Spiritual satsang

रूहानी सत्संग: Spiritual satsang पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा

मेहमान दो दिनों का, क्यों दिल यहां लगाया। जो काम करने आया, वो काम क्यों भुलाया।।

मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ, जो भी जीव यहां पर सत्संग पण्डाल, आश्रम में चल कर आए हैं, अपने कीमती समय में से समय निकाल कर आप लोग यहां पधारे हैं, कई बार मन रुकावट डालता है, मनमत्ते लोग रोकते हैं, इन सभी का सामना करते हुए आप लोग राम-नाम की कथा कहानी में बैठे हैं। आप सभी का सत्संग में पधारने का तहदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आयां नूं खुशामदीद कहते हैं, मोस्ट वैल्कम। आज जो आपकी सेवा में सत्संग होने जा रहा हैं, सत्संग का

भजन है :-

मेहमान दो दिनों का, क्यों दिल यहां लगाया।
जो काम करने आया, वो काम क्यों भुलाया।।

हे इन्सान! इस जहान, संसार में हमेशा के लिए नहीं रहना। यहां से एक दिन जरूर चले जाना है। यहां पर पहले लाखों लोग आए, संसार में रहे और जैसा उनका समय था वो समय लगाने के बाद ये संसार छोड़ कर चले गए। चाहे योद्धा, शूरवीर, सन्त, पीर-पैगम्बर, गुरु, महापुरुष, समाज सुधारक हुए, पर आज उनमें से कोई नजर नहीं आता। क्योंकि चाहे कोई मालिक का अवतार हो, सन्त, पीर, पैगम्बर हो, जो समय यहां रहने का निश्चित है उस समय में वो हेर-फेर नहीं किया करते। यानि जो यहां आता है एक दिन चला जाता है।

ये उस मालिक का नियम है और इस नियम की पालना भी हर कोई करता है। इस संसार से जाना जरूर है। जैसे मेहमान घर में आता है पर वो हमेशा के लिए घर में नहीं रहता। दो, चार दिन, जैसा वो समय बना कर आता है, जैसा वो ख्याल बना कर आता है उसी के अनुसार वो वापिस अपने घर चला जाता है जिस तरह कोई किसी शहर में या दूसरे नगर में अपने काम-धन्धे के लिए जाता है तो वहां वह किसी होटल में हमेशा के लिए नहीं, बल्कि जितनी देर उसका काम है, उतनी देर रहकर उसका किराया अदा कर वहां से लौट जाता है।

इसी तरह यह संसार है। यहाँ हमेशा के लिए कोई नहीं ठहरता। मेहमान की तरह, सराय की तरह लोग इस संसार में रहते हैं, कार्य करते हैं, धन्धा करते हैं और जैसे ही उम्र पूरी हो जाती है, शरीर में आत्मा की रहने की अवधि पूर्ण होती है वैसे ही आत्मा शरीर त्याग कर और ये संसार छोड़ कर चली जाती है। यह अटल सच्चाई है, जिसे झूठलाया या बदला नहीं जा सकता।

भाई! जब इस संसार से जाना है तो क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि आप चले जाओ लोग आपका नाम अपनी जुबान पर रखें। आपकी इज्जत अदब, शोहरत और अधिक बढ़ जाए। लोग आपका मान-सम्मान करें और आपका नाम॑ अमर हो जाए। ऐसा तभी सम्भव है अगर आप अच्छे-नेक कर्म करते हैं, भले कर्म करते हैं। अच्छे-नेक, भले कर्म इन्सान अगर करता जाता है तो उसको समाज में इज्जत-शोहरत मिलती है।

लोग अच्छाई-नेकी के रूप में हमेशा उसे याद रखते हैं। अच्छे कर्मों के साथ-साथ अगर आप ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब की भक्ति, इबादत करते हैं, मालिक के नाम का सुमिरन करते हैं, तो आप इस जहान में अमर होंगे ही और अगले जहान में भी आपकी आत्मा, आपकी रूह आवागमन से आजाद हो जाएगी। निजधाम, सचखण्ड, सतलोक में चली जाएगी। इसके लिए मालिक का नाम जपना बहुत जरूरी है।

भाई ! जाना जरूर है, यहां हमेशा के लिए नहीं रुकना। चाहे आप मानो चाहे न मानो, मौत, आखिरी तबदीली जिसे कहते हैं, वो लाजमी हर किसी के लिए है। वो आखिरी तबदीली आए उससे पहले-पहले आप अच्छे-नेक कर्म करें।

