129th holy incarnation day - Shah Mastana Ji Maharaj - Karthika Purnima - Sachi Shiksha

ढहा दिया, बना दिया, ये बेपरवाही खेल 12 साल तक देख-देख कर दुनिया अचंभित होती रही। लोगों में यह बात प्रसिद्ध हो गई कि वो सच्चे सौदे वाले बाबा जी आए हैं जो मकान बनवाते और गिराते हैं! और सतगुरु के ऐसे निराले खेल देखने के लिए लोग सच्चा सौदा की ओर खींचे चले आते। गधों, ऊंटों, बैलों को बूंदी खिला दी, कुत्तों के कड़क-कड़क नोट बांध कर भगा दिया और लोग नोटों के लिए पीछे भाग उठते और ताली मार कर कहते, सब नोटों के यार हैं, सतगुरु का यार तो कोई-कोई है। ऐसे निराले खेल देख-देख कर लोग आश्चर्य में पड़ जाते। तो ऐसी अल-मस्त फकीरी बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दुनिया को, राम-नाम जपना सिखाया।

बिलोचिस्तान से आया कोई वणजारा,
रूहों का वपार किया।
नाम-पटारी देके मौला ने,
कुल मालिक दर्शा दिया।
अनामी ये वाली आई मौज मस्तानी सचखंड-अनामी का संदेश दिया।।

मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी शाहों के शाह शहनशाह खुद रूहानी फकीर बन के धरत पर आए और राम-नाम का ऐसा डंका बजाया कि रूहों को मस्त कर दिया। मौज मस्तानी ने रूहों को दोनों जहानों में अपनी मस्ती के रंग से रंग दिया।
क्या है कोई मिसाल दुनिया पर जो जिन्दा जीअ सतलोक, सचखण्ड दिखा दे? यह भी पूज्य बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दुनिया को बताया और दर्शााया कि ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा, जो अपने सतगुरु साईं सावण शाह जी के वचनानुसार दरगाह में मंजूर कराया कि जो ये नारा बोले, उसका मौत जैसा भयानक कर्म भी टल सकता है।

सतगुरु सार्इं सावण शाह जी से ऐसा नाम मंजूर करवाया जिस को लेने से इक लत इत्थे ते दूजी सचखण्ड विच। और दुजी लात जो इस दुनिया में है, उसे भी सही सलामत रखने के लिए एक सरल उपाय राम-नाम का सुमिरन बताया कि तो ही साबत कदम रहे सकेंगे अगर सुमिरन, भक्ति-इबादत करेंगे, तीनों वचनों पर सौ फीसदी पक्के रहेेंगे और हक-हलाल, मेहनत की करके खाएंगे, न यहां कमी रहेगी न वहां दरगाह में कोई कमी आएगी। राम-नाम की सफल कमाई, ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिए सार्इं जी ने जो तीन प्रहेज बताए कि अंडा-मांस नहीं खाना, शराब नहीं पीना, पर-स्त्री को माता, बहन, बेटी मानना और स्त्रियों के लिए पर-पुरुष को पिता, भाई, बेटा आयु के अनुसार मानना।

ये सच्चा सौदा के नियमों में एक प्रमुख नियम है जिसे सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं ने तन-मन से अपनाया हुआ है। राम-नाम, कुल मालिक की भक्ति का ऐसा सरल तरीका सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दुनिया को बताया और इस पर चलना सिखाया। जिसे अपनाकर आज करोड़ों घर आबाद हैं। जहां पहले नरक जैसा रहन-सहन था, पूज्य बेपरवाह जी के वचनों को अपने जीवन का अंग बना लेने के बाद वो सड़ते-बलते भट्ठ नुमा घर स्वर्ग-जन्नत के नजारे बन गए। पूज्य बेपरवाह जी की सच्ची-सुच्ची शिक्षाओं ने करोड़ों जिंदगियों को अमृमयी बना दिया। लोग नशे व बुराइयां छोड़ कर मेहनत की करके खाने लगे।

