अज आए शाह मस्ताना जी जग ते 130वां पावन अवतार दिवस (कार्तिक पूर्णिमा) मुबारक
सच्चे संत जगत् के उ्द्धार के लिए संसार में आते हैं। वह कुल मालिक परम पिता परमात्मा के भेजे मालिक के सच्चे दूत होते हैं। वह अपने मालिक के हुक्मानुसार समाज तथा सृष्टि के उद्धार का कर्म करते हैं। वह जगत में वैर-विरोध, भेद-भाव तथा लोगों की बुराइयां खत्म करके उन्हें परम पिता परमात्मा से जोड़ते हैं। वह जीवात्मा के उद्धार का पवित्र कार्य करते हैं।
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दिव्य ज्योति हुई प्रकट
परम पूजनीय परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज सृष्टि के उद्धार का उद्देश्य लेकर जगत पर आए। आप जी गांव कोटड़ा तहसील गंधेय रियासत कलायत बिलोचिस्तान (जो अब पाकिस्तान में है) के रहने वाले थे। आप जी के आदरणीय पिता जी का नाम पूजनीय पिता श्री पिल्ला मल जी था और माता जी का नाम पूजनीय माता तुलसां बाई जी था। आप जी खत्री वंश से सम्बंध रखते थे। पूजनीय माता-पिता जी के चार लड़कियां ही थी, लड़का कोई नहीं था। अपने वंश को चलाने के लिए, यानि पुत्र की कामना उन्हें हर समय बेचैन रखती थी। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने बहुत सारे साधु-फकीरों के साथ मुलाकात की। एक बार एक पहुंचे हुए फकीर ने उनकी सच्ची सेवा-भावना तथा सच्ची तड़प को देखते हुए खुश होकर वचन किए, वह फकीर अल्लाह, परमात्मा का एक पहुंचा हुआ फकीर था, उस फकीर ने कहा कि लड़का तो तुम्हारे घर जन्म ले लेगा, परन्तु वह तुम्हारे काम नहीं आएगा।
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अगर यह शर्त मन्जूर है तो देख लो। पूजनीय माता-पिता जी ने इस शर्त को मानते हुए कहा कि हमें ऐसा भी मंजूर है। इस तरह उस सच्चे फकीर की दुआ तथा परम पिता परमात्मा के हुक्म से परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने विक्रमी सम्वत 1948 सन् 1891 को कार्तिक की पूर्णमाशी को अवतार धारण किया। पूर्णमाशी के चांद की तरह सुंदर, शांत तथा सुखदायक नूरी मुखड़ा, सूर्य की तरह तेजस्वी ललाट, सुंदर प्रत्यक्ष ईश्वरीय स्वरूप को अपने घर आंगन में निहार कर पूजनीय माता-पिता जी का चेहरा गुलाब के फूल की भांति खिल गया।
पूजनीय पिता जी के वंश का वारिस बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के रूप में उनके घर आ गया था। पूजनीय माता-पिता जी को चहुं ओर से बधाईयां मिलने लगी। पूजनीय पिता जी ने गरीबों को अनाज, कपड़ा दान देकर व पूरे गांव में मिठाईयां बांट कर उनकी बधाईयां कबूल की। पूजनीय माता-पिता जी ने अपने लाडले का नामकरण करते हुए आप जी का नाम ‘खेमा मल जी’ रखा। परन्तु जब आप जी अपने मुर्शिद-ए-कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज की शरण में आए तो उन्होंने आप जी के अंदर प्रभु की इलाही सच्ची मस्ती को देखते हुए, आप जी का नाम मस्ताना शाह(पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज) रख दिया और इस तरह आप जी मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
सेवा तथा भक्ति की लग्न
