धुरधाम से जुड़े होते हैं संत 23 सितम्बर महापरोपकार दिवस पर विशेष Guru Gaddi 23rd-september-maha-paropkar-diwas
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डेरा सच्चा सौदा के वारिस
पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत में सरेआम फरमाया, ‘ये (पूजनीय हजूर पिता जी) डेरा सच्चा सौदा के वारिस, रूहानी खजानों के अपार भण्डार हैं, जिसने जो लेना है, अब इनसे ही लेना है।’ गुरुगद्दी बख्शिश करते हुए पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत में फरमाया कि ‘हम तो अब मस्त फकीर हो गए हैं। अब ये (पूजनीय गुरु जी) जानें और इनका काम।’ ‘रूहानी दौलत किसी बाहरी दिखावे पर बख्शिश नहीं की जाती। इस रूहानी दौलत के लिए वह बर्तन पहले से तैयार होता है जिसको सतगुरु अपनी नजरे-मेहर से पूरा करता है और अपनी ही नजरे-मेहर से वह काम लेता है
जिसके बारे दुनिया वाले सोच भी नहीं सकते।’ सतगुरु अंतर्यामी होते हैं, वो कुछ भी कर सकते हैं, दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं कर सकती। वो दो जहान की दौलत के स्वामी होते हैं। वो रूहानी दौलत उसी पात्र को सौंपते हैं जो इसका अधिकारी होता है। दूसरे शब्दों में, सतगुरु पूरे जानकार होते हैं। इस रूहानी दौलत के लिए सतगुरु ने जिसको चुनना होता है, वह अधिकारी हस्ती पहले से ही धुरधाम से जुड़ी होती है। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपने उपरोक्त वचनों को साकार किया।
23 सितम्बर 1990 का वह महा पवित्र दिवस जिस दिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूजनीय हजूर पिता जी को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह विराजमान करके रूहानी इतिहास में एक अनुपम मिसाल पेश की। 23 सितम्बर की महानता को डेरा सच्चा सौदा का हर खुश-किस्मत प्राणी भली-भांति जानता है। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 30 साल पहले आज के दिन यानि 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना उत्तराधिकारी बना कर समस्त साध-संगत को बता दिया
कि हम जवान होकर आ गए हैं और यह भी स्पष्ट कर दिया कि मौज अब पूरी तूफान मेल काम करेगी। पूजनीय परम पिता जी ने अपने इस परोपकारी करम के द्वारा एक नए इतिाहस की सृजना करके सभी भ्रम-भुलेखों और शंकाओं को दूर कर दिया, सभी भ्रमों को तोड़ दिया, क्योंकि सतगुरु खुद ही सब कुछ करन-करावनहार, सर्व सामर्थ है। सतगुरु के हुक्म में रह कर ही हर खुशी को हासिल किया जा सकता है, यह सतगुरु ने सरेआम संगत में बताया।
डेरा सच्चा सौदा की गुरु गद्दी सौंपने की अपनी मंशा बाबत पूजनीय परम पिता जी ने डेढ़-दो साल पहले ही साध-संगत, जिम्मेवारों के साथ मीटिंगें की। उनके साथ राय-मश्वरा किया। इन्सान तो इन्सान है। आम इन्सान सतगुरु की रमजों को समझ नहीं सकता। संत-सतगुरु सर्व सामर्थ व हर चीज से पूरे जानकार होते हैं। इस रूहानी दौलत के लिए सतगुरु ने जिसको चुनना होता है वह हस्ती पहले से ही धुर-धाम से जुड़ी होती है। बेशक वह महान हस्ती आम इन्सानों की तरह संसार-समाज में बिचरती है, परन्तु जब उचित समय आता है तो वह दुनिया पर प्रकट हो जाती है। इसी तरह पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां एक महान रूहानी हस्ती होते हुए भी 23 साल तक आम लोगों की तरह उनमें बिचरते रहे परन्तु अपनी उस उच्च रूहानी हस्ती के बारे किसी को भी भेद नहीं लगने दिया।
