पूज्य गुरु जी के पवित्र वचनों पर आधारित शिक्षादायक सत्य प्रमाण
इस संसार में आ के जो स्वयं परमार्थ करता है और दूसरों की मदद करता है, वो ही सच्चा साथी है और अपना है, नहीं तो वो पशु है।
क्योंकि पशु हमेशा केवल अपने लिए सोचता है। इसलिए भाई, परमार्थ करना चाहिए।
संत पीर-फकीर कभी किसी को बुरा नहीं कहते, लेकिन जो जीव जैसी संगत में रहता है उस पर वैसा ही असर होता जाता है। बुराइयों और अच्छाइयों में आप जिस से भी संबंध रखेंगे, आप भी वैसे ही बन जाएंगे। इसलिए जिंदगी में अच्छे, नेक लोगों का संग करो। जो लोग परमार्थ में दूसरों के हित (परहित), दूसरों के भले के लिए सहयोग करते हैं वो तुम्हारे अपने हैं और जो परमार्थ, दूसरों की भलाई में तुम्हारा सहयोग नहीं करते वो तुम्हारे अपने सगे-संबंधी होते हुए भी पराये (बेगाने) हैं, तुम्हारे अपने नहीं हैं।
इस बारे पूजनीय गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने अनमोल पवित्र वचनों के द्वारा एक उदाहरण देते हुए फरमाया:-
एक धनी व्यक्ति था। उसके चार पुत्र थे। वह आदमी खुद भक्ति-इबादत करने वाला व परमार्थी व्यक्ति था। एक बार की बात है, एक फकीर (एक आम साधु, महात्मा, एक साधारण फकीर) ने उस धनी व्यक्ति के बारे सुना कि फलां गांव, नगर में फलां-फलां नाम का एक धनी आदमी भक्ति-इबादत करने वाला, भाव एक सच्चा परमार्थी आदमी है। वह फकीर उस धनी व्यक्ति को मिला। फकीर से मिल कर वह धनी पुरुष भी बहुत खुश हुआ।
उस आदमी ने अपने घर आए उस फकीर का स्वागत किया और पूछा, बताओ जी, कैसे आना हुआ, आपकी क्या सेवा करें? फकीर ने कहा पहले यह बताओ कि आपके कितने लड़के (बेटे) हंै? धनी व्यक्ति ने कहा कि मेरे दो लड़के हैं। सुनकर फकीर को रंज हुआ। गुस्से में आ के कहने लगा, मैंने तुम्हें महात्मा, भक्ति करने वाला और सच्चा इन्सान समझा था। तू तो बड़ा झूठा आदमी है। क्या मैंने तेरे पुत्र ले जाने थे या तेरी जायदाद बांट लेनी थी।
धनी व्यक्ति ने बड़ी नम्रता से कहा, महात्मा जी, आप बैठिए, पुत्र तो वाकई मेरे चार हैं, परन्तु मेरे दो पुत्र भक्ति के मार्ग में, भलाई में मेरा साथ देते हैं बाकी दो बेटे तो शराबी, कवाबी और बुरे कार्यों में लिप्त हैं। बुरे कर्म करने वाले हैं। वो मेरे होते हुए भी मेरे नहीं हैं। मैं उन्हें अपने पुत्र नहीं समझता। बल्कि वो तो मेरे कर्जदार हैं। इसीलिए मैंने कहा है कि मेरे दो पुत्र हैं। दूसरा यह कि मैंने आजतक अपने हाथों से जो धन परमार्थ, जरूरतमंदों के लिए खर्च किया है, वो ही धन मेरा अगले जहान में फलदायक होगा और वो ही धन मेरा अपना है।
पूजनीय गुरु जी ने फरमाया कि असल में इस संसार में आ के जो स्वयं परमार्थ करता है और दूसरों की मदद करता है, वो ही सच्चा साथी है और अपना है, नहीं तो वो पशु है। क्योंकि पशु हमेशा केवल अपने लिए सोचता है। इसलिए भाई, परमार्थ करना चाहिए। परमार्थ भाव परहित, दूसरों के बारे सोचना, दूसरों की भलाई के लिए सोचना।
भाव, खुद को छोड़ के दूसरों की मदद करो। पूजनीय गुरु जी ने फरमाया कि सृष्टि में कोई भी दु:खी है, कोई परेशान, गरीब, बीमार है, हर जरूरतमंद की मदद करें। यदि आप उनकी मदद करेंगे तो अल्लाह, राम मालिक तुम्हारी मदद जरूर करेगा। यदि आप किसी जरूरतमंद के लिए सोचेंगे तो मालिक तुम्हारे लिए सोचेगा। इसलिए अपने हृदय को परमार्थ के लिए हमेशा तैयार रखें।
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