दुनिया में हर चीज की छ: महीना, साल, दो साल गारन्टी है। गारन्टी नहीं है तो इन्सानी शरीर की नहीं है। एक पैर उठाया दूसरा उठाने का हुक्म हो या न हो ये तो मालिक ही जानते हैं। भाई! समय जो आपके हाथ में है वो आपका अपना है, गुजर गया सो गुजर गया, उसके लिए पश्चाताप न करें।

आज जो समय आपके हाथ में है उसमें मालिक की भक्ति, इबादत करें ताकि आने वाला समय वो आपके लिए अच्छा-नेक बन जाए और आप सच्चा सुख आनन्द, लज्जत, खुशियां हासिल कर सकें। आपको आत्मिक शान्ति मिले, अन्दर का सुख मिले। भाई, यही बताया है कि तू इस संसार में एक मेहमान की तरह है और जैसे ही बुलावा आ गया सब कुछ छोड़ कर चले जाना है।

यही शब्द, भजन में आया है :-

मेहमान दो दिनों का क्यों दिल यहां लगाया।
जो काम करने आया, वो काम क्यों भुलाया,
वो काम क्यों भुलाया।

हे जीव ! तेरी जिन्दगी इस संसार के अन्दर एक रात के मेहमान की तरह है जो रात गुजार कर दिन होते ही चला जाता है। ऐसी हालत में ये जगत की आशा बांधे रखता है। ये तो वृक्ष की ढलती परछाई की तरह है। जैसे वृक्ष की छाया बदलती रहती है, एक जगह नहीं ठहरती वैसे ही तेरा इस संसार में रहना है। पहले बचपन, जवानी, बुढ़ापा और आखिर में मौत। इससे तुझे हो कर जरूर गुजरना है। समय बदलता रहता है और ये भी पता नहीं कि ये चारों अवस्थाएं तू भोग पाएगा या नहीं। क्योंकि कोई बचपन में ही चला जाता है, कोई जवानी में चला जाता है और कोई अधेड़ अवस्था में चला जाता है। संसार छोड़ना है और इसका पता नहीं है।

इस बारे में लिखा है :-

क्यों गाफल होकर सोया है,
आंखें मीट कर ऐ इन्सान।
जाग कर अपना काम मुका (समाप्त करना) ले
जिस लिए आया है जहान।
ये समय फिर हाथ नहीं आना,
तू पछताएगा अनजान।
इस दुनिया के अन्दर बन्दे,
चार दिनों का तू मेहमान।
मनुष्य जन्म अमोलक पाया,
इसका मिलना नहीं आसान।।

भाई! साथ-साथ भजन, शब्द चलेगा और साथ-साथ आपकी सेवा में अर्ज करते चलेंगे।

टेक : मेहमान दो दिनों का,
क्यों दिल यहां लगाया।
जो काम करने आया.
वो काम क्यों भुलाया।

1. घर काम अपना भूला,
माया में फंस गया है।
आता नजर जो सपना,
क्यों देख हंस रहा है,
क्यों देख हंस रहा है।
कुछ भी नहीं है तेरा,
अपना जिसे बनाया। जो काम……….

2, मानस जन्म है दुर्लभ,
मिलता न बार-बार।
खाने सोने में इसको बिरथा रहा गुजार
बिरथा रहा गुजार।
अन्त काम न आएगा,
साड़े कोई दबाया। जो काम…

3. साधन प्रभु मिलने का ,
इसी जन्म में करना।
संसार सागर भय का,
इसी जन्म में तरना।
इसी जन्म में तरना।
भवजल को वो तारेगा,
जिसने मल्लाह बनाया। जो काम…

4. चक्कर-चौरासी लम्बा,
जिसमें गुजर के आया।
नाम न लिया ‘गर तू,
वो दिन है फिर आया,
वो दिन है फिर आया।
मानो न मानो प्यारे
सब सन्तों ने बताया। जो काम…

भजन के शुरू में आया है :-
घर काम अपना भूला, माया में फंस गया है।
आता नजर जो सपना, क्यों देख हंस रहा है।
कुछ भी नहीं है तेरा,अपना जिसे बनाया।

Spiritual satsangहे इन्सान ! जो तेरा करने वाला कार्य था, तूने भुला दिया और जो कुछ नजर आता है उसी में फंस कर रह गया। आज इन्सान का उद्देश्य अपना रुतबा, इज्जत-शोहरत बढ़ाना, अपने लिए पैसा इकट्ठा करना और मायक पदार्थों के लिए दिन-रात एक कर देना बना हुआ है। इसी के पीछे लोग दौड़ रहे हैं, भाग रहे हैं और इसी साजो-सामान में सपने भी देखते हैं। यानि माया का जादू बड़ा अजीबो-गरीब है।