‘नंबरदारां दा काका’ ही लोग पूजनीय गुरु जी को समझते रहे और जब 23 सितम्बर (23 september ) 1990 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने इस महान हस्ती पूजनीय हजूर पिता जी को डेरा सच्चा सौदा में अपना उत्तराधिकारी ऐलान कर दुनिया को बता दिया कि यह उच्च हस्ती धुरधाम से ही आई है। पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत में सरेआम फरमाया, ‘ये (पूजनीय हजूर पिता जी) डेरा सच्चा सौदा के वारिस, रूहानी खजानों के अपार भण्डार हैं, जिसने जो लेना है, अब इनसे ही लेना है।’ गुरुगद्दी Guru gaddi बख्शिश करते हुए पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत में फरमाया कि ‘हम तो अब मस्त फकीर हो गए हैं। अब ये (पूजनीय गुरु जी) जानें और इनका काम।’
पूजनीय परम पिता जी ने उसी दिन डेरा सच्चा सौदा दरबार के सभी सेवा-कार्य व साध-संगत से जुड़ी हर जिम्मेवारी अपने जानाशीन पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के सुपुर्द कर दी। वाकई ही रूहानियत में यह अपने आप में एक बेमिसाल मिसाल है। इसके साथ ही पूजनीय परम पिता जी ने दुनिया को बता दिया कि सतगुरु की महिमा अपार है। सतगुरु परम पिता जी ने अपने इस अनुपम कार्य द्वारा दुनिया के सभी भ्रम-भुलेखे मिटा दिए। केवल यह ही नहीं, पूजनीय परम पिता जी गुरुगद्दी बख्शिश करने से करीब 15 महीने बाद भी पूजनीय हजूर पिता जी के साथ संगत में रहे। आप जी ने 13 दिसम्बर 1991 को अपना प्रकट स्वरूप भी पूजनीय गुरु जी के प्रकट स्वरूप में प्रवर्तित करके यह भी सिद्ध कर दिया कि सच्चे सतगुरु अपनी मौज के खुद मालिक होते हैं।
गुरगद्दी का सारा कार्य पूजनीय परम पिता जी ने खुद अपनी रजा में अपने पवित्र कर-कमलों से सम्पन्न करवाया। किसी को कोई किन्तु-परन्तु का मौका ही नहीं दिया। क्योंकि पूजनीय परम पिता जी ने पहले दिन ही साध-संगत में कह दिया था कि गुरुगद्दी का सारा कार्य हम खुद अपने हाथों से करेंगे और ऐसा करेंगे जो किसी ने भी आज तक नहीं किया होगा और शायद ही कोई कर सके। सारा काम कानून अनुसार, पक्की लिखित द्वारा करेंगे और वास्तव में ही परम पिता जी ने सब कुछ अपनी रजा अनुसार दुनिया के सामने करके दिखाया, बल्कि उससे भी बढ़कर। गुरगद्दी रस्म के बारे अपना हल्फिया ब्यान यानि वसीयत पूजनीय परम पिता जी ने कई दिन पहले ही तैयार करवा ली थी।
वसीयत में विशेष तौर पर यह लिखवाया गया था कि ‘आज से ही’ यानी जिस दिन वसीयत लिखी गई थी, डेरा और डेरे की जमीन, जायदाद और सब कुछ इन्ही का (पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का) है। ऐसी अनुपम वसीयत आज तक शायद ही किसी ने लिखवाई हो। क्योंकि सतगुरु तो सतगुरु, खुद कुल मालिक है। पूजनीय परम पिता जी ने सारा काम अपनी रजा अनुसार सम्पन्न करवाया।
जीवन परिचय
पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां राजस्थान राज्य के एक छोटे से गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ जिला श्री गंगानगर के रहने वाले हैं। आप जी ने पूजनीय पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी के घर पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से 15 अगस्त 1967 को जगत उद्धार के लिए अवतार धारण किया। गांव के अति पूजनीय संत बाबा त्रिवेणी दास जी ने आप जी द्वारा अवतार धारण करने से पहले और अवतार धार लेने के बाद भी पूजनीय बापू जी को स्पष्ट कर दिया था, कि यह कोई आम बच्चा नहीं है। खुद मालिक परम पिता परमेश्वर ने अपना अवतार तुम्हारे घर तुम्हारे बेटे के रूप में भेजा है।
और साथ में यह भी बता दिया कि ये तुम्हारे पास 23 वर्ष की आयु तक रहेंगे, उसके उपरान्त अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए, मानवता व सृष्टि के भले के लिए उनके पास चले जाएंगे जिन्होंने इतने सालों(18 साल) बाद तुम्हारे घर तुम्हारी इक्लौती संतान के रूप में इन्हें भेजा है। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते हैं और बहुत बड़ी जमीन-जायदाद के मालिक हैं।
धुरधाम से आती है रब्बी जोत
बाबा त्रिवेणी दास जी के कथन, उनकी भविष्यवाणी अनुसार पूजनीय गुरु जी के बचपन के अद्भुत खेल, बचपन के साथियों के साथ सहचार, उठना-बैठना, बोल-चाल आदि सारे व्यवहार ही अचम्भा पैदा करते थे। आप जी के साफ-स्वच्छ जीवन, आकर्षक शख्सियत, बेमिसाल रहन-सहन को देखकर हर कोई यह कहता सुना जाता था कि नम्बरदारों का काका जरूर कोई उच्च हस्ती है।
गुरुमंत्र नामशब्द
आप जी ने बचपन (4-5 वर्ष की आयु) में अपने पूजनीय बापू जी के साथ डेरा सच्चा सौदा दरबार में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम की अनमोल दात प्राप्त की। पूजनीय परम पिता जी ने आप जी को विशेष तौर पर अपने पास बिठा कर नाम शब्द द्वारा अपने वचनों व पावन दृष्टि से उसी दिन ही मालामाल कर दिया। अर्थात् पूजनीय परम पिता जी ने आप जी को अपने भावी उत्तराधिकारी के रूप में पा लिया। इस तरह परम पिता परमेश्वर की पवित्र मर्यादा अनुसार ज्यों ही रूहानी कली को नाम-गुरुमंत्र की जाग लगी, बहुत जल्दी एक महकते फूल का आकार, विस्तार धारण करके उसकी खुशबू हर जर्रे-जर्रे में महकने लगी।
गुरुगद्दी बख्शिश
ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया। पूजनीय बेपरवाह परम पिता जी ने अपनी अनोखी व राज्Þाभरी अनेक परीक्षाओं में से गुजार कर आप जी को हर तरह से सम्पन्न पाया। अब अपने उद्देश्य पूर्ति का समय आ गया था। ज्यों ही आप जी को अपने प्यारे मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के निमंत्रण का पवित्र संदेश मिला, आप जी उसी समय अपने पूजनीय माता-पिता से अपनी विदाइगी के लिए उनसे मिले।
यह बात 22 सितम्बर 1990 की है। पूजनीय गुरु जी अपने पूजनीय माता-पिता जी के साथ अपने पूजनीय मुर्शिद-प्यारे की हजूरी में डेरा सच्चा सौदा सरसा पहँुचे। 23 वर्ष की युवावस्था, इतने बड़े खानदान के अकेले वारिस और पूजनीय बापू जी के अति लाडले, छोटे-छोटे साहिबजादे व साहिबजादियाँ, भरा पूरा परिवार और 18 वर्ष के इन्तजार के बाद जिसे संतान सुख मिला हो, वह भी इकलौता, कहना ही आसान है। पता नहीं कैसे पत्थर रखा होगा पूजनीय बापू जी ने अपने हृदय पर, जो हर समय अपने लाडले को अपनी जान से लगा कर रखते थे। परन्तु पूजनीय परम पिता जी ने खुद ही इस सारे शाही परिवार को अपना सहारा, प्यार व हौंसला दिया। पूजनीय माता जी ने प्यारे मुर्शिद के पूछने पर विनती की कि ‘सच्चे पातशाह जी, आप जी जो भी कहोगे, जो भी करोगे, हमें वैसा ही मन्जूर है।’
