शत् शत् नमन गुरु माँ
मां का रुतबा सब से ऊँचा होता है और उस मां का दर्जा सर्वश्रेष्ठ हो जाता है जिसकी औलाद समाज में बुलंदियों को हासिल कर लेती है। उसकी प्रसिद्धि हर तरफ होने लगती है। वह मां धन्य हो जाती है जिसकी कोख से जन्म लेने वाली औलाद समाज में एक आदर्श रूप में मकबूल हो जाती है। वह औलाद एक योद्धा, वीर, वीरांगना या विज्ञानी या राजा, महाराजा के रूप में अपने देश व माँ-बाप का नाम रोशन करती है। लोग उस माँ की प्रशंसा करते नहीं थकते जो ऐसी काबिल औलाद को जन्म देने वाली होती है। परन्तु उस माँ का गुणगान लोग रोम-रोम से करते हैं जिसकी कोख से जन्म लेने वाली औलाद कोई संत, महापुरुष हो। ऐसी महान हस्ती की मालकिन हैं पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां, जिनका लाडला केवल एक योद्धा या विज्ञानी ही नहीं, बल्कि एक महान रूहानी संत-सतगुरु के रूप में देश-दुनिया को इन्सानियत का पाठ पढ़ा रहा है।
पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां वो अजीम तरीन, विलक्ष्ण गौरवमयी हस्ती हैं, जिनकी पवित्र कोख से पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने जन्म लेकर उनको गुरु-माँ होने का असल खिताब बख्शिश किया है। समूह साध-संगत अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां का पवित्र जन्म दिन हर साल 9 अगस्त को ‘गुरु माँ डे’ के नाम से पूरी दुनिया में हर्षाेल्लास व धूम धाम से मनाती है। इसी कड़ी में आज 9 अगस्त को साध-संगत पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां का 87 वां जन्म दिन मना रही है।
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जन्म
अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां का जन्म 9 अगस्त 1934 को पूजनीय पिता सरदार गुरदित्त सिंह जी और पूजनीय माता जसमेल कौर जी इन्सां के घर गांव किक्कर खेड़ा तहसील अबोहर जिला फाजिल्का में हुआ। आप जी का विवाह श्री गुरुसर मोडिया के एक बहुत ही खुशहाल परिवार में पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी के साथ हुआ। घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी, परन्तु विवाह से 17-18 साल तक आप जी के घर कोई संतान नहीं हुई थी। संतान प्राप्ति की इच्छा आप जी को हर समय सताती रहती।आप जी हमेशा मालिक की भक्ति और संतों तथा दीन-दुखियों की सेवा में लगे रहते।
गांव के ही सम्मान योग्य संत बाबा त्रिवेणी दास जी ने पूजनीय बापू जी को कहा कि तुम्हारे घर कोई साधारण संतान जन्म नहीं लेगी, बल्कि वह खुद ईश्वरीय अवतार होंगे और केवल 23 साल तक तुम्हारे पास रहेंगे। 18 वर्ष गुजर गए। संत बाबा की भविष्यवाणी तब सच साबित हुई, जब 15 अगस्त 1967 को पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने आप जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया। घर में, पूरे गांव में तथा समस्त सृष्टि जगत में खुशियों का आलम छा गया। पूजनीय माता जी ने अपनी पवित्र गोद में पूजनीय हजूर पिता जी की बाल-स्वरूप लीलाओं का जो परमानंद प्राप्त किया, वह अवर्णनीय है। पूजनीय गुरु जी के बाल स्वरूप के वह सुनहरी पल, अद्भुत रूहानी चोज पूजनीय माता जी आज भी अपनी आंखों तथा दिल में संजोए हुए हैं।
अनमोल यादें
बाल रूप सतगुरु जी के साथ पूजनीय माता जी भी बिल्कुल बच्चा ही बन जाते। अठखेलियां करते हुए बाल रूप पूजनीय गुरु जी घर के आंगन में दौड़ते रहते। मां-बेटा दोनों बाल दोस्तों की तरह तरह-तरह के खेल खेलते, आगे-आगे दौड़ते पूजनीय गुरु जी की किलकारियां और पीछे-पीछे भागते हुए पूजनीय माता जी की प्यार तथा प्रेममयी घुड़कियों को सुनकर पास-पड़ोस के लोग आश्चर्य से पूजनीय बापू जी से पूछते कि क्या आपके घर में चार-पांच बच्चे हैं?
