करियर इन LAW Career in LAW
बारहवीं पास करने के बाद छात्रों के सामने लॉ में भी करियर बनाने का विकल्प होता है। कानूनी पेशा युवाओं के बीच बीते कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय हुआ है। चुनौतियों से भरा होने के बावजूद यह पेशा करियर की दृष्टि से एक आकर्षक विकल्प है। कानून से जुड़ी पेचिदगियों और विस्तृत होते समाज के बीच वकीलों की भूमिका बेहद अहम हो गई है।
उनका महत्व तब और भी बढ़ जाता है, जब समाज में तेजी से कानूनी प्रक्रियाओं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आ रही हो। लगभग हर दिन कोई न कोई नया अविष्कार या तकनीकी विकास होता है, इस कारण समय-समय पर सरकार को नए कानून बनाने या पूर्व प्रचलित कानूनों में संशोधन करने की जरूरत पड़ती है। परिणामस्वरूप नए कानूनों की जद में आने वालों के लिए पेशेवर कानूनी सलाह लेना जरूरी हो जाता है। इस वजह से भी वकीलों यानी लॉयर की मांग में कई गुना वृद्धि हुई है।
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कौन हैं लॉयर
प्रतिष्ठित शब्दकोशों के मुताबिक लॉयर वह व्यक्ति है, जो कानूनी दांवपेचों को जानने और समझने में कुशल हो। एक अन्य परिभाषा पर गौर करें, तो लॉयर किसी सरकार या उसकी एजेंसी द्वारा अधिकृत वह व्यक्ति होता है, जो लॉ की प्रैक्टिस करने के अलावा अपने क्लाइंटों को कानूनी मुद्दों पर सलाह देने का कार्य करता है। किसी आम व्यक्ति की दृष्टि से देखें, तो लॉयर वह व्यक्ति है, जो किसी व्यवस्था (खासकर वैधानिक) की खामियों को तलाशने में दक्ष होता है।
लॉयर का काम
कानून के ये पेशेवर अपने क्लाइंट के लिए वकील और सलाहकार (एडवाइजर) की भूमिका निभाते हैं। दीवानी (सिविल) या फौजदारी (क्रिमिनल) मामलों में ये वादी (कम्प्लेनेंट) या प्रतिवादी (डिफेंडेंट) का संबंधित अदालतों में पक्ष रखते हैं। वह अदालत में अपने क्लाइंट की ओर से मुकदमा दायर करते हैं और उसके पक्ष को लेकर बहस भी करते हैं। वह किसी मामले विशेष के लिए कानूनी स्थितियों को स्पष्ट भी करते हैं। एडवाइजर या सॉलिसिटर के रूप में वह अपने क्लाइंट को परामर्श देते हैं कि उनके (क्लाइंट के) मामले से संबंधित तथ्यों पर कौन-सा कानून किस तरह लागू होगा। अदालत में मामला पहुंचने पर सॉलिसिटर संबंधित मामले की पैरवी करने वाले वकील को जरूरी सलाह भी देते हैं।
कैसे बनें वकील
लॉ की पढ़ाई के बाद शुरूआती दौर में किसी वकील के साथ जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम करना होता है। इस दौरान फाइलिंग, रिसर्च, अदालतों से तारीख लेना, नियोक्ता वकील के साथ अदालत की कार्यवाही में हिस्सा लेना और केस ड्राफ्ट करना (मुकदमे के कागजात तैयार करना) आदि काम करने पड़ते हैं। वकालत से जुड़ी इन बुनियादी चीजों को समझने के बाद स्वतंत्र रूप से वकील के रूप में काम शुरू किया जा सकता है।
कैसे बनें सॉलिसिटर
इसके लिए आर्टिकलशिप या पढ़ाई के दौरान किसी सॉलिसिटर फर्म में जूनियर के रूप में काम किया जा सकता है। यहां भी जूनियर को वकालती पेशे से जुड़े रोजमर्रा के काम (मसलन केस को पढ़ना, सूट फाइल करना और नोटिस तैयार करना आदि) करने होते हैं। इस दौरान जूनियर को अपने वरिष्ठों के मार्गदर्शन में तरह-तरह के कानूनों (लेबर, टैक्सेशन और इंडस्ट्रियल लॉ आदि) से संबंधित मामलों को समझने का मौका मिलता है। कुछ वर्षो के अनुभव के बाद जूनियर अपने वरिष्ठों के समान ही दक्ष हो जाते हैं।