पूजनीय माता जी ने दूसरी विनती यह की कि ‘हमें बस इनके (अपने लाडले पूजनीय गुरु जी के) दर्शन हो जाया करें।’ यह सारा भावुकतापूर्ण दृष्टान्त 22 सितम्बर शाम का है। वाली दो जहान परम पिता जी ने उसी दिन अपने प्यार भरे वचनों में फरमाया, ‘बेटा! फिक्र ना करो। असीं अज्ज तों ही दो जहानां दी दौलत इहनां (पूजनीय गुरु जी) दी झोली विच पा दित्ती है।’ अगले दिन, 23 सितम्बर को गुरुगद्दी बख्शिश का दिन निश्चित था। वर्णनीय है कि गुरुगद्दी बख्शिश की कार्यवाही कोई एक-दो दिन में ही पूरी नहीं हुई थी, बल्कि पिछले करीब डेढ़-दो साल से साध-संगत, जिम्मेवारों के साथ मीटिंगें करने के बाद निर्णय लिया गया था। जैसा कि पहले बता आए हैं, गुरुगद्दी सम्बंधी सारी कार्यवाही कानून व सरकारी नियमों के अनुसार, लिखती रूप में पूजनीय परम पिता जी ने कई दिन पहले ही पूरी करवा ली थी।
महापरोपकारी का परोपकार, अपना वारिस बनाया
दिनांक 23 सितम्बर 1990 को सुबह करीब नौ बजे पूजनीय परम पिता जी शाही स्टेज पर विराजमान हुए। आप जी ने अपने सेवादारों को पूजनीय गुरु जी को तेरावास में से पूरे आदर सम्मान पूर्वक लेकर आने के लिए आदेश दिया। पूजनीय परम पिता जी ने पूजनीय गुरु जी को अपने साथ स्टेज पर विराजमान किया और इसके साथ ही गद्दी रस्म की पूरी कार्यवाही अपनी नजरे-मेहर में अपने हुक्म द्वारा शुरू करवाई। गुरगद्दी बख्शिश का अपना एक हुक्मनामा पूजनीय परम पिता जी ने पहले ही तैयार किया हुआ था जो कि उस अवसर पर सारी साध-संगत में बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी के समय के एक बहुत ही सिदकी सेवादार भाई द्वारा माईक से पढ़कर सुनाया गया।
यह है वह पवित्र हुक्मनामा
‘संत श्री गुरमीत सिंह जी(पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को शहनशाह मस्ताना जी महाराज के हुक्म द्वारा जो यह बख्शिश की गई है, सतपुरुष को मंजूर थी।’
- जो जीव इनसे (पूजनीय गुरु जी से) प्रेम करेगा वह मानो हमसे (पूजनीय परम पिता जी से) प्रेम करता है।
- जो भी जीव इनका हुक्म मानेगा, मानो हमारा हुक्म मानाता है।
- जो जीव इन पर विश्वास करेगा, मानो हम पर विश्वास करता है।
- जो इनसे भेदभाव करेगा, मानो वह हमसे भेदभाव करता है।
यह रूहानी दौलत किसी बाहरी दिखावे पर बख्शिश नहीं की जाती। इस रूहानी दौलत के लिए वह बर्तन पहले से ही तैयार होता है जिसको सतगुरु अपनी नजर-मेहर से पूरा करता है और अपनी ही नजर-मेहर से उनसे वो काम लेता है जिसके बारे दुनिया वाले सोच भी नहीं सकते।
एक मुसलमान फकीर के वचन हैं:-
विच शराबे रंग मुसल्ला, जे मुर्शिद फरमावे।
वाकिफकार कदीमी हुन्दा, गलती कदी ना खावे।