पूजनीय माता जी द्वारा बनाए गए सरसों के साग और उनके पवित्र हाथों से निकाले गए माखन तथा देसी घी की कोई तुलना नहीं है। पूजनीय माता जी द्वारा तैयार किए गए देसी घी की खुशबू ही अलग होती।
उनके द्वारा तैयार किया गया देसी घी पूजनीय गुरु जी ढेर सारा कच्चा ही खा जाते। पूजनीय माता जी जब मकई की रोटी के ऊपर सरसों का साग तथा घी रखकर खाते तो रोटी खाते-खाते रोटी का जो बीच वाला हिस्सा रह जाता, उसमें घी रच जाने से वह बहुत ही नर्म तथा स्वादिष्ट बन जाता, तो पूजनीय गुरु जी पूजनीय माता जी को चोंचली बातों में लगा कर रोटी का वह हिस्सा माता जी के हाथों से झपट कर ले जाते और फिर शुरू हो जाता वह बाल-लीला का सिलसिला। बाल रूप में पूजनीय हजूर पिता जी आगे-आगे और पूजनीय माता जी पीछे-पीछे। पूजनीय माता जी का नन्हा लाडला उन्हें दिखा-दिखा कर वह रोटी का स्वादिष्ट टुकड़ा खाता और पूजनीय माता जी पीछे-पीछे भागते रह जाते, तब तक पूजनीय हजूर पिता जी बाहर निकल जाते, जहां पर गांव के बुजुर्गवार बैठे होते और मर्यादाबद्ध पूजनीय माता जी को वहां से पीछे लौटना पड़ता।
बेमिसाल शख्सियत
बचपन से ही प्रभु-भक्ति से लबरेज पूजनीय माता जी का अपने पूजनीय सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के प्रति शुरू से ही अटूट विश्वास और सच्चा गुरु-प्रेम बेमिसाल रहा है। अपने मुर्शिदे कामिल पूजनीय परम पिता जी के हर वचन को मानना पूजनीय माता जी की जिंदगी का अहम उद्देश्य रहा है। अपने सतगुरु के हुक्म को मानने की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी कि पूजनीय माता जी ने अपने सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल पूजनीय परम पिता जी के एक इशारे पर अपने प्यारे इकलौते पुत्र को पूरी युवावस्था (23 साल की आयु) में ही सच्चा सौदा मिशन को आगे चलाने के लिए उनके पवित्र चरणों में भेंट कर दिया। अपने सतगुरु जी की अपार रहमतों को पाकर पूजनीय माता जी का ‘गुन्चा-ए-दिल’ हमेशा खिला रहता और अपने चारों तरफ खुशबू फैलाता रहता। नवनीत से कोमल हृदय के मालिक पूजनीय माता जी को गरूर नाम की चीज छू कर भी नहीं गई।
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पूजनीय माता जी अब भी दीन-दुखियों व इन्सानियत की सेवा के लिए हमेशा ही पहले की तरह तैयार रहते हैं। पूजनीय माता जी का आचार-विचार व व्यवहार हमेशा से ही सच तथा प्रेम से लबरेज है। इनके पास केवल बैठने मात्र से ही हमें अच्छी प्रेरणा मिलती है। इनके आभा मण्डल को देखते ही खुशी का अहसास होता है।
विश्व वात्सल्य की अनोखी मिसाल पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां को उनके 87वें जन्म दिन पर हमारा शत्-शत् प्रणाम तथा मुबारकबाद हो जी।
बचपन से ही प्रभु-भक्ति से लबरेज पूजनीय माता जी का अपने पूजनीय सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के प्रति शुरू से ही अटूट विश्वास और सच्चा गुरु-प्रेम बेमिसाल रहा है। अपने सतगुरु के हुक्म को मानने की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी कि पूजनीय माता जी ने अपने सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल पूजनीय परम पिता जी के एक इशारे पर अपने प्यारे इक्लौते पुत्र को पूरी युवावस्था (23 साल की आयु) में ही सच्चा सौदा मिशन को आगे चलाने के लिए उनके पवित्र चरणों में भेंट कर दिया।