वो बिन मांगे ही सब कुछ देता रहता है…
अकबर और बीरबल के किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं। वे किस्से कितने थे और विद्वानों ने अपनी बुद्धि के अनुसार कितने किस्से उनमें और जोड़े, यह किसी को ज्ञात नहीं। अकबर विभिन्न विषयों पर बीरबल से प्रश्न पूछते थे। बीरबल अपनी सूझबूझ और धैर्य से उन प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें सन्तुष्ट करते थे। बाजार में भी इनके किस्सों की पुस्तकें उपलब्ध हैं। बहरहाल, हम एक ऐसे किस्से पर चर्चा कर रहे हैं जो ईश्वर के प्रति हमारे विश्वास को और अधिक दृृढ़ करता है। परमपिता परमात्मा से बढ़कर और अन्य कोई नहीं है, जो हमारी झोलियाँ अपनी नियामतों से भर सकता है। हम ही उन्हें पाने के लिए स्वयं को योग्य नहीं बना पाते।
एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा, ‘तुम लोग दिन में कभी मन्दिर जाते हो, कभी पूजा-पाठ करते हो। आखिर भगवान तुम्हें देता क्या है?’ बीरबल ने इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कुछ दिन का समय माँगा। बीरबल ने एक बूढ़ी भिखारन के पास जाकर कहा- ‘मैं तुम्हें पैसे भी दूँगा और रोज़ाना खाना भी खिलाऊँगा। तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।’
बुढ़िया ने कहा- ‘ठीक है जनाब।’
बीरबल ने कहा- ‘आज के बाद अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या चाहिए, तो कहना कि अकबर! अगर कोई पूछे कि किसने दिया, तो कहना कि अकबर शहंशाह ने।’ वह भिखारिन अकबर को बिलकुल नहीं जानती थी, पर प्रतिदिन वह हर बात में अकबर का नाम लेने लगी। कोई पूछता क्या चाहिए तो वह कहती- ‘अकबर’। कोई पूछता, किसने दिया? तो कहती- ‘अकबर मेरे मालिक ने दिया है।’
धीरे-धीरे यह सारी बातें अकबर के कानों तक भी पहुँच गई। वह खुद भी उस भिखारन के पास गया और पूछा- ‘यह सब तुझे किसने दिया है?’ उसने जवाब दिया- ‘मेरे शहंशाह अकबर ने मुझे सब कुछ दिया है।’
अकबर ने फिर पूछा- ‘और क्या चाहिए?’ बड़े अदब से भिखारन ने कहा- ‘अकबर का दीदार! मैं उसकी हर रहमत का शुक्राना अदा करना चाहती हूँ, बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए।’
अकबर उसका प्रेम और श्रद्घा देखकर निहाल हो गया और उसे अपने महल में ले आया। भिखारन तो हक्की-बक्की रह गई और अकबर के पैरों में लेट गई-‘धन्य है मेरा शहंशाह।’ अकबर ने उसे बहुत सारा सोना दिया, रहने के लिए घर दिया और सेवा करने वाले नौकर भी देकर उसे विदा किया। तब बीरबल ने कहा- ‘महाराज! यह आपके उस सवाल का जवाब है। जब इस भिखारिन ने सिर्फ कुछ दिन ही सारा समय आपका नाम लिया तो आपने उसे निहाल कर दिया। इसी तरह जब हम सारा दिन सिर्फ मालिक को ही याद करेंगे तो वह हमें अपनी दया की मेहर से निहाल और मालामाल कर देगा।’
एक सांसारिक बादशाह के सुमिरन से इतना कुछ मिल सकता है। उस मालिक ने, जिसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और बादशाह बनाए हैं, उसके सुमिरन से कितनी नियामतें मिलेंगी? वह तो बिनमाँगे ही हमें सब कुछ देता रहता है। हमारा आँचल ही छोटा पड़ जाता है। दिनभर, सोते-जागते, उठते-बैठते, चलते-फिरते मालिक का ध्यान करते रहना चाहिए। आठों पहर उसके नाम का सुमिरन करते रहना चाहिए। एक बार हमारा ध्यान लग गया तो बस बेड़ा पार हो जाएगा। तब फिर चौरासी लाख जुनियों और जन्म-मरण के बन्धनों से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है। -चन्द्र प्रभा सूद