जीवन परिचय

परम पूजनीय परम संत बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूज्य पिता श्री पिल्ला मल जी के घर पूज्य माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से विक्रमी संवत 1948 सन् 1891 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन अवतार धारण किया।  आप जी गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, रियासत कोलायत-बिलोचिस्तान जो कि पाकिस्तान में है, के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी गांव में ‘शाह जी’ के नाम से जाने जाते थे। गांव में उनकी मिठाई की दुकान थी।

पूजनीय माता-पिता जी के घर चार बेटियां ही थी। घर व खानदान के वारिस, पुत्र-प्राप्ति की उनके दिल में प्रबल तड़प थी। साधु-महात्माओं की वे सच्चे दिल से सेवा किया करते थे। एक बार उनकी भेंट रब्ब के एक सच्चे फकीर से हुई। अपने नेक-पवित्र स्वभाव के अनुरूप उन्होंने उस फकीर की भी सच्चे दिल से सेवा की। उस सच्चे मस्त-मौला फकीर ने उनके हृदय की पवित्रता पर खुश होकर वचन किए, माता जी, पुत्र की कामना ईश्वर आप की जरूर पूरी करेंगे। उस फकीर बाबा ने कहा कि पुत्र तो आपके घर जरूर जन्म ले लेगा लेकिन वो आपके काम नहीं आएगा। वो दुनिया का तारणहारा बन के आएगा, दुनिया को तारने के लिए आएगा, बोलो, आपको अगर मंजूर है।

पूजनीय माता-पिता जी ने तुरंत इस पर अपनी सहमति जताई कि हमें ऐसा भी मंजूर है। कई वर्षाें से जिस माता-पिता को अपने वारिस, अपने पुत्र के लिए तड़प थी, परम पिता परमात्मा ने उस मस्त मौला, उस फकीर-बाबा के वचनानुसार उनकी हार्दिक इच्छा पूरी की। पूज्य माता-पिता जी को परम पिता परमेश्वर से बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के रूप में बेटे की सौगात प्राप्त हुई। ऐसी महान हस्तियां जीवों के उद्धार के लिए समय-समय के अनुसार सृष्टि पर अपना अवतार धारण करती आई हैं। वर्णनीय है कि ऐसी अति पवित्र हस्तियों का जीवन आम लोगों से एक तरह से बिल्कुल अलग व निवेकला होता है। दूसरों के मुकाबले ऐसी पवित्र हस्तियों के जीवन व दिनचर्या(क्रिया-कलापों) में जमीन-आसमान का अंतर होता है।

नूरी बचपन

पूज्य बेपरवाह जी का नूरी बचपन अपने-आप में एक मिसाल स्वरूप था। बेपरवाह सार्इं जी के बचपन के निराले नूरानी चोज देख-देख लोग दातों तले उंगली दबाते। आप जी के जीवन दर्शन की पवित्रता हर देखने वाले को अपना दीवाना बना लेती। जो भी कोई इन्सान आप जी के नूरी स्पर्श को पाता, आपका मिकनातीसी आकर्षण उसे अपनी ओर खींचे ले आता। आप जी का नूरी आकर्षण ही ऐसा था कि हर कोई आप जी की सोहबत पाने को लालायित हो उठता।  इस प्रकार आप जी अपने अद्भुत नूरी बचपन की मुस्कुराहटों, बचपन में अपने नूरी खेलों, अपनी अनोखी क्रिया-कलापों से अपने पूज्य माता-पिता जी को तथा अपने आस-पड़ोस एवं अपने सम्पर्क में आने वाले हर किसी को महकाय रखते। आप जी अपनी चार बहनों के अकेले भाई थे। आप जी खत्री वंश से संबंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी का नाम खेमा मल जी रखा था, उपरान्त पूज्य सावण शाह जी की सोहबत मेें आने पर उन्होंने आपकी ईश्वरीय मस्ती और सतगुरु के प्रति प्रबल प्रेम पर खुश होकर आप जी का नाम ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी रखा’।