ये जादू जिस पर चलता है उसकी अक्ल, विवेक, बुद्धि सब काम छोड़ जाती है। कोई जागते-जागंते सपना देखते हैं कि मैं अरबोंपति बन गया, मैं करोड़ोंपति बन गया, मैं ये कर दूंगा, मैं वो कर दूंगा। इतनी दौलत होगी मेरे पास लेकिन खुद रजाइयां या चारपाई तोड़ते रहते हैं। करना-करवाना कुछ भी नहीं। सपने इतने बंडे कि हिमालय भी शायद छोटा पड़ जाए। बहुत बडी-बडी सोच, बड़े-बड़े सपने होते हैं। ये सपने कभी अपने नहीं होते जब तक इन्सान मेहनत नहीं करता। कई बातों की खाते हैं। बातों-बातों में लोगों को इतना कुछ दिखा देते हैं कि सुनने वाला दंग रह जाता है, प्रभावित हो जाता हैं कि वांकई भाई, ये तो बहुत कमाल का आदमी है!

हिम्मत के बिना बात कैसे सिद्ध हो, कैसे इच्छाएं पूरी हों! मक्कड़जाल की तरह इच्छाएं बुनता जा रहा है। कोई जोर तो लगता नहीं! सोचता जा रहा है। लेकिन करने के नाम पर करता-कराता कुछ नहीं है। फिर सपने पूरे नहीं होते। बेपरवाह जी के वचन हैं :

‘‘ सुपनेयां दे पुत पोते कदे देखे नहीं हल वाहुंदे।’’

सपने में बेटे बन जाएं तो वो कोई हल नहीं जोतते, आपका कार्य नहीं करते, धन्धा नहीं करते, वो तो सपने के हैं! फिर टैंशन, चिड़चिड़ापन और उससे लड़ाई-झगड़े, परेशानियां, गम, चिन्ताएं होती हैं। इसके अलावा उस इन्सान को और कुछ हासिल नहीं होता। भाई! ये तो जो तुझे नजर आता है ये फानी है, फनाहकारी, तबाहकारी है। तेरे देखते-देखते एक दिन ये सब समाप्त हो जाएगा या इसको देखते-देखते तेरी आंखें एक दिन खत्म हो जाएंगी यानि तेरा शरीर एक दिन खत्म हो जाएगा। इसको जला दिया जाएगा, राख हो जाएगा। इस पर विश्वास न कर। कर्म कर। अच्छे-नेक कर्म कर, प्रभु का नाम जप ताकि तुझे कुछ हासिल हो, सुख मिले।

आगे भजन में आया है :-

मानस जन्म है दुर्लभ, मिलता ना बार-बार
खाने सोने में इसको बिरथा रहा गुजार।
अन्त काम न आएगा, साड़े कोई दवाया।

इन्सान का शरीर दुर्लभ है। ईश्वर अल्लाह, राम को पाने का अवसर है। दिमाग से सोच-समझ, चौरासी लाख शरीरों में अगर किसी को प्रभु ने स्वतंत्रता, खुदमुख्तयारी बख्शी है तो वो इन्सान है। ये अपनी सोच समझ से अच्छे-नेक कर्म करता हुआ मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल बन सकता है। दया दृष्टि के लायक बन सकता है पर अगर मेहनत करेगा।

इस बारे में लिखा है:-
हम जन्म से लेकर मरने तक जिन्दगी खाने और सोने में गुजारते हैं पर अपने-आप और इसके आधार मालिक परिपूर्ण को नहीं जानते। हम बाहर वाली चीजों में मस्त हुए रहते हैं। फिर हम उस मालिक को, जो अन्तरमुख है, कैसे पा सकते हैं।

खाने सोने में इसको बिरथा रहा गुजार।
अन्त काम ना आएगा साड़े कोई दवाया।

जिस शरीर का तू मान करता है आखिरी समय में ये साथ जाने वाला नहीं है। तेरे अपने बेटे या तो चिता पर रख कर जला देंगे या धरती में दफना देंगे।
तू समय खाने-पीने में, ऐश उड़ाने में लगा रहा है। मन ने ये कहावत बना रखी है।
‘‘खाओ पीओ ऐश उड़ाओ,
ये जग मीठा अगला किसने देखा।’’
आगे आया है:-
साधन प्रभु मिलने का , इसी जन्म में करना।
संसार सागर भय का, इसी जन्म में तरना।
इसी जन्म में तरना।
भवजल को वो तरेगा, जिसने मल्लाह बनाया।
इस बारे में लिखा है:-
ये संसार भवसागर है। इसमें गुरु जहाज है और गुरु ही उसका कप्तान है। गुरु के बिना कोई भवसागर को नहीं तर सकता। उसकी कृपा द्वारा ही हम मालिक को मिल सकते हैं। उसके बिना किसी की मुक्ति नहीं हो सकती।