आप जी को बचपन से ही साधु-संतों की सेवा का प्रबल शौक था। एक बार जब आप जी अपने घर से खोये की मिठाई का भरा थाल बेचने के लिए निकले। क्योंकि आप जी के आदरणीय पिता जी आप जी के बचपन में ही प्रभु को प्यारे हो गए थे। घर व बच्चों के पालन-पोषण की सारी जिम्मेवारी पूजनीय माता जी पर आन पड़ी थी। आप जी अपनी जिम्मेवारी को समझते हुए कारोबार में पूजनीय माता जी का सहयोग करते थे। मिठाई का थाल सिर पर था। रास्ते में आप जी का मिलाप एक साधु से हो गया। बस फिर क्या था! मिठाई का थाल सिर से उतार कर नीचे रख लिया और सब कुछ भूल कर बैठ गए प्रभु-भक्ति की बातें सुनने। बातों-बातों में आप जी ने सेवा-भावना से कुछ मिठाई उस महात्मा को पेश की। बहुत ही स्वादिष्ट और अलौकिक आनंद था उस खोये की मिठाई में। महात्मा ने और मिठाई खाने की इच्छा जाहिर की और इस तरह थोड़ी-थोड़ी करके वह साधु सारी मिठाई खा गया। तृप्त तथा खुश होकर उस महात्मा ने कहा, ‘बच्चा तू दो जहानों का बादशाह बनेगा।’ इतना कहते हुए वह महात्मा पलक झपकने से पहले ही अदृश्य हो गया।
अब थाल भी खाली, हाथ भी खाली। आप जी ने सोचा कि अगर खाली हाथ घर गए तो माता जी को क्या जवाब देंगे। इसलिए आप जी ने किसी जमींदार के पास खेत मजदूर का काम किया। वह जमींदार भाई कभी आप जी की बाल आयु को देखे तो कभी आप जी की इतनी सख्त मेहनत व लग्न को देखे। वह सोचने के लिए मजबूर हो गया कि यह लड़का आम बच्चों की तरह नहीं है, यह कोई विशेष हस्ती है। वह जमींदार भाई आप जी को साथ लेकर पूजनीय माता जी से मिला तथा कहा कि तुम्हारा पुत्र कोई विशेष हस्ती है। जब पूजनीय माता जी को असलियत का पता चला तो उन्होंने आप जी को अपनी छाती से लगा लिया। जैसे-जैसे आप जी बड़े होते गए तो दूसरों के प्रति हमदर्दी तथा प्रभु भक्ति का दायरा भी बढ़ता गया। जहां भी कहीं कोई दु:खी पीड़ित तथा जरूरतमंद मिला, आप जी अपने नेक स्वभाव, ईश्वरीय बख्शिश अनुसार उसकी हर संभव मदद करते। आप जी की प्रभु भक्ति के प्रति लग्न बेइन्तहा थी।
सच की तलाश, सतगुरु का मिलाप
सच की तलाश तो आप जी के अंदर बचपन से थी। पूजा के लिए आप जी ने घर में ही सत् नारायण जी का मंदिर बना रखा था। अपने मंदिर में आप जी ने अपने भगवान सत् नारायण जी की सोने की मूर्ति सजाई हुई थी। आप जी अपने भगवान के ध्यान में कई घण्टों तक बैठे रहते।
एक बार एक कोई महापुरुष आप जी के पास आए और प्रभु की प्राप्ति के लिए आप जी को सच का रास्ता समझाया कि अगर आप अपने भगवान सत नारायण जी को मिलना तथा मोक्ष-मुक्ति चाहते हो तो सच्चे गुरु की तलाश करो। अतिथि सत्कार का ख्याल आते ही आप जी उस महात्मा के लिए घर से चाय-दूध लेने के लिए गए। परन्तु जाने से पहले मंदिर का दरवाजा बाहर से यह सोच कर बंद कर गए कि महात्मा भेष में कोई चोर-ठग्ग ही न हो कि पीछे से सोने की मूर्ति ही न उठा के ले जाए। वापिस आकर आप जी ने देखा कि वह महात्मा अंदर नहीं है, हालांकि बाहर से दरवाजा भी आप जी ने खुद खोला था। अंदर का सारा सामान तथा भगवान की मूर्ति ज्यों की त्यों अपनी जगह पे रखी हुई थी। आप जी को उस महात्मा की बात जच गई। वह महात्मा प्रभु का पहुंचा हुआ फकीर था। उसके उपरान्त आप जी सच्चे गुरु की तलाश में लग गए।
