जीने का सलीका सीखें

कई लोगों को शांति से रहना जरा नहीं सुहाता। उन्हें हमेशा परेशानियां ओढ़े रहने की ही आदत पड़ जाती है। न वे स्वयं खुश रहना जानते हैं, न अपने आस पास किसी को खुश रहने देते हैं।

मन की अशांति ही चिंताओं को जन्म देती है। शांत स्थिर मन चिंताओं से निपटना जानता है, अस्थिर अशांत मन उसे केवल और बढ़ाता है। कहते हैं चिंता चिता समान होती है। स्वयं इसका शिकार भी इससे छुटकारा जरूर चाहता है लेकिन स्वाभावगत मजबूरी के कारण ही वह ऐसा नहीं कर पाता।

एक उन्मुक्त ठहाका फिजूल की निराधार चिंताओं से निपटने का अच्छा तरीका है। इससे क्र ोध व तनाव दूर होता है और अधिक स्फूर्ति और प्रफुल्लता का संचार होता है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जीवन में सफलता पाने के लिये कूल हैडेड होना आवश्यक है। क्र ोध, चिंता, तनाव व चिड़चिड़ापन ऊर्जा का नाश करते हैं, काबिलियत कम करते हैं।

हर समस्या का कोई न कोई हल जरूर होता है। आशावादी सकारात्मक सोच लिये समस्याओं से जूझकर उसके हल तक पहुंच जाते हैं लेकिन अशांत मन लिये बौखलाहट में (नकारात्मक सोच ऐसे लोगों पर जल्दी हावी हो जाती है) व्यक्ति उस हल को अनदेखा किये रहता है या यूं कहें, उसे ढूंढ नहीं पाता है।

जीवन में अगर दु:ख व परेशानियां हैं तो क्या सुख, आनंद के फव्वारे, मीठी मुस्कानें नहीं हैं? एक शिशु की भोली दंतविहीन चेहरे की प्यारी मासूम सी मुस्कुराहट पर जरा ध्यान दें। कोयल की मीठी तान का जादू मस्तिष्क में गुंजित होने दें। कलकल बहती चांदी सी नदी पर सूर्य रश्मियों की अठखेलियां देखें। इससे मन को जो सुकून और निश्छल आनंद मिलेगा उससे आपका तन मन रसप्लावित हो उठेगा। आनंद की लहरें आपके मन को तितली के परों की तरह हल्का कर देंगी। आपको लगेगा वाकई जीवन कितना सुंदर और जीने लायक है।

सोचिए, अगर जीवन में समस्याएं न हों, जीवन एकरसता से एक ही धारा में बहता जाए तो जीवन कितना नीरस हो उठेगा? जीवन में कठिनाइयां तो हमारी शक्तियों को जागृत करती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, वरना आदमी बेहद आलसी हो जाएगा। आज तो जी लें, कल की कल देखेंगे जैसी सकारात्मक सोच ही चिंता दूर रखती है।

कई लोगों की आदत में शामिल होता है हर समय रोते रहना और चिंता करना। सपूत पैदा नहीं हुआ कि उसके भविष्य की चिंता कर करके सूखना, बजाए उसके आगमन का जश्न मनाने के, ‘हाए बुढ़ापे में हमारा क्या होगा’, ‘हमारे पास पैसा होगा या नहीं।’

‘कहीं वर्ल्ड वॉर छिड़ गई तो क्या होगा।’ जहां जीवन में अगले पल का भरोसा नहीं, वहां यह सोच-सोच कर वर्तमान को भी खो देना, उसे भरपूर न जीना, कहां की समझदारी है। यहां खुशमिजाज व केयर फ्री रहने का मतलब यह हर्गिज नहीं कि व्यक्ति गैर जिम्मेदार हो जाए। बस जीने का सलीका आना चाहिए। -उषा जैन ‘शीरीं’

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