गुरु जहाजु खेवटु गुरु गुर बिनु तरिआ न कोइ।।
गुर प्रसादि प्रभु पार्डऐ गुर बिनु मुकति न होइ।।

गुरु शब्द का यहां जिक्र आया, तो ‘गु’ का मतलब अंधकार और ‘रू’ का मतलब प्रकाश है। जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान रूपी ज्योति जगा दे वो ही सच्चा गुरु है। अभी आपने गुरु-साहिबानों के पाक-पवित्र वचन भी सुने कि गुरु जहाज है, खेवनहार है, मल्लाह है, पार कराने वाला है और गुरु प्रसाद, जो वो मालिक की चर्चा करते हैं, ओम, हरि अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब की बात बताते हैं वो प्रसाद है। अगर मिल जाए और उस पर अमल किया जाए, उसे खाया जाए तभी मालिक की दया-मेहर के काबिल, लायक इन्सान बनता है।

‘साधन प्रभु मिलने का, इसी जन्म में करना। संसार सागर भय का इसी जन्म में तरना।
भवजल को वो तरेगा जिसने मल्लाह बनाया।

जो गुरु की शरण में आ जाते हैं, मन से बच जाते हैं, मनमती बातों से बच जाते हैं। सच्चे गुरु किसी को ठगते नहीं, लूटते नहीं, ठग्गी नहीं मारते। वो राम-नाम की चर्चा करते हैं और बदले में किसी से कुछ नहीं लेते। मालिक की चर्चा, प्रभु का नाम बताया और जिसने अमल किया, जो अमल करते हैं वो जीवन के उद्देश्य में सफल हो जाते हैं, उनको जरूर सुख-आनन्द, लज्जत खुशियां मिलती हैं।
आगे भजन में आया है:-

चक्कर-चौरासी लम्बा, जिसमें गुजर के आया।
नाम न लिया ‘गर तू, वो दिन है फिर आया।
मानो न मानो प्यारे सब सन्तों ने बताया।

इस बारे में लिखा है:-
जो रूहें नरकों में से निकलती हैं वो पहले वृक्षों में प्रवेश करती हैं, फिर कीडेÞ-मकौड़ों में, फिर पक्षियों में, फिर पशुओं में और फिर मनुष्य का जन्म लेती हैं।

कई जनम भए कीट पतंगा।।
कई जनम गज मीन कुरंगा।।
कई जनम पंखी सरप होइओ।।
कई जनम हैवर ब्रिख जोइओ।।
मिलु जगदीस मिलन की बरीआ।।
चिंरकाल इह देह संजरीआ।।

चौरासी का चक्कर लम्बा है जिसमें से गुजर कर आया है। इस बारे में हिन्दू रूहानी फकीर भी लिखते हैं कि आत्मा एक शरीर में जाती है, उस शरीर को छोड़ देती है दूसरे में चली जाती है, उसको छोड़ती है फिर उससे अगले वाले में चली जाती है। यूं आत्मा के साथ चौरासी लाख, जन्म-मरण का चक्कर चलता रहता है। इसके खत्म होने की सम्भावना तभी बनती है, जब आत्मा को इन्सान का शरीर मिले और इसमें प्रभु का सुमिरन करे तो आवागमन से मोक्ष मिलती है, अन्यथा चौरासी लाख में आत्मा भटकती रहती है। यही बात सिक्ख गुरु सािहबान भी बताते हैं:-

लख चउरासीह भ्रमतिआ दुलभ जनम पाइओइ।।
नानक नाम समालि तूं सो दिनु नेड़ा आइओइ।।

चौरासी लाख शरीरों में चक्कर लगाने के बाद, घूमने के बाद आत्मा को इन्सान का शरीर मिलता है और इसमें अगर प्रभु के नाम का सुमिरन किया तो छुटकारा है अन्यथा वो मौत का दिन नजदीक आता जा रहा है। इसी में प्रभु का नाम जप ले। अगर न जपा तो वो मौत का दिन नजदीक आ रहा है फिर तुझे चौरासी लाख से कोई बचा नहीं पाएगा। सन्त, पीर, फकीर, महापुरुषों ने जो लिखा ये सच्चाई है।

कुछ ऐसे शरीर जो पहले होते थे आज नहीं हैं पर आज कुछ ऐसे नए शरीर बन गए हैं वो पहले नहीं हुआ करते थे। चौरासी लाख शरीर सन्तों ने जो बताया उसका बैलैंस रूहानियत के अनुसार ज्यों का त्यों है। भाई ! कितनी बार तू पेड़-पौधे बना, कितना समय पशुओं में गुजारा, रेंगने वाले कीट-पतंगों में गुजारा, पक्षियों में गुजारा और इस तरह से घूमते-भ्रमते युग बीत गए, सदियां गुजर गईं तब जाकर इन्सान का शरीर मिला।