इसके बाद वह किसी भी सॉलिसिटर फर्म में सॉलिसिटर बन सकते हैं।
मौजूदा वक्त में लॉ ग्रेजुएट के लिए भरपूर संभावनाएं हैं। वह एडवोकेट के रूप में किसी न्यायालय में प्रैक्टिस करने के अलावा किसी कॉपोर्रेट फर्म के लिए भी काम कर सकते हैं। इसी तरह राज्यों के लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली न्यायिक सेवा परीक्षा को पास करके जज भी बना सकता है। वकालत का लंबा अनुभव होने पर सॉलिसिटर जनरल या पब्लिक प्रोसिक्यूटर बनने का भी अवसर होता है।
इसी अनुभव की बदौलत सरकारी विभागों और मंत्रालयों में भी काम हासिल करना संभव होता है। इतना ही नहीं, लॉयर बनकर किसी फर्म या आॅर्गनाइजेशन में लीगल एडवाइजर या लीगल काउंसिल के रूप में भी काम किया जा सकता है। इसके अलावा उनके पास टैक्स, एक्साइज, पेटेंट, लेबर और इंवायरन्मेंटल लॉ आदि से संबंधित लीगल कंसल्टेंसी फर्मो में काम करने का भी विकल्प होता है। वह विभिन्न ट्रस्टों के लिए ट्रस्टी के रूप में और प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संगठनों में लीगल रिपोर्टर के रूप में भी काम कर सकते हैं। लॉ पेशेवरों के पास लॉयर बनने के इतर भी करियर के लिहाज से कई विकल्प होते हैं।
योग्यता
छात्र अपनी सुविधा के अनुसार लॉ के तीन वर्षीय या पांच वर्षीय बैचलर डिग्री पाठयक्रम में से किसी एक को अध्ययन के लिए चुन सकते हैं। तीन वर्षीय पाठयक्रम में प्रवेश ग्रेजुएशन के बाद मिलता है, जबकि पांच वर्षीय पाठयक्रम में दाखिला बारहवीं के बाद होता है। देश के जिन विश्वविद्यालयों में लॉ का तीन वर्षीय पाठयक्रम उपलब्ध है, वहां संबंधित संस्थान द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा के जरिए दाखिले होते हैं। पांच वर्षीय पाठयक्रम की दाखिला प्रक्रिया को देखें, तो देश की 14 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी इसके लिए क्लैट (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) नाम से प्रवेश परीक्षा का आयोजन करती हैं। इस परीक्षा में 50 फीसदी अंकों के साथ बारहवीं पास हुए छात्र आवेदन कर सकते हैं।
परीक्षा में इंग्लिश, जनरल नॉलेज, मैथमेटिकल एबिलिटी, लीगल एप्टिट्यूड और लॉजिकल रीजनिंग से प्रश्न पूछे जाते हैं। देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों में भी लॉ में पांच वर्षीय पाठयक्रम उपलब्ध हैं। दाखिले के लिए ये सभी संस्थान अपने स्तर पर प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करते हैं।
लॉ में बैचलर डिग्री पाने के बाद एलएलएम और पीएचडी भी किया जा सकता है। इससे शिक्षण के क्षेत्र में जाने में मदद मिलेगी। अगर आप कानून विशेष में स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं, तो पीजी डिग्री और पीजी डिप्लोमा स्तर पर स्पेशलाइजेशन के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं।
पाठयक्रमों का नियमन
देश में एलएलबी पाठयक्रमों का नियमन बार काउंसिल आॅफ इंडिया (बीसीआई) करता है। इसके अलावा देश में वकालत के लिए जरूरी दिशा-निदेर्शों और नियमों को तय करने का कार्य भी बीसीआई करता है।
वकील या लॉयर बनने के लिए जरूरी स्किल्स या कौशल
1. ओरल कम्युनिकेशन: यह बहुत जरूरी है कि आपको लोगों के सामने बोलना आना चाहिए और बोलने का मतलब यहाँ यह है कि आप अपना जो पॉइंट प्रूव करना चाहते हैं (चाहे लोगों के सामने हो या जज के सामने) आप अच्छे से बोल सकें।