इस दौरान आप जी का मिलाप कई पहुंचे हुए महात्माओं व प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों से हुआ। आप जी जिस भी महात्मा को मिलते, उनसे रास्ता पूछते, परन्तु कहीं से भी तसल्ली न हुई। इस तरह घूमते-घूमते आप जी डेरा ब्यास में पहुंच गए। आप जी ने डेरा ब्यास के पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के प्रयत्क्ष रूप में दर्शन किए कि यह तो खुद वही महात्मा हैं जो यह कह कर गए थे कि सच्चे गुरु की तलाश करो। असल में सच सामने था। पूजनीय बाबा जी का सत्संग सुना और नाम-गुरुमंत्र प्राप्त किया। बस उसी दिन से आप जी ने पूजनीय बाबा जी को अपना तन मन सब कुछ भेंट चढ़ा दिया, अपने आपको उनके अर्पण कर दिया। आप जी अपने गुरु भगवान के ही बन कर रह गए। पूजनीय बाबा जी ने नाम-शब्द के साथ-साथ अपनी बेइन्ताह बख्शिशें भी वचनों द्वारा आप जी को बख्श दी कि मस्ताना शाह! असीं तुम्हें अंदर वाला गुरु बख्श दिया और इसके साथ ही उन्होंने आप जी की सेवा की ड्यूटी बिलोचिस्तान, सिंध तथा पंजाब के कई इलाकों में राम नाम के प्रचार की लगा दी।
रूहानी बख्शिशें
आप जी अपने पूजनीय मुर्शिद-ए-कामिल की पवित्र हजूरी में मस्ती भरी प्रेम खुमारी में कमर व पांवों पर मोटे-मोटे घुंघरू बांध कर ऐसा मस्ती में नाचते कि कुल खुदाई भी अलौकिक मस्ती में झूम उठती। आप जी के सच्चे इश्क तथा खुदा की सच्ची मस्ती से पूजनीय हजूर बाबा जी बहुत खुश होते तथा आप जी पर अपने इलाही वचनों की बौछारें कर देते।
एक बार का ऐसा ही एक मनमोहक दृश्य वर्णनीय है:-
सत्संग लगा हुआ था। पूजनीय हजूर बाबा जी सत्संग स्टेज पर विराजमान थे। आप जी अपने सतगुरु खुद-खुदा की पवित्र हजूरी में खुदा के इलाही प्रेम व मस्ती में नाच रहे थे। पूजनीय बाबा जी आप जी के इसी प्रेम-मस्ती पर खुश होकर आप जी को मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी ही कहा करते थे। हजूर बाबा जी ने आप जी पर खुश होकर इलाही बख्शिशों की बराबर बौछारें करते हुए वचन फरमाए, ‘जा मस्ताना शाह, असीं तुझे अखुट भण्डार दिया। जा मस्ताना शाह , असीं तुम्हें सब दातों की कुंजी दी। जिसको मर्जी दे, सोना, चांदी, पैसा, पुत्र, धी दे, चाहे जो मर्जी कर।
जा मस्ताना, असीं तुझे पीर बनाया और अपना स्वरूप भी दिया। जा मस्ताना तुझे बागड़ का बादशाह बनाया। सरसा जा और डेरा, कुटिया बना व सच्चे नाम का प्रचार कर।’ बल्कि इस तरह वचनों की बौछार करते हुए पूजनीय बाबा जी स्टेज से उतर कर आप जी के पीछे-पीछे इस तरह फिर रहे थे जैसे गाय अपने बछड़े के पीछे-पीछे फिरती है। बेपरवाही इलाही वचनों में आप जी ने जहां साध-संगत के लिए धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा नारा मंजूर करवाया, वहीं और भी अनेक बख्शिशें हासिल की।
डेरा सच्चा सौदा की स्थापना
आप जी अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल बाबा सावण शाह जी का हुक्म पाकर सरसा पधारे और उन्हीं के हुक्मानुसार 29 अप्रैल 1948 को एक छोटी सी कुटिया के रूप में डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना की।