ये शरीर इसलिए मिला है कि तू बार-बार उन शरीरों में न जाए, जन्म -मरण का दुख न उठाए इसलिए इन्सान का शरीर मिला है। ये तभी सम्भव है अगर तू सुमिरन करे। सुमिरन करके देख। इसमें कोई टैक्स नहीं लगता। न पैसा देना, न धर्म छोड़ना, न पहनावा बदलना। आप प्रयोग करके देखो, वो शब्द, तरीका है। उसको अजमा कर देखो। सच्चे दिल से, लगन से, तड़प से अंगर आप सुमिरन करेंगे मालिक की मेहर, रहमत के काबिल आप जरूर बन पाएंगे।

यही भजन में आया है :-

चक्कर-चौरासी लम्बा, जिसमें गुजर के आया।
नाम न लिया ‘गर तू, वो दिन है फिर आया।
मानो न मानो प्यारे सब सन्तों ने बताया।

सब सन्तों ने, पीर-फकीरों ने यही समझाया है कि भाई! मौत अवश्य आएगी चाहे तू मान या न मान, ये सच है। इंसान इस बात को कभी नहीं मानता। जब यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा कौन सा है ? तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि एक जिन्दा इन्सान ये देखता है कि उसके हम-उम्र, उससे छोटे वाले, उससे बड़ी उम्र के लोग ये संसार छोड़ कर मर रहे हैं, जा रहे हैं पर वो इन्सान, वो जिन्दा इन्सान कभी नहीं मानता कि उसने भी एक दिन चले जाना है। यही संसार का सबसे बड़ा अजूबा है। भाई! मानने न मानने से क्या होगा। सब कुछ धरा-धराया रह जाता है। सब साधन पड़े रह जाते हैं। जब बुलावा आता है तो आत्मा शरीर छोड़ कर चली जाती है।

थोड़ा-सा भजन और है जी, चलिए
5. मायक पदार्थों ने अन्धा बना दिया है।
शरीअत, अक्ल-इल्म ने.
पारा चढ़ा दिया है, पारा चढ़ा दिया है।
सत्संग में जाना नाम लेना,
कभी न भाया। जो काम….
6. मरना है बात सच्ची,
जिसको भुला है बैठा।
निकलेगा जब दीवाला, खबर पड़ेगी सेठा
खबर पड़ेगी सेठा।
‘ कुल्ले उतर जाएंगे, यमराज ने बुलाया।
जो काम….
7. नीचा गिराके मन को,
सन्तों की बात सुन जी।
सब गम मिटाने वाली,
हो रही मीठी धुन जी,
हो रही मीठी धुन जी।
बहरा बनाया मन ने
‘ शाह सतनाम जी’ सुनाया। जो काम…।।
भजन के आखिर में आया:-

मायक पदार्थों ने अन्धा बना दिया है।
शरीअत, अक्ल-इल्म ने, पारा चढ़ा दिया है,
पारा चढ़ा दिया है।
सत्संग में जाना नाम लेना, कभी न भाया।

इन्सान को माया तंग करती है, मन तंग करता है। लेकिन जब गरीब होता है, पैसा पास में नहीं होता तब मालिक का नाम भी अच्छा लगता है, प्यार भी बढ़ता है और खुशी भी आती है। लेकिन जैसे ही पैसा बढ़ गया, रुतबा बढ़ गया, तो मालिक को भी भुला दिया और मालिक से प्यार भी कम होता चला जाता है। कई इन्सान अक्ल-इल्म की तमीज नहीं रखते। उतनी अक्ल नहीं होती लेकिन पारा चढ़ा रहता है। पैसा आ गया, कोई रुतबा आ गया,

मैं ये बन गया। मैं वो बन गया, यानि अहंकार में इतना पारा ऊपर चढ़ जाता है कि राम-नाम उसे फीका लगने लगता है। उसके लिए तो मैं ही सब कुछ हूं। मैं ऐसे करूं तो बढ़िया। मेरी बात मानो तो बढ़िया। ऐसा अहंकार इन्सान के अन्दर कि ओ३म, हरि, अल्लाह, राम का नाम भाता नहीं। शरीअत या फिर धर्म मजहब का चक्कर चल पड़ता है। उसके जाल में इन्सान फंस कर प्रभु से दूर हो जाता है कि मैं ये हूं, मैं वो हूं। अमल करना नहीं, सिर्फ दिखावा ही दिखावा है।

