किसान और चूहे की मूंछ
एक छोटे से गांव में एक बहुत गरीब किसान रहता था। उसकी बड़ी-बड़ी मूंछें उसकी शान थीं। उसकी मूंछों की बराबरी करने वाला आसपास के गांवों में कोई न था।
एक दिन किसान की मूंछों के साथ बहुत बुरा हुआ। दिनभर की थकान के बाद किसान चटाई पर गहरी नींद सोया था। तभी एक भूखा चूहा खाने की तलाश में झोंपड़ी में आया। बहुत खोजने के बावजूद उसे कुछ भी नहीं मिला।
चूहे को किसान पर गुस्सा आ रहा था कि इस इन्सान ने उसके खाने लायक एक दाना भी घर में नहीं छोड़ा है। वह घर से बाहर जाने ही वाला था कि तभी उसे आराम से सोए किसान की मूंछें नजर आईं।
‘मुझे भूखा रखने के लिए इसे सजा मिलनी चाहिए।‘ चूहे ने सोचा और फिर अपने पैने दांतों से मूंछों को कुतर दिया। फिर वह वहां से भाग गया।
रोज की तरह जब किसान ने सुबह उठ कर मूंछें एेंठनी चाहीं, तो उसे झटका सा लगा। एक ओर की मूंछें उसे छोटी लग रही थीं। शीशे में चेहरा देखा तो मूंछें देख रोआंसा हो उठा। उसकी खूबसूरत मूंछें आधी रह गई थीं। आखिर ऐसा कैसे हो गया? तभी उसे जमीन पर मूंछों के कटे बाल दिखे तो सारी बात उसकी समझ में आ गई।
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‘चूहे…..चूहे तूने मेरी मूंछें कुतरी हैं।‘ किसान गुस्से से चीखा। फिर उसने मन ही मन निर्णय किया कि मूंछें कुतरने वाले चूहे को मार कर ही वह दम लेगा। उसी दिन किसान बाजार गया और एक चूहेदानी खरीद लाया। चूहों को लालच देने के लिए उसने थोड़ा गुड़ भी खरीदा। रात में उसने चूहेदानी में थोड़ा सा गुड़ रखा। उसके आसपास भी थोड़ा गुड़ बिखेर दिया ताकि चूहा चूहेदानी तक पहुंच सके।
किसान चटाई पर लेट गया पर उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे चूहे का बहुत बेचैनी से इंतजार था। थोड़ी देर बाद किसान को आवाज सुनाई दी तो वह चौकन्ना हो गया। उसने देखा कोने वाली दीवार के नीचे बने छेद से एक मोटा चूहा निकल कर चूहेदानी तक पहुंचा। फिर चूहेदानी के आसपास बिखरे गुड़ को खा कर वह चूहेदानी में घुस गया।
फटाक की आवाज हुई तो किसान समझ गया कि चूहा चूहेदानी में कैद हो गया है। किसान ने उठ कर लालटेन जलाई। ‘मैंने तुम्हें पकड़ लिया।‘ किसान खुशी से चीखा। डरा हुआ चूहा चूहेदानी के अंदर घबराया हुआ इधर-उधर दौड़ रहा था।
‘तुमने क्या सोचा था कि मेरी खूबसूरत मूंछों को खराब कर तुम आसानी से बच जाओगे? कल मैं सबसे पहला काम यही करूंगा कि तुम्हें चूहेदानी समेत पानी में डुबो कर मार डालूंगा।‘ किसान ने गुस्से में कहा।
यह सुन चूहे की हालत खराब हो गई। डर से वह थर-थर कांपने लगा। उसे लगा कि अब उसका आखिरी समय आ गया है। ‘दया करो।‘ चूहा गिड़गिड़ाया, ‘मुझे जाने दो। मैं बहुत भूखा था। इसलिए गलती से तुम्हारी मूंछें कुतर डालीं। मैं वादा करता हूं कि आइंदा फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा।‘
पर किसान ने उसकी एक न सुनी। वह बहुत गुस्से में था। ‘अब रोने से कोई फायदा नहीं है।‘ किसान बोला, ‘मैं तुम्हें दंड जरूर दूंगा।‘
चूहा धूर्त तो था ही, सो सारी रात बचने का उपाय सोचता रहा। दूसरे दिन भी किसान जल्दी उठ गया। जब वह तैयार हो रहा था, तभी चूहे ने पुकारा, ‘क्या तुम मुझे डुबोने जा रहे हो?‘
‘हां, इसी वक्त।‘ किसान बोला।
‘लेकिन मेरे भाई, क्या यह सही दंड होगा? तुम्हें तो जैसे को तैसे वाला दंड देना चाहिए। मैंने तुम्हारी मूंछें कुतरी हैं, इसलिए तुम्हें भी मेरी मूंछें काट देनी चाहिए।‘ चूहे ने बड़ी चालाकी से कहा।
‘तुम्हारी मूंछें? तुम्हारी तो मूंछें ही नहीं हैं। तुम तो चूहे हो।‘ किसान ने मजाक उड़ाते हुए कहा।
‘तुम गलती कर रहे हो।‘ चूहे ने फौरन जवाब दिया, ‘जरा झुक कर देखो, मेरी मूंछों जितनी लंबी मूंछ चूहे जाति में किसी के पास नहीं।‘
किसान ने झुक कर चूहेदानी में देखा। ‘अरे हां, तुम्हारी भी लंबी मूंछें हैं।‘ किसान आश्चर्य से बोला।
‘ये दुनिया के चूहों में सबसे खूबसूरत मूंछें हैं।‘ चूहा बोला, ‘मुझे इन पर नाज है। इन्हें खोने का मुझे बहुत दु:ख होगा, किंतु जो मैंने किया है, उसके लिए यही सजा वाजिब है। तुम कैंची से बिना देर किए इन्हें काट डालो।‘
किसान को चूहे की बात पसंद आई। फिर वह जैसे ही कैंची लाने को मुड़ा, चूहे ने पुकारा, ‘भाई, मुझे इस चूहेदानी से बाहर निकालो ताकि मैं आखिरी बार अपनी प्यारी मूंछों को कंघी कर सकूं। रातभर इस पिंजरे में रहने के कारण मूंछें उलझ गई हैं।‘
फिर किसान ने जैसे ही चूहेदानी खोली, चूहा तुरंत अपने बिल में घुस गया। चूहे को बिल में घुसता देख किसान बोला, ‘बाहर आओ।‘
अंदर से चूहा हंसता हुआ बोला, ‘कभी नहीं। मूंछों के कारण ही तो मुच्छड़ सिंह से मेरी जान बची है। फिर बिना मूंछों के मेरी शान ही क्या रह जाएगी।‘ किसान गुस्से से हाथ मलता रह गया।
-नरेंद्र देवांगन