कुल आलम इत्थे झुकेगा
उन दिनों में पीने वाला पानी बहुत दूर से लाना पड़ता था। आप जी गर्मी के दिनों में पानी के घड़े भरवा कर आश्रम से बाहर गेट पर राहगीरों के लिए रखवा दिया करते थे पर कई लोग वहां से घड़े ही चुरा कर ले जाते। एक बार फिर ऐसा हुआ तो पड़ोस में जमीन के मालिक श्री बूटा राम ने आप जी को कहा कि सार्इं जी, डेरा कहीं और बनाओ। यहां रहना ठीक नहीं, यहां पर चोर पानी के घड़े भी चुरा कर ले जाते हैं। उस भाई की बात सुनकर आप जी हँसे तथा वचन फरमाया, ‘पुट्टर, पानी किस लिए रखा था? यह उनकी इच्छा है कि यहां पानी पिएं या घड़े घर ले जा कर पिएं।
पुट्टर, आज की बात याद रखना, गांठ बांध ले, सच्चा सौदा में कोई भी चीज खुटने वाली नहीं है। तू बोलता है कि इस जगह को छोड़ कर चले जाएं, डेरा कहीं और बनाएं। याद रखना, इस धरती पर लेहंदा झुकेगा, चढ़दा झुकेगा, झुकेगी दुनिया सारी। कुल आलम यहां पर झुकेगा। मौके पर फकीर की कदर नहीं होती। अभी तो डेरा सच्चा सौदा की दुकान बनी है, फिर इसमें राम नाम का सौदा डलेगा, फिर दुकान चलेगी, फिर दुनिया को पता चलेगा। अभी तो जैसे रिमझिम, रिमझिम बूंदा-बांदी होती है, जब मूसलाधार बरसात होगी, फिर पता चलेगा।’
12 साल बरसाई रहमत
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने मुर्शिद-ए-कामिल हजूर बाबा सावण शाह जी के हुक्मानुसार 1948 से 1960 तक बारह वर्ष तक नोट, सोना, चांदी, कपड़े, कम्बल बांट-बांट कर हजारों लोगों को राम-नाम से जोड़ कर उनका बुराइयों से पीछा छुड़ाया। आप जी ने हरियाणा, राजस्थान, पंजाब दिल्ली आदि राज्यों के अनेक गांवों, शहरों, कस्बों में दिन-रात सैंकड़ों सत्संग लगा कर लोगों को राम-नाम की सच्ची भक्ति से रू-ब-रू किया और वहां डेरा सच्चा सौदा के नाम से दर्जनों डेरे स्थापित करके उन इलाकों में लोगों के मनों में सच्ची भक्ति की श्रद्धा भावना को उत्पन्न किया।
आप जी अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल के वचनोंनुसार बेधड़क सत्संग करते तो सुनने वालों पर इतना प्रभाव पड़ता, वह सोचते कि राम नाम के बिना इतनी उम्र क्यों व्यर्थ गंवा ली है।
हजारों लोगों ने आप जी से नाम-शब्द लेकर अपनी जीवात्मा का उद्धार किया। बड़े-बड़े अहंकारियों का अहंकार आप जी के अद्भुत रूहानी खेलों को देखकर टूट जाता। जुआरिये, चोर-चकार व बुराइयों के कारण बदनाम लोग भी अपनी बुरी आदतों को हमेशा के लिए छोड़कर परमात्मा के सच्चे भक्त बन गए। इस तरह आप जी के रहमो-करम से सच्चा सौदा का दिनों-दिन विस्तार होता गया। गधों, बैलों को बूंदी खिलाना, कुत्तों, बकरियों के गलों में नोटों के हार बांध देना, मकान बनाना तथा गिरवा देना आदि ऐसे कितने ही आप जी के अनोखे करिश्माई खेल देख कर लोग दूर-दूर से डेरा सच्चा सौदा की तरफ खींचे चले आते।
डेरा सच्चा सौदा दिन दुगनी-रात चौगुनी तरक्की की ओर
आप जी ने 28 फरवरी 1960 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह गद्दी नशीन किया। पूजनीय परम पिता जी के बारे में आप जी ने वचन किए, ‘ये वही सतनाम हैं, जिसको दुनिया जपती-जपती मर गई, पर वो नहीं मिला। असीं अपने सतगुरु दाता सावण शाह जी के हुक्म से इन्हें अर्शाें से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा, वह नर्कांे में नहीं जाएगा।’ आप जी ने यह भी वचन किए कि सात साल बाद असीं फिर आएंगे।