भाई ! ये पारा ज्यों-ज्यों चढ़ता है त्यों-त्यों मालिक से दूरी बढ़ती है। इन्सान को गुमान, घमण्ड नहीं करना चाहिए, अहंकार नहीं करना चाहिए। मालिक की दात जब इन्सान को मिलती है तो कई फट जाते हैं। सब कुछ उनको मिलता है, सब कुछ हासिल भी कर लेते हैं, ऐशो-आराम की जिन्दगी गुजारते हैं पर फिर भी दोष वो मालिक में निकालते हैं। जो ऐसे कमियां निकालते हैं वो ठोकर भी खाते रहते हैं, खुशियां हासिल नहीं कर पाते।

नहीं भाई! अहंकार ना करो। खुदी न करो। खुदी, अहंकार प्रभु के प्यार में सबसे बड़ी रुकावट है। जो इन्सान खुदी-अहंकार करता है, उस इन्सान को मालिक की दया-मेहर, रहमत नहीं मिलती। अहंकार को मार है। रावण के पास क्या कमी थी। बहुत बड़ा धनाढ्य था। बहुत औलाद थी। बड़ा ज्ञानी था। वैज्ञानिक था। आज तक वैसा वैज्ञानिक नहीं हुआ। वो जब चाहता था बरसात करवा लेता था। अब वालों से तो अभी तक यह सम्भव नहीं हो पाया है।

लेकिन सब कुछ होते हुए भी उसने अहंकार किया कि मौत मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती और पराई औरत को उठाया। फिर उसका हशर जो हुआ आप जानते हैं। इसलिए अहंकार न करो। खुदी न करो। खुदी-गुमान में डूबे मत फिरो। अरे! अहंकार करोगे तो खुशियों से वंचित रहोगे और तड़पते रहोगे, बीमार, बैचेन रहोगे और आनन्द लज्जत आपको नहीं मिल पाएगी।

आगे आया है. :-
मरना है बात सच्ची, जिसको भुला है बैठा।।
निकलेगा जब दीवाला, खबर पड़ेगी सेठा,
खबर पड़ेगी सेठा।
कुल्ले उतर जाएंगे, यमराज ने बुलाया।

मरना सच्ची बात है पर तुझे समझ तब आएगी, जब दीवाला निकल गया। जब तेरी मौत आई तब तुझे पता चलेगा। तेरे बेटे साथ नहीं जा रहे, तेरी धन-दौलत, बैंक-बैलैंस यहीं रह गए। तेरा मकान साथ नहीं जा रहा। कोई भी बेटा-बेटी दु:ख-दर्द नहीं बंटा रहा। होशियारी गायब हो जाएगी और कुल्ले उतर जाएंगे। पता चल जाएगा कि मैं क्या मैं…मैं कर रहा था, ये मेरा-मेरा, कुछ भी साथ नहीं जा रहा, तड़पना पड़ेगा पर फिर कुछ नहीं बनेगा।

‘फिर पछताए होत क्या
जब चिड़िया चुग गई खेत।’
पहले सम्भाल नहीं की और जब चिड़िया चुग गई फिर पश्चाताप के अलावा कछ भी हासिल नहीं होता।

Spiritual satsangमौत क्या है? क्या हमें मरने के समय कोई दर्द होता है? इस दर्द के बारे श्री मद-भागवत में जिक्र आया है कि मौत के वक्त रूह के शरीर से निकलने पर इतना दर्द होता है जितना सौ हजार बिच्छू इकट्ठा डंक मारे। पवित्र कुरान शरीफ में भी रूह के जिस्म से अलग होने पर दर्द होने का वर्णन है। वहां बताया है कि उस समय इतना दर्द होता है जितना कांटों वाली झाड़ी को गुदा के रास्ते पाकर मुंह के रास्ते खींच कर निकाला जाए। पवित्र गुरुवाणी में भी इसका अनुमान दिया है :-
जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ।।’

मौत का दर्द बेशुमार होता है। अभी आपने सुना और यही बात बेपरवाह मस्ताना जी महाराज, परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज फरमाते हैं कि जैसे तिल्ले से कढ़ाई किया हुआ रेशमी कपड़ा है उस पर कांटेदार झाड़ी रख कर खींच दें जैसे वो तिल्ला तार-तार हो जाता है, कपड़े का जो हाल होता है वो ही हशर मौत के समय आत्मा का होता है। दु:ख झेलना पड़ता है। यह भी लिखा है कि आत्मा शरीर को ऐसे छोड़ कर चली जाती है जैसे कपड़ा उतार देते हैं। ये तभी सम्भव है जब राम-नाम का सुमिरन किया जाए। ओउम, हरि, अल्लाह, मालिक की भक्ति-इबादत की जाए। अगर उसकी भक्ति, याद में समय लगाया जाए, तो मौत का डर मिट जाता है। कोई कलह -कलेश विघ्न नहीं लगता। आत्मा निजधाम जरूर पहुंंचती है।