आप जी की दानशीलता बचपन में जाहिर हो गई थी। आप जी अपने पिता जी की दुकान से मिठाई उठाकर साधु-महात्माओं को खिला दिया करते और आयु के पड़ाव के साथ-साथ दानशीलता के भावों का दायरा भी बढ़ता गया। आप जी अभी छोटी आयु में ही थे कि पूज्य पिता जी का साया आप जी के सर से सदा के लिए उठ गया। पूज्य माता जी के लिए यह बहुत ही दु:ख की घड़ी थी। आप जी के पालन-पोषण व परिवार की संभाल की इतनी बड़ी जिम्मेदारी अकेले पूज्य माता जी पर ही थी। खुद परम पिता परमात्मा का सहारा था। पूज्य माता जी ने जहां तक मां का फर्ज निभाया, वहीं पिता के प्यार व संभाल की भी कमी आप जी को महसूस नहीं होने दी। पूज्य माता जी ने अपने अति पवित्र संस्कारों को भली-प्रकार से आपके पवित्र हृदय में अंकुरित किया। आप जी थोड़ा बड़े हुए तो अपनी पूज्य माता जी के काम में हाथ बंटाने लगे।

रोजाना की तरह, एक दिन जब आप जी पूज्य माता जी द्वारा बना कर दी खोय की मिठाई बेचने के लिए घर से निकले तो रास्ते में आपजी को साधु बाबा मिले। उन्होंने मिठाई खाने की इच्छा जतायी। ‘बच्चा, बहुत भूख लगी है।’ आप जी सिर से मिठाई का थाल उतार कर उस बाबा के पास बैठ गए। आप जी देते गए और वो खाते गए। इस प्रकार सारी मिठाई आप जी ने उस साधु बाबा को राम-नाम की कथा-कहानी सुनते-सुनाते खिला दी। साधु बाबा ने तृप्त होकर कहा, ‘बच्चा! तुझे बादशाही मिलेगी, बादशाही!’ ‘बाबा! तू कूड़ बोलता है।’ साधु बाबा ने कहा, ‘बच्चा! मैं अल्लाह-पाक के हुक्म से बोलता हूं। मैं कूड़ नहीं बोलता। सचमुच ही तुझे दोनों जहां की बादशाही मिलेगी।’ वो साधु बाबा कौन था, जो आंख झपकते ही आंखों से ओझल हो गए। आप जी इस बारे और सोचते थाल भी खाली और हाथ भी खाली देखकर ध्यान आया कि माता जी से जाकर क्या कहेंगे। आप जी ने वहां एक दिहाड़ीदार खेत-मजदूर का काम किया।

इस कदर जोरदार व लगन से काम किया कि बड़ोें को भी मात दे दी। वह जमींदार किसान भाई खुद भी आपके काम व आप की छोटी उमर को देखकर हैरान था। वह जमींदार भाई आप जी के साथ आप के घर तक आया और पूज्य माता जी से मिला। मजदूरी पूज्य माता जी को देते हुए उसने आप जी की कर्मठता व लगन की सारी बात बताई। उसने यह भी कहा कि आपका लाल वाकई में कोई विशेष हस्ती है। पूज्य माता जी ने अपने लाल को अपनी छाती से लगाकर बहुत प्यार दिया। कर्तव्य निर्वाहन का ऐसा उदाहरण, कर्तव्य निर्वाह और रूहानियत में कैसे तालमेल बिठाया जाता है, सच में यह अपने-आप में बेमिसाल है।

सच की तलाश

ईश्वर के प्रति लगन और भजन-बंदगी का शौक आप जी के अंदर बचपन से था जो कि पूज्य माता-पिता के शुभ संस्कारों के कारण भी था। यही कारण ही था कि आप जी ने अपने ईष्ट देव का एक छोटा-सा मंदिर भी बना रखा था और उसमें सत्यनाराण भगवान की सोने की मूर्ति सजाई हुई थी। आप जी अपने भगवान सत्यनारायण जी की मूर्ति के आगे भजन बंदगी में कई-कई घंटे बैठे रहते। वर्णनयोग है कि भगवान सत्यनारायण की पाठ, पूजा, अर्चना घर में शुरू से ही सुबह-शाम होती थी।

