानगर पहुंच गया। मैं वहां पर एक दुकान में बैठा हुआ था। तो वहां पर बैठे-बैठे मैंने अपने सतगुरु-दाता पूज्य हजूर पिता जी के पवित्र चरणों में अर्ज़ कर दी कि पिता जी, पेंजा तो मैं ले लूंगा और हवा भरने वाली टंकी आप जी ही लेकर दे दो। उस समय टंकी का मूल्य चौबीस सौ रुपए था, जबकि पेंजे के पैसे देने के बाद मेरे पास केवल दो सौ रुपए बचने थे। यह अरदास करके मैं सुमिरन करने लगा। सुमिरन करते-करते मेरे अंदर से मुझे एक लाटरी पाने का विचार आया। इतने में एक लाटरी वाला भी मेरे पास आ गया।

तो मैंने बीस रुपए की लाटरी डाल दी, जोकि किस्मत-पुड़ी की तरह थी। मेरे नम्बर पर सात सौ रुपया निकल आया। मैं दुकान में बैठकर फिर से सुमिरन करने लग गया। सुमिरन करते हुए जैसे बेटा बाप से गुस्से होता है, वैसे ही गुस्से में मैंने पूज्य सतगुरु पिता जी से कहा कि मैंने सात सौ का क्या करना है, इसका तो कुछ भी नहीं आता। मैं सुमिरन करता रहा। तो इसी दौरान वह लाटरी वाला भाई फिर मेरे पास आ गया। तो बीस रुपए की एक लाटरी और खरीद ली। मेरे नम्बर पर सात सौ रूपया और आ गया। फिर लाटरी वाले ने मेरी बाजू पकड़ ली और कहने लगा कि तेरा भाग्य बहुत अच्छा है। तेरा नम्बर फुरता (बरकत करता) है, तू और लाटरी पा दे।

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उस समय मुझे पूज्य हजूर पिता जी की आवाज़ आई कि बेटा, बस। सतगुरु पिता जी ने मुझे अंदर से ख्याल दिया कि जो पैसा तूने अपनी बुआ से लेना है, वो लेकर अपना काम कर ले। मैंने एक हजार रुपया अपनी बुआ जी से लेना था। मैं वो हजार रुपया बुआ जी से ले आया। फिर मैंने पेंजा और हवा भरने वाली टंकी दोनों इकट्ठे खरीद लिए। उस समय मुझे समझ नहीं थी कि अपने स्वार्थ के लिए अपने गुरु पिता जी से ऐसे जिद्द करके नहीं मांगना चाहिए। इसलिए लिए मैं आज भी पूज्य सतगुरु पिता जी से माफी मांगता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि मेरे सतगुरु-दाता जी हर समय व हमेशा मेरे साथ होते हैं। मैं जैसा चाहता हूँ, सामने वाला वैसा ही बोल देता है। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण बताता हूं:

17 जनवरी 2019 को मेरी लड़की की शादी थी। उस दिन कोई चुनाव का दिन था। हमारे घर के सामने ही स्कूल है और उसी स्कूल में ही पोलिंग बूथ बनाया गया था, यानि उसी स्कूल में ही वो वोट पोल होने थे। इसलिए हम शादी का प्रोग्राम वहाँ स्कूल में नहीं कर सकते थे। हमारे पास ज्यादा खर्चा करने की हिम्मत नहीं थी। इसलिए मैंने और मेरी पत्नी ने अनूपगढ़ की वर्मा धर्मशाला में शादी का प्रोग्राम करने की सोची। वहां पर जब पता किया तो उन्होंने पच्चीस हजार रुपए मांगे। पूज्य सतगुरु जी ने मुझे अंदर से ख्याल दिया कि आजकल तो पैलेस-रिसोर्ट का रिवाज है, उसका पता करो। जब हम आनन्द पैलेस में गए तो वहाँ पर शादी का एक प्रोग्राम पहले से ही चल रहा था।

मैंने पैलेस के मालिक से मिलकर उन्हें बताया कि 17 जनवरी को मेरी बेटी की शादी है और यहाँ पैलेस में करनी है। तो उसने बताया कि अगर ऐसा ही प्रोग्राम है, जैसा अब चल रहा है, तो इसका खर्चा 75 हजार रुपए आएगा। तो मैंने कहा कि इतनी तो हमारी गुंजाइश नहीं है। मैं वापिस जाने के लिए कुर्सी से खड़ा हो गया कि इससे तो वर्मा धर्मशाला ठीक रहेगी, वहाँ पर पच्चीस हजार का खर्च आएगा। वह मेरे मुंह की तरफ देखने लगा और कुछ रुक कर बोला कि तेरे को इतने प्रोग्राम का पच्चीस हजार ही लगेगा। फिर हम हलवाई का पता करने के लिए एक टैंट की दुकान पर गए, जो हमारे रिश्तेदारों की ही थी। वहाँ पर जो हलवाई था, उसने बताया कि ऐसे प्रोग्राम के साठ हजार रुपए लगते हैं, लेकिन आपको पचास हजार ही लगेगा। उसके बाद हम दूसरे हलवाई सुरेश वर्मा के पास गए, तो उसने भी पचास-साठ हजार का खर्च बताया। मैंने उसे बताया कि 75 हजार वाला आनन्द पैलेस पच्चीस हजार में मिला है और आप इतना मांगते हो।

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मालिक की रहमत से वह बोला कि तुझे पच्चीस हजार ही लगेगा और साथ में सामान वगैरह लाने के लिए मैं अपनी गाड़ी भी दे दूंगा। हमने अंदर ही अंदर मालिक-सतगुरु जी का तहेदिल से शुक्राना किया। अगले दिन हम नजदीक के गांव पतरोड़ा में प्रेमी सदा लाल जी के लड़कों की दुकानों पर गए। उनके एक लड़के की कपड़े की तथा दूसरे की करियाणे की दुकान है। हमने उन्हें बताया कि सतगुरु जी की रहमत से 75 हजार वाला पैलेस पच्चीस हजार में हो गया और पचास हजार वाला हलवाई भी पच्चीस हजार में, भाव पौ बारह पच्ची हो गई है। वह दोनों भाई बोले कि प्रेमी जी, आप जितना मर्जी सामान ले जाओ, हम भी आप से पच्चीस-पच्चीस हजार ही लेंगे।

हमने उन दोनों दुकानों से एक लाख रुपए से भी ज्यादा का सामान लिया, परंतु उन्होंने हमें कहा कि हम भी पच्चीस-पच्चीस हजार से अधिक नहीं लेंगे। यह सब मालिक सतगुरु जी की ही रहमत थी, जो मूसलाधार बरस रही थी। मुझे ऐसा लगा कि बंदा तो इतना दयालु हो ही नहीं सकता, सतगुरु ही उनमें बसकर खुद बोला है। जैसा-जैसा भी मैंने चाहा, वैसा-वैसा ही सब हुआ।

मेरी अपने सतगुरु-दाता पूज्य हजूर पिता जी के पवित्र चरणों में यही अरदास है कि आप जी इसी तरह अपनी दया-मेहर, रहमत हमारे परिवार पर बनाए रखना जी और मानवता की बढ़-चढ़कर सेवा व सुमिरन करने का बल बख्शना जी।