भजन के आखिर में आया है:-
नीचा गिरा के मन को, सन्तों की बात सुन जी।
सब गम मिटाने वाली,हो रही मीठी धुन जी।
बहरा बनाया मन ने ‘ शाह सतनाम जी’ सुनाया।

सन्तों के वचन इन्सान सुनता नहीं, सुनता है तो मानता नहीं और मानता है तो पूरे नहीं, जितने कि ठीक-ठीक माने जाएं। जिसके मानने में पसीना आए, परेशानी आए वो नहीं मानता। जो आसानी से माने जाएं कहता, ये तो मैं मानूंगा, ये तो मैं मानता हूं। भाई ! ये मन पारा चढ़ाए रखता है, सन्तों की बात को सुनने नहीं देता। सन्त वचन करते हैं और ये उनकी धज्जियां उड़ा देता है यानि अमल नहीं करता। अपनी अक्ल-चतुराई, आप समझते हैं कि मैं बहुत ज्यादा होशियार हूं, बहुत अक्ल वाला हूं। कुछ देर के लिए उसे छोड़ दीजिए। मन को नीचा गिराइए।

इसके पारे से बचकर फिर दीनता, नम्रता धारण करके सन्त, पीर फकीर जो बात सुनाते हैं कि अल्लाह, राम का नाम सब सुखों की खान है। उसकी मीठी धुन आपके अन्दर आ रही है जो गम-चिन्ता मिटा देती है, उसे सुनो और सुख, शान्ति, आनन्द, लज्जत हासिल करो। ये तभी सुनेगा अगर मन का पारा नीचा आएगा।

जब मन का पारा ऊपर होता है, वैसे भी अगर देखें पारा यानि बुखार हो जाता है किसी को, उसको खाने को कुछ देते हैं कहता नहीं, मैं कुछ नहीं खाता, मुझे अच्छा नहीं लगता। पर जब वो पारा नॉरमल-बुखार जितना होना चाहिए उससे नीचे आ जाए, फिर जो कुछ भी पड़ा होता है सब खा जाता है।

कहता, नहीं, भूख लगी है। कमजोरी आ गई। वैसे ही इन्सान का हाल है। जब इसका मन रूपी पारा, बुरे विचारों का पारा, अपनी अक्ल-चतुराई का पारा चढ़ा होता है तब तो राम-नाम की, सन्तों की कोई बात अच्छी नहीं लगती। जब विपदा, मुसीबत, परेशानी आ जाती है तब पारा इतना नीचे गिर जाता है कि फिर कहता है, नहीं जो भी सन्तों की बात होगी मैं जरूर मानूंगा पर तब कमजोरी ऐसी आ जाती है कि मान नहीं पाता।

नीचा गिरा के मन को सन्तों की बात सुन जी।
इस बारे में लिखा है :-
सन्त, महात्मा से पूरा लाभ वो उठा सकता है जो दीनता सहित उनके पास पहुंचता है। जो शख्स पहले ही इल्मीयत के गुमान से भरपूर है वो अपनी मान-बढ़ाई के अहंकार में उनके पास पहुंचता ही नहीं और यदि कहीं पहुंच भी जाए तो उसको कुछ हासिल नहीं हो सकता है। जब सन्त-महात्मा के दरबार में पहुंचना हो तो अहंकार से ‘खाली होकर जाओ, नम्रता और दीनता के प्याले को लेकर जाओ।

अहंकार छोड़ कर दीनता, नम्रता से संत, पीर, फकीर की बात सुनोगे तो वो आप पर असर करेगी। अगर पहले ही आप के अन्दर ज्ञान है कि मैं बहुत ज्ञानी हूं, मैंने तो बहुत सुन रखा है, मैं तो बहुत जानता हूं। आपने अपनी जिन्दगी में जो समय गुजारा उसमें नजर मार कर देखो कि आपने कितना सुना और उसमें से कितना अमल किया है।

Spiritual satsangसन्त कहते हैं कि सबसे प्रेम करो, आपने कितने लोगों से प्रेम किया? किस-किस से आपने बना कर रखी? किससे नहीं झगड़े? चलो, दूसरी बात, फिर आप ये सोचो कि नि:स्वार्थ, बेगर्ज प्यार-मोहब्बत आपने कितने लोगों से किया ? फिर ये सोचो कि आपने वचनों पर अमल कितना किया ? जो तीन परहेज बताए, जो वचन सन्त सत्संग में करते हैं, जैसे – व्यवहार के सच्चे बनो, अहंकार न करो, मान-बड़ाई के चक्कर में न पड़ो, क्या आपने अमल किया ?