एक दिन अचानक एक फकीर बाबा आप जी के मंदिर में आए। आप जी उस समय भी अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना में बैठे हुए थे। फकीर सार्इं जी का बिल्कुल सफेद लिबास था और उनका चेहरा इलाही नूर से दहक (चमक) रहा था। फकीर सार्इं ने कहा कि अगर आप अपने ईष्ट सत्यनारायण भगवान से मिलना चाहते हैं और सच्ची मुक्ति चाहते हैं तो किसी गुरु, महापुरुष को ढूंढें। फकीर-बाबा के मुख से ईश्वर की भक्ति की चर्चा सुनकर आप उनके इतने कायल हुए कि अतिथि-सत्कार का भी ख्याल नहीं आया था।

अतिथि सत्कार का ख्याल आते ही आप जी सार्इं बाबा के लिए दूध-पानी आदि लाने अंदर (घर में) चले गए। लेकिन यह सोचकर कि कहीं कोई चोर-उच्चका ही न हो फकीर वेश में, कहीं ऐसा ही न हो कि पीछे से सोने की मूर्ति ही न उठा कर ले जाय। तो जाने से पहले आप जी कमरे का दरवाजा बाहर से बंद करके गए। वापस आए, कमरे का दरवाजा भी खुद खोला। अंदर देखा, सोने की मूर्ति आदि सब कुछ यथा-स्थान पर था, लेकिन फकीर बाबा अंदर नहीं हैं। आप जी हैरान कि आने-जाने का रास्ता कमरे का यही एक दरवाजा है, तो फकीर बाबा गए तो किधर गए और किधर से गए! और वो थे कौन!
इस अद्भुत घटना ने आप जी के अन्दर ईश्वर के प्रति लगन को और प्रबल कर दिया। आप जी को अंदर से गुरु की तलाश की तड़प लग गई।

सतगुरु सार्इं सावण शाह जी का मिलाप

उपरोक्त घटना के बाद आप जी सच्चे गुरु(सच्ची मुक्ति को बताने वाले, ईश्वर से मिलाने वाले) की तलाश में घर से निकल पड़े। आप जी बड़े-बड़े तीर्थ धामों पर गए। वहां आपने सुप्रसिद्ध ऋषि-मुनियों, महात्माओं से भेंट की। आप जी ने उन्हें अपना असल उद्देश्य बताया। आप जी ने उनसे सच्चे मोक्ष, ओ३म, हरि, मालिक, परमपिता परमेश्वर के मिलाप का रास्ता पूछा। जवाब में यह कहा गया कि रिद्धि-सिद्धी तो हमारे पास बहुत हैं। पानी पर चला सकते हैं, हवा में उड़ा सकते हैं, नोटों की, सोने की वर्षा करवा सकते हैं परन्तु ईश्वर का मिलाप और सच्चे मोेक्ष-मुक्ति का रास्ता हमारे पास भी नहीं है।

आप जी तो सच की तलाश में निकले थे, ऐसी चीजों से आप जी का कोई वास्ता नहीं था। और जिसकी तड़प अब आप जी के अन्दर अब और प्रबल हो चुकी थी। इस तरह घूमते-घुमाते आप जी डेरा बाबा जैमल सिंह जी ब्यास (पंजाब) में पहुंचे। लक्ष्य बहुत नजदीक प्रतीत हुआ। जैसे ही आप जी ने पूज्य हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के दर्शन किए, सभी शंकाएं, सारे भ्रम मिट गए। सच सामने था। यही थे वो फकीर बाबा जिन्होंने पूरे गुरु के पास जाने का संदेश दिया था। मंजिल मिल गई और ठिकाना भी मिल गया।

