पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत -सत्संगियों के अनुभव
मिस्त्री रोहतास इन्सां सुपुत्र श्री बुधनाथ गांव मानस तहसील व जिला कैथल (हरियाणा)। प्रेमी जी अपने सतगुरु-मुर्शिद प्यारे डॉ. एमएसजी (पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) के अपार रहमो करम का एक करिश्मा लिखित में इस प्रकार बताते हैं।
प्यारे सतगुरु जी की अपार रहमत से मुझे 26 जनवरी 1992 को नाम, गुरुमंत्र की दात प्राप्त हुई है। नाम-शब्द लेने से पहले मुझे हर समय बहुत चिंता रहा करती बल्कि नाम, प्रेम, सत्संग आदि कोई भी बात मुझे जरा भी भाती नहीं थी। जैसे ही सतगुरु प्यारे की दया-रहमत हुई, मुझे नाम-शब्द मिला है, सब चिंता, फिक्र, उदासियां खत्म हो गई और हर समय मालिक द्वारा बख्शी खुशी चेहरे पर छाई रहती है।
घटना इस प्रकार है:-
नाम-शब्द मिलने से करीब एक महीना पहले पूज्य गुरु जी संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के एक दिन सपने में मुझे दर्शन हुए। पूज्य गुरु जी मेरी दुकान के पास आए थे। मेरी दुकान के आगे उस समय 4-5 प्रेमी बैठे हुए थे। पूज्य पिता जी ने एक प्रेमी भाई का नाम लेकर फरमाया कि फलां प्रेमी का क्या मुकाबला है। उसे तो शहनशाह परम पिता शाह सतनाम जी महाराज सुबह-शाम (रोजाना) दर्शन देते हैं। (मैं अपने सपने का जिक्र कर रहा हूं।) पूज्य शहनशाह जी मेरी दुकान से कुछ दूरी पर ही खड़े थे। उपरान्त पिता जी ने आकर मेरे ऊपर एक खेस ओढ़ाया और मुझे सुला दिया। उसके बाद 18 जनवरी 1992 को फिर मुझे सपना आया, मेरी दुकान से 40-50 गज की दूरी पर जो पुलिया बनी हुई है, मैं देखता हूं वहां पर चार व्यक्ति बैठे हुए हैं। वो मांस-मिट्टी लिए बैठे थे।
वे मुझे भी कहने लगे कि रोहतास, आजा। तू भी खा ले! (तब तक मुझे नाम नहीं मिला था) मेरा दिल भी करे कि खा लूं। मैं अभी यह सोच ही रहा था कि इतने में पूज्य शहनशाह जी मुझे मात्र दस गज की दूरी से सड़क के किनारे-किनारे आते नजर आए। पूज्य गुरु जी ने आते ही उन्हें फरमाया, नहीं भाई नहीं। ये नहीं खाता। इस जीव को नाम मिलने वाला है। उसी महीने यानि 26 जनवरी (26 जनवरी 1992) को मुझे नाम की अनमोल दात प्राप्त हो गई। नाम शब्द लेने के दो दिन बाद यानि 28 जनवरी को सच्चे पातशाह जी के फिर मुझे सपने में दर्शन हुए। पूज्य गुरु जी का हंसता खिला चेहरा मेरे दिल में समा गया। सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘भजो भजो, भाई भजन करो’। और उसके बाद मैं लगातार थोड़ा-थोड़ा सुमिरन करने लगा।
वो 2 फरवरी 1992 की रात थी। खाना खाने के बाद जब हम लोग सोने जा रहे थे, मेरे बच्चे, परिवार वाले और मेरी पत्नी डेरा सच्चा सौदा के बारे पूछने लगे कि दरबार में कितने कमरे बने हैं, दान चढ़ावा वहां कुछ नहीं लेते, तो इतने लोगों का लंगर भोजन कहां से आता है, इत्यादि-इत्यादि। लगभग पौन घंटा हम लोग ऐसे चर्चा करते रहे। पूज्य पिता जी की दया-मेहर से मैं उनके सवालों के जवाब जो मैंने पूज्य गुरु जी के सत्संग में सुना था, बराबर देता रहा। मेरे जवाब सही थे या गलत थे, वो खुद मालिक जानते हैं, परंतु उस रात नजारा अंदर से इतना बना, मालिक के रहमो-करम से खुशी इतनी मिली कि मुझमें ताकत नहीं, बयान कैसे करूं।
हमारे घर में जब हम सोए हुए थे, दोनों कमरों में हीरे, मोती, जवाहर, पन्ने, दीवारों व छतों पर जड़े मुझे सपने में दिखाई दिए और कमरों में इतना जबरदस्त प्रकाश था जो कि जिंदगी में मैंने कभी नहीं देखा था। सुंदर-सुंदर हूर परियां, परे हमारी चारपाइयों के चहुंओर घूम रहे थे। यह अदभुत नजारा लगभग चार घंटे बराबर बना रहा। सतगुरु प्यारे के वचनानुसार कि ‘भजो-भजो, भाई भजन करो।’ तो पूज्य शहनशाह जी ने अपने अपार रहमो-करम का यह करिश्मा इस अदभुत नजारे के रूप में मुझे दिखाया। मैं अपने सतगुरु प्यारे का लाख-लाख धन्यवाद करता हूं जो हमें गंदगी (नरक) से निकाल कर अपनी शरण में लिया है और नाम शब्द देकर हमारा उद्धार किया है।
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