जहां तक हमारा विचार है इन सब पहलुओं पर जब आप नजर दौड़ाएंगे तो जरूर आपको अपने जीवन में कमियां नजर आ जाएंगी। अगर आप में कमियां हैं आप दूसरों की कमियां क्यों गाते हैं? मालिक में दोष क्यों निकालते हैं? जब आप अपनी कमियां दूर करना नहीं चाहते तो मालिक की दया-मेहर, रहमत कैसे होगी ? पहले अपने बारे में सोचो जो कमियां हैं राम-नाम के सहारे उनको छोड़ो तो फिर सन्तों की बात सुनो। आपके अन्दर सब गम-चिन्ता, परेशानियों को मिटाने वाली धुन हो रही है, उसे सुनो।

हिन्दू धर्म में आता है :-
‘‘धुन आ रही गगन से, तुझ को बुलाने के लिए।
गम, दु:ख दर्द मिटाने के लिए।’’
यही बात सिक्ख धर्म में आती है :-
धुर की वाणी आई।।
जिनि सगली चिंत मिटाई।’

मुसलमान फकीर लिखते हैं :-

‘वांगे इलाही जब आता है गमों से निजात दिलाता है। वो वांगे इलाही, वो धुन, वो आवाज, अमृत, आबोहयात्, हरि रस, आत्मिक शक्तियां आपके अन्दर लबालब भरी हैं।

‘‘भीखा भूखा को नहीं, सबकी गठड़ी लाल।
गिरहा खोल नहीं जानते, तांते भए कंगाल।।’’

भीखा जी रूहानी संत हुए हैं, कहते हैं कि सभी के अन्दर ओ३म, हरि, अल्लाह, राम का जलाल, नूरे जलाल है पर मन-माया की गांठ पड़ गई है, वो खोलनी नहीं आती। मन का पारा चढ़ा रहता है, अक्ल-इल्म में फंसा रहता है। वो पारा उतरता नहीं है। अपनी अक्ल-चतुराई से बाज नहीं आता तो वो गांठ नहीं खुलती। जब तक वो गांठ नहीं खुलेगी सुख नहीं मिलेगा। वो मन-माया की गांठ राम-नाम से खुलेगी। उस गांठ को खोल, तो तुझे मालिक की दया-मेहर, रहमत नसीब होगी उसकी दया-दृष्टि के लायक, काबिल तू बन पाएगा।

इस बारे में लिखा है :-
सच्चा शब्द धुनात्मक है जो बोलने और लिखने में नहीं आ सकता। ये हमारे अन्दर धुनकारें दे रहा है। ये वो ही शब्द है जिससे सब पैदाइश अस्तित्व में आई।

‘‘बहरा बनाया मन ने
‘शाह सतनाम जी’ सुनाया।’’

Spiritual satsangसच्चे मुर्शिदि कामिल शाह सतनाम जी महाराज फरमाते हैं कि सन्त, फकीर तो कोई कमी नहीं छोड़ते किसी को समझाने में। अगर कोई सही तरीके से सुने, ध्यान दे तो पसीने छूट जाते हैं कि ये बात मुझे कह रहें हैं, मेरे को कह रहे हैं। यही सच्ची सत्संग होती है जिसमें इन्सान को लगे कि हां, ये बात मुझे कही जा रही है।

भाई, मन जालिम, नफज-शैतान, बुराई की जड़ है जो दुनिया में फंसाता है, दुनिया के मोह-प्यार में उलझाता है, अहंकार में फंसाता है। वो बहरा बना देता है। मालिक की बात, चर्चा सुनने नहीं देता। मन को रोकने के लिए, नफज-शैतान के पारे को कम करने के लिए वो तरीका, युक्ति है जिसे नाम, गुरमंत्र, शब्द कहते हैं।

वो नाम, शब्द, गुरमंत्र, कलमां जिस पर कोई पैसा-पाई, फीस, माथा-टिकाई नहीं देना पड़ता और न ही धर्म छोड़ना, पहरावा बदलना पड़ता है। नाम-शब्द रूहानी पीर-फकीर बिल्कुल मुफ्त बताते हैं।

उन अक्षरों का जाप करें, निरंतर सुमिरन करें तो मन, नफज-शैतान काबू आएगा और मालिक के दर्श-दीदार भी जरूर होंगे तथा आत्मा को आत्मिक खुशी, लज्जत, मुक्ति भी हासिल होगी। आशीर्वाद! आशीर्वाद!!

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!