उपरान्त दिन-रात नाम-शब्द, गुरुमंत्र के अभ्यास में लग गए। वो दिन सो वो दिन! सतगुरु-प्यार की गाथाएं उमड़-उमड़ कर आप जी को हरदिन मतवाला बनाए रखती। आप जी अपने मुर्शिद के प्यार में पांवों व कमर पर मोटे-मोटे घुंघरू बांध कर इतना मग्न हो नाचते कि सार्इं सावण शाह जी खुद आप जी के प्रेम-जाल में बंध गए और इतने आप जी के प्रति मोहित व आकर्षक हो गए कि ईलाही वचनों की बौछारें आप जी पर नित्य-प्रति करते रहते। पूज्य सावण शाह सार्इं जी आप जी को ‘मस्ताना बिलोचिस्तानी’ कहा करते और इसी पवित्र नाम से आप जी मशहूर हुए।

सावण शाही बख्शिशें, बागड़ का बादशाह बनाया

मुर्शिद और मुरीद अंदर-बाहर से एक हुए। सार्इं जी ने भी कोई पर्दा नहीं रखा। सावणशाह सार्इं जी ने आप जी को ‘बागड़ का बादशाह’ कह कर नवाजा। ‘जा मस्ताना तुझे बागड़ का बादशाह बनाया। जा बागड़ को तार। सरसा में जा, कुटिया (डेरा) बना और दुनिया को राम-नाम से जोड़।’ और यह भी वचन किए कि जो भी मांगेगा, सब देंगे। बेपरवाह शाह मस्ताना जी सार्इं ने विनती रूप में कहा, ‘ऐ मेरे मक्खण-मलाई दाता! असीं तुम्हारे से ही मांगना है।’ आप जी ने इन्सानियत की भलाई के लिए जो जो भी कहा, पूज्य सावण शाह सार्इं जी ने ज्यों का त्यों पूरा किया।

पूज्य बेपरवाह जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल से नारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ भी मंजूर करवाया और यह भी मंजूर करवाया कि सच्चा सौदा का नाम लेवा-प्रेमी जो थोड़ा-बहुत सुमिरन करता है, वचनों का पक्का है, ना उसे अंदर से कोई कमी रहे और न बाहर किसी के आगे हाथ फैलाना पड़े(कोई कमी न रहे) और इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारी बख्शिशें सावण शाह सार्इं जी ने आप जी पर मूसलाधार रूप में की और सरसा में जाने का वचन फरमाया।

डेरा सच्चा सौदा की स्थापना

अपने मुर्शिदे-कामिल के वचनानुसार आप जी ने सरसा शहर से करीब 3 किमी की दूरी पर बेगू रोड-शाह सतनाम जी मार्ग पर 29 अपै्रल 1948 को सच्चा सौदा नाम से एक छोटी सी कुटिया बनाई, डेरा सच्चा सौदा रूपी नन्हा सा पौधा लगाया। आप जी ने 12 साल तक नोट, सोना, चांदी, कपड़े-कम्बल बांट-बांट कर हजारों लोगों को राम-नाम से जोड़ा। अपने नित्य नए-नए अलौकिक खेलों से आप जी दुनिया को सच्चा सौदा के प्रति आकर्षित करते।

आलीशान भवन, सुन्दर-सुन्दर इमारतें डेरा सच्चा सौदा में बनाते, आज अगर एक खड़ी की है तो अगले पल इतनी सुंदर इमारत पूरी की पूरी गिरवा भी देते और उसकी जगह पर एक नहीं, कई और इमारतें देखने को मिलती। इस प्रकार आपजी ने हजारों लोगों की बुराइयां छुड़वा कर उन्हें राम-नाम से जोड़ा। आप जी ने हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब के अनेक गांवों, कस्बों, शहरों में जगह-जगह रूहानी सत्संग लगाकर हजारों लोगों का राम-नाम से उद्धार किया, वहीं दर्जनों आश्रम भी डेरा सच्चा सौदा के नाम से इन राज्यों में स्थापित किए।