यह पहले भी तुम्हारे सब के सामने हुआ। शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने जो खेल खेला, उस वक्त किसी के भी समझ में नहीं आया। जो बख्शिश शहनशाह मस्ताना जी ने अपनी दया-मेहर से की, उसको कोई भी ताकत हिला-डुला ना सकी। जो जीव सतगुरु के वचनों पर भरोसा करेगा, वह सुख पाएगा। मन तुम्हें मित्र बनकर धोखा देगा। इसलिए जो प्रेमी सतगुरु का वचन सामने रखेगा, मन से वही बच सकेगा और सतगुरु सदा उसके अंग-संग रहेगा।’
यहां पर यह भी उल्लेखनीय है, जैसा कि बताया गया है कि पूजनीय परम पिता जी ने सेवादारों के साथ अपनी पहली मीटिंग (गुरुगद्दी सम्बंधी) में स्पष्ट तौर पर यह भी फरमाया था कि हम नहीं चाहते कि गुरुगद्दी को लेकर हमारे बाद किसी तरह का झगड़ा या कोई कलेश हो जो कि दुनिया में अक्सर होता आया है। शहनशाह जी ने जोर देकर यह भी फरमाया, ‘जब हम सारा कुछ खुद अपने हाथों से, पक्की लिखित द्वारा करेंगे तो किसी को क्या इतराज हो सकता है।’ और जब उचित समय आया यानि 23 सितम्बर 1990 को, पूजनीय परम पिता जी ने अपने वचनानुसार हू-ब-हू (साध-संगत की हाजरी में) करके दिखा दिया कि संत-सतगुरु की करनी व कथनी में किंचित मात्र भी फर्क नहीं होता। पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा की पवित्र मर्यादा अनुसार चमकीले फूलों का एक सुन्दर हार अपने पवित्र कर-कमलों से पूजनीय गुरु जी के गले में डाला और अपनी पाक-पवित्र दृष्टि का प्रशाद(हलवे का प्रशाद) भेंट किया जो पावन हुक्म द्वारा उस पवित्र अवसर पर विशेष तौर पर तैयार किया गया था।
उपरान्त मौजूद सारी साध-संगत में भी वह पवित्र प्रशाद बांटा गया। इस अवसर पर सच्चे पातशाह जी ने साध-संगत में फरमाया, ‘अब हम जवान बनकर आए हैं। इस बॉडी में हम खुद काम करेंगे। किसी ने घबराना नहीं। ये हमारा ही रूप हैं। साध-संगत की सेवा व संभाल पहले से कई गुना बढ़कर होगी। डेरा व साध-संगत और नाम वाले जीव दिन दोगुनी रात चौगुनी, कई गुणा बढ़ेंगे। किसी ने चिंता, फिक्र नहीं करना। हम कहीं जाते नहीं, हर समय तथा हमेशा साध-संगत के साथ हैं।’ इस तरह पूजनीय परम पिता जी ने जहां गुरुगद्दी की रस्म को मर्यादापूर्वक सम्पन्न करवाया, वहीं साथ ही डेरा सच्चा सौदा और समस्त साध-संगत की चढ़दी कला की कामना करते हुए कई गुना बढ़कर सेवा व संभाल के वचन भी किए।’
परोपकार ही एक मात्र उद्देश्य
संत-जन जीव-सृष्टि के उद्धार के लिए जगत पर अवतार धारण करते हैं। पूजनीय संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गुरुगद्दी पर विराजमान होते ही अपने सतगुरु मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के हुक्मानुसार जहां डेरा सच्चा सौदा के हर छोटे-बड़े कार्याें की तरफ पूर्ण तौर पर(साध-संगत की सेवा, सुख-सुविधा और हर तरह की संभाल) विशेष ध्यान दिया, वहीं सत्संग इत्यादि रूहानी कार्याें को भी तूफानमेल गतिमान किया। पूर्ण संतों का प्रत्येक कार्य मनुष्यता की भलाई से ही जुड़ा होता है। वह संसार समाज में रह कर नि:स्वार्थ भाव से लोक भलाई के कार्य करते हैं।