2. लीगल रिसर्च : रिसर्च का मतलब यहाँ यह है कि आपके अंदर वह स्किल होनी चाहिए कि आप किसी भी टॉपिक के डिटेल में जा सकते हैं और अपने रिसर्च का पैटर्न ऐसा रखें कि वह आपके सारे जरूरी पॉइंट्स और इनफॉर्मेशन को कवर करें।
3. क्लाइंट सर्विस : यह जरूरी है कि आप अपने क्लाइंट को अच्छे से हैंडल कर सकें और यह आपकी जॉब का एक बहुत ही बड़ा और इम्पोर्टेन्ट पार्ट होगा।
4. टीमवर्क: जरूरी है कि आप एक टीम में आराम से काम कर सकें क्यूंकि यह बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप अपने टीम मेंबर्स को सुनें और अपनी बात को भी उनके सामने रख पाएं किसी हेजिटेशन के और बिना डोमिनेटिंग होते हुए।
5. टाइम मैनेजमेंट: सबसे महत्वपूर्ण स्किल यही है कि सिर्फ इसी प्रोफेशन के लिए नहीं बल्कि सारे जॉब्स के लिए जरूरी है कि आप अपने समय को अच्छे से मैनेज कर सकें और अपना सारा काम डेडलाइन से पहले ही खत्म कर लें कि आप कम से कम समय में अधिकतम परिणाम हासिल करें।
संबंधित संस्थान:
- नेशनल लॉ स्कूल आॅफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु
- गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी
- सिंबायोसिस सोसायटीज लॉ कॉलेज, पुणे
- नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर
- नल्सर यूनिवर्सिटी आॅफ लॉ, हैदराबाद
- नेशनल लॉ इंस्टीटूट यूनिवर्सिटी, भोपाल
- फैकल्टी आॅफ लॉ, यूनिवर्सिटी आॅफ दिल्ली
- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
- नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ ज्यूरिडिकल साइंसेज, कोलकाता
- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
- गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली
लॉ के प्रमुख कार्यक्षेत्र
1. सिविल लॉ: इस कानून के अंतर्गत रोजाना घटित होने वाले मामले व व्यावसायिक कानून आते हैं। इनका मुख्य काम पीड़ित पक्ष, संगठन अथवा परिवार अथवा व्यक्ति विशेष को न्याय दिलाना होता है।
2. क्रिमिनल लॉ: यह काफी महत्वपूर्ण शाखा है। प्रमुख आपराधिक घटनाएं और उसके प्रावधानों की जानकारी क्रिमिनल लॉ के अंतर्गत दी जाती है। इन सबका अध्ययन सबके लिए अनिवार्य होता है।
3. कॉरपोरेट लॉ: कॉरपोरेट कंपनियों को काम के दौरान कई कानूनी पचड़ों से निपटना पड़ता है। कॉरपोरेट लॉ के अंतर्गत कंपनियों के अधिकारों व उनके लिए बनाए गए कानूनों की जानकारी दी जाती है।
4. साइबर लॉ: बदलते समय के साथ घटनाओं की प्रवृत्ति भी बदल गई है। आॅनलाइन ठगी, साइबर क्राइम जैसे कई अपराध अब आम हो गए हैं। साइबर लॉ एक्सपर्ट की मदद से इन अपराधों के खिलाफ कार्रवाई में मदद ली जा सकती है।
6. टैक्स लॉ: इसके अंतर्गत इनकम टैक्स, जीएसटी आदि सभी प्रकार के टैक्स से जुड़े मामलों को शामिल किया जाता है। इन मामलों के निपटारे के लिए वकीलों की शरण में जाना पड़ता है।
7. फैमिली लॉ: इस शाखा के अंतर्गत पर्सनल लॉ, शादी, तलाक, गार्जियनशिप, दहेज प्रकरण आदि कई मामलों को गहराई से समझा-परखा जाता है। हर जिले में फैमिली कोर्ट की स्थापना की गई है।
8. बैंकिंग लॉ: बैंकों से जुड़े कई ऐसे कार्य होते हैं, जो कानून के दायरे में आते हैं। लोन, लोन रिकवरी, बैंकिंग फ्रॉड, उपभोक्ताओं से जुड़े विवाद को समझने और उससे निपटारे के लिए इसे समझना आवश्यक है।
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