ज्योति-जोत समाना

आप जी ने दिनांक 28 फरवरी 1960 को श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के शाही जैलदार परिवार के पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपना अत्तराधिकारी घोषित कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह गुरगद्दी पर विराजमान किया और इसके साथ ही डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत की सेवा-संभाल एवं हर तरह की सभी जिम्मेवारियां भी उसी दिन पूज्य परम पिता जी को स्वयं सौंप दी। केवल इतना ही नहीं, बल्कि अपनी तीसरी बॉडी के बारे भी पहले ही वचन कर दिए कि जब सूर्य चढ़ता है तो चहुँ ओर प्रकाश फैल जाता है।

ऐसा बब्बर शेर आएगा कि कोई उंगली नहीं कर सकेगा। असीं मकान बनाए, गिराए, फिर बनाए, वो ताकत चाहे तो बने-बनाए मकान आसमान से धरती पर उतार सकेंगे। असीं सोना, चांदी, नोट, कपड़े, कम्बल लोगों में बांटे, वो चाहे तो हीरे-ज्वाहरात भी बांट सकेंगे। सच्चे सार्इं जी ने वर्तमान व भविष्य के लिए पहले ही सब कुछ सरेआम साध-संगत में स्पष्ट कर बताया। किसी का कोई रत्ती मात्र भी भरम नहीं रहने दिया। इस प्रकार आप जी ने अपनी सारी जिम्मेदारी डेरा सच्चा सौदा के प्रति समर्पित कर वचन किया कि ‘हमारा काम अब मुक गया है।’ आप जी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को गुरगद्दी सौंप कर 18 अप्रैल 1960 को ज्योति-जोत समा गए।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने बतौर दूसरे पातशाह 1960 से 1991 तक डेरा सच्चा सौदा रूपी नन्हे पौधे को अपने अपार-प्यार व रात-दिन की मेहनत से सींच कर पौधे से विशाल वृक्ष बनाया। डेरा सच्चा सौदा को बुलंदियों पर पहुंचाया। साध-संगत जो पहले सैंकड़ों से हजारों में थी, बढ़कर लाखों में और फिर कई लाखों में हुई और नाम वाले जीव भी सैंकड़ों से बढ़कर हजारों-लाखों में हो गए। इस प्रकार पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज का लगाया वो नन्हा-सा पौधा(सच्चा सौदा नाम की वो छोटी-सी कुटिया) पूजनीय परम पिता जी की अपार रहमत से प्रफुल्लित होकर रूहानी बाग बन पूरी दुनिया में महकने लगा है।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 23 सितम्बर 1990 को मौजूदा गुरु पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह विराजमान कर पूज्य बेपरवाह जी के वचनों को चरितार्थ किया, वचनों की सच्चाई को दुनिया में स्पष्ट किया। बेपरवाह जी ने जैसा फरमाया था, तीसरे गुरु के रूप में तूफान मेल ताकत आएगी और डेरा सच्चा सौदा के सब कार्य राम-नाम के कार्य, मानवता भलाई के कार्य, साध-संगत की संभाल का काम है या डेरा सच्चा सौदा की देख-रेख का कार्य, सभी कार्य तूफान मेल गति से होने लगे।

अर्थात बेपरवाह जी के वचनानुसार डेरा सच्चा सौदा दिन दोगुनी और रात चौगुनी गति से बढ़ते हुए रूहानियत व इन्सानियत का समंदर बन गया है। पूज्य मौजूदा गुरु डॉ. एमएसजी ने डेरा सच्चा सौदा में रूहानियत के साथ-साथ मानवता व समाज भलाई के 134 कार्य निर्धारित कर उन्हें गति प्रदान की। और दुनिया को बता दिया कि बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा लगाया व पूज्य परम पिता जी द्वारा सजाया डेरा सच्चा सौदा रूपी यह रूहानी बाग आज पूरे विश्व में मिसाल है। पूरी दुनिया में कोई भी दूसरी उदाहरण इस के मुकाबले में नहीं है।

‘सच्चा सौदा सुख दा राह।
सब बंधनां तो पा छुटकारा,
मिलदा सुख दा साह।।’

पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के 129वें पावन अवतार दिवस की सारी कायनात को कोटि-कोटि बधाईयां हों जी।

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