जाहिर है कि पूजनीय गुरु जी की तरफ से डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए लोक भलाई कार्याें से जरूरमंद लाखों लोग लाभांवित हुए हैं, वहीं मानवता भलाई कार्याें के दर्जनों विश्व रिकार्ड पूजनीय पावन हजूरी में डेरा सच्चा सौदा के नाम पर दर्ज हुए हैं। खूनदान के क्षेत्र (समाज-सेवा) की बात की जाए तो डेरा सच्चा सौदा की तरफ से मानवता भलाई के लिए साढ़े 5 लाख यूनिट से अधिक खूनदान अर्पण किया जा चुका है। इस परोपकारी कार्य के लिए डेरा सच्चा सौदा के नाम तीन विश्व रिकार्ड गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हैं। इसके अलावा पर्यावरण सुरक्षा व संभाल के विषय पर बात की जाए तो करीब सवा 4 करोड़ पेड़-पौधे साध-संगत द्वारा धरती को हरा भरा करने के लिए लगाए गए हैं।
इस क्षेत्र में डेरा सच्चा सौदा के नाम चार विश्व रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज हैं। इसके अलावा दर्जनों और रिकार्ड लिमका बुक, एशिया और इण्डिया बुक आफ रिकार्डज में डेरा सच्चा सौदा द्वारा किए गए समाज भलाई कार्याें के लिए अलग-अलग समय पर दर्ज किए गए हैं। डेरा सच्चा सौदा के परोपकारी कार्याें की बात आज किसी से भी छुपी हुई नहीं है। इस तरह पूजनीय गुरु जी के परोपकारी कार्याें की गिनती करें तो 134 मानवता भलाई के कार्य डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत द्वारा दिन रात किए जा रहे हैं और इस तरह पूजनीय गुरु जी की प्रेरणा अनुसार डेरा सच्चा सौदा का सर्वपक्खी विकास हुआ है। पूजनीय गुरु जी के छ: करोड़ से अधिक नाम लेवा सत्संगी, श्रद्धालु हैं जो आज भी तन, मन, धन व पूरे सिदक से अपने पूजनीय गुरु जी की प्रेरणा अनुसार मानवता भलाई के कार्याें से जुड़कर समाज सेवा को अपना धर्म मानते हैं।
पूजनीय गुरु जी द्वारा स्थापित शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग की पूरे विश्व में अपनी पहचान है। किसी भी संकट की घड़ी में जब ये सेवादार मदद के लिए वहां जा खड़ते हैं तो लोगों का हौंसला बढ़ जाता है और यकीन भी हो जाता है कि अब गुरु जी के सेवादार आ गए हैं, इस मुसीबत में से अब हम सुरक्षित हैं और ऐसा सेवादारों ने अपनी नि:स्वार्थ सेवा के द्वारा दुनिया को करके भी दिखाया है। चाहे कहीं गहरे बोरवैल में फंसे बच्चे को बचाने की बात है या कहीं बड़े-बड़े शोरूमों, फैक्टरियों, बहुमंजिला इमारतों की आगजनी की बात हो और चाहे बाढ़, भूकम्प पीड़ितों तथा ऐसी ही और आपदाओं में पीड़िÞत लोगों को राहत पहुँचाने की बात हो, पूजनीय गुरु जी के ये सेवादार लोगों की सेवा में दिन-रात एक कर देते हैं।
इन सेवादारों के साहस के आगे बड़े-बड़े दरिया, नदियां-नाले भी तब नत-मस्तक हो जाते हैं जब ये टूटे हुए बांधों को घण्टों की मेहनत से बांध कर लोगों और उन की फसलों तथा जान-माल हर तरह के नुकसान से बचा लेते हैं। सारांश यह है कि पूजनीय गुरु जी के ये सेवादार हर संकट में पीड़ितों, जरूरतमंदों के लिए मसीहा साबित होते हैं। विशेष ट्रेनिंग प्राप्त ये सेवादार केवल देश भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के नाम से जाने जाते हैं और यही इनकी पहचान भी है। इन सेवादारों के अन्दर हौंसला व सेवा का जज्बा पूजनीय गुरु जी की ही देन है। पूजनीय गुरु जी ही इनके मसीहा हैं। पूजनीय गुरु जी के महापरोपकारों का वर्णन लिखने-पढ़ने से बाहर है। पवित्र महापरोपकार दिवस की सारी साध-संगत को ढेरों बधाईयां हों जी।
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