(वर्णनीय है कि पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 18 अप्रैल 1960 को अपना नूरी चोला बदल लिया था तो पूजनीय मौजूदा गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में ठीक सात साल बाद 15 अगस्त 1967 को श्री गुरुसर मोडिया में अवतरित हुए, और डेरा सच्चा सौदा में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 23 सितम्बर 1990 को बतौर तीसरे पातशाह गद्दी नशीन किया)
पूजनीय बेपरवाह जी ने यह भी वचन फरमाए, सच्चा सौदा कई गुणा बढ़ेगा, दुनिया के कोने-कोने में राम-नाम गूंजेगा। असीं मकान बनाए तथा गिरवाए, तीसरी बॉडी में ऐसा बब्बर शेर आएगा, वह चाहे तो आसमान से बने बनाए मकान धरती पर उतार सकें गे। असीं नोट, सोना, चांदी बांटा, तीसरी बॉडी चाहे तो हीरे जवाहरात भी बांट सकेंगे। सतगुरु की दया-मेहर, रहमत से कभी कोई कमी नहीं रहेगी। इतनी ज्यादा संगत होगी कि सरसा-नेजिया एक हो जाएगा। तिल रखने की भी जगह नहीं होगी। ऊपर से थाली फैंकें तो नीचे न गिरे, संगत के सिरों पर ही रह जाएगी। हाथी पर चढ़कर दर्शन देंगे, तो भी दर्शन मुश्किल से हो पाएंगे और इसी तरह पूजनीय परम पिता जी ने वचन किए कि दिन दुगुनी रात चौगुनी, कई गुणा राम-नाम वाले बढ़ेंगे। ऐसा आलीशान डेरा बनेगा कि सचखण्ड का नमूना होगा, दुनिया देखेगी। हाथ कंगन को आरसी क्या। पढेÞ-लिखे को फारसी क्या।
बेपरवाही वचनोंनुसार साध-संगत डेरा सच्चा सौदा में ज्यों की त्यों सतगुरु की रहमतोें को पा रही है। पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन मार्ग दर्शन व उन्हीं की प्रेरणा से साध संगत 135 मानवता भलाई के कार्य जोर शोर से कर रही है। पूज्य गुरु जी की रहनुमाई में डेरा सच्चा सौदा के नाम तीन विश्व रिकार्ड रक्तदान क्षेत्र में और तीन विश्व रिकार्ड पर्यावरण संरक्षण(पौधारोपण) क्षेत्र में हैं जो कि गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है तथा दर्जनों अन्य रिकार्ड एशिया बुक व इंडिया बुक आफ रिकार्डस में दर्ज हैं।
रक्तदान करना, गरीब जरूरमंदों को मकान बनाकर देना, अनाथ बेसहारों को सहारा देना, आर्थिक रूप से कमजोर गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में सहयोग करना, गरीब बेघरों को मकान बनाकर देना, किन्नर समाज व वेश्याओं का उद्धार, किन्नर समाज को सुखदुआ समाज का नाम दिया और माननीय सुप्रीम कोर्ट से थर्ड जैंडर का सम्मानीय नाम दिलाया, वहीं वेश्यावृति में लिप्त युवतियों को उस बुराई की दलदल से निकाल कर अपनी बेटी शुभदेवी बनाकर उनकी सम्पन्Ñन घरों में शादी करवा कर उन्हें घर व वर दिया जैसे दुर्लभ कार्य पूज्य गुरु जी ने ही किए हैं। आदि मानवता भलाई के कार्य साध-संगत आज भी बढ़चढ़ कर कर रही है। डेरा सच्चा सौदा के ये नि:स्वार्थ कार्य विश्व प्रसिद्ध हैं।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पावन अवतार दिवस की सारी साध-संगत को लख-लख बधाई हो जी।